गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 18 (बिछुड़े हुए बालक का पुनर्मिलन)
श्री जीवन लाल वर्मा, सरसई का कहना है यदि छोटे बालक, भावुक हृदय माता-पिता की आँखों के तारे होते हैं। जब पशु-पक्षी तक अपने बालकों को इतना प्यार करते हैं तो बुद्घिजीवी मनुष्यों में बढ़ी-चढ़ी ममता का होना स्वाभाविक ही है। विशेषतया जब कि कोई बालक अधिक सुन्दर, चंचल, बुद्घिमान और प्रेमी स्वभाव का होता है तब तो वह मता-पिता को ही नहीं पड़ोसियों तक के मन को हर लेता है।
अपने छोटे बालक मोहन में कुछ ऐसी विशेषताएँ थीं कि वह देखने वालों के भी मन में बस जाता था। घर के सब लोग उसे खिलौने की तरह लिए फिरते थे। उसके जीवन के तीन वर्ष घर भर के लिए बड़े ही प्रफुल्लता प्रदान करने वाले रहे। ईश्वर की माया अपार है। तीन दिन के निमोनिया ने उसके प्राण ले लिए।
बोलता हुआ तोता हाथों से उड़ गया। जिसने सुना कलेजा पकड़ कर रह गया। बच्चे की माता की दशा तो पागलों जैसी हो गई। पुत्र शोक में वह ऐसी बीमार पड़ी की कठिनाई से ही वह अच्छी हो सकी। इस बच्चे का सदमा इतना हुआ जितना किसी बड़ी आयु के कमाऊँ आदमी के उठ जाने का भी नहीं होता। सब जानते हैं कि जो मर गया वह लौटता नहीं। फिर भी मन बड़ा कच्चा होता है, उसकी आत्मा से ही किसी प्रकार भेंट हो, उसका स्वप्न में ही साक्षात्कार हों, उसके सूक्ष्म शरीर की ही किसी प्रकार झाँकी हो सके, इस प्रकार के विचार मन में घूमने लगे, पवर इसका उपाय मालूम न था।
तलाश आरम्भ की इसी खोज के सिलसिले में अखण्ड ज्योति से प्रकाशित एक छोटी पुस्तक-मरने के पीछे क्या होता है, इस सम्बन्ध की मिली। उससे नई-नई बातों ज्ञात हुईं। कई शंकायें हुई। उनके लिए अखण्ड-ज्योति से पत्र-व्यवहार हुआ, फिर मथुरा जाकर आचार्य जी के दर्शन का लाभ लिया। स्वर्गीय बालक को किसी भी रूप में पाने के लिए हम तरसते थे।
यह पता चला जाता कि वह किसी पशु-पक्षी में जन्मा है तो उसे लाने का जी-जान से प्रयत्न करते। इतनी प्रबल हमारी ममता थी। आचार्य जी ने शोक मुक्त होने का उपदेश दिया ओर कुछ साधन बताये कि यदि वह बालक अभी जन्म न ले चुका होगा तो पुन: आपके घर में लौट आवेगा। मैंने और पत्नी ने बड़े नियम संयम से ये साधन किये। दूसरे मास मेरी पत्नी ने देखा कि मेरा मोहन बाहर से खेलता हुआ आया है और गोदी में चढ़ गया है।
पत्नी ने जैसे ही उसे छाती से चिपटाना चाहा कि वह पेट में समा गया। उस स्वप्न के साढें नौ मास बाद दूसरा बालक जन्मा। यह बिल्कुल मोहन की आकृत्ति का हुआ। जैसे-जैसे उसकी आयु बढ़ी उसके गुण, स्वभाव, हाव-भाव सब मृत बालक के से ही विकसित होने लगे, अब वह 5 वर्ष का है, इसका नाम भी मोहन ही रखा है, क्योंकि हम सबका यह पूरा-पूरा विश्वास है कि मोहन की आत्मा ने ही दुबारा हमारे घर में फिर जन्म लिया है।
जन्म भर तक दु:ख देने वाले विरह बिछोह के कष्ट को हटाकर, खोई वस्तु को पुन: प्राप्त करा देने का श्रेय गायत्री माता ही है, अथवा उनको है जिन्होंने यह मार्ग हमें दिखाया। अन्धा जैसे अपनी नेत्र ज्योति को पाकर प्रसन्न होता है वैसे ही हम अपने स्वर्गीय बालक को नये शरीर में पाकर प्रसन्न हो रहे हैं। कहते हैं कि जो जीव चला गया वह फिर लौट कर नहीं आता, जो शरीर नष्ट हो गया वह फिर पैदा नहीं होता, पर अपना बालक इसका अपवाद है उसके पुराने शरीर और जीव में कोई अन्तर नहीं दिखता।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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