कहानी – स्वर्ण-सूर्य (लेखक – अज्ञात)
पुरातन मिस्र के राजा रेमसेज पाँचवें के समय की मिली हुई पाण्डुलिपियों में यह कथा भी मिली थी। इसका काल 1150 ई. पू. है। बेबीलोन और इजरायली सभ्यताओं में अप्राकृतिक सम्बन्धों को प्रकृत माना जाता था। पर मिस्री सभ्यता इसे हीन दृष्टि से देखने लगी थी-यानी, शायद यहाँ से सभ्य नैतिक विधान का प्रारम्भ होता है।
होरस और सेत भाई-भाई थे। दोनों देव-सन्तानें थीं। ओसिरिस और इरिस ने इन्हें जन्म दिया था। होरस छोटा और कमजोर था। सेत बड़ा और बरजोर था। दोनों भाइयों में बड़ी भयंकर लड़ाइयाँ हुईं। अन्त में दोनों ने सुलह कर ली और शान्ति से रहने लगे।
तब एक बार सेत ने होरस से कहा, ‘‘आओ, हमारे महल में आओ। और एक दिन मौज से बिताया जाए!’’
होरस ने कहा, ‘‘जरूर… मैं आऊँगा।’’
जब दिन ढल गया, तो बिस्तर लगा दिया गया। सेत और होरस आराम करने लगे। जब रात हो गयी, तो सेत चंचल होने लगा। उसने होरस के अंगों को छूना शुरू किया। उसकी चंचलता बढ़ती गयी। अन्त में वह अधीर होने लगा। तब होरस ने अंजुलि बनाकर उसका वीर्य ग्रहण कर लिया।
तत्काल होरस भागता हुआ अपनी माँ इरिस के पास पहुँचा और घबराकर बोला, ‘‘माँ, देख! सेत ने क्या किया है?’’
कहकर उसने अपनी अंजुलि खोली, तो माँ इरिस ने उन वीर्यकणों को देखा। देखते ही वह क्रोधित हो गयी। उसने छुरा उठाया और होरस के हाथ काट डाले। कटे हाथों को उसने गहरे पानी में फेंक दिया। फिर माँ इरिस ने होरस की कटी हुई कलाइयों से नये हाथ उत्पन्न कर दिये।
इसके बाद देवी माँ इरिस ने होरस को चंचल करके अधीर किया और एक बरतन में उसका वीर्य इकट्ठा कर लिया। होरस का वीर्य लेकर देवी माँ इरिस सेत के उद्यान में गयी। वहाँ उसे सेत का माली मिला। देवी इरिस ने माली से पूछा, ‘‘तुझसे माँगकर सेत किस झाड़ी की पत्तियाँ खाता है?’’ माली बोला, ‘‘वह सिर्फ चुकन्दर के पत्ते खाते हैं।’’
देवी माँ इरिस ने होरस का वीर्य उसी चुकन्दर पर डाल दिया और चली गयी।
रोज की तरह दूसरी सुबह सेत आया और उसने चुकन्दर के पत्ते तोड़कर खा लिये। पत्ते खाकर उठते ही वह गर्भवान हो गया। एकदम सेत नौ देवताओं के दरबार में पहुँचा। वहाँ उसने देवताओं से फरियाद की।
नौ देवताओं के दरबार ने सेत और होरस, दोनों की पूरी बातें सुनीं। सेत की फरियाद सुनकर नौ देवताओं के दरबार ने होरस के मुँह पर थूका। पर होरस हँसता रहा और बोला, ‘‘देवताओ, सेत ने जो कुछ कहा है, वह झूठ है। मैं सौगन्ध से कहता हूँ! सेत के वीर्य को बुलाया जाए और सच्चाई जान ली जाए!’’
इतना सुनते ही नौ देवताओं में से सबसे महान देवता थोथ ने होरस की बाँह पकड़ी और सेत के वीर्य का आवाहन किया।
सेत के वीर्य ने जल के देवता थोथ के प्रश्न के उत्तर दिये।
इसके बाद देवता थोथ ने सेत की बाँह पकड़ी और होरस के वीर्य का आवाहन किया।
होरस के वीर्य ने उत्तर दिया, ‘‘मैं किस रन्ध्र से बाहर आऊँ?’’
थोथ ने कहा, ‘‘तुम कान से बाहर आओ!’’
होरस के वीर्य ने कहा, ‘‘पर मैं पवित्र वीर्य हूँ, कान से कैसे आऊँ?’’
तब थोथ ने कहा ‘‘पवित्र वीर्य! तुम मस्तक से बाहर आओ।’’
और तब होरस का पवित्र वीर्य सेत के मस्तक से स्वर्णसूर्य की तरह उदित हुआ। यह देखकर सेत बहुत क्रुद्ध हुआ और उसने स्वर्ण सूर्य को नोच फेंकने के लिए जैसे ही हाथ उठाया कि देवता थोथ ने उस स्वर्ण सूर्य को उठाकर अपने मस्तक पर धारण कर लिया।
और तब नौ देवताओं के दरबार ने कहा, ‘‘होरस पवित्र है। और सेत पापी है!’’
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