दिव्य पौधा है चन्दन
चंदन सम्पूर्ण भारत में पाया जाने वाला वृक्ष है। यह मध्यम श्रेणी का वृक्ष होता है। तथा मुख्यत: ठण्डे व शीतोष्ण प्रदेशों में पाया जाता है, वनस्पति जगत के ‘‘सैण्टेलेसी’’ (SANTALACEAE) ‘‘सैण्टेलम एल्बम’’ (SANTALUM ALBUM) है।
यह वृक्ष काले अथवा काले भूरे स्तम्भयुक्त लम्बी – लम्बी शाखाओं वाला तथा छोटी-छोटी पत्तियों वाला होता है। इसके पत्ते सलंग किनारे वाले तथा अर्द्धनुकीले सिरे वाले होते हैं।
इसके पुष्प छोटे-छोटे सफेद अथवा हल्के नीले-सफेद वर्ण वाले तथा फल मेंहदी के फल के समान गहरे नीले वर्ण के होते हैं। फलों को फोड़ने पर उनमें गहरा नीला द्रव भी निकलता है।
जब चंदन 17-18 वर्ष पुराना हो जाता है तब इसके स्तम्भ का केन्द्रीय भाग जिसे हृदय-काष्ठ कहते हैं, महकदार हो जाता है । यही भाग पूजा इत्यादि के काम में विशेष रूप से आता है।
चंदन के औषधिक प्रयोग-
सिर दर्द निवारणार्थ-
जो व्यक्ति अत्यधिक तनाव के परिणाम स्वरूप शिरोपीड़ा से पीड़ित रहते हैं उन्हें चंदन की हृदय काष्ठ घिसकर रात्रि पर्यन्त मस्तिष्क पर लगाना चाहिए। इस प्रयोग से शिरोपीड़ा दूर होती है। तनाव नष्ट होता है। यह अत्यन्त ही शीतल होता है।
सौन्दर्य वृद्धि हेतु-
एक लाल फर्शी पर प्रथमत: एक हल्दी की गांठ को जल मिला-मिलाकर घिसें। फिर इसी पेस्ट पर और जल मिलाते हुए चंदन घिसें। इस प्रकार हल्दी व चन्दन से निर्मित पेस्ट को रात्रि में चेहरे पर मल लें, लगा लें। सुबह के समय इसे धो डालें। इस प्रयोग के परिणामस्वरूप चेहरा तरोताजा हो जाता है, झुर्रिया कम हो जाती है, चेहरे की चमक बढ़ती हैं तथा चेहरे का लोच बढ़ता है। स्त्री जाति के लिए यह प्रयोग दिव्य है।
मस्तिष्क में तरावट हेतु-
रात्रि के समय चन्दन की थोड़ी सी जड़ को जल में डुबो दें। सुबह जड़ निकालकर अलग कर लें। जल को पी लें। एक ही जड़ कई रोज काम में ला सकते हैं बशर्ते वह खराब न हो। इस प्रयोग के सम्पन्न करने से मस्तिष्क में तरावट बनी रहती है।
बलवीर्य वृद्धि हेतु-
शरीर में बल वीर्य वृद्धि हेतु लगभग 10 मिली लीटर चंदनासव में उतना ही जल मिलाकर नित्य भोजन के पश्चात् दोनों समय लेना चाहिए। इसके सेवन से लौंगिक व्याधियों में भी लाभ होता है।
चंदन के वास्तु महत्व-
चंदन का वृक्ष शुभ होता है। जहाँ चंदन का वृक्ष होता है वहाँ शान्ति एवं अमन रहता है। वासियों में प्रेम बना रहता है। वहाँ की वंशवृद्धि नहीं रुकती।
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