गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 34 (पिता जी की तपस्या का प्रतिफल)
श्री बामन जी तरुड़कार ,बेतूल लिखते हैं कि मेरे पिताजी गायत्री के अनन्य भक्त हैं। उनका अधिकांश समय गायत्री उपासना में जाता है। 24 लक्ष का अनुष्ठान कर चुके हैं और सवा करोड़ की साधना में लगे हुए हैं। पिता जी ग्रहस्थ होते हुए भी महात्मा हैं । दूर-दूर तक लोग उन्हे बड़े आदर की दृष्टि से देखते हैं।
गायत्री उपासना से उन्हें स्वंय बहुत लाभ हुए हैं अन्य अनेक व्यक्तियों को भी उनके द्घारा आध्यात्मिक सहायता पहुँचती हैं। मैं उनका पुत्र हूँ । मुझे भी उनकी कृपा और आध्यात्म शक्ति का लाभ अनेक बार मिला है। मैट्रिक की परीक्षा में उत्तीर्ण होने की कम आशा थी । तैयारी पूरी तरह नहीं हो पाई थी ,जी धड़कता रहता था। फेल होने की आशंका लगी रहती थी ।
पिताजी ने मेरे लिए माता की पूजा की और मैं अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण हो गया । नौकरी मिलने में भारी कठिनाई हो रही थी। कहीं जगह न मिली तो, ‘मेल प्यून’ की छोटी जगह लेनी। माता की ऐसी कृपा हुई कि चार मास बाद ही एक अच्छा बाबू का पद मिल गया। वेतन भी सन्तोषजनक है और और उन्नति की सम्भावना भी काफी है। पिता जी की गायत्री साधना मेरे लिए वरदान सिद्घ हो रही है।
पुत्र एवं स्वर्ण घट की प्राप्ति
श्री जोखूराम मिश्र विशारद, जमुनीपुर लिखते हैं कि प्रयाग जिले के छतैना ग्राम निवासी प० देवनारायण जी देव भाषा के असाधारण विद्वान और गायत्री के अनन्य उपासक हैं। तीस वर्ष की आयु तक अध्ययन करने के उपरान्त उन्होंने गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया।
पत्नी बड़ी सुशील एवं पति परायण मिली, परन्तु विवाह के बहुत काल बीत जाने पर भी जब कोई सन्तान न हुई तो अपने को बन्ध्यात्व से कलंकित समझ कर दु:खी रहने लगीं। पंडित जी ने उनकी इच्छा को जानकर सवा लक्ष जप का अनुष्ठान किया। कुछ समय पश्चात् उनके एक प्रतिभावन मेधावी पुत्र हुआ जो आज-कल देव-भाषा की सर्वोच्च उपाधि प्राप्त करने की तैयारी कर रहा है।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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