अगर पाप ना करे तो माँ कात्यायनी का भक्त पूरी दुनिया में अपराजित है
कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।
नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है।
विवाह में आने वाली बाधा दूर करती हैं मा कात्यायनी।
भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि श्रीधाम वृन्दावन में भगवती देवी के केश गिरे थे, इसका प्रमाण प्राय: सभी शास्त्रों में मिलता ही है। ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं आद्या स्तोत्र आदि कई स्थानों पर उल्लेख है- व्रजे कात्यायनी परा अर्थात वृन्दावन स्थित पीठ में ब्रह्मशक्ति महामाया श्री माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है।
वृन्दावन स्थित श्री कात्यायनी पीठ भारतवर्ष के उन अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक अत्यन्त प्राचीन सिद्धपीठ है।
देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के बाईसवें अध्याय में उल्लेख है कि गोपियां देवी से प्रार्थना करती हैं -हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! नन्द गोप के पुत्र को हमारा पति बनाओ हम आपका अर्चन एवं वन्दन करते हैं।
दुर्गा सप्तशती में देवी के अवतरित होने का उल्लेख इस प्रकार मिलता है-
नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा,- अर्थात मैं नन्द गोप के घर में यशोदा के गर्भ से अवतार लूंगी।
श्रीमद् भावगत में भगवती कात्यायनी के पूजन द्वारा भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने के साधन का सुन्दर वर्णन प्राप्त होता है। यह व्रत पूरे मार्गशीर्ष (अगहन) के मास में होता है। भगवान श्री कृष्ण को पाने की लालसा में ब्रजांगनाओं ने अपने हृदय की लालसा पूर्ण करने हेतु यमुना नदी के किनारे से घिरे हुए राधाबाग़ नामक स्थान पर श्री कात्यायनी देवी का पूजन किया।
मां कात्यायनी के साथ-साथ पंचानन शिव, विष्णु, सूर्य तथा सिद्धिदाता श्री गणेश जी महाराज की मूर्तियों की भी इस मंदिर में प्रतिष्ठा की गई।
यहाँ की अलौकिकता का मुख्य कारण जहां साक्षात मां कात्यायनी सर्वशक्तिस्वरूपणि, दु:खकष्टहारिणी, आल्हादमयी, करुणामयी अपनी अलौकिकता को लिए विराजमान है वहीं पर सिद्धिदाता श्री गणेश जी एवं बगीचा में अर्धनारीश्वर (गौरीशंकर महादेव) एक प्राण दो देह को धारण किये हुए विराजमान हैं। लोग उन्हें देखते ही मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं।
कात्यायनी पीठ में स्थित औषधालय द्वारा विभिन्न असाध्य रोगियों का सफलतम उपचार तथा मंदिर में स्थित गौशाला में गायों की सेवा पूजा दर्शनीय है।
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है।
रावण की कठोर तपस्या और प्रार्थना करने पर, लंका को चारो ओर से घेर कर अभेद्य किला बना दिया था माँ ने, पर रावण द्वारा माँ सीता के अपमान से नाराज होकर लंका छोड़ कर चली गयी थी माँ !
देवी की उपासना करने से अपार भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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