गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 8 (माँ गायत्री का जादू)
श्रीमती चन्द्रकान्ता जेरथ बी.ए. दिल्ली लिखतीं हैं कि मुझे बचपन से ही गायत्री मन्त्र सिखाया गया था सो स्नान के बाद इसका 108 बार उच्चारण करने का स्वभाव हो गया था। पिता जी से सत्यवादी होना तो सीखा हुआ था और फिर बापू की आत्म-कथा से सर्व प्रेम करना व निर्दोषी होना सीखा, क्युरों और नैन्हम की पामिस्टरी पढ़ कर हस्तरेखा का कुछ ज्ञान हासिल किया तो पता लगा कि मनुष्य अपने आप को बहुत कुछ हाथ देखकर अपनी भूलों का सुधार कर सकता है फिर हस्तरेखा को बदल सकता है।
पता चला कि कुछ आत्म-विश्वास कम है, तो दृढ़ निश्चय किया कि यह भी हासिल करना है। गायत्री मन्त्र, गायत्री ‘देवी’ को सूर्य ध्यान करके पढ़ती थी। एक-एक शब्द का अर्थ मन में समक्ष कर करती और प्रार्थना सदा ही रहती कि ”विद्या, बुद्घि, भक्ति दो जिससे देश सेवा, लोगों की भलाई, स्वर्थ रहित होकर करुँ”। मन्त्रोचारण भी करती पर प्रार्थना मुँह से यही निकलती। ऐसा एक साल किया होगा कि वाकई हस्तरेखाएँ बहुत कुछ बदल गईं। मेरा स्वभाव, प्रकृति, रहन-सहन सब बदल गया।
हाँ मैं प्राणयाम भी करती थी, प्राणयाम एक दूसरा जादू है- पर गायत्री ने अपना रंग अकेले ही काफी दिया। वह यों मेरी माताजी बड़ी सख्त बीमार पड़ीं। माताजी की टाँगें, पाँव बहुत सूजे हुये थे, बहुत दर्द होता था। उनके दर्द के कारण चिल्लाने की आवाज दूर-दूर तक जाती। हम सब बहिनों ने तीन-तीन घंटे की ड्यूटी लगाई हुई थीं। मैंने रात की ले रखी थी पर चित्त न मानता चौबीस घंटे ही उनके पास व्यतीत करती। जब उन्हें दर्द होता वह मुझे ही बुलाती। मैं उनके पाँव को हाथों से पकड़ कर आँखें बन्द कर ‘गायत्री’ का जप शुरु कर देती।
उनका दर्द जादू की तरह शान्त हो जाता। सो फिर तो जब मैं कभी सोई हुई भी होती तो माताजी यही कहतीं कि कान्ती को बुलाओ मैं फिर वैसे ही करती और वह शान्त हो जातीं। उसके बाद मेरे छोटे पाँच वर्ष के भाई की पीठ और टाँग में जहरीला फोड़ा निकलने से आँपरेशन हुआ, दर्द होता। घाव में जब-जब दर्द अधिक उठता कहता मन्त्र पढ़ो और मेरे मन्त्र पढऩे के बाद ही शान्त होकर सो जाता, मुझे भी उसके शान्त होने पर अपार आनन्द मिलता। फिर तो जिस किसी के भी दर्द होता, वही कहता मन्त्र पढ़ दो।
पिता जी हैरान हुए-पूछने लगे कौन-सा मन्त्र पढ़ती हो। पहले तो मैंने नहीं बतलाया क्योंकि सुन रखा था कि बताने से मन्त्र की शक्ति कम हो जाती है। पर फिर पिताजी से तो मैं सदा ही जैसा कि उन्होंने सिखाया था मित्र का-सा सम्बन्ध रखती। सो मैंने बताया यदि हम ध्यान से प्रेम से इस मन्त्र को पढ़े तो वाकई जादू ही है। उन दिनों तब तो मेरी इतनी आदत हो गई थी कि सोते भी यह मन्त्र मुँह में रहता, काम करते-करते भी गायत्री मन्त्र मुंह में रहता। मुझे पता भी न होता और गायत्री मन्त्र का उच्चारण होता रहता सो ‘गायत्री’ ने ‘जादू’ का ही असर दिखाया।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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