बीमारी या मौत का डर, मोह भंग करता है चमक दमक आधुनिकता से
जीवन में कम से कम एक बार तो सभी को मौका मिलता है उसको उसकी रेग्युलर लाइफ की तुलना में ज्यादा चमक दमक की जिन्दगी जीने का !
अगर आदमी उस चमक दमक की धारा में बिना अपना इंटेलिजेंस (बुद्धिमतता) इस्तेमाल किये बह जाता है तो फिर वही चमक दमक का बहाव उसे ऐसे किनारे पर ला कर छोड़ता है जहाँ से शुरू होती है मनहूसियत भरी निराशा !
चमक दमक वास्तव में है क्या ? और क्या ये गलत है ?
वैसे तो चमक दमक की कोई फिक्स परिभाषा नहीं है पर आम तौर पर इसे माना जाता है कि ऐसा माहौल या जीवन शैली, जो धर्म के नियमों के विरुद्ध हो ! यहां चमक दमक से भरी आधुनिकता, से मुख्यतः तात्पर्य है, मानव जीवन के लिए उपयुक्त वास्तविक प्राकृतिक वातावरण से दूर तत्कालिक सुखों से युक्त आडम्बर पूर्ण कृत्रिम माहौल को प्रशंसात्मक निगाह से देखना उसी माहौल में जीने के लिए लगातार प्रयास करना !
तो इसमें साधारण सा प्रश्न बनता है कि, आखिर धर्म को इसमें क्या दिक्कत है कि तनाव से भरा इन्सान अगर चमक दमक से भरे माहौल में जाकर थोड़ा इंजॉय कर ले तो !
प्रथम द्रष्टया देखा जाय तो धर्म की अधिकांश बातें, आज के आधुनिक चमक दमक से भरी जीवनशैली के ठीक विपरीत है !
जैसे आधुनिकता कहती है कि, जब तक नीद पूरी ना हो जाय तब तक सोओ, सो कर उठने के बाद बीवी, गर्ल फ्रेंड, बॉय फ्रेंड को हाय हेलो बोलो, तेज इंग्लिश म्यूजिक पर माँर्निग वाक करो, अंडे के ऑमलेट का ब्रेकफस्ट करो, और अपनी लम्बी सी कार में बैठकर अपनी ऑफिस निकल जाओ (एक सेल्फ सेंटर्ड जिंदगी), जबकि धर्म कहता है कि सुबह जल्दी सो कर उठो, प्रेम से माता पिता का पैर छूओ, नहाकर पूजा पाठ करो, योग प्राणायाम व्यायाम करो, और रोज किसी न किसी गरीब जरूरतमंद आदमी या जानवर का पेट भरना न भूलो !
आधुनिकता कहती है कि जब दिल करे, तो एक घूँट शराब, सिगरेट का कश या तम्बाखू चबाने में क्या बुराई है, धर्म कहता है कि नशा करना मतलब आत्महत्या का प्रयास करना !
आधुनिकता कहती है कि हफ्ते में एक बार बढ़िया रेस्टोरेंट में खाना जरूरी है, धर्म कहता है कि सिर्फ अपने घर की रसोई में बना शुद्ध पवित्र खाना ही खाना चाहिए !
आधुनिकता कहती है की भले ही कर्ज लेना पड़े लेकिन घर और कार तो आलीशान होना ही चाहिए, धर्म कहता है कि ईमानदारी के पैसे से जितनी आवश्यक सुविधायें एकत्र हो सकें बस उतने का ही उपभोग करना चाहिए !
आधुनिकता कहती है कि अपना कमाया पैसा अपने और अपने लोगों की ख़ुशी के लिए जितना भी चाहे उड़ाया जाय तो उसमे बुराई नही है, जबकि धर्म कहता है कि, ऐसा नहीं है की आपको ईश्वर ने ज्यादा धन दिया है तो आप सिर्फ अपने या अपने लोगों पर ही ज्यादा धन खर्च करने लगें, क्योंकि इस कलियुग में धन, शक्ति का ही पर्यायवाची है और अगर आपके पास ज्यादा शक्ति है तो यह अपने आप आपका जरूरी कर्तव्य बन जाता है कि उस शक्ति से जल्द से जल्द आप दूसरों की उजड़ चुकी जिंदगियों को संवारिये और बदले में तुरन्त महा सुख का अनुभव करिए !
तो दिन भर की ऐसी बहुत सी बाते हैं जहाँ धर्म हमारा रास्ता रोकता है कि ऐसा न करो !
मसलन धर्म (वेदों से ही आयुर्वेद ग्रन्थ निकला है) कहता है की एयर कंडिशनर जैसे कृत्रिम तरीके से पैदा किया गया ठंडा माहौल शरीर के लिए नुकसान दायक है (हड्डियां कमजोर हो जाती हैं व मानसिक अवसाद पैदा होता है), जबकि मिटटी के घर की बनी शीतलता लाभ दायक है (आजकल अमेरिका में शुद्ध मिटटी के घर बनवाने का प्रचलन बढ़ा है) !
धर्म कहता है कि फ्रिज जैसे कृत्रिम तरीके से ठंडा किया गया जल नुकसान है (गिल्टियाँ निकल जाती है व मंदाग्नि आदि पेट के रोग होते हैं), जबकि मिटटी के घड़े का शीतल जल लाभ दायक है (ये बात आज के वैज्ञानिकों द्वारा भी प्रमाणित हो चुकी है) !
आधुनिकता कहती है कि इस स्वार्थी मतलबी दुनिया में हर समय सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचना चाहिए, धर्म कहता है की सिर्फ अपने, अपने परिवार, अपने रिश्तेदारों तक ही नहीं बल्कि पूरी पृथ्वी के सभी जीव जंतुओं के फायदे के बारे में सोचना और काम भी करना चाहिए !
आधुनिकता कहती है कि बाजार में बिकने वाले कोल्ड ड्रिंक्स, चाकलेट्स, टॉफी, पिज्जा, नमकीन आदि सामानों को खाने में क्या बुराई है सभी तो खाते हैं, धर्म कहता है कि बुरी चीज खाने वाले बुरा अंजाम जरूर भुगतते है !
आधुनिकता कहती है कि फ़ूड तो फ़ूड होता है चाहे वो वेज हो या नॉन वेज, धर्म कहता है कि नॉन वेज फ़ूड खाने वाला अगले जन्म में खुद भी नॉन वेज फ़ूड बनकर किसी के थाली में जरूर परोसा जाता है !
आधुनिकता कहती है कि खूब डियो, परफ्यूम, पाउडर, लिपस्टिक, क्रीम आदि लगाकर हर समय महकते चमकते रहो, धर्म कहता है किसी भी कृत्रिम चीज को लगाने की बजाय सिर्फ आयुर्वेदिक चीजे (चन्दन, दही, गोमूत्र, गोबर, बेसन, मलाई, मक्खन, मुल्तानी मिटटी, गुलाबजल, केवड़ाजल आदि) लगाना चाहिए (सही भी है क्योंकि इन आधुनिक केमिकल युक्त चीजों के लगाने से स्किन कैंसर के मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है) !
आधुनिकता कहती है कि माता पिता बूढ़े हुए तो क्या हुआ अपने से सिर्फ अपना ख्याल भी नहीं रख सकते, धर्म कहता है कि बस बेटा जल्द ही तुम भी बूढ़े होने वाले हो उसके बाद खुद ही महसूस कर लेना की, हर दिन पहले से ज्यादा बूढ़ी कमजोर होती जाती शरीर क्या कर सकती है और क्या नहीं !
नियमों में बंध कर लगातार काम करते रहना हमेशा से तकलीफ दायक होता है पर नियमो को तोड़कर आजाद जिन्दगी जीना, कुछ देर के लिए तो बहुत बढ़िया अनुभव दे सकती है पर अन्ततः धकेल देती है निराशा के अँधेरे कुंए में !
और कभी कभी ये थोड़ी देर की आजादी इतनी महंगी पड़ सकती है कि कोई जान लेवा रोग लग सकता है या भयंकर मुसीबत गले पड़ सकती है !
शास्त्रों में इस कलियुग में सबसे बड़ा दुश्मन अज्ञान को कहा गया है और ये अज्ञान या मूर्खता का ही एक बड़ा उदाहरण ही है कि यह सोच कर गलत काम को करते रहना कि सभी तो करते हैं !
ध्यान देने वाली बात है कि, अगर सभी गलत काम करते हैं तो सभी झेलते भी तो हैं !
आज हर छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा अस्पताल, दवाखाना, नर्सिंग होम आदि सब मरीजों से भरे पड़े हैं ! ये मरीज कौन है ?
ये मरीज हम आप ही तो हैं, जो यह सोच सोच कर अपनी दिनचर्या में से गलत आदतों को नहीं हटाते कि सभी तो करते हैं !
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