हवा में उड़ना, हमेशा जवान रहना और सारे रोगों का नाश करने वाली रहस्यमयी मुद्राओं का खुलासा
आश्चर्यजनक शक्तियां प्रदान करने वाली ये मुद्रायें हठयोग के अन्तर्गत वर्णित हैं। मुद्राओं का तत्काल और सूक्ष्म प्रभाव शरीर की आंतरिक ग्रन्थियों पर पड़ता है। इन मुद्राओं के माध्यम से शरीर के अवयवों तथा उनकी क्रियाओं को प्रभावित, नियन्त्रित किया जा सकता है। विलक्षण चमत्कारी फायदा पहुचाने वाली इन मुद्राओं का अलग-अलग क्रिया विधि है। उनमें से कुछ अति महत्वपूर्ण मुद्राओं की क्रिया विधि और उनके फायदे निम्नलिखित हैं-
(1) खेचरी मुद्रा – इसे खेचरी मुद्रा इसलिए कहते है क्योकि (ख मतलब आकाश और चर मतलब घूमने वाला) इस मुद्रा को सिद्ध करने पर हवा में उड़ने की शक्ति मिल जाती है ! भगवान हनुमान जी को उनकी वायु में अति तीव्र गति से उड़ने की शक्ति की वजह से उन्हें सबसे बड़ा खेचर कहा जाता है। साथ ही इस मुद्रा को करने से देवताओं के समान सुंदर शरीर और शाश्वत युवा अवस्था प्राप्त होती है।
जीभ को उलटना और तालू के गड़्ढे में जिह्वा की नोंक (अगला भाग) लगा देने को खेचरी मुद्रा कहते हैं। तालू के अन्त भाग में एक पोला स्थान है जिसमें आगे चलकर माँस की एक सूँड सी लटकती है, उसे कपिल कुहर भी कहते हैं। इसी सूंड से जीभ के अगले भाग को बार बार सटाने का प्रयास करना होता है, और रोज रोज प्रयास करने से कुछ महीने में धीरे धीरे जीभ लम्बी होकर कुहर से सट जाती है।
और जीभ के सटते ही, कपाल गह्वर में होकर प्राण-शक्ति का संचार होने लगता है और सहस्रदल कमल में स्थित अमृत झरने लगता है, जिसके आस्वादन से एक बड़ा ही दिव्य आनन्द आता है और शरीर में दिव्य शक्तियां जागृत होने लगती है । खेचरी मुद्रा द्वारा ब्रह्माण्ड स्थित शेषशायी सहस्रदल निवासी भगवान से साक्षात्कार भी होता है। यह मुद्रा बड़ी ही महत्वपूर्ण है।
(2) महामुद्रा – इस मुद्रा को सिद्ध कर लेने पर शरीर हमेशा 16 वर्ष के युवक की तरह जवान, सुन्दर और स्वस्थ बना रहता है। इसे करने में, बाएँ पैर की एडी़ को गुदा तक मूत्रेन्द्रिय के बीच सीवन भाग में लगावें और दाहिना पैर लम्बा कर दीजिए। लम्बे किये हुए पैर के अँगूठे को दोनों हाथों से पकड़े रहिये। सिर को घुटने से लगाने का प्रयत्न कीजिए। नासिका के बाएँ छिद्र से साँस पूरक खींचकर कुछ देर कुम्भक करते हुए दाहिने छिद्र से रेचक प्राणायाम कीजिए।
आरम्भ में पाँच प्राणायाम बाईं मुद्रा से करने चाहिये, फिर दाएँ पैर को सिकोड़कर गुदा भाग से लगायें और बाएँ पैर को फैलाकर दोनों हाथों से उसका अँगूठा पकड़ने की क्रिया करनी चाहिये। इस दशा में दाएँ नथुने से पूरक और बाएँ से रेचक करना चाहिये। जितनी देर बाएँ भाग से यह मुद्रा की थी उतनी ही देर दाएँ भाग से करनी चाहिये।
इस महा-मुद्रा से कपिल मुनि ने सिद्धि प्राप्त की थी। इससे अहंकार, अविद्या, भय, द्वेष, मोह आदि के पंच क्लेशदायक विकारों का शमन होता है। भगन्दर, बवासीर, सग्रहिणी, प्रमेह आदि रोग दूर होते हैं। शरीर का तेज बढ़ता है, व्यक्ति हमेशा युवा रहता है और वृद्धावस्था दूर हटती जाती है।
(3) शाम्भवी मुद्रा – सुखासन या पद्मासन में बैठकर, ऑंखें बन्दकर दोनों भौहों के बीच (भ्रकुटी) में ध्यान करने को शाम्भवी मुद्रा कहते हैं। भगवान शम्भु के द्वारा साधित होने के कारण इन साधनाओं का नाम शाम्भवी मुद्रा पड़ा है। इससे तृतीय नेत्र जागता है जिससे दिव्य लोकों का दर्शन होता है, शरीर के सारे रोगों का नाश होता है और कुण्डलिनी जागरण में सफलता मिलना सुनिश्चित होता है।
(4) अगोचरी मुद्रा – नाक से चार उँगली आगे के शून्य स्थान पर दोनों नेत्रों की दृष्टि को एक बिन्दु पर केन्द्रित करके ध्यान लगाना। ये मुद्रा बहुत तेजी से पाप भक्षण करती है और ईश्वर प्राप्ति में बहुत सहयोगी है।
इसके अतिरिक्त नभो मुद्रा, महा-बंध शक्तिचालिनी मुद्रा, ताडगी, माण्डवी, अधोधारण ,आम्भसी, वैश्वानरी, बायवी, नभोधारणा, अश्वनी, पाशनी, काकी, मातंगी, धुजांगिनी आदि 25 मुद्राओं का हमारे अति पवित्र और अति प्राचीन हिन्दू धर्म के ग्रन्थ “घेरण्ड-सहिता” में सविस्तार वर्णन है।
नोट- इन जानकारियों का यहाँ वर्णन, भारत माँ के अति समृद्ध योग विज्ञान का परिचय करवाने के लिए किया गया है, इसलिए इन यौगिक क्रियाओं को सिर्फ पढ़कर अभ्यास नहीं शुरू कर देना चाहिए, बल्कि किसी योग्य जानकार योगी के मार्गदर्शन में ही अभ्यास करना चाहिए अन्यथा शरीर की हानि पहुँच सकती है !
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