सिर्फ पैर पटकने भर से धरती को भूकम्प की तरह कंपा देने की शक्ति दे सकती है अपान वायु
भगवान् शिव के द्वारा निर्मित योग विज्ञान, परम आश्चर्यजनक और परम रहस्यमय है और इसकी महिमा इतनी अपरम्पार है कि जब सिर्फ इसके सतत अभ्यास से ही कोई साधारण मानव, सबसे बड़ी उपलब्धि अर्थात स्वयं योगीराज भगवान् शिव का दर्शन तक पा सकता है तो अन्य चमत्कार जैसी दिखने वाली दिव्य शक्तियों की बात ही क्या !
जैसे जैसे कोई मानव योग के अभ्यास में गहनता (उन्नत अवस्था) की ओर बढ़ता जाता है वैसे वैसे उसे कई चमत्कारी शक्तियां भी मिलती जाती है पर कोई भी समझदार योगी अपनी उन चमत्कारी शक्तियों को आम जनमानस के सामने प्रदर्शन करने में रूची नहीं रखता क्योंकि चमत्कारी शक्तियों के प्रदर्शन करने पर लोगों द्वारा जो सम्मान मिलता है वही सम्मान मन में अहं (गर्व या घमण्ड) का भाव पैदा करता है जिससे उस योगी की आगे की तरक्की वहीँ रुक जाती है और वह अपनी पूर्णता की प्राप्ति अर्थात आत्मसाक्षात्कार से वंचित रह जाता है !
इसलिए कई योगी, योग के कुछ समय के अभ्यास के बाद, नाशवान आकर्षण से भरे संसार से बचने के लिए एकान्त जंगल या वीरान पहाड़ों पर चले जाते हैं और वहीँ रहकर आगे की साधना पूर्ण करते हैं !
कुछ उच्च कोटि के दिव्य दृष्टिधारी योगीओं के कृपामय सानिध्य से हमें योग के कुछ गुप्त पहलुओं की जानकारी मिली है, जो कि निम्नवत है –
मानव शरीर के पांच मुख्य प्राणों में से एक है अपान वायु जिसके बारे में साधारण लोगों की जानकारी है कि इसका मुख्य काम है कि मानव शरीर से मल मूत्र का निष्कासन करना !
गलत खान पान व हरकतों से जब गैस, कब्ज आदि पेट से सम्बन्धित तकलीफें पैदा हो जाती हैं तो लोग अंदाजा लगाते हैं कि शायद अपान वायु कुपित हो गयी है !
पर वास्तव में, अपान वायु का सामर्थ्य केवल मल मूत्र के निष्कासन तक ही नहीं सीमित है बल्कि इसका सामर्थ्य अपरमित है मतलब अगर कोई योग प्रणायाम का अति दीर्घकालीन अभ्यास करके अपनी अपान वायु को सिद्ध कर लेता है तो उसे अतुलित शारीरिक बल प्राप्त होता है !
वो महाताकतवर हो जाता है ! वो इतना ज्यादा बलशाली हो जाता है कि उसके एक बार पैर पटकने से ही धरती भूकम्प की तरह कांपने लगती है ! उसके एक घूसे से पहाड़ों में छेद हो जाता है !
पर कुछ ऐसे दूरदर्शी योगी होते हैं जो अपानवायु को सिद्ध शारीरिक बल के लिए नहीं बल्कि अभूतपूर्व मानसिक शक्ति प्राप्त करने के लिए करते हैं !
ये अभूतपूर्व मानसिक शक्ति ऐसी होती है जिससे योगी मात्र अपने मानसिक संकल्प से, असम्भव जैसे कामों को भी करने में सक्षम हो जाता है जैसे महर्षि विश्वामित्र जी ने अपने मात्र संकल्प से एक पूरा दूसरा स्वर्ग ही बना दिया था ! वास्तव में सभी दिव्य ऋषि गण अपने मानसिक संकल्प से ही सारे काम करते हैं और आपस में संवाद भी मानसिक ही करते हैं !
इस अपान वायु का उद्गम कहा से होता है इसके बारे में आज के अच्छे से अच्छे योग के जानकार भी नहीं जानते है लेकिन दिव्य दृष्टिधारी योगियों के सानिध्य से हमें यह जानकारी प्राप्त हुई कि अपान वायु का उद्गम स्रोत मानव शरीर में रीढ़ और कूल्हे की हड्डी के समागम बिंदु पर एक मोर पंख के समान आभूषित अदृश्य झिल्ली में होता है जिसे मानवीय चर्म चक्षु से नहीं, बल्कि सिर्फ सूक्ष्म नेत्रों से देखा जा सकता है !
अपान वायु की सिद्धि के लिए सात्विक आहार, विचार के साथ लम्बे समय तक हठ योग का अभ्यास करना पड़ता है ! हठ योग में मुख्यतः नाड़ी शोधन प्राणायाम के अभ्यास से शरीर की सभी नाड़ियों को शुद्ध करने के बाद मूल बंध के लम्बे अभ्यास से मूलाधार चक्र को और उड्डियन बंध से मणिपूरक चक्र को जागृत करने से ही अपान वायु पर पूर्ण नियंत्रण हो पाता है !
यह पूरी प्रक्रिया जैसे जैसे आगे बढ़ कर गहन होती जाती है वैसे वैसे मार्गदर्शन के लिए अनुभवी गुरु का सानिध्य होना बेहद जरूरी हो जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया में एक लेवल के बाद बड़े विचित्र, आश्चर्यजनक और डरावने अनुभव भी हो सकते हैं जिनका समाधान सिर्फ पुस्तकों से पढ़कर ही संभव नहीं हैं !
ऐसा भी होते देखा गया है कि अगर किसी योगी को प्रारम्भ में उचित गुरु नहीं मिलते हैं तो भी उसकी लम्बी साधना की मेहनत और सीखने की अति तीव्र इच्छा को देखकर, उसको आगे का मार्गदर्शन देने के लिये दिव्य दृष्टिधारी योगी पुरुष अपने आप खुद ही उसके पास पहुँच जाते हैं या किसी ना किसी माध्यम से उसे ही अपने पास ही बुला लेते हैं !
नोट- इन जानकारियों का यहाँ वर्णन, भारत माँ के अति समृद्ध योग विज्ञान का परिचय करवाने के लिए किया गया है, इसलिए इन यौगिक क्रियाओं को सिर्फ पढ़कर अभ्यास नहीं शुरू कर देना चाहिए, बल्कि किसी योग्य जानकार योगी के मार्गदर्शन में ही अभ्यास करना चाहिए अन्यथा शरीर की हानि पहुँच सकती है !
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