गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 6 (गायत्री द्वारा प्राण रक्षा)
प्रभूदयाल शर्मा, संपादक सनादय-जीवन लिखते हैं कि मेरे बड़े पुत्र की स्त्री को कई वर्ष तक एक प्रेतात्मा लग गई थी। उससे उसे बड़ा कष्ट होता था। बार-बार बेहोश हो जाती थी। उसे कभी प्रतीत होता था कि कोई उसका हाथ तोड़े डालता है, कभी मस्तक पर हथौड़े की चोटें मारता है। कभी हाथ पैरों को जलाये देता है।
उसी प्रकार के कष्ट, मस्तक के दर्द आदि की पीड़ा उसके बालकों को भी होती थी। हम इससे बहुत दु:खी थे। झाड़ फूंक दवा-दारु के बहुत प्रयत्न किये पर कोई लाभ न हुआ। अन्त में गायत्री का आश्रय लिया गया। गायत्री से अभिमंत्रित जल उन्हें पिलाया जाता, उसी से उनका मार्जन किया जाता। इस उपचार से उस दु:खदायी व्यथा से छुटकारा मिला।
मेरे ताऊजी जो एक प्रसिद्घ वैघ थे। वे एक बार दाकापुर पटना गये हुये थे। स्नान करने के अनन्तर वे गायत्री का जप नित्य करते थे। वहां वे जप कर ही रहे थे कि उनके कान में एक दम शब्द हुआ कि जल्दी निकल। मकान गिरता है। एक बार सुनकर भी वे पूजा में व्यस्त रहे, किन्तु फिर वही शब्द और भी जोर से हुआ।
वे पास की खिड़की से कूदकर भागे, मुश्किल से कुछ कदम ही गये होंगे कि मकान गिर पड़ा। वे बाल-बाल बच गये। एक बार हमारे चचेरे भाई का पुत्र बहुत बीमार था। बीमारी काबू से बाहर थी, सब प्रकार जब निराशा दिखने लगी तो बालक की माता, दादी आदि घर के लोग उसकी मृत्यु की आशंका से बुरी तरह रोने लगे।
इतने में ताऊजी आ गये। उन्होंने मृत्यु के मुख में अटके हुए बालक को गोदी में लिया और उसे लेकर एक घंटे तक आंगन में चक्कर लगाते रहे तथा गायत्री जप करते रहे। बालक पूर्ण स्वस्थ हो गया और आज वह 51 वर्ष का है।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार हरिद्वार
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