गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 13 (साधना के पथ पर)
पं. राधेमोहन मिश्र, वैघ बहरायच, लिखते हैं कि मेरी प्रकृति अपनी बाल्यावस्था से ही आध्यात्मवाद की ओर रही। मुझे ऐसे मित्र तथा मार्ग-प्रदर्शक मिलते गये जिनसे और सहायता मिलती गयी।
घर में अपने वयोवृद्घों को गुरु मंत्र जपते देखा करता, जब मेरा यज्ञोपतीत संस्कार हुआ, मुझे गायत्री मंत्र दिया गया, मैं उसे अपना गुरुमंत्र जानकर यदा-कदा जपा करता, जब कभी रात्रि में कहीं जाना पड़ता अथवा संकट मे पड़ जाता तो भय की अवस्था में गायत्री मंत्र की शरण में पड़ जाने से मुझे एक शक्ति अनुभव होती और भय दूर हो जाता था।
धीरे-धीरे इस मंत्र पर दृढ़ विश्वास होने लगा। मैं एक साधारण मनुष्य हूं, इस मंत्र के जप के प्रभाव से और गुरुदेव के आशीर्वाद से इस संकट काल एवं चरमसीमा पर पहुंची हुई महंगाई के समय में न जाने कहां से व्यय पूरा हो रहा है, मुझे स्वयं आश्चर्य होता है। दो बार जप करने के लिये माला उठाते ही उसे बिखरा हुआ पाया।
यह मेरे लिये खतरे की घण्टी थी। मैं दो बार कठिन रोग से पीडि़त हुआ। मुझे अपनी बीमारी में जरा भी भय मालूम नहीं हुआ और आन्तरिक स्फूर्ति का अनुभव होता था। मैं मन में ही गायत्री मंत्र का जप करता। धीरे-धीरे रोग से छुटकारा मिल गया।
अब तो श्री आचार्य जी द्वारा खोज पूर्ण लिखित गायत्री महाविज्ञान नामक पुस्तक के आधार पर गायत्री साधना कर रहा हूं। इसके द्वारा मुझे पूर्ण सहायता मिल रही है। मेरे एक मित्र का गायत्री मंत्र के सवा लक्ष के अनुष्ठान से पुत्र रत्न का लाभ हुआ एक-दूसरे मित्र ने गायत्री माता की शरण में जाने से मृत्यु के मुख से अपने पुत्र को बचा लिया।
गायत्री ब्राह्मण का आवश्यक धर्म-कर्त्तव्य है। शास्त्रकारों का कथन है कि गायत्री हीन द्विज, अपने धर्म से पतित और पशु तुल्य हो जाता है। मैं उस कलंक से बचने और अपने धर्म-कर्त्तव्य का पालन करने के लिये गायत्री साधना के लिये सदैव सजग रहता हूं, इससे जो धर्म लाभ होता है उसे आत्मशान्ति के रूप में सदैव प्रत्यक्ष अनुभव करता हूं। सात्विक वृत्ति का होना माता की महान कृपा ही है।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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