गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 21 (घातक अनिष्ट से प्रतिरक्षा)
श्री आनन्द स्वरुप श्रीवास्तव, गोहाड़, लिखते हैं कि ता. 26 मई 51 को हमारे चाचा जाद भाई अपने यहाँ शादी के अवसर पर लिवाने आये थे। अम्माजी तथा चाची जी को लेकर हम लोग जैसोरी चले। बालाप्रसाद गाड़ी हाँक रहे थे, मैं साथ था। घर से तीन मील चले जाने पर सुनसान जंगल में डाकुओं ने हमला बोल दिया।
उन्होंने लाठियों से हमें मारा और मेरे सिर में दो कुल्हाड़ी मारी। बालाप्रसाद का बुरा हाल था मेरे सिर में तो इतने गहरे घाव आये थे कि बेहोश हो गया। शरीर खून से बुरी तरह लथपथ हो रहा था। डाकुओं ने गाड़ी की तलाशी ली और अम्माजी तथा चाचीजी पर जो कुछ मिला सब छीन लिया।
करीब एक हजार के जेवर तथा 8० रुपये लेकर वे चम्पत हो गये। किसी प्रकार भाई गाड़ी को बढ़ाकर लाया। मुझे अस्पताल में भर्ती किया गया। घाव इतने गहरे थे कि डाक्टरों को भी मेरी जीवन रक्षा के बारे में सन्देह हो रहा था। परन्तु ईश्वर की लीला बड़ी प्रबल है। धीरे-धीरे मेरी स्थिति सुधरती गई और गहरे घाव भर गये।
डाकू जितना धन लूट ले गये थे उससे कहीं अधिक डाकुओं की नजर न पडऩे के कारण बच गया। समय के कुचक्र और प्रारब्ध के फेर ने कष्टïदायक का परिचय दिया, उसे कोई टाल भी नहीं सकता था। यह सत्य है कि विधि का विधान मिटता नहीं। पूर्वकाल में बड़े-बड़े प्रतापियों को प्रारब्ध का भोग भोगना पड़ा है।
हम भी उससे बच नहीं सकते और न बच सके ही। परन्तु मारने वाले से बचाने वाला बलवान होता है। पिताजी गायत्री के अनन्य उपासक हैं, मैं भी यथाशक्ति वेदमाता की उपासना करता हूँ। इस घारे संकट के समय में कठिन प्रारब्ध के बीच में भी माता की कृपा प्राप्त हुई।
मृत्यु के मुख में पड़ा हुआ मेरा जीवन बच गया और धन की पूर्ण हानि न हुई। अन्यथा डाकुओं की एक नजर पड़ते ही सारा जेवर तथा पैसा हाथ से चला जा सकता था।
यह ठीक है कि विधि का विधान टलता नहीं, पर यह भी ठीक है कि गायत्री उपासकों को घोर संकट में डूबने की स्थिति में भी माता की रक्षा प्राप्त होती है और वह बड़े-बड़े दुर्भाग्यों का असानी से मुकाबला कर लेता हैं। मैं प्राणघातक संकट से माता की कृपा से ही बच सका। डाकुओं के हाथ साथियों का जान माल बचा, यह सब माता की ही दया है।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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