गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 11 (शत्रुओं का षडय़ंत्र विफल)
श्री गोकुलचन्द सक्सेना, खडग़पुर, लिखते हैं कि हमारे लोको दफ्तर के हैडक्लर्क और सुपरिटेण्डेण्ट से एक बार मेरी गरमा-गरम बहस हो गई। आपस में अशिष्ठ और अवांछनीय शब्दों का भी प्रयोग हो गया। उस समय तो दूसरे लोगों ने बीच-बचाव करा दिया और मामले को ऊपर जाने से रोक दिया पर मनों में काफी मन-मुटाव जम गया। मैंने अपनी ओर से उस कटु घटना की स्मृति को मन में से निकाल दिया था, पर वे लोग मन के बहुत मैले निकले।
उन्होंने मेरे लिये स्थायी द्वेष धारण कर लिया और जब भी मौका मिलता मुझे नीचा दिखाने और नुकसान पहुँचाने की पूरी-पूरी कोशिश करते रहे। उच्च अधिकारियों के पास मेरी शिकायतों की एक बड़ी फाइल बन गई थी। कई बार मुझसे जवाब तलब हो चुके थे, चेतावनियाँ मिल चुकी थीं। जुर्माना तनज्जुली या बदली की आशंका थी। नौकरी छूट जाने के भय से मैं सदा चिन्तातुर बना रहता था। 115 रु. मासिक मिलते थे। यह नौकरी छूटने पर इसकी आधी तनख्वाह पर भी कोई काम करने की आशा न थी।
वृद्घा माता, पत्नी तथा बच्चे सभी को इस परिस्थिति ने चिन्ता में डाल रखा था, मेरा शरीर दिन पर दिन दुबला होने लगा। इसी बीच मेरे श्वसुर का आना हुआ, उन्होंने बताया कि संकट और चिन्ता की परिस्थिति उत्पन्न होने पर गायत्री का आश्रय लेना अमोघ उपाय है। वे स्वयं कई बार इसका अनुभव कर चुके थे, उन्होंने वे सब घटनाएँ सुनाई जिनमें गायत्री की कृपा से बड़ी-बड़ी विपत्तियों से पार हुए थे। इससे मेरी श्रद्घा बढ़ी और दूसरे ही दिन से उनके बताये हुए उपाय द्वारा गायत्री उपासना करने लगा। जप करते हुए एक महीना बीत गया।
दफ्तर में मालूम हुआ कि हमारे महकमं के सबसे बड़े अफसर दौरे पर आ रहे हैं। विरोधी लोगों ने मरे विरुद्घ पूरा षडय़ंत्र बना रखा था, मुझे बरखास्त करा देने के लिए उन्होंने पूरी तैयारी कर ली थी। ऐसा मालूम होता था कि इस संकट से बचना मुश्किल है। नियत तारीख पर साहब का दौरा हुआ। दफ्तर के सभी प्रमुख कर्मचारियों ने मरे विरुद्घ शिकायतों की एक बहुत बड़ी सूची पेश की, साथ ही सबूतों का एक बहुत बड़ा पुलन्दा भी। साहब ने उन कागजातों को अपने पास रख लिया और आदमी भेजकर मुझे अपनी कोठी पर शाम को 6 बजे मिलने के लिए बुलाया।
मैं गया और आदि से अन्त तक सारा ब्यौरा एक-एक शब्द की सच्चाई के साथ कह दिया। जो मुझसे भूलें हुई थीं वे भी बिना लाग-लपेट के एक-एक शब्द सच कह दीं। बात का जरा भी ध्यान न रखा कि अपनी गलतियाँ स्वयं मान लेने से नालायक करार दिया जा सकता हूँ और मुझे सजा मिल सकती है। आदि से अन्त तक सारी बात सुन लेने पर साहब मेरी सच्चाई पर बड़े प्रसन्न हुए और विरोधियों के षडय़न्त्रों पर उन्हें बहुत क्रोध आया। वे दौरा पूरा करके वापस चले गये। कुछ दिन बाद उन्होंने फैसला भेजा।
मेरे विरुद्घ षडय़न्त्र करने वाले सभी अग्रणी लोगों का तबादला कर दिया गया। मुझे भी उस स्थान से बदला गया पर मेरी बदली तरक्की तथा सुविधा की जगह हो गई। साहब मुझ पर अत्यन्त प्रसन्न थे। उनसे मिलने मैं साल में एक दो बार अवश्य जाता रहता था, उनके जमाने में मेरी काफी तरक्की हुई। विरोधी मुझसे सदा जलते रहे, पर मेरा कुछ बिगाड़ न सके। यह गायत्री माता का ही प्रताप है। हमारा पूरा परिवार गायत्री का भक्त है और हमारे अनेक मित्र, परिचित एवं रिश्तेदार भी गायत्री की नियमित उपसना करते हैं।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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