कितने गुप्त तरीके से छुपा कर रखा गया है दुनिया की सबसे ताकतवर शक्ति को
अगर आप से कोई कहे की दुनिया की सबसे ताकत वर शक्ति आपके पास ही है बस आपको उसे इस्तेमाल करना नहीं आता और अगर कोई आपको उसे इस्तेमाल करना बता भी दे तो आप को विशेष फायदा नहीं होगा क्योंकि उसको इस्तेमाल करना कोई बच्चों का खेल नहीं है उसके लिए बड़ी मेहनत करना पड़ता है, तो आपको कैसा महसूस होगा !
पर हाँ अगर एक बार आपको उस शक्ति का इस्तेमाल करना आ जाय तो फिर तो आप गजब – गजब कमाल कर सकते है !
तो इस शक्ति के बारे में जानने के लिए आपको उत्सुकता तो बहुत हो रही होगी पर हो सकता है इस शक्ति का नाम सुनकर आपको थोडा सा निराशा हो की अरे यही है सबसे बड़ी शक्ति ! पर वास्तव में उस शक्ति के बारे में पूरी जानकारी बहुत कम लोगों को होती है और होती भी तो वो उसका सही से इस्तेमाल करना नहीं जानते |
तो दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है, आपका “मन” , सुनकर आपको झटका लग रहा होगा की मन कैसे शक्ति हो गया पर आप अंदाजा नहीं लगा सकते की मन की शक्ति इतनी प्रचण्ड है की भगवान को इसको बहुत ज्यादा चंचल बनाना पड़ा जिससे इसका गलत इस्तेमाल ना हो सके क्योकी मन की प्रचण्ड शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए केवल एक काम करना पड़ता की अपने मन को पूरी तरह से एकाग्र (मतलब मन में किसी और चीज का बिल्कुल भी ख्याल ना हों) करना पड़ता है |
अगर मन 100 % एकाग्र हो जाय किसी भी एक चीज पर वो भी सिर्फ एक सेकंड के लिए तो गजब चमत्कार हो सकता है !
श्री राम चरित मानस लिखने वाले श्री गोस्वामी तुलसी दास जी का कहना है कि –
“ राम राम सब कोई कहे, दशरथ कहे ना कोई |
एक बार दशरथ कहे, तो जन्म मरण ते मुक्त होय ||”
मतलब – राम भगवान का नाम तो सब कोई जपते हैं पर दशरथ से कोई नहीं कहता, यहाँ दशरथ का मतलब है दस इन्द्रिया, मतलब शरीर में जो दश इन्द्रिया (मतलब 100 परसेंट एकाग्रता) है उनसे अगर प्रभु श्री राम का नाम सिर्फ एक बार कोई ले ले तो उसी क्षण उसको अति दुर्लभ मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है |
तो कहने का मतलब है की एक बार भी आदमी 100 % अपने मन को या अपनी सोच को कंसन्ट्रेट या एकाग्र कर ले तो उसे अदभुत आश्चर्यजनक फायदे मिलते हैं पर इस एक सेकंड के मन को एकाग्र करने के लिए कई कई महीने प्रैक्टिस करनी पड़ सकती है और इस अभ्यास का सबसे आसान तरीका है जप करना |
मनोमय कोश की स्थिति एवं एकाग्रता के लिए जप का साधन बड़ा ही उपयोगी है। इसकी उपयोगिता इससे निर्विवाद है कि सभी धर्म, मजहब, सम्प्रदाय इसकी आवश्यकता को स्वीकार करते हैं। जप करने से मन की प्रवृत्तियों को एक ही दिशा में लगा देना सरल हो जाता है।
इसलिए यह जब भी काम से छुट्टी पाए, तभी इसे जप पर लगा देना चाहिए। जप केवल समय काटने के लिए ही नहीं है, वरन् वह एक बड़ा ही उत्पादक एवं निर्माणात्मक मनोवैज्ञानिक श्रम है। निरन्तर पुनरावृत्ति करते रहने से मन में उस प्रकार का अभ्यास एवं संस्कार बन जाता है जिससे वह स्वभावतः उसी ओर चलने लगता है।
पत्थर को बार- बार रस्सी की रगड़ लगने से उसमें गड्ढा पड़ जाता है। पिंजड़े में रहने वाला कबूतर बाहर निकाल देने पर भी लौटकर उसी में वापस आ जाता है। गाय को जंगल में छोड़ दिया जाए तो भी वह रात को स्वयमेव लौट आती है। निरन्तर अभ्यास से मन भी ऐसा अभ्यस्त हो जाता है कि अपने दीर्घकाल तक सेवन किए गए कार्यक्रम में अनायास ही प्रवृत्त हो जाता है।
अनेक निरर्थक कल्पना- प्रपञ्चों में उछलते- कूदते फिरने की अपेक्षा आध्यात्मिक भावना की एक सीमित परिधि में भ्रमण करने के लिए जप का अभ्यास करने से मन एक ही दिशा में प्रवृत्त होने लगता है। आत्मिक क्षेत्र में मन लगा रहना, उस दिशा में एक दिन पूर्ण सफलता प्राप्त होने का सुनिश्चित लक्षण है। मन रूपी भूत बड़ा बलवान् है।
यह सांसारिक कार्यों को भी बड़ी सफलतापूर्वक करता है और जब आत्मिक क्षेत्र में जुट जाता है, तो भगवान् के सिंहासन को हिला देने में भी नहीं चूकता। मन की उत्पादक, रचनात्मक एवं प्रेरक शक्ति इतनी विलक्षण है कि उसके लिए संसार की कोई वस्तु असम्भव नहीं। भगवान् को प्राप्त करना भी उसके लिए बिलकुल सरल है। कठिनाई केवल एक नियत क्षेत्र में जमने की है, सो जप के व्यवस्थित विधान से वह भी दूर हो जाती है।
हमारा मन कैसा ही उच्छृंखल क्यों न हो, पर जब उसको बार- बार किसी भावना पर केन्द्रित किया जाता रहेगा, तो कोई कारण नहीं कि कालान्तर में उसी प्रकार का न बनने लगे। लगातार प्रयत्न करने से सरकस में खेल दिखाने वाले बन्दर, सिंह, बाघ, रीछ जैसे उद्दण्ड जानवर मालिक की मर्जी पर काम करने लगते हैं, उसके इशारे पर नाचते हैं, तो कोई कारण नहीं कि चंचल और कुमार्गगामी मन को वश में करके इच्छानुवर्ती न बनाया जा सके।
पहलवान लोग नित्यप्रति अपनी नियत मर्यादा में दण्ड- बैठक आदि करते हैं। उनकी इस क्रियापद्धति से उनका शरीर दिन- दिन हृष्ट- पुष्ट होता जाता है और एक दिन वे अच्छे पहलवान बन जाते हैं। नित्य का जप एक आध्यात्मिक व्यायाम है, जिससे आध्यात्मिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ और सूक्ष्म शरीर को बलवान् बनाने में महत्त्वपूर्ण सहायता मिलती है।
एक- एक बूँद जमा करने से घड़ा भर जाता है। चींटी एक- एक दाना ले जाकर अपने बिलों में मनों अनाज जमा कर लेती है। एक- एक अक्षर पढ़ने से थोड़े दिनों में विद्वान् बना जा सकता है। एक- एक कदम चलने से लम्बी मंजिल पार हो जाती है। एक- एक पैसा जोड़ने से खजाने जमा हो जाते हैं। एक- एक तिनका मिलने से मजबूत रस्सी बन जाती है।
जप में भी वही होता है। माला का एक- एक दाना फेरने से बहुत जमा हो जाता है। इसलिए योग- ग्रन्थों में जप को यज्ञ बताया गया है। उसकी बड़ी महिमा गाई है और आत्ममार्ग पर चलने की इच्छा करने वाले पथिक के लिए जप करने का कर्त्तव्य आवश्यक रूप से निर्धारित किया गया है। नियमों के आधार पर किया हुआ जप, अपने मन को वश में करने एवं मन की शक्ति को सुविकसित करने में बड़ा महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है।
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