कविता -आखिरी कलाम – मलिक मुहम्मद जायसी – (संपादन – रामचंद्र शुक्ल )
पहिले नावँ दैउ करलीन्हा । जेंइ जिउ दीन्ह, बोल मुख कीन्हा॥
दीन्हेसि सिर जो सँवारै पागा । दीन्हेसि कया जो पहिरै बागा॥
दीन्हेसि नयन जोति, उजियारा । दीन्हेसि देखै कहँ संसारा॥
दीन्हेसि òवनबात जेहि सुनै । दीन्हेसि बुध्दि, ज्ञान बहु गुनै॥
दीन्हेसि नासिक लीजै बासा । दीन्हेसि सुमन सुगंधा बिरासा॥
दीन्हेसि जीभ बैन रस भाखै । दीन्हेसि भुगुति, साधा सब राखै॥
दीन्हेसि दसन, सुरग कपोला । दीन्हेसि अधार जे रचैं तँबोला॥
दीन्हेसि बदन सुरूप रँग, दीन्हेसि माथे भाग।
देखि दयाल, ‘मुहम्मद’, सीस नाइ पद लाग॥1॥
दीन्हेसि कंठ बोल जेहि माहाँ । दीन्हेसि भुजादंड, बल बाहाँ॥
दीन्हेसि हिया भोग जेहि जमा । दीन्हेसि पाँच भूत, आतमा॥
दीन्हेसि बदन सीत औ घामू । दीन्हेसि सुक्ख नींद बिसरामू॥
दीन्हेसि हाथ चाह जस कीजै । दीन्हेसि कर पल्लव गहि लीजै॥
दीन्हेसि रहस कूद बहुतेरा । दीन्हेसि हरष हिया बहु मेरा॥
दीन्हेसि बैठक आसन मारै । दीन्हेसि बूत जो उठें सँभारैं॥
दीन्हेसि सबै सँपूरन काया । दीन्हेसि होइ चलै कहँ पाया॥
दीन्हेसि नौ नौ फाटका, दीन्हेसि दसवँ दुवार।
सो अस दानि ‘मुहम्मद’ तिन्ह कै हौं बलिहार॥2॥
मरम नैन कर ऍंधारै बूझा । तेहि बिसरै संसार न सूझा॥
मरम òवन कर बहिरै जाना । जो न सुनै किछु दीजैं साना॥
मरम जीभ कर गूँगै पावा । साधा मरै, पैं निकर न नावाँ॥
(1) बागा=पहनावा, पोशाक। बिरासा=विलास। रचैं=रँग जाते हैं।
(2) रहस=आनंद। मेर=मेल, भाँति। फाटका=नव द्वार।
मरम बाँह कै लूलै चीन्हा । जेहि बिधिा हाथन्ह पाँगुर कीन्हा॥
मरम कया कर कुस्टी भेंटा । नित चिरकुट जो रहे लपेटा॥
मरम बैठ उठ तेहिपै गुना । जो रे मिरिग कस्तूरी पहाँ॥ (?)
मरम पाँव कै तेहि पै दीठा । होइ अपाय भुइँ चलै बईठा॥
अति सुख दीन्ह बिधाातैं, औ सब सेवक ताहि।
प्रापन मरम ‘मुहम्मद’, अबहूँ समुझ कि नाहिं॥3॥
भा औतार मोर नौ सदी । तीस बरिस ऊपर कबि बदी॥
आवत उधात चार विधिा ठाना । भा भूकंप जगत अकुलाना॥
धारती दीन्ह चक्रबिधिा लाईं । फिरै अकास रहँट कै नाईं॥
गिरि पहार मेदिनि तस हाला । जस चाला चलनी भरि चाला॥
मिरित लोक ज्यों रचा हिंडोला । सरग पताल पवन खट डोला॥
गिरि पहार परबत ढहि गए । सात समुद्र कीच मिलि भए॥
धारती फाटि, छात भहरानी । पुनि भइ मया जौ सिष्टि समानी॥
जो अस खंभन्ह पाइ कै, सहस जीभ गहिराई।
सो अस कीन्ह ‘मुहम्मद’, तोहि अस बपुरे काइँ॥4॥
सूरुज (अस) सेवक ताकर अहै । आठौ पहर फिरत जो रहै॥
आयसु लिये रात दिन धाावै । सरग पताल दुवौ फिरि आवै॥
दगधिा आगि महँ होइ ऍंगारा । तेहि कै ऑंच धिाकै संसारा॥
सो अस बपुरै गहनै लीन्हा । औ धारि बाँधिा चँडालै दीन्हा॥
गा अलोप होइ, भा ऍंधिायारा । दीखै दिनहि सरग महँ तारा॥
उवतै झ्रप्पि लीन्ह धाुप चाँपै । लाग सरब जिउ थर थर काँपै॥
जिउ कहँ परे ज्ञान सब झूठै । तब होइ मोख गहन जौ छूटै॥
ताकहँ एता तरासै, जो सेवक अस निंत।
अबहुँ न डरसि ‘मुहम्मद’ काह रहसि निहचिंत॥5॥
ताकै अस्तुति कीन्हि न जाई । कौने जीभ मैं करौं बड़ाई?॥
जगत पताल जो सैंते कोई । लेखनी विरिख, समुद मसि होई॥
(3) बिहरें=फूटने पर। सान दीजै=इशारा कीजिए (तो समझे) अवधा। चिरकुट=चीथड़ा बिबातै=बिधााता ने। (4) उधात चार=उध्दतच रा, उत्पात। आवत…अकुलाना=जान पड़ता है, जिस दिन मलिक मुहम्मद पैदा हुए थे उस दिन भारी भूकंप आया था। भाइँ दीन्ह=फिराया। चाला=छलनी में डाला हुआ अनाज। पवन खट=पवन खटोला। खंभन्ह=अर्थात् पहाड़ों को (धारती पहाड़ों से कीली कही गई है)। गहिराइँ=गहराई या पाताल में थामे हैं। (5) धिाकै=तपता है। औ धारि…चँडालै दीन्हा=प्रवाद है कि सूर्य चंद्र डोमों या चंडालों के ऋणी हैं इसी से ग्रहण द्वारा बार-बार सताए जाते हैं। घुप=अंधाकार।
लागै लिखै सिप्टि मिलि जाई । समुद घटै पै लिखि न सिराई॥
साँचा सोइ और सब झूठे । ठाँव न कतहुँ ओहि कै रूठे॥
आयसु इबलस हु जौ टारा । नारद होइ नरक महँ पारा॥
सौ दुइ कटक कहउ लखिधारा । फरऊँ रोधिा नील महँ बोरा॥
जौ शदाद बैकुंठ सँवारा । पैठत पौरि बीच गहि मारा॥
जो ठाकुर अस दारुन, सेबक तइँ निरदोख।
माया करै ‘मुहम्मद’, तौ पै होइहि मोख॥6॥
रतन एक बिधानै अवतारा । नावँ ‘मुहम्मद’ जग उजियारा॥
चारि मीत चहुँ दिसि गजमोती । माँझ दिपै मनु मानिक जोती॥
जेहि हित सिरजा सात समुंदा । सातहु दीप भए एक बुंदा॥
तर पर चौदह भुवन उसारे । बिच बिच खंड बिखंड सँवारे॥
धारती औ गिरि मेरु पहारा । सरग चाँद सूरज औ तारा॥
सहस अठारह दुनिया सिरैं । आवत जात जातरा करैं॥
जेइ नहिं लीन्ह जनम महँ नाऊँ । तेहि कहँ कीन्ह नरक महँ ठाऊँ।
सो अस दैउ न राखा, जेहि कारन सब कीन्ह।
दहुँ तुम काह ‘मुहम्मद’ एहि पृथिवी चित दीन्ह॥7॥
बाबर साह छत्रापति राजा । राज पाट उन कहँ बिधिा साजा॥
मुलुक सुलेमाँ कर ओहि दीन्हा । अदल दुनी ऊमर जस कीन्हा॥
अली केर जस कीन्हेसि खाँड़ा । लीन्हेसि जगत समुद भरि डाँड़ा॥
बल हमजा करजैस सँभारा । जो बरियार उठा तेहि मारा॥
पहलवान नाए सब आदी । रहा न कतहुँ बाद करि बादी॥
बड़ परताप आप तप साधो । धारम के पंथ दई चित बाँधो॥
दरब जोरि सब काहुहिदिए । आपुन बिरह आउ जस लिए॥
राजा होइ करै सब, छाँड़ि जगत महँ राज।
तब अस कहै ‘मुहम्मद’, वँ कीन्हा किछु काज॥8॥
(6) सैंते=इकट्ठी करे। सिराई=चुके, पूरा हो। इबलीस=फरिश्ता जो पीछे शैतान हुआ। फरऊँ=मिस्र का बादशाह जिसने इसराइल के वंशवालों को सताया था। शदाद=शद्दाद, एक प्रतापी बादशाह जिसने खुदाई का दावा किया था और बिहिश्त के नमूने पर ‘अरम’ नाम का बाग बनवाया था। यह बाग हजरमूत में बारह कोस लूँबा था। इसमें अनेक प्रकार के सुंदर अनुपम वृक्ष और भवन थे। इसके तैयार हो जाने पर ज्यों ही वह इसके भीतर घुसना चाहता था कि ईश्वर के कोप से दरवाजे पर ही उसके प्राण निकल गए। सेवक तइँ=अपने बंदों या भक्तों के लिए। निरदोख=अच्छे स्वभाव का, सुशील। (7) तर पर=नीचे-ऊपर। उसारे=खड़े किए, स्थापित किए। (8) ऊमर=खलीफा उमर। पहलवान=योध्दा वीर। नाए=झुकाए। आदी=पूरे, बिलकुल। आउ जस= आयु की कीर्ति।
मानिक एक पायउँ उजियारा । सैयद असरफ पीर पियारा॥
जहाँगीर चिस्ती निरमरा । कुल जग महँ दीपक विधिा धारा॥
औ निहंग दरिया जल माहाँ । बड़त कहँ धारि काढ़त वाहाँ॥
समुद माहँ जोबाहति फिरई । लेतै नावँ सौंहँ होइ तरई॥
तिन्ह घर हौं मुरीद, सो पीरू । सँवरत बिनु गुन लावैं तीरू॥
कर गहि धारम पंथ देखरावा । गा भुलाइ नहिं मारग लावा॥
जो अस पुरुषहि मन चित लावै । इच्छा पूजै, आस तुलावै॥
जो चालिस दिन सेवै, बार बुहारै कोइ।
दरसन होइ ‘मुहम्मद’, पाप जाइ सब धाोइ॥9॥
जायस नगर मोर अस्थानू । नगर क नाँव आदि उदयानू॥
तहाँ दिवस दस पहुने आयउँ । भा बैराग बहुत सुख पायउँ॥
सुखभा सोचि एक दुख मानौं । ओहि बिनु जिवन मरन कै जानौं।
नैन रूप सो गयउ समाई । रहा पूरि भर हिरदय छाई॥
जहँवैं देखैं तहँवैं सोई । और न आव दिस्टि तर कोई॥
आपुन देखि देखिमन राखौं । दूसर नाहिं सो कासौं भाखों॥
सबैं जगत दरपन कै लेखा । आपन दरसन आपुहि देखा॥
अपने कौकुत कारन, मीर पसारिन हाट।
मलिक मुहम्मद बिहनै, होइ निकसिन तेहि वाट॥10॥
धाूत एक मारत गनि गुना । कपट रूप नारद करि चुना॥
‘नावँ न साधाु’ साधिा कहवावै । तेहि लगि चलै जौ गारी पावै॥
भावगाँठि अस मुख, कर भाँजा । कारिख तेल घालि मुख माँजा॥
परतहि दीठि छरत मोहिं लेखे । दिनहिं माँझ ऍंधिायर मुख देखै॥
लीन्हें चंग रात दिन रहई । परपँच कीन्ह लोगन मह चहई॥
भाइ बंधाु महँ लाई लावैं । बाप पूत महँ कहै कहावैं॥
मेहरि भेस रैनि के आवै । तरपड़ कै पूरुख ओनवावै॥
मन मैली कै ठगि, ठगै, ठगे न पायो पायौ काहु।
बरजेउ सबहिं ‘मुहमद’, अस जिस तुम पतियाहु॥11।
(9) निहँग=बिलकुल। बार=द्वारा। (10) उदयानू=’जायस’ का यही पुराना नाम वहाँ के लोग बतलाते हैं। कौकुत=कौतुक (अवधा) मीर=सरदार, यहाँ परमेश्वर। बिहनै=सवेरे सवेरे, प्रात:काल ही (11) धाूत=धाूर्त। नारद=शैतान। नावँ न साधाु=ईश्वर का नाम न जप। भाव गाँठि…भाँजा=मुँह पर ऐसा हावभाव बनाकर हाथ से ऐसे ऐसे इशारे करती है। कारिख=काजल, मिस्सी, तेल आदि स्त्रिायों का शृंगार। ऍंधिायर=ऍंधोरा। लाई लावै=झगड़ा लगाती है। मेहरी=स्त्राी, जोरू। तरपड़=नीचे। ओनवावै=झुकाती हैं। कै ठगि=ठगी करके।
अंग चढ़ावहु सूरी भारा । जाइ गहौ तब चंग अधाारा॥
जौ काहू सौं आनि चिहूँटै । सुनहु मोर बिधिा कैसे छूटै।
उहै नावँ करता कर लेऊ । पढ़ौ पलीता धाूऑं देऊ॥
जौ यह धाूऑं नासिकहि लागै । मिनती करै औ उठि उठि भागै॥
धारि बाईं लट सीस झकौरे । करि पाँ तर, गहि हाथ मरोरे॥
तबहिसँकोच अधिाक ओहि होवै । ‘छाँड़हु छाँड़हु!’ कहि कै रोवै॥
घरि बाहीं लै थुवा उड़ावै । तासौं डरै जो ऐस छोड़ावै॥
है नरकी औ पापी, टेढ़ बदन औ ऑंखि।
चीन्हत अहै ‘मुहम्मद’, भूठ भरी सब साखि॥12॥
नौ सै बरस छतीस जो भए । तब एहि कथा क आखर कहे॥
देखौं जगत धाुंधा कलिमाहाँ । उवत धाूप धारि आवत छाहाँ॥
यह संसार सपन कर लेखा । माँगत बदन नैन भरि देखा॥
लाभ, दिए बिनु भोग न पाउब । परिहि डाँढ़ जहँ मूर गवाउब॥
राति क सपन जागि पछिताना । ना जानौं कब होइ बिहाना॥
अस मन जानि बेसाहहु सोई । मूर न घटै लाभ जेहि होई॥
ना जानेहु बाढ़त दिन जाई । तिल तिल घटै आउ नियराई॥
अस जिन जानेहु बढ़त है, दिन आवत नियरात।
कहै सो बूझि ‘मुहम्मद’, फिर न कहौं असि बात॥13॥
जबहि अंत कर परलै आई । धारमी लोग रहै ना पाई॥
जबही सिध्द साधाु गए पारा । तबहीं चलै चोर बटपारा॥
जाइहि मया मोह सब केरा । मच्छ रूप कै आइहि बेरा॥
उठिहैं पंडित बेद पुराना । दत्ता सत्ता दोउ करिहिं पयाना॥
धाूम बरन सूरुज होइ जाई । कृस्न बरन सब सिष्टि दिखाई॥
दधाा पुरुब दिसिउइहै जहाँ । पुनि फिरि आइ अथइहै तहाँ॥
चढ़ि गदहा निकसैंधारि जालू । हाथ खंड होइ, आवै कालू॥
जो रे मिलै तेहि मारै, फिरि किरि आइ कै गाज।
सबही मारि ‘मुहम्मद’, भूज अरहिता राज॥14॥
पुनि धारती कहँ आयसु होई । उगिलै दरब, लेइ सब कोई॥
‘मोर मौर’ करि उठिहैं झारी । आपु आपु महँ करिहैं मारी॥
(12) भारा=भाला। बिहूँटै=चिमटे, लगे। लेऊ=ले। देऊ=दे (अवधाी) थुवा उड़ावै=थू-थू करै; थूके। साखि=विश्वास दिलाकर कहे हुए वचन। (13) माँगत…देखा=सबको मुँह से माँगते ही देखा। (14) आई=आइहि, आएगा। मच्छ रूप…बेरा=जैसे बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को पकड़कर खा जाती हैं, वैसा ही व्यवहार मनुष्यों के बीच हो जायगा। दत्ता सत्ता=दान और सत्य। दधाा=जला हुआ। खंड=खाँड़ा। भूज=भोगेगा। अरहिता=निर्जन, निष्कंटक।
अस न कोइ जानै मन माहाँ । जो यह सँचा अहै सो कहाँ॥
सँति सैंति लेइ लेइ घर भरहीं । रहस कूद अपने जिउ करहीं॥
खनहिं उतंग, खनहि फिर साँती । नितहि हुलंब उठै बहु भाँती॥
पुनि एक अचरज सँचरै आई । नावँ ‘मजारी’ भँबै बिलाई॥
ओहि के सूँघे जियै न कोई । जो न मरै तेहि भक्खे सोई॥
सब संसार फिराइ औ, लावै गाहिरी घात।
उनहूँ कहैं ‘मुहम्मद’, बार न लागिहि जात॥15॥
पुनि मैकाइल आयसु पाए । उन बहु भाँति मेघ बरसाए॥
पहिले लागै परै ऍंगारा । धारती सरग होइ उजियारा॥
लागी सबै पिरथिवीं जरै । पाछे लागे पाथर परै॥
सौ सौ मन कै एक एक सिला । चलै पिंड घुटि आवैं मिला॥
बजर गोट तस छूटै भारी । टूटैं रूख बिरुख सब झारी॥
परत धामाकि धारति सब हालै । उधिारत उठै सरग लौं सालै॥
अधााधाार बरसै बहु भाँती । लागि रहै चालिस दिन राती॥
जिया जंतु सब मरि घटे, जित सिरजा संसार।
कोइ न रहै ‘मुहम्मद’, होइ बीता संघार॥16॥
जिबरईल पाउब फरमानू । आइ सिस्टि देखब मैदानू॥
जियत न रहा जगत केउ ठाढ़ा । मारा झोरि कचरि सब गाढ़ा॥
मरि गंधााहिं, साँस नहिं आवै । उठै बिगंधा सड़ाइँधा आवै॥
जाइ दैउ से करहु बिनाती । कहब जाइ जस देखब भाँती॥
देखहु जाइ सिस्टि बेवहारू । जगत उजाड़ सून संसारू॥
अस्ट दिसा उजारि सब मारा । कोइ न रहा नावँ लेनिहारा॥
मारि माछ जस पिरथिवीं पाटी । परे पिछानि न दीखै माटी॥
सून पिरथिवीं होइ गई, दहुँ धारती सब लीप।
जेतनी सिस्टि ‘मुहम्मद’, सवै भाइ जल दीप॥17॥
मकाईल पुनि कहब बुलाई । बरसहु मेघ पिरथिवीं जाई॥
उनै मेघ भरि उठिहैं पानी । गरजि गरजि बरसहि अतवानी॥
(15) झारी=सब के सब बिलकुल। सँचा=संचित किया, जुटाया। सैंति=समेटकर, सहेजकर। उतंग=उभार, जोर शोर। साँती=शांति। हुलंब=हुल्लड़, हल्ला, हलचल। भँवैं=फिरती है। बिलाई=बिल्ली। फिराईं=फिरते हैं। उनहूँ कहैं=उनको भी। (16) मैकाइल= मकाईल नामक फरिश्ता। घुटि=जमकर। गोट=गोले। उधिारत उठै=उबड़ती या उचटती जाती है। (17) जिबरईल=एक फरिश्ता। केउ=कोई (अवधाी)। बिगंधा=दुर्गंधा। भाइ= भासित होती है, जान पड़ती है। जल दीप=नदी या समुद्र के बीच पड़ा सुनसान टापू।
झरी लागिचालिस दिन राती । घरी न निबुसै एकहु भाँती॥
छूटि पानि परलय कीनाईं । चढ़ा छापि सगरिउँ दुनियाईं॥
बूड़हिं परबत मेरु पहारा । जल हुलि उमड़ि चलै असरारा॥
जहँ लगि मगर माछ जित होई । लेइ बहाइ जाइहि भुइँ धाोई॥
पुनि घटि नीर भँडारै आई । जनौं न बरसा तैस सुखाई॥
सून पिरथिवीं होइहि, बूझे हँसे ठठाइ।
एतनि जो सिस्टि ‘मुहम्मद’, सो कहँ गई हेराइ॥18॥
पुनि इसराफीलहिं फरमाए । फूँके, सब संसार उड़ाए।
दै मुख सूर भरै जोसाँसा । डोलै धारती, लपत अकासा॥
भुवन चौदहो गिरि मनु डोला । जानौ घालि झुलाव हिंडोला॥
पहिले एक फूँक जो आई । ऊँच नीच एक सम होइ जाई॥
नदी नार सब जैहैं पाटी । अस होइ मिले ज्यों ठाढ़ी माटी॥
दूसरि फूँक जो मेरु उड़ैहैं । परबत समुद एक होइ जैहैं॥
चाँद सुरुज तारा घट टूटै । परतहि खंभ सेस घट फूटै॥
तिसरे बजर महाउब, अस भुइँ लेब महाइ।
पूरब पछिउँ ‘मुहम्मद’, एक रूप होइ जाइ॥19॥
अजराइल कहँ बेगि बोलावै । जाउ जहाँ लगि सबै लियावै॥
पहिले जिउ जिबरैल क लेई । लोटि जीउ मैकाइल देई॥
पुनि जिउ देइहि इसराफीलू । तीनिहु कहँ मारै अजराईलू॥
काल फिरिस्तन केर जो होई । कोइ न जागै, निसि असि होई॥
पुनि पूछब जम? सब जिउ लीन्हा । एकौ रहा बाँचि जो दीन्हा?॥
सुनिअजराइल आगे होइ आउब । उत्तार देब, सीस भुइँ नाउब॥
आयसु होइ करौं अब सोई । की हम, की तुम, और न कोई॥
जो जम आन जिउ लेत हैं, संकर तिनहू कर जिउ लेब।
सो अवतरें ‘मुहम्मद’, देखु तहूँ जिउ देब॥20॥
पुनि फरमाए आपु गोसाईं । तुमहूँ दैउ जिवाइहि नाहीं॥
सुनि आयसु पाछे कहँढाए । तिसरी पौरि नाँधिा नहिं पाए॥
परत जीउ जब निसरन लागै । होइ बड़ कष्ट, घरी एक जागै॥
(18) मकाईल=एक फरिश्ता। अतबानी=(?)। निबुसै=(मेह) थमता है, निकलता है। हुलि=ठिलकर। असरारा=लगातार। (19) इसराफील=एक फरिश्ता। सूर=तुरही बाजा (अरबी)। लपत=लचता है। खंभ=स्तंभ रूप पर्वत। बजर=वज्र। महाउब=मथाएगा। (20) अजराईल=मारनेवाला फरिश्ता। पुनि पूछब=खुदा फिर पूछेगा। बाँचि जो दीन्हा=जिसको बचा दिया। की हम की तुम=अब तो बस हम हैं, या तुम हो। जम=यमराज जो पैगंबरी मजहबों में अजराईल कहलाता है। संकर=शंकर, शिव जो महाकाल हैं। तहूँ=तू भी।
प्रान देत सँवरै मन माहाँ । उवत धाूप धारि आवत छाहाँ॥
जस जिउ देत मोहिं दुख होई । ऐसे दुखै अहा सब कोई॥
जो जनत्यौं अस दुख जिउदेता । तौ जिउ काहू केर न लेता॥
लौटि काल तिनहूँ कर हौवे । आइ नींद निधारक होइ सोवै॥
भँजन, गढ़न सँवारन, जिन खेला सब खेल।
सब कहँ टारि ‘मुहम्मद’, अब होइ रहा अकेल॥21॥
चालिस बरस जबहिं होइ जैहैं । उठिहि मया, पछिले सब ऐहैं॥
मया मोह कै किरपा आए । आपहि काहिं आप फरमाए॥
मैं संसार जो सिरजा एता । मोर नाँव कोई नहिं लेता॥
जेतने परे सब सबहि उठावौं । पुल सरात कर पंथ रेंगावौं॥
पाछे जिए पूछौं अबलेखा । नैन माहँ जैता हौं देखा॥
जस जाकर सरवन मैं सुना । धारम पाप, गुन औगुन गुना॥
कै निरमल कौसर अन्हवावौं । पुनि जीउन्ह बैकुंठ पठावौं॥
मरन गँजन घन होइ जस, जस दुख देखत लोग।
तस सुख होइ ‘मुहम्मद’, दिन दिन मानैं भोग॥22॥
पहिले सेवक चारि जियाउब । तिन्ह सब काजै काज पठाउब॥
जिबराईल औ मैकाईलू । असराफील औ अजराईलू॥
जिबरईल पिरथिवीं महँ आए । आइ मुहम्मद कहँ गोहराए॥
जिबरईल जग आइ पुकराब । नावँ मुहम्मद लेत हँकारब॥
होइहैं जहाँ मुहम्मद नाऊँ । कइउ लाख बोलिहैं एक ठाऊँ॥
ढूँढ़त रहै, कहहुँ नहिं पावै । फिरि कै जाइ मारि गोहरावै॥
कहै ‘गोसाइँ! कहाँ वै पावौं । लाखन बोलै जौ रे बोलावौं॥
सब धारती फिरि आयउँ, जहाँ नावँ सो लेउँ।
लाखन उठैं मुहम्मद, केहि कहँ उत्तार देउँ?’॥23॥
जिबराइल पुनि आयसु पावै । सूँघे जगत ठाँव सो पावै॥
बास सुबास लेउ हैं जहाँ । नावँ रसूल पुकारसि तहाँ॥
जिबराइल फिरि पिरथिवीं आए । सूँघत जगत ठाँव सो पाए॥
(21) ढाए=ढह पड़े, गिर पड़े। उवत धाूप…छाहाँ=अंत समय में जब ज्ञान होता है तब मृत्यु को अंधाकार घेर लेता है। (22) पुल सरात=वह पुल जिसे कयामत के दिन सब जीवों को पार करना पड़ेगा और जो पुण्यात्माओं के लिए खासा चौड़ा और पापियों के लिए बाल बराबर पतला हो जाएगा। कौसर=बिहिश्त (स्वर्ग) की एक नदी या चश्मा। गँजन=गंजन, पीड़ा, क्लेश। (23) काजै काज=एक- एक काम पर। गोहराए=पुकारा। मारि गोहरावै=बहुत पुकारता है (अवधा)।
उठहु मुहम्मद होहु बड़ नेगी । देन जोहार बोलावहिं बेगी॥
बेगि हँकारेउ उमत समेता । आवहु तुरत साथ सब लेता॥
एतने बचन ज्योंहि मुख काढ़े । सुनत रसूल भए उठि ठाढ़े॥
जहँ लगि जीव मुकहि सब पाए । अपने अपने पिंजरे आए॥
कहइ जुगन के सोवत, उठे लोग मनो जागि।
अस सब कहैं ‘मुहम्मद’, नैन पलक ना लागि॥24॥
उठत उमत कहँ आलस लागैं । नींद भरी सोवत नहिं जागै॥
पौढ़त बार न हम कहँ भयऊ । अबहिंन अवधिा आइ कब गयऊ॥
जिबराइल तब कहब पुकारी । अबहूँ नींद न गई तुम्हारी॥
सोवत तुमहिं कइउ जुग बीते । ऐसे तौ तुम मोहे, न चीते॥
कइउ करोरि बरस भुइँ परे । उठहु न बेगि मुहम्मद खरे॥
सुनि कै जगत उठिहि सब झारी । जेतना सिरजा पुरुष औ नारी॥
नँगा नाँग उठिहै संसारू । नैना होइहैं सबके तारू॥
कोइ न केहु तन हेरै, दिस्टि सरग सब केरि।
ऐसे जतन ‘मुहम्मद’, सिस्टि चलै सब घेरि॥25॥
पुनि रसूल जैहैं होइ आगे । उम्मत चलि सब पाछे लागै॥
अंधा गियान होइ सब केरा । ऊँच नीच जहँ होइ अभेरा॥
सबही जियत चहैं संसारा । नैनन नीर चलै असरारा॥
सो दिन सँवरि उमत सब रोवै । भा जानौं आगे कस होवै॥
जो न रहै, तेहि का यह संगा ? मुख सूखै तेहि पर यह दंगा॥
जेहि दिन कहँ नित करत डरावा । सोइ दिवस अब आगे आवा॥
जो पै हमसे लेखा लेबा । का हम कहब उतर का देबा॥
एत सब सँवरि कै मन महँ, चहैं जाइ सो भूलि।
पैगहि पैग ‘मुहम्मद’, चित्ता रहै सब झूलि॥26॥
पुल सरात पुनि होइ अभेरा । लेखा लेब उमत सब केरा॥
एक दिन बैठि मुहम्मद रोइहैं । जिबरईल दूसर दिसि होइहैं॥
वार पार किछु सूझतनाहीं । दूसर नाहिं को टेकै बाहीं?॥
तीस सहò कोस कैबाटा । अस साँकर जेहि चलै न चाँटा॥
बारहु तें पतरा अस झीना । खड़ग धाार से अधिाकौ पैना॥
(24) नेगी=प्रसाद या इनाम पानेवाले। जुहार देन=बंदगी के लिए। उमत=उम्मत, पैगंबर के अनुयायियोंका समूह। मुकहि पाए=कब्रों से छूट पाए। पिंजरे अर्थात् शरीर (25) पौढ़त=लेटते या सोते। बार=देर। अबहिंन=अभी ही, इतनी जल्दी। खरे=खड़े। तारू=तालु में। केहु तन=किसी की ओर। ऐसेजतन=इस ढंग से, इस प्रकार। (26) असरारा=लगातार। चित्ता झूलि रहै=मन में बार-बार आया करता है।
दोउ दिसि नरक कुंड हैंभरे । खोज न पाउब तिन्ह महँ परे॥
देखत काँपै लागै जाँघा । सो पथ कैसे जैहै नाँघा॥
तहाँ चलत सब परखब, को रे पूर, को ऊन।
अबहिं को जान ‘मुहम्मद’, भरे पाप औ पून॥27॥
जौ धारमी होइहि संसारा । चमकि बीजु अस जाइहि पारा॥
बहुतक जनौंतुरँग भल धाइहैं । बहुतक जानु पखेरु उड़इहैं॥
बहुतक चाल चलै महँ जइहैं । बहुतक मरि मरि पाँव उठइहैं॥
बहुतक जानु पखेरु उड़इहैं । पवन कै नाईं तेहि महँ जइहैं॥
बहुतक जानौं रेंगहिं चाँटी । बहुतक बहैं दाँत धारि माटी॥
बहुतक नरक कुंड महँ गिरहीं । बहुतक रकत पीब महँ परही॥
जेहि केजाँघ भरोस न होई । सो पंथी निभरोसी रोई॥
परै तरास सो नाँघत, कोइ रे बार, कोइ पार।
कोइ तिर रहा ‘मुहम्मद’, कोई बूड़ा मझधाार॥28॥
लौटि हँकारब वह तब भानू । तपै कहैं होइहि फरमानू॥
पूछब कटक जेता है आवा । को सेवक, को बैठे खावा?॥
जेहि जस आउ जियन मैं दीन्हा । तेहि तस संबर चाहौं लीन्हा॥
जब लगि राज देस कर भूजा । अब दिन आइ लेखा कर पूजा॥
छह मास कर दिन करौं आजू । आउ क लेउँ औ देखौं साजू॥
से चौराहै बैठे आवै । एक एक जन कँ पूछि पकरावै॥
नीर खीर हुँत काढ़ब छानी । करब निनार दूधा औ पानी॥
धारम पाप फरियाउब, गुन औगुन सब दोख।
दुखी न होहु ‘मुहम्मद’, जोखि लेब धारि जोख॥29॥
पुनि कस होइहि दिवस छ मासू । सूरुज आइ तपहिं होइ पासू॥
कै सउहैं नियरे रथ हाँकै । तेहिकै ऑंच गूद सिर पाकै।
बजरागिन अस लागै तैसे । बिलखैं लोग पियासन वैसे॥
उनै अगिन अस बरसै घामू । भूँज देह, जरि जावै चामू॥
जेइ किछु धारम कीन्ह जग माहाँ । तेहि सिर पर किछु आवै छाहाँ॥
धारमिहि आनि पियाउब पानी । पापी बपुरहि छाँह न पानी॥
जो राजता सो काज न आवै । इहाँ क दीन्ह उहाँ सो पावै॥
(27) अभेरा=सामना। चाँटा=चींटी। खोज=पता, निशान। ऊन=त्राुटिपूर्ण, ओछा। (28) बीजु=बिजली। चाल चलै महँ=मनुष्य की साधाारण चाल से। तरास=त्राास। (29) तपै कहैं=तपने को (अवधा)। संबर=सामान, कमाई। भूजा=भोग किया। से=वह; सूर्य। एक-एक…पकरावै=एक-एक प्राणी से सवाल-जवाब करके उसे पकड़ाए। कँ=कहँ, को। जोख-तराजू।
जो लखपती कहावै, लहै न कौड़ी आधिा।
चौदह धाजा ‘मुहम्मद’, ठाढ़ करहिं सब बाँधिा॥30॥
सवा लाख पैगंबर जेते । अपने अपने पाएँ तेते॥
एक रसूल न बैठहिं छाहाँ । सबही धाूप लेहिं सिर माहाँ॥
घामै दुखी उमत जेहिकेरी । सो का मानै सुख अवसेरी?॥
दुखी उमत तौपुनि मैं दुखी । तेहि सुख होइ तौ पुनि मैं सुखी॥
पुनि करता कै आयसुहोई । उमत हँकारु लेखा मोहिं देई॥
कहब रसूल कि आयसु पावौं । पहिले सब धारमी लै आवौं॥
होइ उतर तिन्ह हौं ना चाहौं । पापी घालि नरक महँ बाहौं॥
पाप पुन्नि कँ तखरी, होइ चाहत है पोच।
अस मन जानि ‘मुहम्मद’, हिरदै मानेउ सोच॥31॥
पुनि जैहैं आदम के पासा । पिता! तुम्हारि बहुत मोहिं आसा॥
उमत मोरि गाढ़े है परी । भा न दान, लेखा का धारी?॥
दुखिया पूत होत जो अहै । सब दुख पै बापै सौं कहै॥
बाप बाप कै जो कछु खाँगै । तुमहिं छाँड़ि कासौं पुनि माँगै?॥
तुम जठेरपुनि सबहिन्ह केरा । अहै सँतति, मुख तुम्हरै हेरा॥
जेठ जठेर जो करिहैं मिनती । ठाकुर तबहीं सुनिहैं मिनती॥
जाइ दैउ सौं बिनवौं रोई । मुख दयाल दाहिन तोहि होई॥
कहहु जाइ जस देखेउ, जेहि होवै उदघाट।
बहु दुख दुखी मुहम्मद, बिधिा! संकट तेहि काट॥32॥
सुनहु पूत, आपन दुख कहऊँ । हौं अपने दुख बाउर रहऊँ॥
होइ बैकुंठ जो जायसु ठेलेउँ । दूत के कहे मुख गोहूँ मेलेउँ॥
दुखिया पेट लागि सँगधाावा । काढ़ि बिहिस्त से मैल ओढ़ावा॥
परलै जाइ मँडल संसारा । नैन न सूझै, निसि ऍंधिायारा॥
सकल जगत मैं फिरि फिरि रोवा । जीउ अजान बाँधिा कै खोवा॥
भएँ उजियार पिरथिवीं जइहौं । औ गोसाइँ कै अस्तुति कहिहौं॥
लौटि मिलै जौ हौवा आई । तो जिउ कहँ धाीरज होइ जाई॥
तेहि हुँत लाजि उठै जिउ, मुँह न सकौं दरसाइ।
सो मुँह लेइ मुहम्मद! बात कहौं का जाइ?॥33॥
(30) सउहैं=सामने। गूद सिर पाकै=खोपड़ी का गूदा पक जाता है। बैसे=बैठे। बपुरहि=बेचारे को। राजता=राजत्व, राजापन। चौदह धाजा=चौदह धाज्जियों या बंधानों से। (31) पाएँ=पाए या आसनपर। अवसेरी=दु:ख से व्यग्र, चिंताग्रस्त। बाहौं=फेंकूँ, डालूँ। तखरी=तकड़ी, तराजू (पंजाबी)। (32)गाढ़े=संकट में। धारी=धारिहि, धारेगी (अवधा)। खाँगै=घटता है। जठेर=जेठा, बड़ा, बुजुर्ग। उदघाट=छुटकारा,उध्दार। (33) बाउर=बाबला। मैल ओढ़ावा=कलंक लगा दिया। भएँ=होने पर। तेहि हुँत=उसी से, उसीकारण।
पुनि जैहैं मूसा क दोहाई । ऐ बंधाू! मोहिं उपकरु आई॥
तुम कहँ बिधिाना आयसु दीन्हा । तुम नेरे होइ बातैं कीन्हा॥
उम्मत मोरि बहुत दुखदेखा । भा न दान, माँगत है लेखा॥
अब जौ भाइ मोर तुम अहौ । एक बात मोहिं कारन कहौ॥
तुम अस ठटै बात का कोई । सोई कहौ बात जेहि होई॥
गाढ़े मीत! कहौं का काहू? । कहहु जाइ जेहि होइ निबाहू॥
तुम सँवारि कै जानहु बाता । मकु सुनि माया करै बिधााता॥
मिनती करहु मोर हुँत, सीस नाइ कर जोरि।
हा हा करै ‘मुहम्मद’, उमत दुखी है मोरि॥34॥
सुनहु रसूल बात का कहौं । हौं अपने दुख बाउर रहौं॥
कै कै देखेउ बहुत ढिठाई । मुँह गरुवाना खात मिठाई॥
पहले मो कहँ आयसु दीन्हा । फरऊँ से मैं झगरा कीन्हा॥
रोधिा नील कै डारेसि झुरा । फुर भा झूठ झूठ भा फुरा॥
पुनि देखे बैकुंठ पठायउँ । एकौ दिसि कर पंथ न पायउँ॥
पुनि जो मो कहँ दरसन भयऊ । कोह तूर रावट होइ गयऊ॥
भाँति अनेक मैं फिर फिर जापा । हर दावँन कै लीन्हेसि झाँपा॥
निरखि नैन मैं देखौं, कतहुँ परै नहिं सूझि।
रहौं लजाइ, मुहम्मद! बात कहौं का बूझि?॥35॥
दौरि दौरि सबही पहँ जैहैं । उतर देइ सब फिरि बहरैहैं॥
ईसा कहिन कि कसनाकहत्यों । जौ किछु कहे क उत्तार पवत्थों॥
मैं मुए मानुस बहुत जियावा । औ बहुतै जिउ दान दियावा॥
इब्राहिम कह, कस ना कहत्यों । बात कहे बिन मैं ना रहत्यों॥
मोसौं खेल बंधाु जो खेला । सर रचि बाँधिा अगिन महँ मेला॥
तहाँ अगिन हुँत भइ फुलवारी । अपडर डरौं, न पा सँभारी॥
नूह कहिन, जब परलै आवा । सब जग बूड़, रहेउ चढ़ि नाबा॥
काह कहै कहि… सबै ओढ़ाउब भार।
जस कै बनै मूहम्मद, करु आपन निस्तार॥36॥
(34) उपकरु=उपकार कर। ठटै=बनाए। बात जेहि होई=जिससे काम हो जाय। कै जानहु बाता=बात करना जानते हो। मकु=कदाचित्, शायद। मोर हुँत=मेरी ओर से। (35) मुँह गरुवाना..मिठाई=कृपा की भिक्षा माँगते मुँह भारी हो गया है, अब और मुँह नहीं खुलता। फरऊँ=मिò का बादशाह जिसने इसराईल की संतानों को बहुत सताया था और वे मूसा के नायकत्व में मिò से भागे थे (जब मिò की सेना ने उनका पीछा किया था तब खुदा ने उनके लिए तो नील नदी या समुद्र का पानी हटा दिया था, पर मिòी सेना के सामने उसे और बढ़ा दिया था)। रोधिा=रोककर। फुर=सच, सत्य। कोह तर=वह पहाड़ जिस पर मूसा को ईश्वर की ज्योति दिखाई पड़ी थी। रावट=महल, जगमगाता स्थान। जापा=पुकारा। हर दाँवन=हर अवसर पर। झाँपा=परदा, ओट। (36) बहरैहै=बहलाएगा। सर=चिता।
सबै भार अस ठेलि ओढ़ाउब । फिर फिर कहब, उतर ना पाउब॥
पुनि रसूल जैहैं दरबारा । पैग मारि भुइँ करब पुकारा॥
तैं सब मानस एक गोसाईं । कोइ न आव उमत के ताईं॥
जेहि साँचहौं सो चुप होइ रहै । उमत लाइ केहु बात न कहै॥
मोरे चाँड़ केहु नहिं चाँड़ा । देखा दुख, सबही मोहिं छाँड़ा॥
मोहिं अस तहीं लाग करतारा । तोहि होइ भल सोइ निस्तारा॥
जो दुख चहसि उमत कहँ दीन्हा । सो सब मैं अपने सिर लीन्हा॥
लेखि जोखि जो आवै, मरन गँजन दुख दाहु।
मो सब सहै ‘मुहम्मद’, दुखी करहु जनि काहु॥37॥
पुनि रिसाई कै कहै गोसाईं । फातिम कह ढूँढ़हु दुनियाईं॥
का मोसौं उन झगर पसारा । हसन हुसैन कहौ को मारा॥
ढूँढ़े जगत कतहुँ ना पैहैं । फिरि कै जाइ मारि गोहरैहैं॥
ढूँढ़ि जगत दुनिया सब आयउँ । फातिम खोज कतहुँ ना पायउँ॥
आयसु होइ अहैं पुनि कहाँ । उठा नाद हैं धारती महाँ॥
मूँदै नैन सकल संसारा । बीबी उठैं करै निस्तारा॥
जो कोइ देखै नैन उघारी । तेहि कहँ छार करौं धारि जारी॥
आयसु होइहि दैउ कर, नैन रहै सब झाँपि॥
एक ओर डरैं ‘मुहम्मद’, उमत मरै डरि काँपि॥38॥
उट्ठिन बीबी तब रिस किहें । हसन हुसेन दुवौ सँग लिहें॥
तै करता हरतासब जानसि । झूँठै फुरै नीक पहिचानसि॥
हसन हुसेन दुवौ मोर बारे । दुनहु यजीद कौन गुन मारे?॥
पहले मोर नियाव निबारू । तेहि पाछे जेतना संसारू॥
समुझें जीउ आगि महँ दहऊँ । देहु दादि तौ चुप कै रहऊँ॥
नाहिं त देउँ सराप रिसाई । मारौं आहि अर्श जरि जाई॥
बहु संताप उठै निज, कैसहु समुझि न जाइ।
बरजहु मोह मुहम्मद, अधिाक उठै दुख दाइ॥39॥
पुनि रसूल कहँ आयसु होई । फातिम कहँ समुझावहु सोई॥
मारै आहि अर्श जरि जाई । तेहि पाछ आपुहि पछिताई॥
(37) भारि ठेलि ओढ़ाउब=भार मुहम्मद पर ही डालेंगे। पैग मारि=आसन मारकर। केहु=कोई (अवध) चाँड़=चाह, कामना। तहीं=तू ही। गँजन=पीड़ा, साँसत। (38) फातिम=बीबी फातिमा, मुहम्मद साहब की कन्या जिसके दो लड़के हसन और हुसैन करबला के मैदान में कष्ट से मारे गए और कोई खड़ा न हुआ। मारि=बहुत (अवधा)। गोहरैहैं=पुकारेंगे। नाद=आकाशवाणी। (39) किहें लिहें=किए लिए (अनघ)। बारे=बालक, लड़के। दादि हेहु=इंसाफ करो। अर्श=आसमान (का सबसे ऊँचा तबक)। दुखदाइ=दु:खदाह।
जौ नहिं बात क करै बिषादू । जानी मोहिं दीन्ह परसादू॥
जौ बीबी छाँड़हि यह दोखू । तौ मैं करौं उमत कै मोखू॥
नाहिं त घालि नरक महँ जारौं । लौटि जियाइ मुए पर मारौं॥
अग्नि खंभ देखहु जसआगे । हिरकत छार होइ तेहि लागे॥
चहुँ दिसि फेरि सरग लै लावौं । मुँगरन्ह मारौं लोह चटावौं॥
तेहि पाछै धारि मारौं, घालि नरक के काँठ।
बीबी कहँ समुझावहु, जौ रे उमत कै चाँट॥40॥
पुनि रसूल तलफत तहँ जैहैं । बीबिहि बार बार समुझैहैं॥
बीबी कहब घाम कत सहहू? । कस ना बैंठि छाहँ महँ रहहू॥
सब पैगंबर बैठे छाहाँ । तुम कस तपौ बजर अस माहाँ?॥
कहब रसूल, छाँह का बैठौं ? उमत लागि धाूपहु नहिं बैंठौं॥
तिन्हसब बाँधिा धााम मह मेले । का भा मोरे छाहँ अकेले॥
तुम्हरे कोह सबहि जो मरै । समुझहु जीउ, तबहि निस्तरे॥
जो मोहिं चहौ निवारहु कोहू । तब बिधिा करै उमत पर छोहूँ॥
बहु दुख देखि पिता कर, बीबी समुझा जीउ।
जाइ मुहम्मद जिनवा, ठाढ़ पाग के गीउ॥41॥
तब रसूल के कहें भइ माया । जिन चिंता मानहु, भइ दाया॥
जौ बीबी अबहूँ रिसियाई । सबहि उमत सिर आइ बिसाई॥
जबफातिम कहँ बेगि बोलावहु । देइ दाद तौ उमत छोड़ावहु॥
फातिम आइ कै पार लगावा । धारि यजीद दोजख महँ गावा॥
अंत कहा, धारिजान से मारै । जिउ देइ पुनि लौटि पछारै॥
तस मारब जेहि भुइँ गड़ि जाई । खन खन मारै लौटि जियाई॥
बजर अगिन जारब कै छारा । लौटि दहै जस दहै लोहारा॥
मारि मारि घिसियावै, धारि दोजख महँ देव।
जेतनी सिस्टि ‘मुहम्मद’, सबहि पुकारै लेब॥42॥
पुनि सब उम्मत लेब बुलाई । हरू गरू लागब बहिराई॥
निरखि रहौती काढ़ब छानी । करब निनार दूधा औ पानी॥
बाप क पूत, न पूत क बापू । पाइहि तहाँ न पुन्नि न पापू॥
आपहि आप आइकै परी । कोउ न कोउ क धारहरि करी॥
(40) जानौं मोहि…परसादू=तो समझो कि मैं प्रसन्न हो गया या मैंने बख्श दिया। लौटि=फिर-फिर। हिरकत=सटते ही। काँट=किनारे, तट पर। जौ रे…चाँट=यदि तुम्हें अपनी उम्मत की इतनी चाह है। (41) बजर=बज्र धाूप। समुझहु जीउ=अपने जी में ढाँढ़स बाँधाो। पाग कै गीउ=गले में पगड़ी डालकर, बड़ी अधाीनता से। (42) यजीद=जिसने हसन हुसैन को मारा था। गवा=गया। घिसियावै=घसीटते हैं। पुकारै लेब=पुकार लेंगे।
कागज काढ़ि लेब सब लेखा । दुख सुख जो पिरथिवी महँ देखा॥
पुन्नि पियाला लेखा माँगब । उतर देत उन पानी खाँगब॥
नैन क देखाòवन क सुना । कहब, करब, औगुन औ गुना॥
हाथ, पाँव, मुख, काया, òवन, सीस औ ऑंखि।
पाप न छपै ‘मुहम्मद’, आइ भरै सब साखि॥43॥
देह क रोवाँ बैरी होइहैं । वजर बिया एहि जिउ के बोइहैं॥
पाप पुन्नि निरमल कै धाोउब । राखब पुन्नि, पाप सब खोउब॥
पुनि कौसर पठउब अन्हवावै । जहाँ कया निरमल सब पावै॥
बुड़की देब देह सुख लागी । पलुहब उठि, सोवत अस जागी॥
खोरि नहाइ धाोइ सब दुँदू । होइ निकरहिं पूनिउ कै चंदू॥
सब क सरीर सुबास बसाई । चंदन कै अस घानी आई॥
झूठे सबहि आप पुनि साँचे । सबहि नबी के पाछै बाँचे॥
नबिहि छाँड़ि होइहि सबहि, बारह बरस क राह।
सब अस जान ‘मुहम्मद’, होइ बरस कै राह॥44॥
पुनि रसूल नेवतब जेवनारा । बहुत भाँति होइहि परकारा॥
ना अस देखा, ना अस सुना । जौ सरहौं तौ है दस गुना॥
पुनि अनेक बिस्तर तहँ डासब । बास सुबास कपूर ते बासब॥
होइ आयसु जौ बेगि बोलाउब । औ सब उमत साथ लेइ आउब॥
जिबरईल आगे होइ जइहैं । पग डारै कहँ आयसु देइहैं॥
चलब रसूल उमत लेइ साथा । परग परग पर नावत माथा॥
‘आवहु भीतर’बेगि बोलाउब । बिस्तर जहाँ तहाँ बैठाउब॥
झारि उमत सब बैठी, जोरि कै एकै पाँति।
सब के माँझ ‘मुहम्मद’, जानो दुलह बराति॥45॥
पुनि जेंवन कहँ आवै लागै । सबके आगे धारत न खाँगै॥
भाँति भाँति कर देखब थारा । जानब ना दहुँ कौन प्रकारा॥
पुनि फरमाउब आप गोसाईं । बहुतै दुख देखेउ दुनियाईं॥
हाथन से जेंवन मुख डारत । जीभ पसारत दाँत उघारत॥
कूँचत खात बहुत दुख पायउ । तहँ ऐसे जेवनार जेंवायउ॥
(43) हरू=हलका, ओछा। गरू=भारी, गंभीर। बहिराइ लागब=निकलने लगेंगे। रहौती=रहन-सहन, आचरण। निनार=न्यारा, अलग। धारहरि=धार-पकड़, सहायता। करी=करिहि, करेगा। (44) कौसर=स्वर्ग की एक नदी या चश्मा। बुड़की=गोता। पलुहब=पनपेगी। खोरि=अवगाहन करके। दुंदू=द्वंद्व, प्रपंच। घानी=ढेर। (45) जौ सरहौं…दस गुना=यदि सराहता हूँ तो उसका दस गुना ठहरता है।
अबजिन लौटि कस्ट जिउ करहू । सुख सवाद औ इंद्री भरहू॥
पाँच भूत आतमा सेराई । बैठि अघाउ, उदर ना भाई॥
ऐस करब पहुनाई, तब होइहि संतोख।
दुखी न होहु ‘मुहम्मद’, पोखि लेहु फुर पोख॥46॥
हाथन्ह से केहु कौर न लेई । जोइ चाह मुख पैठे सोई॥
दाँत, जीभ, मुखकुछन डोलाउब । जस जस रुचि हैतसतसखाउब॥
जैस अन्न बिनु कूँचे रूचै । तैस सिठाइ जौ कोऊ कूँचै॥
एक एक परकार जो आए । सत्तार सत्तार स्वाद सो पाए॥
जहँ जहँ जाइ के परै जुड़ाई । इच्छा पूजै खाइ अघाई॥
अनचाखे राते फर चाखा । सब अस लेइ अपरस रस राखा॥
जलम जलम कै भूख बुझाई । भोजन केरे साथै जाई॥
जेंवन ऍंचवन होइ पुनि, पुनि होइहि खिलवान।
अमृत भरा कटोरा, पियहु ‘मुहम्मद’ पान॥47॥
एक तौ अमृत, बास कपूरा । तेहि कहँ कहा शराब तहूरा॥
लागब भरि भरि देइ कटोरा । पुरुब ज्ञान अस भरै महोरा॥
ओहि कै मिठाइ भाँति एक दाऊँ । जलम न मानब होइ अबकाहूँ॥
सचु मतवार रहब होइ सदा । रहसै कूदै सदा सरबदा॥
कबहुँ न खोवै जलमखुमारी । जनौ बिहान उठै भरि बारी॥
ततखन बासि बासि जनु घाला । घरी घरी जस लेब पियाला॥
सबहि क भा मन सो मद पिया । नव औतार भवा औ जिया॥
फिरै तँबोल, मया से, कहब अपुन लेइ खाहु।
भा परसाद ‘मुहम्मद’, उठि बिहिस्त महँ जाहु॥48॥
कहबरसूल, बिहिस्ति न जाऊँ । जौ लगि दरस तुम्हार न पाऊँ॥
उघर न नैन तुमहिं बिनु देखे । सबहि ऍंबिरथा मोरे लेखे॥
तौ लै केहु बैकुंठ न जाई । जौ लै तुम्हरा दरस न पाई॥
करु दीदार, देखौं मैं तोहीं । तौ पै जीउ जाइ सुख मोहीं॥
देखें दरस नैन भरि लेऊँ । सीस नाइ पै भुइँ कहँ देऊँ॥
(46) तहँ=संसार में। लौटि=स्वर्ग में लौट आकर। सेराई=शीतल हो। उदर ना भाई=यहाँ पेट नहीं है जिसे भरना पड़े। फुर पोख=सच्ची तुष्टि। (47) तैस सिठाइ…कूँचै=कूँचने पर वह वैसा ही सीठी सा नीरस लगता है। सिठाइ=सीठी सा फीका लगता है। अपरस=अछूता। जलम=जन्म (अवधा)। खिलवान=खिलारी, धानिया, खरबूजे आदि के तले बीज जो भोजन के पीछे दिए जाते हैं। (48) शराब तहूरा=शराबुत्ताहूरा, स्वर्ग की शराब। महोरा=महुअरा, मधाु, मद्य। सचु मतवार=आनंद से मतवाला। बिहान…बारी=मानो नित्य मुँह तक भरा प्याला मिल जाता है। परसाद=प्रसन्नता, कृपा।
जलम मोर लागा सब थारा । पलुहै जीउ जा गीउ उभारा॥
होइ दयाल करु दिस्टि फिरावा । तोहि छाँड़ि मोहि और न भावा॥
सीस पायँ भुइँ लावौं, जौ देखौं तोहि ऑंखि।
दरसन देखि मुहम्मद, हिये भरौं तोहि साखि॥49॥
सुनहु रसूल! होत फरमानू । बोल तुम्हार कीन्ह परमानू॥
तहाँ हुतेउँ जह हुतेउ न ठाऊँ । पहिले रचेउँ मुहम्मद नाऊँ॥
तुम बिनु अबहुँ न परगट कीन्हेउँ । सहस अठारह कहँ जिउदीन्हेउँ॥
चौदह ख्रड ऊपर तर राखेउँ । नाद चलाइ भेद बहु भाखेउँ॥
चार फिरिस्तन बड़ औतारेउँ । सात खंड बैकुंठ सँवारेउँ॥
सवा लाख पैगंबर सिरजेउँ । कर करतूति उन्हहि धौ बेधोउँ॥
औरन्ह कर आगे कत लेखा । जेतना सिरजा को ओहि देखा॥
तुम तहँ एता सिरजा, आप कै अंतरहेत।
देखहु दरस ‘मुहम्मद’! आपनि उमत समेत॥50॥
सुनि फरमानहरष जिउ बाढ़े । एक पाँव से भए उठि ठाढ़े॥
झारि उमत लागी तब तारी । जेता सिरजा पुरुष औ नारी॥
लाग सबन्ह सहुँ दरसन होई । ओहि बिनु देखे रहा न कोई॥
एक चमकार होइ उजियारा । छपै बीजु तेहि के चमकारा॥
चाँद सूरुज छपिहैं बहु जोती । रतन पदारथ मानिक होती॥
सो मनि दिपें जो कीन्हि थिराई । छपा सो रंग गात पर आई॥
ओहु रूप निरमल होइ जाई । और रूप ओहि रूप समाई॥
ना अस कबहूँ देखा, ना केहू ओहि भाँति।
दरसन देखि ‘मुहम्मद’, मोहि परे बहु भाँति॥51॥
दुइदिनलहि कोउ सुधिा न सँभारे । बिनु सुधिा रहे, न नैन उघारे॥
तिसरे दिन जिबरैल जौ आए । सब मदभाते आनि जगाए॥
जे हिय भेदि सुदरसन राते । परे परे लोटै जस माते॥
सब अस्तुति कै करै बिसेखा । ऐस रूप हम कतहुँ न देखा॥
अब सब गयउ जलम दुख धाोई । जो चाहिय हठि पावा सोई॥
(49) ऍंबिरथा=वृथा, व्यर्थ। जाई=जाइहि, जायगा। पाई=पाइहि, पाएगा। जाइ=उत्पन्न हो। जलम=जन्म। थारा=थाला (जिसमें पौधाा लगाया जाता है)। गीउ उभारा=गर्दन ऊपर की, ऊपर दृष्टि की।
(50) हुतेउँ=मैं था। हुतेउ न ठाऊँ=जहाँ कोई स्थान न था, लामकान। अबहुँ=अब तक। नाद=कलाम।कहि करतूति=कर्तव्य बतलाकर। अंतरहेत=अंतर्हित, ओट में, अदृश्य। (51) झारि=सारी, कुल।तारी लागी=टकटकी लग गई, पलकों का गिरना बंद हो गया। सहुँ=सम्मुख, साक्षात्। चमकार=चमत्कार, ज्योति। कीन्हि थिराई=स्थिर रह सके। छपा सो रंग…आई=उनके शरीर पर उस ज्योति की छाप लग गई।
अरु-निहचिंत जीउ बिधिा कीन्हा । जौ पिय आपन दरसन दीन्हा॥
मन कै जेति आस सब पूजी । रही न कोइ आस गति दूजी॥
मरन, गँजन औ परिहँस, दुख, दलिद्र सब भाग।
सब सुख देखि ‘मुहम्मद’, रहस कूद जिउ लाग॥52॥
जिब अइल कहँ आयसु होइहि । अछरिन्ह आइ आगे पय जोइहि॥
उमत रसूल केर बहिराउब । कै असवार बिहिस्त पहुँचाउब॥
सात बहिस्त बिधिानै औतारा । औ आठईं शदाद सँवारा॥
सो सब देब उमत कहँ बाँटी । एक बराबर सब कहँ ऑंटी॥
एक एक कहँ दीन्ह निवासू । जगत लोक बिरसै कबिलासू॥
चालिस चालिस हूरैं सोई । औ सँग लागि बियाही जोई॥
औ सेवा कहँ अछरिन्ह केरी । एक एक जनि कहँ सौ सौ चेरी॥
ऐसे जतन बियाहैं, जस साजै बरियात।
दूलह जतन मुहम्मद, बिहिस्त चले बिहँसात॥53॥
जिबराइल इतात कहँ धााए । चोल आनि उम्मत पहिराए॥
पहिरहु दगल सुरँग रँग राते । करहु सोहाग जनहु मद भाते॥
ताज कुलह सिर मुहम्मद सोहै । चंद बदन औ कोकब मोहै॥
न्हाइ खोरि अस बनी बराता । नबी तँबोल खात मुख राता॥
तुम्हरे रुचे उमत सब आनब । औ सँवारि बहु भाँति बखानब॥
खड़े गिरत मदमाते ऐहैं । चढ़ि कै घोड़न कहँ कुदरैहैं॥
जिन भरि जलम बहुत हिय जारा । बैठि पाँव देइ जमै ते पारा॥
जैसे नबी सँवारे, तैसे बने पुनि साज।
दूलह जतन ‘मुहम्मद’, बिहिस्त करैं सुख राज॥54॥
तानब छत्रा मुहम्मद माथे । औ पहिरैं फूलन्ह बिनु गाँथे॥
दूलह जतन होब असवारा । लिए बरात जैहैं संसारा॥
रचि रचि अछरिन्ह कीन्ह सिंगारा । बास सुबास उठै महकारा॥
आज रसूल बियाहन ऐहैं । सब दुलहिन दूलह सहुँ नैहैं॥
आरति करि सब आगे ऐहैं । नंद सरोदन सब मिलि गैहैं॥
मँदिरन्ह होइहि सेज बिछावन । आजु सबहि कहँ मिलिहैं रावन॥
बाजन बाजै बिहिस्त दुवारा । भीतर गीत उठै झनकारा॥
(52) लहि=तक। परिहँसर्=ईष्या, डाह, कुढ़न (अवधा)। रहस=आनंद। (53) अछरी=अप्सरा। बहिराउब=निकालेंगे, चलाएँगे। बिरसैं=विलास करते हैं। हूर=बहिश्त की अप्सरा। जोई=जोय, स्त्राी। ऐसे जतन=ऐसे ढंग से, इस प्रकार। (54) इतात=आज्ञापालन। चोल=वस्त्रा, पहनावा। दगल=लंबा ऍंगरखा। कुलह=टोप। बहुत हिय जारा=ईश्वर के विरह में लीन रहे। जतन=प्रकार, समान।
बनि बनि बैठीं अछरी, बैठि जोहैं कबिलास।
बेगिहि आउ ‘मुहम्मद’ पूजै मन कै आस॥55॥
जिबरईल पहिले से जैहैं । जाइ रसूल बिहिस्त नियरैहैं।
खुलिहैं आठौ पँवरि दुवारा । औ पैठे लागे असवारा॥
सकल लोग जब भीतर जैहैं । पाछे होइ रसूल सिधौंहैं॥
मिलि हूरै नेवछावरि करिहैं । सबके मुखन्ह फूल अस झरिहैं॥
रहसिरहसि तिनकरबकिरीड़ा । अगर कुंकुमा भरा सरीरा॥
बहुत भाँतिकर नंद सरोदू । बास सुबास उठै परमोदू॥
अगर, कपूर, बेना, कस्तूरी । मँदिर सुबास रहब भरपूरी॥
सोवन आजु जो चाहै, साजन मरदन होइ।
देहिं सोहाग ‘मुहम्मद’, सुख बिरसै सब कोइ॥56॥
पैठि बिहिस्त जौ नौनिधिा पैहैं । अपने अपने मँदिर सिधौहैं॥
एक एक मंदिर सात दुवारा । अगर चंदन के लाग केवारा॥
हरे हरे बहु खंड सँवारे । बहुत भाँति दइ आपु सँवारे॥
सोने रूपै घालि उँचावा । निरमल कुहँकुहँ लाग गिलावा॥
हीरा रतन पदारथ जरे । तेहि क जोति दीपक जस बरे॥
नदी दूधा अतरन कै बहहीं । मानिक मोति परे भुइँ रहहीं॥
ऊपर गा अब छाहँ सोहाई । एक एक खंड चहा दुनियाई॥
तात न जूड़ न कुनकुन, दिवस राति नहिं दुक्ख।
नींद न भूख मुहम्मद, सब बिरसैं अति सुक्ख॥57॥
देखत अछरिन केरि निकाई । रूप तें मोहि रहत मुरछाई॥
लाल करत मुख जोहब पासा । कीन्ह चहैं किछु भोग बिलासा॥
हैं आगे बिनवैं सब रानी । और कहैं सब चेरिन्ह आनी॥
ए सब आवैं मोरे निवासा । तुम आगे लेइ आउ कबिलासा॥
जो अस रूप पाटपरधाानी । औ सबहिन्ह चेरिन्ह कै रानी॥
बदन जोति मनि मापे भागू । औ बिधिा आगर दीन्ह सोहागू॥
साहस करैं सिंगार सँवारी । रूप सुरूप पदमावती नारी॥
पाट बैठि नित जोहैं, बिरहन्ह जारै माँस।
दीनदयाल ‘मुहम्मद’, मानहु भोग बिलास॥58॥
सुनहिं सुरूप अबहिं बहु भाँती । इनहिं चाहि जो रुपवाँती॥
सातौं पवँरि नघत तिन्हपेखब । सातइँ आए सो कौकुत देखब॥
(55) नंद=आनंद। सराद=स्वर (फारसी)। रावन=रमण करनेवाला, प्रियतम। (56) पँवरि=डयोढ़ी। साजन=स्वजन, प्रियतम। मरदन=आलिंगन। बिरसै=बिलसे। (57) दइ=दैव, विधााता। गिलावा गारा। तात=गरम। कुनकुन=कुनकुना। आधाा गरम। (58) लाल=प्यार, दुलार। आगर=बढ़कर।
चले जाब आगे तेहि आसा । जाइ परब भीतर कबिलासा॥
तखत बैठि सब देखब रानी । जे सब चाहि पाट परधाानी॥
दसन जोति उट्ठै चमकारा । सकल बिहिस्त होइ उजियारा॥
बारहबानी कर जो सोना । तेहि तें चाहि रूप अति लोना॥
निरमल बदन चंद कै जोती । सब क सरीर दिपैं जस मोती॥
बास सुबास छुवै जेहि, बेधिा भँवर कहँ जात।
बर सो देखि ‘मुहम्मद’, हिरदै महँ न समात॥59॥
पैग पैग जस जस नियराउब । अधिाक सवाद मिलै कर पाउब॥
नैन समाइ रहै चुप लागे । सब कहँ आइ लेहिं होइ आगे॥
बिसरहु दूलह जोबन बारी । पायउ दुलहिन राजकुमारी॥
एहि महँ सो कर गहि लेइ जैहैं । आधो तखत पै लै बैठैहैं॥
सब अछूत तुम कहँभरि राखै । महै सवाद होइ जो चाखै॥
नित पिरीत नितनवनव नेहू । नित उठि चौगुन होइ सनेहू॥
नित्ताहि नित्ताजो बारि बियाहै । बीसौ बीस अधिाक ओहि चाहै॥
तहाँ न मीचु, न नींद दुख, रह न देह महँ रोग।
सदा अनंद ‘मुहम्मद’, सब सुख मानै भोग॥60॥
(59) रुपवाँती=रूपवती। कौकुत=कौतुक, चमत्कार। चाहि=बढ़कर। बास सुवास…जात=जिस भौंरे को बेधाकर छूने के लिए सुगंधा जाती है। (60) जोबन बारी=(क) यौवन की वाटिका, (ख) युवती बालाएँ। महै=बहुत ही। बीसौ बीस=पहले से और बढ़कर।
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