पत्र – माँ के नाम (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)
चरणों में प्रणाम।
मैं तुम्हें कुछ भी सुख न पहुँचा सका। सदा कष्ट देता रहा। फिर कष्ट दे रहा हूँ। पिता की यह दशा है तो भी मैंने हृदय पर पत्थर धर लिया है। एक प्रकार से मैं बड़ा पापी हूँ। अम्माँ, इस बार और क्षमा करो। अगर इस बार मेरे पैर पीछे पड़ते हैं, तो जिंदगी विषतुल्य हो जायेगी। तुम्हारे पुण्य प्रताप से मैंने अब तक बहुत सहा है। तुम आशीष दो कि मेरा हृदय अटल बना रहे और मैं सब कुछ सह लूँ। तुम धीरज न त्यागना। धर्म का काम है। धर्म के मार्ग में विपत्तियाँ आती है। परंतु फिर, बाद को, फल अच्छा मिलता है। तुम आशीष दोगी, तो मेरी आत्मा को बल मिलेगा।
हरि की माता तुम्हारे चरणों में है। उस स्त्री को आज तक मुझसे कोई सुख नहीं मिला। उसका हृदय सदा दबा हुआ रहा। जहाँ तक बने उसके मन को उठाये रखना।
एक बार चरणों के दर्शन करूँगा।
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