(भाग – 4) जानिये सर्वदोषनाशक व सर्वसफलता दायक “अभिजीत मुहूर्त” के बारे में (श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी आत्मकथा)
आईये जानते हैं, रूद्र के अंश गृहस्थ अवतार के रूप में जन्म लेने वाले परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी के जीवन में घटी एक ऐसी घटना के बारे में जो सर्वदोषनाशक व सर्वसफलता दायक “अभिजीत मुहूर्त” के महत्व के बारे में बताती है (श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी का विस्तृत जीवन परिचय जानने के लिए कृपया इस आर्टिकल के नीचे दिए गए अन्य आर्टिकल्स के लिंक्स पर क्लिक करें) !
सबसे पहले जिन आदरणीय पाठकों को यह नहीं पता है कि “अभिजीत मुहूर्त” क्या होता है, तो उन्हें हम बताना चाहेंगे कि ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अभिजीत मूहर्त, हर दिन के बीच में आने वाला वो थोड़ी देर का विशेष समय होता है जिसमें किसी भी तरह के उचित काम को बेहिचक किया जा सकता है क्योकि वो काम निश्चित सफल होता है ! मतलब “अभिजीत मुहूर्त” में शुरू किये जाने वाला कोई भी उचित काम, कभी भी अशुभ परिणाम नहीं दे सकता है क्योकि ज्योतिष के अनुसार “अभिजीत मुहूर्त” सभी ग्रहों द्वारा पैदा होने वाले सभी तरह के दोषों से निश्चित रूप से मुक्त होता है !
श्री पांडेय जी के अनुसार “अभिजीत मुहूर्त” का सही नाम “अविजित मुहूर्त” है (अविजित का अर्थ होता है कि इस मुहूर्त में काम शुरू करने से पराजय नहीं होने पाती है, मतलब अंततः विजय मिलकर ही रहती है) ! लेकिन बीतते समय के साथ लोगो ने “अविजित” को “अभिजीत” कहना शुरू कर दिया इसलिए “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने इस आर्टिकल में भी लोगों के समझने की आसानी के लिए “अविजित मुहूर्त” को “अभिजीत मुहूर्त” ही लिखा है !
अब यहाँ पर मुख्य प्रश्न यह पैदा होता है कि आखिर “अभिजीत मुहूर्त” के समय में इतनी प्रचंड ताकत आयी कैसे कि इस समय किये जाने वाले हर उचित काम देर सवेर सफल होकर ही रहता है ! तो वो ताकत इसलिए आयी क्योकि “अभिजीत मुहूर्त” में ही भगवान् श्री राम का जन्म हुआ था और तब से स्वयं भगवान राम के परम भक्त भगवान शिव ने यह उद्घोषणा कर दी थी कि आज से मेरे प्रभु ने जिस परम शुभ मुहूर्त में जन्म लिया है वो मुहूर्त यानी “अभिजीत मुहूर्त” निश्चित रूप से सर्व सफलतादायक बन जाएगा और इस मुहूर्त में शुरू होने वाले किसी भी उचित काम पर, कोई भी ग्रह बुरा असर नहीं डाल पायेगा (यह सदैव याद रखने वाली बात है कि “समय” यानी “काल” का निर्माण भी “महाकाल” यानी भगवान शिव ने ही किया है इसलिए भगवान शिव अपनी कृपा से किसी भी “समय” को तुरंत “परम शुभ समय” बना सकते हैं) !
अर्थात सारांश रूप में कहें तो “अभिजीत मुहूर्त” में रामबाण वाली ताकत होती है जो कभी भी निष्फल नहीं होती है ! और सबसे बड़ी सुखद बात यह है कि अभिजीत मुहूर्त का समय हर दिन दोपहर 11 बजे से लेकर दोपहर 1 बजे तक (यानी 2 घंटा) तक होता है ! कुछ ज्योतिषियों का कहना है कि “अभिजीत मुहूर्त” बुधवार को नहीं आता है और बाकी 6 दिन सिर्फ दोपहर 11 बजकर 45 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 15 मिनट (यानी मात्र आधा घंटा) तक ही होता है, जबकि परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी के अनुसार ये जानकारी गलत है !
ईश्वर के साक्षात् दर्शन प्राप्त श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी के अनुसार “अभिजीत मुहूर्त” निश्चित रूप से सप्ताह के सातों दिन दोपहर 11 बजे से लेकर दोपहर 1 बजे तक (यानी 2 घंटा) तक होता है इसलिए बिना किसी पंडित/पुरोहित/ज्योतिषी की सलाह लिए हुए, कोई भी स्त्री/पुरुष, कोई भी नया उचित काम (जैसे- नया बिजनेस या नौकरी की शुरआत करना, शादी करना, विद्या आरम्भ करना, किसी महत्वपूर्ण यात्रा पर जाना, धर्म युद्ध करना आदि) किसी भी दिन के “अभिजीत मुहूर्त” में निश्चित रूप से शुरू करके सफलता प्राप्त कर सकता है !
अब यहाँ कई लोगों के मन में कॉमन सेंस बेस्ड यह क्वेश्चन पैदा हो सकता है कि पूरी दुनिया में अब तक ना जाने कितने ही लोगों ने दोपहर 11 बजे से लेकर दोपहर 1 बजे के बीच में नया काम शुरू किया होगा लेकिन उनमे से सभी लोगों के काम सफल हुए हों ऐसा जरूरी तो नहीं हैं तो फिर “अभिजीत मुहूर्त” का क्या फायदा ?
तो इसका उत्तर यही है कि चाहे “अभिजीत मुहूर्त” की शक्ति हो या स्वयं भगवान का साथ हो तब भी जीवन में आने वाले अकाट्य प्रारब्धों के दुष्परिणामों को रोका नहीं जा सकता है ! जैसे रावण के पुत्र मेघनाद की मृत्यु का अकाट्य प्रारब्ध था कि उसे सिर्फ वही मार सकता है जो खुद 14 साल से नींद में सोया ना हो, इसलिए जब मेघनाद ने अपने नागपाश हथियार से भगवान् राम को बेहोश करने की कोशिश की तो खुद अनंत ब्रह्माण्डों को पैदा करने वाले भगवान राम का बाण भी मेघनाद को रोक नहीं सका और भगवान राम बेहोश हो गए, लेकिन कई दिनों तक युद्ध में होने वाली हार – जीत, उतार – चढ़ाव, समस्याओं – कष्टों के बावजूद भी अंतिम जीत भगवान राम की ही हुई थी !
आईये अब जानते हैं साइंटिफिक रीज़न “अभिजीत मुहूर्त” में मिलने वाली सफलता के बारे में ! जैसा की सभी लोग जानते हैं कि रोज दोपहर 11 बजे से लेकर दोपहर 1 बजे (यानी मध्य संध्या काल) तक भगवान सूर्य की किरणें सबसे ज्यादा मात्रा में पृथ्वी पर पड़ती हैं (इसलिए इस समय सबसे ज्यादा गर्मी महसूस होती है) और मॉडर्न साइंटिस्ट्स के अनुसार भी सूर्य किरणें ही हमारे पृथ्वी पर सभी तरह के जीवन के मुख्य आधार हैं (अधिक जानकारी के लिए, कृपया मीडिया में प्रकाशित इस खबर को पढ़ें- इंसानी जीवन के लिए क्यों अहम है सूरज की स्टडी, समझें) इसलिए अभिजीत मुहूर्त में प्राणियों में प्राण ऊर्जा यानी जीवनी शक्ति यानी कॉन्फिडेंस का लेवल सबसे ज्यादा होता है जो कि किसी भी काम में सफलता पाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है (सूर्य प्रकाश की कमी से कैसे कोई आदमी डिप्रेशन में जा सकता है जानने के लिए कृपया मीडिया में प्रकाशित इस जानकारी को पढ़ें- सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी)) !
और आपने विदेशियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली इंग्लिश भाषा की इस प्रसिद्ध कहावत के बारे में भी सुना होगा कि “Sunlight is the Best Disinfectant” मतलब पूरी दुनिया में सूर्यप्रकाश से अच्छा दोषनाशक कोई और नहीं है, इसलिए अब आप समझ सकते हैं की “अभिजीत मुहूर्त” में जब भगवान सूर्य की किरणें सबसे ज्यादा मात्रा में पृथ्वी पर पड़ती हैं तब उस समय को क्यों सर्वदोषनाशक बोला गया है !
अब अगर हम लोग ज्योतिष विज्ञान की बात करें तो भगवान् सूर्य को बाकी 8 ग्रहों का राजा बोला गया है इसलिए दोपहर 11 से 1 के बीच में जब भगवान सूर्य सबसे ज्यादा उग्र व ताकतवर होते हैं तब उस समय किसी और ग्रह की हिम्मत नहीं होती है कि वे अपना कोई बुरा असर डाल सकें क्योकि भगवान सूर्य कोई और नहीं बल्कि साक्षात् भगवान विष्णु के ही प्रत्यक्ष अवतार हैं !
तो ये रही सारी महत्वपूर्ण जानकारियां “अभिजीत मुहूर्त” की, जिसका आश्चर्यजनक लाभ कोई भी स्त्री/पुरुष किसी भी दिन दोपहर 11 से 1 के बीच में कोई भी नया उचित काम शुरू करके निश्चित पा सकता है ! अब बात करते हैं परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी के जीवन में घटी उस घटना के बारे में जिसमें अभिजीत मूहर्त के प्रभाव से उनके जीवन रक्षा में काफी मदद मिल सकी थी !
बात उन दिनों की है जब श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी “बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी” से लॉ की पढ़ाई कर रहे थे और उसी समय बनारस शहर में भयंकर सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए थे ! दंगा इतना ज्यादा तेजी से फ़ैल रहा था की 1000 एकड़ में फैले यूनिवर्सिटी कैंपस को भी आनन् – फानन में बंद करके सभी बॉयज हॉस्टल्स को भी शार्ट नोटिस में खाली करने का आदेश दे दिया गया था, जिसकी वजह से सभी स्टूडेंट अपना – अपना रूम छोड़कर वापस अपने घर लौटने लगे थे !
श्री पांडेय जी के सामने भी यही समस्या थी कि वो कैसे हॉस्टल से सुरक्षित अपने घर ज्ञानपुर पहुँच सकें ! वास्तव में इस समस्या की गंभीरता का अंदाजा सिर्फ वही लगा सकता है जो कभी किसी भीषण दंगे में फंस गया हो क्योकि सड़कों पर खूनखराबा करने पर आमादा हिंसक भीड़ से कभी भी कोई भी घायल हो सकता है !
वैसे तो पांडेय जी के पिता श्री राम आधार पाण्डेय जी खुद सिटी मजिस्ट्रेट थे लेकिन उनके पिता इतने कट्टर ईमानदार अधिकारी थे कि उनके अनुसार ऐसी कठिन परिस्थति में भी सरकारी पुलिस को अपने निजी काम यानी खुद के इकलौते बेटे की सुरक्षा के लिए भेजना उचित नहीं था क्योकि शहर में पहले से ही पुलिस बल की संख्या में काफी कमी पड़ रही थी इसलिए उनके पिता के अनुसार पुलिस की ज्यादा जरूरत पहले उन गरीब लोगो की थी जो बेहद असुरक्षित माहौल में रह रहे थे ! श्री कृष्ण पांडेय जी भी खुद अपने पिता जी की ही तरह कट्टर ईमानदार थे इसलिए वे अपने पिता के ईमानदारी वाले स्वभाव की बड़ी इज्जत करते थे अतः वे कभी भी अपने पिता का परिचय बताकर कोई नाजायज लाभ उठाने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे !
तो श्री कृष्ण पांडेय जी के सामने यही प्रश्न था कि कैसे वो सिर्फ अपने बलबूते पर हॉस्टल से काफी दूर स्थित घर सुरक्षित पहुँच सकें जबकि दंगे की वजह से सभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट तो पहले ही बंद हो चुके थे ! उनके साथ के बाकी जो हॉस्टल के स्टूडेंट्स थे, उनके घर के रास्ते में शायद संवेदनशील जगहें नहीं पड़ती थी इसलिए वे सब तुरंत निकल गए, लेकिन श्री कृष्ण पांडेय जी के रास्ते में कई खतरनाक क्षेत्र पड़ते थे इसलिए वो थोड़ा चिंतन में पड़ गए कि क्या तरीका आजमाया जाए जिससे वो सुरक्षित घर पहुँच सकें !
प्राप्त जानकारी अनुसार पांडेय जी अभिजीत मुहूर्त में ही हॉस्टल से अपने घर के लिए निकले थे क्योकि पांडेय जी अभिजीत मुहूर्त की महिमा के बारे में अच्छे से जानते थे ! पांडेय जी के अनुसार उन्हें रास्ते में कई जगह उग्र भीड़ दिखाई दी और आश्चर्य की बात यह है कि भीड़ पांडेय जी को केवल गुस्से से घूर रही थी लेकिन भीड़ में से किसी ने भी उन पर हमला नहीं किया और पांडेय जी चुपचाप शान्ति से धीरे – धीरे पैदल चलते हुए सभी खतरनाक जगहों को पार करते हुए अंततः अपने घर सुरक्षित पहुँच गए जिससे उनके माता पिता को अपार ख़ुशी हुई !
इस घटना के अलावा पांडेय जी के जीवन में अन्य कई तरह के कठिन अवसर आये और उनमें भी उन्होंने अभिजीत मुहूर्त की मदद से काफी लाभ प्राप्त किया ! पांडेय जी के अनुसार अभिजीत मुहूर्त वास्तव में भगवान् द्वारा हम मानवों को दिया हुआ मुफ्त का एक वरदान ही है जिसकी सहायता से हम दुनिया का कोई भी उचित काम (जैसे- नया बिजनेस या नौकरी की शुरआत करना, शादी करना, विद्या आरम्भ करना, किसी महत्वपूर्ण यात्रा पर जाना, धर्म युद्ध करना आदि) किसी भी दिन के “अभिजीत मुहूर्त” में निश्चित रूप से शुरू करके सफलता प्राप्त कर सकतें हैं, वो भी बिना किसी पंडित/पुरोहित/ज्योतिषी आदि की सलाह लिए हुए !
यहाँ ध्यान से समझने वाली बात यह है कि आम तौर पर ज्योतिषी लोग जिन दिनों को अशुभ या निष्फल बताते हैं (जैसे- खरमास, दिशा शूल, देवशयनी एकादशी के बाद और देवउठनी एकादशी से पहले पड़ने वाले चतुर्मास आदि) उन दिनों का भी कोई बुरा असर अभिजीत मुहूर्त पर बिल्कुल नहीं पड़ता है क्योकि रोज दोपहर 11 बजे से लेकर दोपहर 1 बजे तक भगवान विष्णु के साक्षात् अवतार भगवान सूर्य अपने पूर्ण उग्र शक्तिशाली रूप में रहते हैं, इसलिए अभिजीत मुहूर्त में शुरू हुए काम देर सवेर सफल होकर ही रहते हैं !
इसलिए आम तौर पर कई ज्योतिषी अभिजीत मुहूर्त की इतनी आश्चर्यजनक महिमा के बारे में आम जनता से छिपाते हैं या कम करके बताते हैं या गलत भी बता देते हैं, क्योकि ऐसे ज्योतिषियों को लगता है कि अभिजीत मुहूर्त की असलियत जानने के बाद हो सकता है कि बहुत से लोग किसी ज्योतिषी के पास शुभ मुहूर्त जानने के लिए कभी जायेंगे ही नहीं क्योकि वे लोग अपने सारे काम अभिजीत मुहूर्त में ही करके सफल हो सकतें हैं ! पर वास्तव में सत्य यही है कि साल के 12 महीने और 365 दिन की दोपहर में रोज आने वाले अभिजीत मुहूर्त में कोई भी काम बेहिचक शुरू करके सफलता प्राप्त की जा सकती है !
श्री कृष्ण पांडेय जी ने यह भी बताया की कभी जीवन में ऐसी परिस्थिति आ जाए कि किसी महत्वपूर्ण काम को शुरू करने के लिए अभिजीत मुहूर्त का इंतजार कर पाना सम्भव ना हो तो उस परिस्थिति में श्री दुर्गा कवच (जो की श्री दुर्गा सप्तशती ग्रंथ में दिया गया है) का पाठ करके भी किसी उचित काम का शुभारम्भ निश्चित रूप से किया जा सकता है (श्री दुर्गा कवच अगर संस्कृत में शुद्धता पूर्वक पढ़ना सम्भव ना हो तो हिंदी में भी पढ़ा जा सकता है) ! और अगर कभी कोई ऐसी इमरजेंसी आ जाए कि पूरा दुर्गा कवच भी पढ़ने का समय ना हो तो सिर्फ एक बार अपने किसी भी अपने प्रिय भगवान के रूप (जैसे- श्री राम, श्री हनुमान, श्री राधा, श्री शिव आदि) का नाम जप करके भी काम का शुभारम्भ निश्चित किया जा सकता है !
वास्तव में देखा जाए तो हमारे परम आदरणीय हिन्दू धर्म जिसका मूल सिद्धांत ही यही है कि “शुभस्य शीघ्रम” (अर्थात शुभ काम को जितना जल्दी हो सके कर लेना चाहिए) वो हिन्दू धर्म इतना इम्प्रैक्टिकल (अव्यवहारिक) कैसे हो सकता है जो यह कहे कि अपने ही बनाये हुए नए घर में रहने की शुरुआत यानी गृहप्रवेश करना हो तो 3 महीने तक शुभ मुहूर्त का इंतजार करो या किसी सुयोग्य लड़का/लड़की से शादी करनी है तो 4 महीने तक भगवान् के जागने का इंतजार करो (जबकि भगवान की योगनिद्रा तो कभी टूटती ही नहीं है क्योकि भगवान सदा योगनिद्रा में ही रहकर यानी योगमाया का आश्रय लेकर समस्त ब्रह्माण्डों का सृजन, पालन व संहार करते हैं) आदि ! वास्तव में इन्ही सब बाद में जोड़ी गयी मनगढ़ंत कुरीतियों/नियमों की वजह से हिन्दू लगभग हजार साल तक गुलाम रहे हैं, जैसे- एक प्रसिद्ध उदाहरण तो सभी ने सुन रखा होगा कि प्राप्त जानकारी अनुसार जब लुटेरों ने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया तो वहां के राजा को ज्योतिषियों ने युद्ध पर जाने से काफी देर तक केवल इसलिए रोक रखा था क्योकि ज्योतिषियों के हिसाब से उस समय युद्ध करने के लिए उपयुक्त मुहूर्त नहीं था और जब मुहूर्त शुरू हुआ तो राजा के जाने का कोई फायदा नहीं था क्योकि तब तक बहुत जन धन की हानि हो चुकी थी !
हालांकि कुछ कुरीतियों को तो मजबूरी में शुरू किया गया था जैसे प्राचीन काल से हिंदू धर्म में सारे शुभ काम दिन में भगवान सूर्य की उपस्थिति में ही होते थे लेकिन प्राप्त जानकारी अनुसार, गुलामी के दौर में हिन्दू परिवार दिन में सबके सामने शादी करने से डरते थे कि कही विधर्मी लोग आकर लूटपाट ना मचा दे, इसलिए रात के अँधेरे में छिपकर अपनी बेटियों की शादी करने लगे थे और तब से यही प्रथा आज तक चली आ रही है, जबकि हिन्दू धर्म में तो भगवान सूर्य की इतनी ज्यादा महिमा बताई गयी है कि अथर्वेद के उपवेद आयुर्वेद में तो भोजन को भी सूर्यास्त के बाद खाने से मना किया गया है क्योकि सूर्यास्त के बाद खाने से भोजन गुणहीन व रोगकारक भी हो सकता है !
लेकिन आज भी कई ऐसे सनातनी संस्थाएं हैं जो एंशिएंट एंड मोस्ट साइंटिफिक हिन्दू धर्म के रूल्स को ही फॉलो करते हैं, जैसे प्राप्त जानकारी अनुसार हरिद्वार के शांतिकुंज में स्थित विश्व प्रसिद्ध गायत्री परिवार में आज भी दिन की रोशनी में भगवान सूर्य के मंत्र गायत्री से शादियां होती हैं और यहाँ पर अपनी शादी करने के लिए पूरे विश्व से गणमान्य हस्तियां आती हैं और यहाँ तक की जिन लोगों की शादियां पहले हो चुकी होती है वे पति – पत्नी भी आते हैं अपनी शादी को दुबारा करने के लिए ताकि उनका शादी का बंधन और ज्यादा मजबूत हो सके !
अतः सारांश यही है कि अगर आदमी के पास किसी शुभ काम को शुरू करने के लिए खूब पर्याप्त समय हो तब तो वो अपने मनपसंद किसी शुभ मुहूर्त का खूब इंतजार कर ले, अन्यथा वो अपने किसी भी शुभ काम को हर दिन दोपहर में आने वाले अभिजीत मुहूर्त में शुरू करके भी निश्चित सफलता प्राप्त कर सकता है ! और जैसा की ऊपर बताया गया है कि अगर कभी अभिजीत मुहूर्त का भी इंतजार करने का समय ना बचा हो तो मात्र श्री दुर्गा कवच का पाठ करके या सिर्फ प्रेम से एक बार भगवान् का नाम लेकर भी अपने किसी उचित काम का शुभारंभ करके निश्चित सफलता पायी जा सकती है !
इसी संदर्भ में “स्वयं बनें गोपाल” समूह श्री कृष्ण पांडेय जी के द्वारा बताई गयी एक महत्वपूर्ण “जीरो थ्योरी” (Zero Theory) जो की “एकोहं बहुस्याम” का मैथमेटिकल वर्जन ही है, के बारे में भी अति संक्षेप में आप लोगों को बताना चाहेगा ! पांडेय जी के अनुसार इस संसार में जितने भी तरह के कर्म हम लोग करते हैं उन सबका एक मात्र उद्देश्य है सुख की प्राप्ति करना और पूर्ण सुख तब मिलता है जब किसी भी तरह का दुःख मिलने का भय ख़त्म हो जाता है यानी 100 प्रतिशत भयरहित होना ही, 100 प्रतिशत सुखी होने का फार्मूला है ! तो अब यहाँ प्रश्न ये पैदा होता है कि आखिर 100 प्रतिशत भयरहित कैसे हुआ जा सकता है ?
तो इसका उत्तर पांडेय जी ने इस प्रकार बताया था कि जिस दिन हम लोग, वाकई में ईश्वरीय कृपा से इस ब्रह्म ज्ञान का प्रत्यक्ष अनुभव कर लेंगे कि इस संसार में सुख देने वाले और डराने वाले सभी तत्व, एक ही चेतना से बने हुए हैं, उस दिन से कोई भी चीज या घटना भयकारी नहीं रह जाती है ! पांडेय जी ने बताया कि जो एक ओमनीप्रेजेंट (सर्वव्यापी) चेतना है उसके आकार को समझने की सुविधा के लिए उसे एक ऐसे महा शून्य की तरह माना जा सकता है जो कि विभक्त होने पर अंतहीन नए छोटे – छोटे शून्यों में बदल जाते है यानी महाशून्य रुपी ब्रह्म ही माया की शक्ति से टूटकर हम सभी दृश्य – अदृश्य, जड़ – चेतन रुपी अनंत छोटे – छोटे शून्यों में बदल गए है, लेकिन चूंकि हम लोग भी तो शून्य ही हैं इसलिए हम सभी लोग भी कोई और नहीं बल्कि माया से आबद्ध खुद ईश्वर ही हैं और जैसे ही हम लोग माया को अपने से अलग करने में सक्षम हो सकेंगे वैसे ही हम फिर से महाशून्य में विलीन हो सकेंगे !
पांडेय जी ने वास्तव में ब्रह्म ज्ञान का साक्षात् अनुभव किया था जिसकी वजह से उनके शरीर में अदृश्य रूप से ब्रह्म तेज भी व्याप्त हो गया था जिसे इस छोटी सी घटना से भी समझा जा सकता है- आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व उनके शहर आजमगढ़ में एक बार एक चमत्कारी साधू आये थे जो अपने सैकड़ों भक्तों व चेलों के सामने अपना हाथ हवा में लहराकर ना जाने कहाँ से फूल – प्रसाद आदि प्रकट कर देते थे और इसमें किसी भी तरह की चालाकी होने की गुंजाइश भी नहीं दिखाई देती थी क्योकि वो बाबा जी दिन भर में कई बार ये जादू अपने सैकड़ों भक्तों के सामने एकदम नजदीक से दिखाते थे जिसकी वजह से बाबा जी रातो रात बहुत प्रसिद्ध हो गए थे !
बाबा जी के चमत्कारों की प्रशंसा के बारे में कई तत्कालीन अखबारों में पढ़कर पांडेय जी के एक पड़ोसी जो पुलिस इंस्पेक्टर थे, गए बाबा जी से मिलने ! वो इंस्पेक्टर भी एकदम दंग रह गए जब बाबा जी ने अपने खाली हाथ को एक सेकंड के लिए हवा में लहराकर उसमें प्रसाद प्रकट किया और फिर इंस्पेक्टर को दे दिया ! इंस्पेक्टर इतने ज्यादा प्रभावित हो गए कि उन्होंने सोचा अगले दिन पांडेय जी को भी उन चमत्कारी बाबा के दर्शन का सौभाग्य दिला दूँ ! लेकिन पांडेय जी ने जाने से मना कर दिया क्योकि उनके हिसाब से इस तरह के चमत्कार को देखने का क्या फायदा क्योकि इससे जीवन में मोक्ष तो मिलता है नहीं ! लेकिन जब इंस्पेक्टर ने बहुत निवेदन किया तो पांडेय जी भी चले गए बाबा जी के दर्शन करने !
इंस्पेक्टर को पांडेय जी के साथ आया देखकर, बाबा जी ने फिर से अपना हाथ हवा में हिलाया प्रसाद देने के लिए, लेकिन आश्चर्य की बात है कि इस बार हाथ में कोई प्रसाद नहीं था ! बाबा जी खुद बहुत हैरान हो गए की आखिर ऐसा हुआ कैसे ! तब बाबा जी ने दुबारा से हाथ हिलाया तो इस बार फिर से कोई प्रसाद हाथ में नहीं आया जिसकी वजह से बाबा जी को बड़ी बेइज्जती महसूस हुई क्योकि उनके सामने भक्तों की जो भीड़ बैठी थी वो कानाफूसी करने लगी थी कि आखिर अब बाबा जी चमत्कार क्यों नहीं कर पा रहें हैं !
तब बाबा जी ने गुस्से से तीसरी बार हवा में हाथ हिलाया, तब भी उनके हाथ में कुछ नहीं आया तो वो निराश हो गए और कुछ देर मन में सोचने के बाद अचानक बाबा जी, पांडेय जी की तरफ आश्चर्य से देखने लगे ! कुछ देर तक बाबा जी लगातार पांडेय जी की ही तरफ आश्चर्य से देखते रहे और पांडेय जी भी चुपचाप मुस्कुराते रहे ! फिर थोड़ी देर बाद बाबा जी ने बहाना बनाया की आज मेरी तबियत ठीक नहीं है इसलिए मै भक्तों को दैवीय प्रसाद नहीं दे पा रहा हूँ इसलिए आप सब लोग कल आईयेगा !
तब इंस्पेक्टर ने भी कहा की ठीक है बाबा जी हम दोनों लोग भी कल फिर से आ जायेंगे दिव्य प्रसाद लेने के लिए, लेकिन यह सुनते ही बाबा जी ने तुरंत जवाब दिया कि, नहीं – नहीं कल आप अकेले ही आईयेगा और इन सज्जन को अपने साथ आने के लिए कष्ट देने की जरूरत नहीं है ! बाबा जी की बात इंस्पेक्टर को अजीब तो लगी लेकिन वो बिना कोई कारण पूछे हुए पांडेय जी के साथ वहां से चले गए !
बाद में उन इंस्पेक्टर ने पांडेय जी से पूछा की वो बाबा जी इतने भीड़ से घिरे होने के बावजूद भी सिर्फ आपकी तरफ आश्चर्य से क्यों देख रहे थे ! तो पांडेय जी ने कहा की शायद मेरी वजह से उनका हाथ वाला जादू नहीं चल पाया था इसलिए वो शायद मुझे ठीक से समझना चाह रहे थे कि आखिर मै हूँ कौन और अंततः जब वो मुझे समझने में असमर्थ रहे तो शायद इसलिए ही उन्होंने मुझे दुबारा वहां आने से मना कर दिया था ! तब इंस्पेक्टर ने पांडेय जी से पूछा कि मै समझ नहीं पा रहा हूँ की आखिर आपकी वजह से उनका हाथ वाला जादू कैसे सफल नहीं हो पाया क्योकि आप तो उनसे दूर चुपचाप शान्ति से बैठे हुए थे !
तब पांडेय जी ने इंस्पेक्टर को बताया कि अक्सर खाली समय में उन्हें अपने आप ईश्वर का स्वतः, सहज व सतत चिन्तन होने लगता था और यह दुर्लभ चिंतन अवस्था इतने सामान्य तरीके से होती थी कि अगल – बगल बैठा कोई दूसरा आदमी समझ ही नहीं पाता था ! मतलब पांडेय जी के आस – पास मौजूद लोगों को अक्सर लगता था कि पांडेय जी तो अपनी खुली आँख से उन्ही लोगों की तरफ देख रहें थे, लेकिन वास्तव में पांडेय जी अंदर ही अंदर ईश्वर के ही ख्यालों में ही खोये हुए रहते थे !
पांडेय जी ने यह भी बताया कि जब कोई मानव ईश्वर के गहन ध्यान में व्यस्त होता है तो ईश्वर वहां साक्षात् दृश्य – अदृश्य रूप में मौजूद रहते हैं (क्योकि “भावो हि विद्यते देव” यानी भावना में ही भगवान बसते हैं) और जहां साक्षात् भगवान मौजूद रहते हैं वहां किसी भी तरह की स्वार्थपूर्ण जादूगरी, कलाकारी आदि काम नहीं करती है ! इसलिए मेरे ख्याल से बाबा जी ने जब अपने हाथ में प्रसाद प्रकट करने की कोशिश की थी उसी समय शायद मै ध्यानमग्न हो गया था इसलिए शायद उनकी जादूगरी नहीं काम कर पायी और शायद बाबा जी को भी ये आभास हो गया था कि हो ना हो इसी नए अजनबी आदमी के ईश्वरीय तेज की वजह से पहली बार उनकी जादूगरी असफल हो गयी थी इसलिए बाबा जी मुझे बार – बार आश्चर्य से देख रहे थे !
पांडेय जी की बातें सुनकर वो इंस्पेक्टर इतना प्रभावित हुए कि उन्हें अपना गुरु मानते हुए उनसे पूछा की अब आप ही कोई तरीका कृपया मुझे भी बताईये जिससे मेरा भी उद्धार हो सके क्योकि मै जिस पुलिस की नौकरी में हूँ उसमें कई बार ना चाहते हुए निर्दोष को भी दण्डित करना पड़ जाता है जिसका मुझे हमेशा अहसास रहता है कि देर – सवेर मुझे भारी प्रायश्चित करना पड़ेगा !
इस पर पांडेय जी ने कहा क़ी हाँ ये सत्य है कि हर छोटे – बड़े, अच्छे – बुरे कर्म का फल भोगे बिना मुक्ति नहीं मिलती और इंसानो के लिए दुनिया का सबसे कठिन काम है अपने स्वभाव की बुराईयों को दूर कर पाना और कई बार तो इंसान ना चाहते हुए भी गलत कामों को कर देता है क्योकि इंसान हालात का भी गुलाम होता है ! इसलिए ऐसे कठिन कलियुगी माहौल में सबसे आसान और तेज उपाय है भगवान् का नाम जप करना क्योकि अकेला नाम जप ही स्वभाव की सारी कमियों को दूर करने, और पूर्व में किये गए पापों के बदले मिलने वाले कष्टों को झेलने की ताकत प्रदान करने, और संसार की सभी तरह की सुख समृद्धि को प्रदान करने के साथ – साथ मृत्यु के बाद मोक्ष भी दिलाने में निश्चित सक्षम है ! इसलिए दिन – रात जब भी खाली समय मिले अपने किसी भी मनपसंद भगवान का नाम जप रोज खूब करना चाहिए !
अंततः “स्वयं बनें गोपाल” समूह शत् शत् नमन व धन्यवाद करता है सनातन धर्म की ऐसी महान परोपकारी संत परम्परा को !
(भाग – 1) रूद्र के अंश गृहस्थ अवतार श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी
(भाग – 5) जब विनम्र स्वभाव ने जीवन रक्षा की (श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी आत्मकथा)
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