जिनका नाम दुनिया ने खेपा (पागल) रखा, माँ जगदम्बा ने उन्हें गोद में खिलाया
सन 1868 की एक महारात्री को बंगाल के तारा पीठ के महा श्मशान घाट में साधू श्री ब्रजबासी ने एक सेमल वृक्ष के नीचे बालक श्री वामा खेपा को बैठाते हुए कहा-` तुम्हे जो बीज मन्त्र मिला है, उसका यहाँ बैठकर जप करते रहना और बिल्कुल भी डरना मत, मैं सामने मंदिर में हूँ !
गुरु के आदेशानुसार बालक वामा खेपा बैठकर जप करने लगे ! चारों ओर भयानक शब्द और विचित्र दृश्य देखकर उनका मन चंचल होने लगा ! इसी समय एक औरत भीषण अट्टहास करती उनके सामने आकर खड़ी हो गयी ! उसकी लाल जीभ और बिखरे बाल देखकर वामा इतने डर गये की जप छोड़कर सीधे मंदिर की ओर भागे !
उन्हें आसन छोड़कर आते देखकर ब्रजवासी ने पूछा- क्या हुआ रे ? भाग क्यूँ आया ?
वामा ने कहा – अरे बाप रे, एक राक्षसी मुझे निगलने आये थी ! उसकी आँखें अंगारे की तरह जल रही थी !
श्री ब्रजबासी ने कहा – बड़ा डरपोक है. चल, दिखा कहाँ है तेरी राक्षसी ?
श्मशान निकट आने पर कहीं कोई दिखाई नहीं दिया ! उन्हें पुनः आसन पर बैठाते ब्रजबासी ने कहा- डरना मत, मैं मंदिर में हूँ !
गुरु से आश्वासन पाकर वामा इस बार दृढ होकर आसन पर बैठ गए | थोड़ी देर बाद हाथी और शेर की गर्जना सुनाई देने लगी |
वामा को लगा की जैसे पास ही कोई कह रहा हो- खर्व्वाम् लम्बोदरीम् भीमां व्याघ्रचर्म्मावृताम् कटौ नवयौवनसम्पन्नाम् पंच्मुद्राविभूषिताम्चतुर्जिव्हाम् महाभीमाम् वरप्रदाम्…
रात के शेष प्रहर में श्री वामा खेपा का शरीर समाधिस्थ हो गया, सहसा मधुर मातृ कंठ सुनते ही श्री वामा की आँखें खुली. आसपास किसी को न देखकर वामा का अंतर मन रो पड़ा और पुकार निकली – कहाँ हो माँ ?
तुरंत आवाज आयी – मैं तेरे पास ही हूँ वत्स, तू रो क्यूँ रहा है ? मैं तो युग-युगांतर से सेमल वृक्ष के रूप में यहाँ रहती हूँ, प्रहर काल के बाद यह वृक्ष स्वतः गिर जायेगा !
वामा ने पूछा- ऐसा क्यूँ होगा माँ ?
तुरंत आवाज आयी – चिंता करने की जरुरत नहीं, शिला रूप में मैं यहाँ रहूंगी और अपना कुछ अंश तुम्हे दूंगी !
धीरे धीरे पौ फटने लगी, मंदिर की ओर जाते हुए कोई कह रहा था.-“ नीलवर्णां सदा पातु जानुनी सर्वदा मम नाग मुंडधरा देवी सर्वांग पातु सर्वदा…..
साधना के माध्यम से वामा को यह ज्ञात हो गया था कि वह पिछले जन्म में क्या थे, यहाँ तक कि उन्हें अपने आसन को पहचानने में भी देर न लगी।
श्री व्रजवासी के साथी संत श्री मोक्षदानंद को तब तक यह मालूम नहीं हो सका था कि वामा को जतिस्मरता प्राप्त हो चुकी है, नित्य के नियम के अनुसार उन्होंने वामा को कहा-“ हुक्का भर ला, तुरंत वामा ने इनकार कर दिया। मोक्षदानंद को अपने शिष्य की अवहेलना अच्छी ना लगी और क्रोधित हुए तो ठीक उसी समय श्री ब्रजबासी ने कहा- नाराज होने की जरुरत नहीं है मोक्षदानंद, आज वामा सिद्ध पुरुष हो गया है ! स्वयं तारा देवी उसे यह रहस्य बता चुकी है कि यही तेरा आसन है जहाँ बैठकर कई जन्मों से यह साधना करता रहा है । हमारा कर्त्तव्य पूरा हो गया है और अब हमें यह स्थान छोड़ देना चाहिए !
माँ तारा के दर्शन होने से पहले, अति गरीब और बिना पढ़े लिखे बालक वामा को उसके गाँव वाले खेपा (पागल) बुलाते थे, पर श्री तारा के दर्शन के बाद उनके जिह्वा पर साक्षात् सरस्वती विराजने लगी ! वो जो भी कहते एकदम सच साबित हो जाता ! वो त्रिकाल दर्शी हो गए, उन्हें भूत भविष्य और वर्तमान तीनों काल की बातें प्रत्यक्ष दिखाई देती थी !
श्री वामा का आशीर्वाद लेने के लिए पूरे भारत से भक्त उनके पास पहुचते थे !
कई प्रत्यक्ष दर्शियों का कहना था कि माँ तारा, श्री वामा से अकेले मंदिर स्वयं अक्सर बातें करती थी तथा श्री वामा के हाथों से खुद भोग खाती थी और अपने हाथों से खिलाती भी थी !
और सुनने में यह भी आता है कि, वामा खेपा की बात बात पर अपने भक्तों को गाली देने की आदत छुड़ाने के लिए, एक बार माँ तारा ने बंद मंदिर में वामा खेपा की डंडे से खूब पिटाई की थी जिससे उनके शरीर पर नीले नीले डंडे के निशान भी पड़ गए थे !
इस पिटाई के बाद वामा खेपा अपने से मिलने आने वाले सभी भक्तों से खूब प्रेम से बातें करने लगे और उन्होंने गाली देना भी छोड़ दिया था !
ऐसे युग पुरुष थे श्री वामा खेपा जिन पर अम्बे माँ इस कदर मेहरबान थी की असली लड़के की तरह उन्हें प्यार दुलार डांट सब करती थी !
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