हर सांस से भयंकर ज्वाला निःसृत करने वाली माँ कालरात्रि प्रलय काल में पूरे ब्रह्माण्ड को अपने में ही समेट लेती है
मौत (काल) भी जिनसे डर कर थर थर कांपती है ऐसी है माँ कालरात्रि ! सिर के बाल खुले और बिखरे हुए हैं। इनकी कराल वाणी सुनकर भय से कितने पापियों की तुरन्त मृत्यु हो जाती है | इनके शरीर का रंग काजल से भी कई गुना ज्यादा काला है। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।
भयंकर रूप होते हुए भी माता भक्तों के लिए कल्याणकारी है। देवी भागवत में कालरात्रि को आदिशक्ति का तमोगुण स्वरूप बताया गया हैं।
माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभांकरी’ भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं |
मार्कंडेय पुराण के अनुसार भगवान शिव ही सृष्टि को नष्ट करेंगे, इस महालीला में जो सबसे गुप्त पहलू है वो है माँ कालरात्रि !
प्राचीन कथा के अनुसार एक बार भगवान् शिव नें सात्विक शक्ति को पुकारा तो माँ योग माया हाथ जोड़ सम्मुख आ गयी और उन्होंने भगवान् शिव को सारी शक्तियों के बारे में बताया, फिर भगवान् शिव ने राजसी शक्ति को पुकारा तो माँ पार्वती देवी, दुर्गा व दस महाविद्याओं के साथ उपस्थित हो गयीं और देवी ने भगवान् शिव को सब कुछ बताया, तब भगवान् शिव ने तामसी और सृष्टि की आखिरी शक्ति को बुलाया तो माँ कालरात्रि प्रकट हुई !
माँ काल रात्रि से जब भगवान् शिव ने प्रश्न किया तो माँ कालरात्रि ने अपनी शक्ति से दिखाया कि वो ही सृष्टि कि सबसे बड़ी शक्ति हैं और गुप्त रूप से वही योगमायाजी, दुर्गाजी व पार्वतीजी है !
एक क्षण में देवी ने कई सृष्टियों को निगल लिया, कई नीच राक्षस पल भर में मिट गए, देवी के क्रोध से नक्षत्र मंडल विचलित हो गये, सूर्य का तेज मलीन हो गया, तीनो लोक भयभीत होने लगे, तब भगवान् शिव नें देवी को शांत होने के लिए कहा लेकिन देवी शांत नहीं हुई, उनके शरीर से 64 कृत्याएं पैदा हुई, स्वर्ग सहित व पृथ्वी मंडल कांपने लगे !
64 कृत्याओं ने महाविनाश शुरू कर दिया, सर्वत्र आकाश से बिजलियाँ गिरने लगी तब समस्त ऋषि मुनि ब्रह्मा-विष्णु देवगण कैलाश जा पहुंचे भगवान् शिव के नेतृत्व में सबने देवी की स्तुति करते हुये शांत होने की प्रार्थना की !
तब देवी ने कृत्याओं को अपने भीतर ही समां लिया और सभी को उपस्थित देख देवी ने अभय प्रदान किया !
देवी कालरात्रि श्री महाकाली का ही स्वरुप हैं और जो भी साधक भक्त देवी की पूजा करता है पूरी सृष्टि में उसे कहीं भी भय नहीं होता है !
देवी भक्त पर कोई अस्त्र, शस्त्र, मंत्र, तंत्र, कृत्या, औषधि, विष आदि कार्य नहीं करते और देवी की पूजा से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं |
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