चेहरा देखकर ही भूत भविष्य वर्तमान पता लगने लगता है
दो तरह का ज्योतिष होता है, एक ग्रहों के प्रभावों का अध्ययन करके और दूसरा अपने अध्यात्मिक बल से !
ग्रहों के सम्पूर्ण प्रभावों का अध्ययन अथाह है इसलिए इसका पूर्ण जानकार बन पाना लगभग असम्भव है जिसकी वजह से अक्सर देखने में आता है कि बड़े बड़े ज्योतिषियों की कोई कोई भविष्यवाणी एकदम गलत साबित हो जाती है !
वैसे देखा जाय तो हिन्दू धर्म का ज्योतिष विज्ञान इतना प्रचंड सक्षम है कि इससे हर बड़ी से बड़ी व छोटी से छोटी व्यक्तिगत, सामूहिक व खगोलीय घटनाओं को निश्चित जाना व समझा जा सकता है पर इतनी विशाल विद्या का ज्ञान देने वाले योग्य गुरु और धैर्यवान शिष्य बहुत ही दुर्लभता से मिलते हैं !
ज्योतिष विज्ञान इतना चमत्कारी है कि इसमें मामूली सी जानकारी रखने वाले ज्योतिषी भी, अपने ग्राहकों की निजी जिंदगी की गुप्त बातें बताकर उन्हें चमत्कृत कर अच्छा पैसा कमा लेते हैं !
ज्योतिष एक अंतहीन यात्रा है और इसके आदि प्रवर्तक, भगवान् वेदव्यास के पिता, ऋषि पराशर हैं !
ऋषि पराशर, ऋषि लोमष, सप्तर्षि समेत अन्य सभी ईश्वर दर्शन प्राप्त ऋषि आज भी हमारे ब्रह्माण्ड में स्पष्ट रूप से विद्यमान हैं ! ये ऋषि इतने शक्ति शाली है कि जब चाहें तब एक क्षण में एक नए ब्रह्मांड की रचना कर दें पर ईश्वर के कामों में ये दिव्य ऋषि गण हस्तक्षेप नहीं करना चाहते बल्कि ईश्वरीय इच्छा का परम आदर करते हुए ईश्वरीय इच्छा को उचित माध्यमों से क्रियान्वन कराते हैं ! इस समय पृथ्वी लोक पर होने वाला यह महा परिवर्तन पूरी तरह से सप्तर्षि की देख रेख में हो रहा है !
कलियुगी प्रभाव से, इस संसार में सत्व-रज-तम के बिगड़े समन्वयन कि वजह से परिस्तिथियां काफी जटिल हो चुकी हैं | इतिहास गवाह रहा है कि ऐसी परिस्तिथियों में या तो परम सत्ता स्वयं ने हस्तक्षेप किया है या नायको को भेजा है कमान सम्भालने के लिए !
वास्तव में निराकार, अचिन्त्य, अनंत परब्रह्म विशुद्ध कल्याणमय है | ये अन्त हीन रहस्यों व पहेलियों से भरा ऐसा महा समुद्र है जिसमे असंख्य वर्षों से तैरते सप्त ऋषि भी कहते हैं कि हमने तो आज तक ईश्वर के बारे में कुछ जाना ही नहीं !
ईश्वर को समझने की सबसे महान प्रक्रिया हैं कुण्डलिनी जागरण और जिसे सफल बनाने में बहुत बड़ा हथियार है अनुलोम विलोम प्राणायाम !
अनुलोम विलोम प्राणायाम का लगातार अभ्यास करने से मुख्य प्राण धीरे धीरे सुषुम्ना नाम की अदृश्य नाड़ी में घुसने लगता है !
कुण्डलिनी और मुख्य प्राण में अंतर होता है ! जहाँ कुण्डलिनी शक्ति सिर्फ एक बार उठती है शरीर के अंदर स्थित अनन्त ब्रह्मांडों का भेदन करते हुए सहस्त्रार स्थित शिव में मिल जाती है वही मुख्य प्राण का बार बार मूलाधार से लेकर सहस्त्रार तक दोलन होता है वो भी लम्बे अभ्यास के बाद !
प्राण जैसे जैसे मूलाधार से ऊपर के चक्रों में प्रवेश करता जाता है वैसे वैसे आश्चर्यजनक सिद्धियाँ मिलती जाती हैं जैसे हवा में उड़ना, भूख प्यास पर विजय आदि !
ऐसे सिद्ध योगी जयादातर चुप हो जाते हैं और कुछ पूछने पर बस मुस्कुरा देते हैं ! इनके चुप रहने का राज यही है कि जब चीजें दिखने लगती हैं और रहस्य उजागर होने लगते हैं तो वाणी मौन हो जाती है !
अब इसमें साधारण संसारी आदमी को यह समझ में नही आता कि आखिरकार ऐसे योगी को क्या ऐसा दिखने लगा कि उनमे कुछ बोलने, सुनने, जानने की उत्सुकता ही ख़त्म हो गयी !
वास्तव में ऐसे योगी की उत्सुकता नहीं ख़त्म हुई होती है पर हाँ उस योगी का ध्यान ईश्वर के उन रहस्यमय पहलुओं की और आकृष्ट होता है जिनसे वो अब तक अनजान था !
भूत भविष्य वर्तमान की घटनाएं उसे उसी तरह दिखने लगती हैं जैसे हथेली पर रखा आंवला !
ऐसे योगी के शरीर से हर समय इतनी सुखद पॉजिटिव एनर्जी निकलती रहती है कि सभी साधारण संसारी आदमी, औरत अधिक से अधिक देर तक उसके आस पास ही बैठे रहना चाहते हैं !
वास्तव में योग-प्राणायाम और कुछ नहीं बल्कि मनोवृत्तियों का नियंत्रण है !
नियंत्रण के बाद ही इनका नियोजन संभव है !
ईश्वर ने हमें इसी शरीर में सब कुछ दिया है !
समस्त इन्द्रियों के साथ मन अगर किसी विशेष कार्य में नियोजित होगा तो वो कार्य हर हाल में पूरा होगा ही, दुनिया कि कोई भी शक्ति उसे पूरा होने से रोक नहीं सकती !
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