गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 32 (गायत्री की कृपा से उच्च पद की प्राप्ति)
पं. शंभूप्रसाद मिश्र, हृदयनगर, कहते हैं कि मुझे अनुभव है कि मेरे इष्ट वेदमाता ने मेरे बड़े-बड़े हानि-लाभ के कार्यों में स्वप्नों में ही दिग्दर्शन कराके आने वाली विपत्ति से रक्षा की और शुभ फल दिया है। स्वप्न प्राय: गायत्री इष्टï से सच्चे ही आते हैं और अधिकतर परिचित तथा अपरिचित दिव्य स्त्री रूप में भी दिग्दर्शन प्राप्त होता है। कुछ वर्ष पूर्व मैं असाध्य रक्त विकार से ग्रसित हो गया था बड़े-बड़े वैद्य, डाक्टरों ने अपनी असमर्थता प्रकट की। मेरे लिए तब सिर्फ देवी आराधना ही एक मात्र आशा थी, तब मेरे गुरुदेव ने मुझे गायत्री मंत्र एक लक्ष जप करने को कहा। मैंने एक लक्ष जप पूर्ण किया। इसके पश्चात् मैंने देखा कि जो असाध्य रोग दिन प्रतिदिन बढ़ रहा था। वह घट रहा है और बहुत जल्द ही मैं रोग मुक्त हो गया।
एक मिल्कियत जमींदारी के झगड़े में मैं एक बार बड़ी बुरी तरह फंस गया, जिसमें जान, माल, प्रतिष्ठा तथा धन नाश आदि सभी जोखिम थे, मैंने वही आद्य शक्ति अपनी ईष्टमाता की शरण ली।परिणामस्वरूप मेरी आश्चर्यमयी विजय राजद्वार से हुई और विपक्षी दल की पूर्ण पराजय हुई कि वे कभी सर नहीं उठा सकते, चारों तरफ मेरी सफलता की चर्चा फैल गयी। सन् 1933 ई. मंडला डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अध्यक्ष पद के चुनाव में उम्मीदवार खड़े होने के लिये एकाएक मेरा विचार हुआ। मेरे प्रतिद्वन्दी एक बड़े ताल्लुकेदार थे जिनके पास सैकड़ों मुनीम, गुमाश्ता मोटरों थीं और रुपयों की कोठी भरी थी, मेरे पास सिर्फ दो कारिंदे और एक दो साईकिले थीं, रुपया पैसा का तो यह हाल था, तालुकेदार को व उनके मुनीम, गुमाश्ता, उनके दलाल और मोटरों की दौड़ एक ओर हो रही है, तो दूसरी ओर मेरी दौड़ कहीं पैदल, तो कहीं साईकिल से और कहीं किराये की मोटरों से हो रही थी,
आखिर को नोमिनेशन-उम्मीदवारी की दरख्वास्त देने की तारीख आ गई और उम्मेदवारी की दरख्वास्त पेश की। जिलाधीश पोलिंग अफसर कह रहे हैं कि 15 मिनट के अन्दर जिसको उम्मेदवारी की दरख्वास्त पेश करना है कर दे पर 15 मिनट के बदले 2० मिनट हो गए तब जिलाधीश ने ऐलान कर दिया कि ‘मिश्रजी पं. शम्भुप्रसाद बिना विरोध के अध्यक्ष, डि. बोर्ड के पद पर चुन लिए गए।’ कई सौ उपस्थित जनता के साथ व जयघोष के साथ मैं अपने स्थान को विजयी व सफल होकर आ गया। अभी थोड़े दिन पूर्व में ज्वर से बीमार पड़ गया। बीमारी बढ़ती गई। भोजन छुट गया सिर्फ पानी ही पीता था।
हृदय की गति में ऐसी भारी विषमता थी कि हार्टफैल होने का डर हर वक्त बना रहता था, स्त्री तथा अन्य कुटुम्बी मेरी बीमारी की भयंकरता के कारण रोया करते थे, इस प्राण संकट के समय मैंने गायत्री माता की ही शरण ली। रोग शय्या पर पड़ा-पड़ा मन ही मन गायत्री का जप करता रहता। मेरे सब परिजन मेरी ओर से हताश हो गये थे, बचने की आशा न थी, पर गायत्री माता ने मुझे बचा लिया। एक रात्रि को शान्ति पूर्ण निन्द्रा आई। स्वप्न में एक दिव्य सुन्दरी के दर्शन हुए इसके बाद धीरे-धीरे मेरी हालत सुधरने लगी और कुछ दिन में पूर्ण स्वस्थ हो गया। गायत्री की कृपा से मुझे बड़े-बड़े महापुरुषों की कृपा और समीपता प्राप्त हुई है जिनके लिए दूसरे लोग तरसते हैं। महात्मा गांधी मंडला पधारे थे।
निकट के दर्शन करने की मेरी बड़ी लालसा थी पर उसका पूरा होना कठिन दिखाई पड़ता था, मैं घर से निकल कर मंडला जाने के लिए सड़क पर पहुंचा। सामने से कई मोटरें आती दिखाई दीं। मेरी आत्मा ने कहा यही महात्मा जी की मोटर है। मैं सड़क पर खड़ा हो गया और हाथ का इशारा देकर मोटर रुकवाने की कोशिश की। मोटर रुक गई। सचमुच ही यह गांधी जी का दल था। जिस मोटर में पूज्य बापू बैठे थे उसी में मेरे एक परिचित सज्जन बैठे थे। उन्होंने मुझे उसी मोटर में बिठा लिया और गांधी जी की बगल में बैठा हुआ मंडला पहुंचा। खूब जी भर कर दर्शन किया। जुलूस मे भी उन्हीं के साथ मोटर में था और कई बार बापू ने सिर पर हाथ फिराकर एक दिव्य स्पर्श किया।
जेल में पं. रविशंकर शुक्ल से मैंने एक दिन कहा था कि शुक्ल जी जिस दिन आप मिनिस्टर हो जावें उस दिन मेरे घर अवश्य पधारें। शुक्ल जी ने हां कर लिया। उस वचन को पूरा करने के लिए मध्यप्रान्त के प्रधानमंत्री होने के बाद मेरे घर पधारे और कहा कि जेल वाले वचन को पूरा करने आया हूं। मुझे आन्तरिक आनन्द हुआ। इसी प्रकार अन्य महापुरुषों की समीपता मुझे प्राप्त हुई है, इसे गायत्री माता की ही कृपा समझता हूं।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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