दूर से दिखने में है सुंदर स्त्री पर वास्तव में है खून पीने वाली डायन
यह स्त्री हर मानव को दिखती है और सर्वप्रथम दूर से अपने पास बुलाती है और जो जो मानव उस स्त्री के आकर्षण में फसकर उसके पास पहुंच जातें हैं उन्हें उनका विवेक तुरंत चेतावनी देने लगता है कि अरे यह उपर से सुन्दर दिखने वाली स्त्री वास्तव में अन्दर से एक खून पीने वाली डायन है लेकिन पता नहीं उन मानवों का विवेक कमजोर होता है या उस डायन का सम्मोहन तेज होता है कि अधिकांश मानव उस डायन की असलियत जानने के बावजूद भी उससे दूर नहीं जा पाते हैं और फिर वो डायन उन मानवों को तब तक अपने इशारों पर नचाती है जब तक उनका शरीर बूढ़ा, कमजोर होकर मर नहीं जाता है !
परन्तु जो बुद्धिमान मानव, उस सुन्दर स्त्री को दूर से ही देखकर पहचान जाते हैं कि, अरे यह तो शरीर का सत्यानाश करने वाली डायन है इसलिए उससे दूर ही रहते हैं तो काफी समय पश्चात् वह डायन वाकई में हमेशा के लिए एक सुन्दर स्त्री में परिवर्तित होकर उन बुद्धिमान मानवों की गुलाम बन जाती हैं इसके अलावा उन मानवों को बहुत सी चमत्कारी शक्तियां भी प्रदान करती है !
अब सभी पाठकों के मन में यह जानने की उत्सुकता हो रही होगी कि आखिर वो सुन्दर स्त्री है कौन ?
वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण योग दर्शन है जिसका बहुत सुन्दर व बहुत विस्तृत वर्णन है हमारे अनंत वर्ष पुराने वेरी साइंटिफिक हिन्दू सनातन धर्म में !
इस योग दर्शन में चीजों को आसानी से समझने के लिए सुंदर स्त्री व डायन को एक सिंबल (प्रतीक) की तरह इस्तेमाल किया गया है !
दूर से सुंदर पर पास से डायन दिखने वाली यह स्त्री, कोई और नहीं बल्कि हर मानवों में स्थित उनकी अपनी “चित्त वृत्तियाँ” होतीं है !
अब यह “चित्त वृत्तियाँ” क्या होती हैं ?
यह चित्त की वृत्तियाँ ही वो बल होती हैं जो किसी सांसारिक नश्वर वस्तु में आकर्षण पैदा करती हैं !
यहाँ बहुत ध्यान से समझने वाली बात है कि, कभी किसी वस्तु में आकर्षण नहीं होता है, बल्कि हमारी चित्त वृत्तियाँ ही उन सभी वस्तुओं में आकर्षण या बहुत आकर्षण पैदा करती हैं !
इसके कई प्रमाण हैं जैसे किसी आदमी को सिगरेट पीना बहुत पसंद होता है तो किसी आदमी को सिगरेट बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो पाता है !
किसी को तम्बाखू चबाना बहुत पसंद है तो किसी को आश्चर्य होता है कि कैसे कोई तम्बाखू जैसी कसैली और खतरनाक चीज हमेशा चबा सकता है !
किसी को अधिक से अधिक पैसा सिर्फ अपने और अपने परिवार पर ही खर्च करना बहुत अच्छा लगता तो किसी को दूसरे गरीब व जरूरतमंदों को भी बाँटनें में अच्छा लगता है !
सारांश यही है कि हर मानव को जिन जिन नश्वर सांसारिक वस्तुओं में आकर्षण महसूस होता है, वह सिर्फ और सिर्फ उनकी चित्त की वृत्तियों की वजह से ही होता है, ना कि उन सांसारिक वस्तुओं में खुद का कोई अपना आकर्षण होता है !
यह चित्त वृत्तियाँ ही अलग अलग व्यक्तियों को उनके उनके अलग अलग प्रारब्ध के हिसाब से अलग अलग सांसारिक वस्तुओं की तरफ आकर्षित करती हैं अब यह अलग अलग व्यक्ति के आत्मबल की मजबूती पर निर्भर करता है कि वह उन नश्वर वस्तुओं की तरफ आकर्षित होगा या नहीं !
पतंजलि ऋषि ने तो इन चित्त वृत्तियों के निरोध (नियंत्रण) को ही सभी तरह के योग का मुख्य उद्देश्य बताया है अपने इस योग सूत्र के माध्यम से “योगस्य चित्तवृत्ति निरोधः” |
कोई निर्बल आत्मबल का व्यक्ति अगर एक बार अपनी चित्त वृत्ति के लुभावने आकर्षण में फसकर उसका हर आदेश मानना शुरू कर देता है तो फिर धीरे धीरे वह व्यक्ति चित्त वृत्ति के खतरनाक रूप का मात्र गुलाम बन कर ही रह जाता है और ज्यादातर केसेस में यह गुलामी तभी टूट पाती है जब कोई घातक शारीरिक क्षति (जैसे – कैंसर आदि बीमारी लगना) या सामाजिक क्षति हो जाती है या किसी सन्त/ग्रन्थ के सम्पर्क से व्यक्ति का विवेक मजबूत होने लगता है !
इसके विपरीत जब कोई मजबूत आत्मबल का आदमी अपनी चित्त वृत्तियों के बार बार बुलाने वाले लुभावने आकर्षणों में नहीं फसता है तो वही चित्त वृत्तियाँ अपना खतरनाक रूप त्यागकर अत्यंत दिव्य रूप में उस योगी की गुलाम बन जाती हैं और इस कलियुगी दुनिया में वो व्यक्ति जितेन्द्रिय बनने की ओर अग्रसर हो जाता है और साथ ही साथ कई दिव्य चमत्कारी सिद्धियाँ भी क्रमशः हस्तगत करता जाता है !
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