तो क्या ये घर नकली था
श्रीमत् भागवत महापुराण का प्रसंग है की, भगवान दत्तात्रेय ने देखा की एक सुन्दर कपड़ो में सजी हुई एक कुवाँरी लड़की अपने घर से निकल कर कुछ लोगो के साथ एक दूसरे अनजान घर में जा रही है। श्री दत्तात्रेय ने आश्चर्य से उस कुँवारी लड़की से पूछा की हे बालिका तुम अपना खुद का घर छोड़ कर दूसरे के घर में क्यों जा रही हो ? उस लड़की ने जवाब दिया की मै उस घर को इसलिए छोड़ रही हू क्योकि वो घर मेरा असली घर नहीं है !
श्री दत्तात्रेय ने पुनः पूछा की ये कैसी अजीब बात है की जिस घर में तुमने जन्म लिया, जहा तुम अब तक पली बढ़ी, जहा तुम्हारा प्यारा बचपन और किशोरावस्था बीती वो घर तुम्हारा असली घर नहीं है ? और तुम्हे ऐसे बढ़िया घर को छोड़ने की जरुरत क्या है ?
तब उस कुँवारी लड़की ने बड़े दृढ़ स्वर में जवाब दिया की स्त्रियों का असली घर उनके पति का घर होता है। लडकियां अपने पति के घर में आने के लिए ही अपने पिता के घर में अमानत के तौर पर रह कर शिक्षा दीक्षा ग्रहण करती है और विवाह होते ही वो अपने मायके की सारी मोह माया ममता आसक्ति त्याग कर अपने असली घर यानी पति के घर में आ कर प्रसन्न होती है।
भगवान दत्तात्रेय उस कुँवारी लड़की के जवाब से प्रभावित हुए और उन्होंने उस लड़की के शब्दों के पीछे छुपे हुए आदर्श को अपना गुरु वाक्य माना की कैसे एक लड़की अपनी मायके की सालो की प्यार भरी मोह माया आसक्ति को सिर्फ एक रात्रि में यानि विवाह की रात्रि में त्याग कर अगले हीं दिन अपने असली घर यानि अपने पति के घर आ कर प्रसन्न हो जाती है।
तो इस तरह हम जीव क्यों नहीं अपने ही बनाये हुए माया जाल से तुरंत ही निकल कर सत्य अन्वेषण का प्रयास कर पाते ?
और जब हमें पता है कि हम जीवो का विवाह कभी भी मृत्यु से होना तय है तो हम इस संसार से इतना मोह -आसक्ति रखते ही क्यों है !!
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