माता महालक्ष्मी का वरदान है कि, मै दीपावली की रात सात्विक परिवार पर बिना कृपा किये नही लौटूंगी
दीपावली केवल, गिफ्ट लेकर परचितों के घर जा जाकर हैप्पी दीवाली – हैप्पी दीवाली कहने की रात नहीं हैं !
केवल इसी सत्य को जानकर ही दीपावली के असली महत्व का पता लग जाता है कि आज की महान रात्रि में जो कुछ भी अच्छा कार्य (उचित पात्र अर्थात गरीब दीन दुखियों आदि को उचित वस्तु जैसे भोजन पैसे दवाईओं आदि का दान तथा अपने बड़े बुजुर्गों की सेवा आदि) निःस्वार्थ भाव से किया जाता है उसका अन्तहीन पुण्य मिलता है !
ये ऐसा पर्व है जब आप बेहद कठिन संकल्प लेते है, असत्य झूठ का साथ हमेशा के लिए छोड़कर सत्य ईमानदारी की अग्नि में तपने का, तो प्रचंड शक्ति शाली ब्रह्मांडीय ताकतें आपके संकल्प को सफल और शुभ बनाने के लिए अदृश्य रूप से माहौल तैयार करने लगती हैं !
दीपावली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय, अर्थात अज्ञान रूपी अन्धकार से प्रकाश की ओर उन्मुख होना !
दीपावली की महा निशा पर माता महा लक्ष्मी अनायास और बहुत आसानी से प्रसन्न हो जाती हैं बस जरूरत है व्यक्ति के अन्दर शुभ विचार होने की ! कोई भी कुटिल, चालाक और धूर्त किस्म का आदमी अपने कुकर्म से धन तो कमा सकता है पर माता महा लक्ष्मी की कृपा नहीं !
ऐसे पापी आदमी का दूषित धन एक दिन उसका जीना हराम जरूर कर देता है जबकि माता लक्ष्मी का कृपा पात्र पूरे जीवन सिर्फ चहुँ ओर तरक्की करता है और मृत्यु उपरान्त देवी के धाम बैकुण्ठ में शाश्वत निवास पा कर महा आनन्दित होता है !
दीपावली के ही दिन अपने इस ब्रह्माण्ड का भी जन्म हुआ था !
दीपावली के ही दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्या वासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था। श्री राम के स्वागत में अयोध्या वासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।
दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा सागर के मंथन से पैदा हुई श्री लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह रात है जब श्री लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में श्री विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की।
त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है, वह आज के दिन पूरे चरम पर आता है। इस दिन श्री लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मीजी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीक़े से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं। इसलिए इस दिन घर-बाहर को ख़ूब साफ-सुथरा करके सजाया-संवारा जाता है।
दीपावली मनाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर स्थायी रूप से सद्गृहस्थों के घर निवास करती हैं। यह पर्व अलग-अलग नाम और विधानों से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसी दिन अनेक विजयश्री युक्त कार्य हुए हैं। बहुत से शुभ कार्यों का प्रारम्भ भी इसी दिन से माना गया है। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। विक्रम संवत का आरम्भ भी इसी दिन से माना जाता है। अत: यह नए वर्ष का प्रथम दिन भी है। आज ही के दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।
वास्तव में धनतेरस, नरक चतुर्दशी (जिसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है) तथा महालक्ष्मी पूजन- इन तीनों पर्वों का मिश्रण है दीपावली। भारतीय पद्धति के अनुसार प्रत्येक आराधना, उपासना व अर्चना में आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीनों रूपों का समन्वित व्यवहार होता है। घरों को दीपमाला आदि से अलंकृत करना इत्यादि कार्य लक्ष्मी के आध्यात्मिक स्वरूप की शोभा को आविर्भूत करने के लिए किए जाते हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण से आज के दिन व्रत रखना चाहिए और रात्रि में जितना संभव हो सके लक्ष्मी-पूजन कर गरीब दीन दुखियों की सेवा करनी चाहिए क्योंकि इस महान रात्रि गरीबों को दान करने से, बड़े बुजुर्गों की सेवा करने से देवी लक्ष्मी बहुत ही प्रसन्न होती हैं !
तिज़ोरी में गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें। अपने व्यापार के स्थान पर बहीखातों की पूजा करें। इसके बाद जितनी श्रद्धा हो घर की बहू-बेटियों को रुपये दें। श्री लक्ष्मी पूजन रात के समय बारह बजे भी करें तो बेहतर है।
सावधानियाँ –
– पटाखों के साथ खिलवाड़ न करें। उचित दूरी से पटाखे चलाएँ। भारतीय संस्कृति के अनुसार आदर्शों व सादगी से मनायें। पाश्चात्य जगत का अंधानुकरण ना करें। पटाखों से बच्चों को उचित दूरी बनाये रखने और सावधानियों को बरतने का ज्ञान जरूर दें।
– मिठाइयों और पकवानों की शुद्धता, पवित्रता का ध्यान रखें।
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