गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 26 (उच्च शिक्षा की सुविधा)
श्री. रघुराथ प्रसाद बरनवाल, बलहज, लिखते हैं कि अखण्ड ज्योति के लोगों से प्रभावित होकर मैं गायत्री उपासना के मार्ग में बढ़ा। अति अल्प काल के जप में ही अपने में बड़ा अधिक परिवर्तन अनुभव होने लगा। मैंने अपनी धर्मपत्नी को भी वह मंत्र बताया। तब से हम दोनों बालक की तरह गायत्री माता को माँ के रूप में मानकर माँ को याद करने की साधना करने लगे। मैंने यह देखा कि मार्ग में पत्नी मुझसे आगे बढ़ गई।
कदाचित नित्य एवं नियम पूर्वक आराधना के कारण। मुझे तो बाहर आने-जाने के कारण कभी-कभी बाधा भी पड़ जाती है। जब-जब हम लोगों ने थोड़ा भी माँ को याद किया है, माँ की कृपा हुई है। मैं एम.ए. समाप्त कर चुका था। बी.ए. के विषय में बड़ी कठिनाई उपस्थित थी, आगे की पढ़ाई मुश्किल दीख रही थी। अन्त में माता का आश्रय लिया। अपना भविष्य उन्हीं के ऊपर छोड़ दिया, वे जैसी पे्रेरणा और व्यवस्था करेंगी वैसा ही करेंगे।
इस भावना के साथ मैंने तथा पत्नी माँ की आराधना शुरू की। माँ की कृपा हुई और उसने पत्नी को आकर ऐसा भान कराया मानों प्रत्यक्ष आकर आदेश दे रही हों कि ‘जाओ उनसे कह दो कि अभी आगे पढ़े।’ मैंने ऐसा ही किया और आज शिक्षा विभाग की सबसे ऊँची शिक्षा (एम.एड.) भी प्राप्त कर चुका हूँ। जो कार्य बहुत कठिन दिखाई पड़ता था वह सरल हो गया।
समय-समय पर जो कठिनाइयाँ मार्ग में आईं वे भी स्वत: ही हल होती गईं और मैं विद्या धन से अपने को धनी बना सका। यह सब माँ की दया से। अब भी माँ के चरणों में यही बड़े अति स्वर में प्रार्थना है कि माँ हमें छाती से लगाये रहें। जप से मैट्रिक परीक्षा पास महुआ (कठियावाड़) के रणछोड़लाल भाई की थोड़े समय पूर्व एक गृहस्थ मिला था। उसका एक लड़का दो वर्ष से मैट्रिक में पास नहीं हो रहा था। तीसरी बख्त उसने ब्राहम्ण को रुद्राभिषेक के लिए बैठाया और स्वयं गायत्री जप करने लगा, उस वर्ष वह लड़का मैट्रिक में पास हो गया।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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