पूरे विश्व के बारह शिवलिंग एक ही स्थान पर, वह भी भगवान श्री राम द्वारा स्थापित
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने भी उस रामपथ को खोजने की शुरूआत की है जो अयोध्या से चित्रकूट होता हुआ दण्डकारण क्षेत्र से पंचवटी होते हुआ रामेश्वरम जाता है !
क्या भगवान श्री राम उस दण्डकारण क्षेत्र से होते हुये श्री लंका तक पहुचे थे ?
क्या उस पथ में आने वाले क्षेत्रो में सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का बारह लिंग क्षेत्र भी आता है ?
इसी तथ्य को दावे के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है बैतूल जिले के उन चंद ताप्ती भक्तो ने, जिनका दावा है कि भगवान श्री राम बैतूल जिले के जंगलो से होते हुये माँ ताप्ती को पार कर ही पंचवटी पहुचे थे ।
अब यह प्रश्र उठता है कि क्या भगवान श्री राम बैतूल से गुजरे थे ?
बैतूल के इतिहास से भली भांती परिचित कुछ जानकारो का दावा है कि पंचवटी से लंका तक पहुचने वाले उस रामपथ का बैतूल जिले से भी नाता है क्योकि सतपुड़ा पर्वत की हरी-भरी सुरम्य वादियों में ऊंची-ऊंची शिखर श्रेणियों के मध्य से कल – कल कर बहती सूर्य पुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच धारा में बने बारह लिंगो की स्थापना के पीछे जो आम प्रचलित कथाये एवं किवदंतियाँ उससे मेल खाती है।
एतिहासिक पुरातात्विक अवशेषो के अनुसार भगवान श्री राम ने रावण के पुत्र मेघनाद के द्रविड़ राज्य में राक्षसो से रक्षार्थ हेतु अपने अराध्य देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आकाश गंगा सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के किनारे रात्रि विश्राम कर ……… दूसरे दिन प्रात: सूर्योदय के पहले ताप्ती नदी में के बीचो बीच बहती जल धारा में डूबे पत्थरो पर ……… बारह लिंगो की आकृति को जन्म देकर उनका विधिवत पूजन एवं स्थापना की थी ।
भगवान श्री राम के साथ इस पूजन कार्य के पूर्व माता सीता ने जिस स्थान पर ताप्ती नदी के पवित्र जल से स्नान किया था वह आज भी सुरक्षित है तथा लोग उसे सीता स्नानागार के रूप में पूजन करते है।
महाभारत की एक कथा के अनुसार मृत्युपरांत कर्ण से भगवान श्री कृष्ण ने कुछ मांगने को कहा लेकिन दानवीर कर्ण का कहना था कि भलां मैं आपसे क्यूँ कुछ मांगू क्योंकि मैने तो अभी तक लोगो को दिया ही है ……….. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपना पूर्ण विराट स्वरूप, दानवीर कर्ण को दिखा कर कहा अब तो कुछ मांग लो।
तब कर्ण ने कहा कि यदि प्रभु आप मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो मेरी अंतिम इच्छा को पूर्ण कर दीजिये कि मेरा अंतिम संस्कार उस पवित्र नदी के किनारे हो जहाँ पर आज तक कोइ पाप नहीं हुआ हो ……………. तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टि से ताप्ती जी के किनारे अपने अंगुठे के बराबर ऐसी जगह देखी और वहीँ पर भगवान श्री कृष्ण ने पैरो के एक अंगुठे पर खड़े रह कर अपनी हथेली पर दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार किया।
श्री रामयुग में जटायु तथा श्री कृष्ण युग में कर्ण दो ही ऐसे जीव रहे जिन्होने भगवान राम और श्याम की बाँहो में दम तोड़ा।
प्रस्तुत कथा से इस बात का पता चलता है कि ताप्ती कितनी पवित्र नदी है। दूसरी दृष्टि से देखा जाये तो पता चलता है कि महाभारत की इस घटना के अनुसार सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार भी उसकी अपनी बहन ताप्ती के किनारे सम्पन्न हुआ।
जनश्रुत्रि, जानकारों तथा इतिहास के विशेषज्ञो के अनुसार इस द्रविड़ राज्य में असुरी शक्ति का जबरदस्त आंतक रहता था, वे किसी भी ऋषि मुनियो के पूजा पाठ यहाँ तक की उनके द्वारा करवाये जाने वाले यज्ञो तक में व्यवधान पैदा करते थे।
भगवान श्री राम ने अपने द्वारा चौदह वर्ष के वनवास के दौरान स्वंय तथा अनुज लक्ष्मण एवं जीवन संगनी सीता की रक्षा के लिए देवाधिदेव महादेव की जहाँ तहाँ पूजा अर्चना की थी ।
असुर केवल, भोलनाथ भगवान जटाशंकर महादेव के पूजन कार्य में व्यवधान नहीं डालते थे इसी मंशा के तहत मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने, राम पथ के दौरान शिव लिंगो का पूजन किया था । ताप्ती नदी की बीच धारा में पाषण शीला पर बारह शिव लिंगो की स्थापना की थी ।
वैसे आमतौर पर रामायण में श्री राम युग में श्रीराम द्वारा, केवल रामेश्वरम में ही शिवलिंग की स्थापना का जिक्र सुनने एवं पढऩे को मिलता है लेकिन पूरे विश्व के बारह ज्योर्तिलिंगो को एक ही स्थान पर वह भी सूर्यपुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच तेज बहती धार में मौजूद पाषण शीलाओं पर ऊकेरा जाना तथा उनका आज भी मूल स्वरूप में बने रहना निश्चित रूप से किसी चमत्कार से कम नहीं है।
वैसे आम तौर पर कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने शिवलिंगो की स्थापना करके यह संदेश भी दिया है कि देवाधिदेव शिव ही राम के ईश्वर है जबकि शिव भगवान ने ही कहा कि राम ही मेरे ईश्वर है।
बरहाल बात रामेश्वरम के ज्योर्तिलिंग की हो या ताप्ती नदी बीच तेज बहती धारा के मध्य पाषणशीलाओं पर स्थापित बारह लिंगो की, भगवान श्री राम ने अपने अराध्य देवाधिदेव जटाशंकर उमापति महादेव के प्रति अपने अगाह प्रेम को जग जाहिर कर डाला।
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