गुफा से पहली बार बाहर निकला प्राण राज क्या कर सकता है
प्राणायाम (Pranayama) की नियमित साधना करते करते जब बहुत दिन बीत जाते हैं तो शरीर में एक दुर्लभ घटना शुरू होती है और इस प्रक्रिया का नाम है मुख्य प्राण का बहिर्गमन !
आखिर ऐसी क्या खास बात होती है मुख्य प्राण के बहिर्गमन में ?
असल में हर आम आदमी का मुख्य प्राण जो उसके नाभि स्थित एक कोटर में निवास करता है, वह मुख्य प्राण जीवन में सिर्फ एक बार अपने इस कोटर को छोड़ कर बाहर निकलता है और वो समय होता है आदमी की मौत (death) का !
पर प्राणायाम करने वाले हठ योगी प्राणायाम के नियमित लम्बे अभ्यास से अपने मुख्य प्राण को मजबूर करते हैं की वो अपनी गुफा को छोड़ बाहर निकले और सुषुम्ना नाड़ी के सहारे ऊपर चढ़ते हुए मस्तिष्क में पहुचें और फिर मस्तिष्क से नासिका मार्ग से शरीर के बाहर निकले !
इसमें ध्यान देने वाली बात है की जब प्राणायाम के अभ्यास से प्राण को इस तरह से शरीर से बाहर निकाला जाता है तो शरीर की मौत नहीं होती है बल्कि शरीर योगनिद्रा में चला जाता है !
वैसे मानव शरीर में कई प्राण और उपप्राण (कई तरह की वायु के रूप में) अलग अलग जगह रहते हैं पर सबसे मुख्य प्राण नाभि स्थित सूक्ष्म कोटर में निवास करता है तथा इस मुख्य प्राण, को कुण्डलिनी शक्ति नहीं समझना चाहिए क्योंकि कुण्डलिनी शक्ति, जगदम्बा छिन्नमस्ता ही होती हैं जो रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में अदृश्य रूप से वास करती हैं !
तो यहाँ पर प्रश्न बनता है कि आखिर किसी योगी को क्या फायदा मिलता है उसे अपने प्राण को मौत से पहले अपने शरीर से बाहर निकालने में ! ये फायदा है उस तरह के परम रोमांचकारी, सुखकारी, आश्चर्यजनक अनुभव को महसूस करने का जो एक मेढ़क को महसूस होता है जब वो अचानक से अपने काले अँधेरे छोटे तंग गंदे बदबूदार कुंए से बाहर निकलकर ऐसी परम रोमांचकारी प्रकाशमयी ऊँचाई पर पहुँच जाता है जहाँ से उसे पूरा खूबसूरत ब्रह्माण्ड दिखाई सुनाई देने लगता है !
मतलब योगी का मुख्य प्राण जैसे ही उसके नासिका मार्ग से बाहर निकलता है तो उसकी चेतना उसके सूक्ष्म शरीर के साथ जुड़ जाती है जिससे वो अपने आप को अचानक से सूक्ष्म संसार में पाता है !
सूक्ष्म संसार स्थूल संसार से बहुत ही अलग है जिसे शब्दों में बयान करना संभव नहीं है पर हाँ सूक्ष्म संसार में पहुच कर ही योगी को ये आभास होता है कि अब जा कर वह अपनी बरसों पुरानी नीद से जागा है और अब ही जाकर उसने असली और अदभुत विराट संसार को देखा है !
यह अनुभव बहुत ही सुखकारी और आश्चर्यजनक होता है लेकिन केवल इस अनुभव का सुख लेने के लिए योगी अपने सूक्ष्म शरीर से बाहर नहीं निकलता है बल्कि उस सूक्ष्म संसार में कई देव सत्ताओं की मदद से वह कई तरह के अनुसन्धान करता है पूर्णता की परम प्राप्ति के लिए !
पूर्णता की प्राप्ति अंतहीन लम्बी प्रक्रिया है और इसमें जैसे जैसे कोई आगे बढ़ता जाता है उसे हर बार पहले से ज्यादा आनन्द महसूस होता जाता है !
प्राणायाम के अभ्यास के दौरान जब प्राण पहली बार नाभि से बाहर निकल कर सुषुम्ना से ऊपर मस्तिष्क की ओर चढ़ता है तो शरीर में कई तरह के दर्द और ऐठन शुरू हो जाती है जिससे कुछ योगी घबरा जाते हैं और उन्हें लगता है की शरीर में कोई बीमारी तो नहीं हो गयी है पर ऐसे मौके पर गुरु मार्गदर्शन कर बताते हैं की ये कोई बीमारी है कि यौगिक प्रक्रिया !
इसे सामान्य भाषा में कुछ इस तरह से भी समझा जा सकता है कि मुख्य प्राण आदमी के शरीर का राजा होता है जिसकी वजह से जब भी वो अपने नाभि स्थित घर से बाहर निकलता है शरीर के अन्दर की अन्य इन्द्रियों के सूक्ष्म रूप, उस VIP मुख्य प्राण की सवारी को देखकर सलाम ठोकते (एक तरह का संकर्षण) है जैसे जंगल के राजा शेर के निकलने पर सब सहम जाते हैं तथा इस वजह से भी शरीर में ऐठन, खिचाव जैसा महसूस होता है !
यूँ तो दुनिया में कोई भी आदमी ऐसा नहीं होगा जिसका कभी ना कभी सूक्ष्म शरीर उसके स्थूल शरीर से बाहर ना निकला हो ! तो फिर हर आदमी को सूक्ष्म संसार के बारे में याद क्यों नहीं रहता है क्योंकि हर आदमी का सूक्ष्म शरीर उसकी नींद में उसके शरीर से जब बाहर निकलता है तो उसके साथ चेतन मन नहीं रहता है पर समाधि अवस्था में सूक्ष्म शरीर के साथ चेतन मन व सूक्ष्म इन्द्रियां भी निकलती हैं जिससे सूक्ष्म संसार का सारा अनुभव हमेशा याद रहता है !
सूक्ष्म संसार के दुर्लभ अनुभवों को याद रखने के लिए ही योगी बहुत मेहनत कर प्राणायाम से प्राण को नाक से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं !
नोट- इन जानकारियों का यहाँ वर्णन, भारत माँ के अति समृद्ध योग विज्ञान का परिचय करवाने के लिए किया गया है, इसलिए इन यौगिक क्रियाओं को सिर्फ पढ़कर अभ्यास नहीं शुरू कर देना चाहिए, बल्कि किसी योग्य जानकार योगी के मार्गदर्शन में ही अभ्यास करना चाहिए अन्यथा शरीर की हानि पहुँच सकती है !
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