बेहद सुंदर शरीर प्रदान कर सकती है ये यौगिक क्रिया
सुन्दर रूप, अद्भुत तेज प्रदान करने वाली इस क्रिया (Yoga kriya) का वर्णन शिव पुराण में दिया गया है ! यह एक तरह का प्राणायाम (Pranayama) ही है और इसे करना भी बहुत आसान है |
इसे करने के लिए सुबह नहा धो कर साफ़ सुथरे और ढीले कपड़े पहन कर सूती चादर या कम्बल पर बैठ जाय | एकान्त में बैठे, पूरब या उत्तर दिशा की ओर मुहं करके और जिस कमरे में बैठे वो खुला और हवादार होना चाहिए |
शांत होकर, रीढ़ की हड्डी सीधे करके पालथी मारकर बैठे | फिर दोनों हाथ की हथेलियों से अंजलि बांध कर उस अंजलि को अपने ओठों से सटाइए (जैसे आपने कभी किसी आदमी को नल या हैंडपंप के नीचे अंजलि बांध कर पानी पीते देखा होगा) | फिर अपने ओठों को चिड़िया की चोंच की तरह आगे निकाल कर नुकीला करते हुए अपनी अंजलि से धीरे धीरे हवा को पानी की तरह मुंह के अन्दर खीचिये |
जब खीचना ख़त्म हो जाय तो उस सांस को तुरन्त नाक से बाहर निकाल दीजिये |
बस यही काम बार बार दोहराईये (ध्यान रहे की पूरी प्रक्रिया में गर्दन और रीढ़ की हड्डी एकदम सीधी रहेगी, आगे या पीछे झुकेगी नहीं) |
इस क्रिया को करते समय ये भावना और कल्पना करिए की तालू के अन्दर से कुछ दिव्य जल की बूंदे आपकी जीभ के ऊपर गिर रही है जिससे आपका शरीर दिव्य बन रहा है |
ऐसा रोज रोज अंजलि बांध कर मुंह को चोच बनाकर धीरे धीरे हवा खीचने और ऊपर लिखी हुई कल्पना करने पर, सही में कुछ महीने बाद तालू से दिव्य जल की बूंदे जीभ पर गिरनी शुरू हो जाती है !
ये जल की बूंदे साक्षात् अमृत (Amrit, ambrosia, nectar) स्वरुप होती है जो हर आदमी के शरीर में सूक्ष्म और अदृश्य रूप से सहस्त्रार चक्र में छुपी रहती हैं और जब कोई आदमी इनका रोज भावना पूर्वक आह्वाहन करता है तो ये कुछ महीने बाद अचानक से प्रकट हो जाती हैं |
इन दिव्य जल की बूंदों की महिमा हमारे योग ग्रंथों में बड़ी आश्चर्य जनक बताई गयी है जैसे इन जल की बूंदों को नियम से रोज पीने वाले व्यक्ति की अंग कान्ति बहुत ही सुंदर हो जाती है, केश लम्बे काले और घुंघराले हो जाते हैं, बहुत ताकत आ जाती है, बुद्धि बहुत तीव्र हो जाती है, रूप बहुत सुन्दर हो जाता है, व्यक्ति सदा प्रसन्न रहते हुए कम से कम सौ वर्ष तक जीता है !
वास्तव में भारत वर्ष के इन्ही दुर्लभ ज्ञान की वजह से कई ऐसे योगी जिनकी आयु हजारों (thousand years life) साल से ऊपर है, हिमालय (Himalaya) पर परम आनंद पूर्वक गुप्त रूप से साधनारत हैं !
नोट- इन जानकारियों का यहाँ वर्णन, भारत माँ के अति समृद्ध योग विज्ञान का परिचय करवाने के लिए किया गया है, इसलिए इन यौगिक क्रियाओं को सिर्फ पढ़कर अभ्यास नहीं शुरू कर देना चाहिए, बल्कि किसी योग्य जानकार योगी के मार्गदर्शन में ही अभ्यास करना चाहिए अन्यथा शरीर की हानि पहुँच सकती है !
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