महा तेजस्वी मंदिर महा विद्या माँ तारा का
दश महा विद्या में देवी तारा की प्रचंड शक्ति का वर्णन है ! माँ जगदम्बा तारा का विश्व प्रसिद्ध मंदिर पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में है |
पूर्वी रेलवे के रामपुर हाल्ट स्टेशन से चार मील दूरी पर स्थित है तारा पीठ ।
हिन्दुओं के 51 शक्तिपीठों में से पाँच शक्ति पीठ वीरभूमि में ही हैं। राजा दशरथ के कुल पुरोहित वशिष्ठ मुनि ने भी वीरभूमि से जुड़ कर इतिहास में इस भूमि के प्रति लोगों का ज्ञान बढ़ाया। इसलिए वीरभूमि जिला हिंदू वाम मार्गियों का महा तीर्थ बना।
यहाँ पर स्थापित वशिष्ठ मुनि के सिंहासन पर अनेको साधको ने अपनी सिद्धिया प्राप्त की। जिनमें से प्रमुख आनंदनाथ, मोक्ष्दानंद , वामा खेपा के नाम आते है।
यह वही जगह है जहा पर सुदर्शन चक्र ने माँ सती के नेत्र को काट कर गिराया था। इसीलिए इसका नाम तारापुर पड़ा। और आगे चल कर इस भूमि का नाम तारापीठ से प्रसिद्ध हुआ।
प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। उन्होंने इस स्थान पर एक मंदिर भी बनवाया था, जो अब धरती में समा गया है।
वर्तमान में तारापीठ का निर्माण ‘जयव्रत’ नामक एक व्यापारी ने करवाया था। एक बार यह व्यापारी व्यापार के सिलसिले में तारापीठ के पास स्थित एक गाँव पहुँचा और वहीं रात गुजारी। रात में देवी तारा उसके सपने में आईं और उससे कहा कि – “पास ही एक श्मशान घाट है। उस घाट के बीच में एक शिला है, उसे उखाड़कर विधिवत स्थापना करो।
जयव्रत व्यापारी ने भी माता के आदेशानुसार उस स्थान की खुदाई करवाकर शिला को स्थापित करवा दिया। इसके बाद व्यापारी ने देवी तारा का एक भव्य मंदिर बनवाया, और उसमें देवी की मूर्ति की स्थापना करवाई।
इस मूर्ति में देवी तारा की गोद में बाल रूप में भगवान शिव हैं, जिन्हें माँ स्तनपान करा रही हैं।
तारापीठ मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट स्थित है, इसे ‘महाश्मशान घाट’ के नाम से जाना जाता है। इस महाश्मशान घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है।
यहाँ आने पर लोगों को किसी प्रकार का भय नहीं लगता है। मंदिर के चारों ओर द्वारका नदी बहती है।
कुलार्णव तंत्र में लिखा है –
वामे वामा रमण कुशला दक्षिणे पानपात्र.¨
मग्रे न्यस्तं मरिचसहिताम शूकरास्योष्णमांसम
स्कन्धे वीणा ललितसुभगा सद्गुरुनाम प्रपंच,
कौलो धर्मःपरमगहनो योगिनामप्यगहम्यः ……
तारापीठ का महाश्मशान इस श्लोक में वर्णित दृश्य को चरितार्थ करता है | यहाँ सामान्य जन कभी कभी आते हैं | वृक्षों पर कौवे उल्लू और चमगादड़ रहते हैं | एक ओर सेमल वृक्ष है जिसके नीचे वशिष्ठ देव द्वारा स्थापित आसन पर देवी की शिला मूर्ति स्थापित है |
इसे वशिष्ठ सिद्धपीठ कहा जाता है | कभी वशिष्ठ मुनि यहाँ बैठकर साधना करते थे, आगे चलकर वामाचरण ने इसे आसन बनाया |
तारा, उग्रतारा, महोग्रतारा, वज्रा, नीला, सरस्वती, कामेश्वरी भद्रकाली मिलकर तारा के अष्टरूप हैं ! ज्ञातव्य है कि वशिष्ठ, परशुराम, भृगु, दत्तात्रेय, दुर्वासा आदि आदरणीय ऋषि भी तारा विद्या में सिद्ध थे !
त्रिताप को जो नाश करती है, उन्हे श्री तारा कहते हैं !
ताप चाहे कोई सा भी हो, विष का ताप हो, दरिद्रता का ताप हो या भय का ताप, देवी माँ तारा सभी तापों को दूर कर जीव को निश्चित स्वतंत्र और अभय बनाती है !
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