बायें हाथ से दुष्टों की गर्दन दबाने वाले व दायें हाथ से वरदान देने वाले वानर राज
जब सीधे साधे सच्चे ईमानदार भक्त को नीच लोग सताना शुरू करते हैं तो सदा शान्त रहने वाले श्री शंकर जी के पुत्र श्री हनुमानजी की त्योरियां चढ़ने लगती है !
श्री हनुमानजी ने जो महा क्रोध दिखाया था रावण युद्ध में की रावण की अपरम्पार सेना में बार बार भगदड़ मच जा रही थी तथा रावण के सैनिक श्री हनुमानजी के प्रचण्ड तेज से बचने के लिए एक दूसरे के पीछे छुप रहे थे !
बल के महा सागर श्री हनुमानजी के भृकुटी चढ़ाने भर से ही धरती कांपने लगती है, समुद्र में उबाल आने लगता है और उसके बाद शुरू होता है दुष्टों का पूरे खानदान सहित समूल नाश !
ऐसे ही श्री वानर राज, श्री पवन पुत्र, श्री केशरी नन्दन, श्री अंजनी सुत, श्री सूर्य शिष्य, श्री कुबेर सुग्रीव व विभीषण सखा, श्री राम दास, हनुमान जी ने अत्यन्त शुभकारी दर्शन दिया था, श्री तुलसीदास जी को, वाराणसी स्थित, संकट मोचन मंदिर में !
संकट मोचन का अर्थ है विपत्तियों, परेशानियों तथा दुखों को हरने वाले। संकटमोचन मंदिर वाराणसी में हनुमान जी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण गोस्वामी तुलसीदास जी ने कराया था। लगभग 1608 ई. से 1611 ई. के बीच संकटमोचन मंदिर को बनाया गया है।
मंदिर परिसर में ही साढ़े पांच एकड़ में फैला करीब 600 साल पुराना जंगल भी है। इसी जंगल में तुलसीदास जी को श्री हनुमान जी ने दर्शन दिए थे। तुलसीदासजी ने यहीं हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की और यह स्थान बाद में संकटमोचन मंदिर के नाम से विख्यात हुआ। गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्वरचित ‘हनुमानाष्टक’ में संकटमोचन का उल्लेख किया है।
खास बात यह भी है कि इस वन में कदंब की ऐसी प्रजाति का भी एक वृक्ष है जो यहां के अतिरिक्त सिर्फ मथुरा में मिलता है। इसी कदंब की एक डाल प्रतिवर्ष नागनथैया की लीला में भेजी जाती है।
श्री हनुमानजी के मंदिर के समीप ही भगवान विश्वनाथजी की लिंगमयी, श्री ठाकुर जी और श्रीनृसिंह का मंदिर भी स्थापित है।
मान्यता है कि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस का कुछ अंश संकटमोचन मंदिर के पास विशाल पीपल के पेड़े के नीचे बैठकर लिखा था। चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यहां हनुमान जयंती धूम-धाम से मनायी जाती है। इस दौरान मंदिर में बड़े स्तर पर भजन संगीत कार्यक्रम आयोजित होता है। जिसमें देश के ख्यातिलब्ध गायक अपना गायन और संगीत प्रस्तुत करते हैं।
हर मंगलवार और शनिवार को मंदिर में अन्य दिनों की अपेक्षा श्रद्धालुओं की खूब भारी भीड़ जुटती है। मंदिर परिसर में काफ़ी संख्या में बन्दर भी हमेशा रहते हैं जिन्हें भगवान श्री हनुमान जी का गण माना जाता है इसलिए इन बंदरों का बहुत सम्मान होता है !
तुलसीदासजी स्नान-दान के बाद गंगा के उस पार जाते थे। वहां एक सूखा बबूल का पेड़ था। ऐसे में वे जब भी उस जगह जाते, एक लोटा पानी डाल देते थे। धीरे-धीरे वह पेड़ हरा होने लगा। एक दिन पानी डालते समय तुलसीदासजी को पेड़ से अदृश्य आवाज आयी की ‘क्या आप प्रभु श्री राम जी से मिलना चाहते हैं ? इस पर उन्होंने हैरानी से पूछा- कैसे ?
इस पर फिर आवाज आयी कि इसके लिए आपको श्री हनुमानजी से मिलना पड़ेगा। काशी के कर्णघंटा में प्रभु श्री रामजी का मंदिर है। वहां सबसे आखिरी में एक कुष्ठ रोगी के भेष में श्री हनुमान जी बैठे हैं। यह सुनकर तुलसीदास जी तुरंत उस मंदिर में गए।
जैसे ही तुलसीदास जी उन कुष्ठ रोगी से मिलने के लिए उनके पास गए, वो रोगी वहां से उठकर कहीं जाने लगे । तुलसीदासजी भी उनके पीछे-पीछे चलते रहे। आनन्द कानन (आज जिस क्षेत्र को अस्सी कहा जाता है, उसे पहले आनन्द कानन कहते थे) पहुंचने पर उन्होंने सोचा कि अब तो जंगल आ गया है, पता नहीं यह रोगी व्यक्ति कहां तक जायेंगे।
ऐसे में उन्होंने उन कुष्ठ रोगी के पैर पकड़ लिए और कहा कि आप ही श्री राम भक्त हनुमान जी हैं, कृपया मुझे दर्शन देने की महान दया करिये। इसके बाद श्री बजरंग बली ने उन्हें साक्षात् अपने दिव्य रूप का दर्शन कराया और उनके आग्रह करने पर मूर्ति का रूप धारण कर वहीं स्थापित हो गए, जो आज संकट मोचन मंदिर के नाम से जाना जाता है।
यह मंदिर बहुत सिद्ध और जागृत है और यहाँ आने वाला हर श्रद्धालु बिना महा बली श्री हनुमान जी के अस्तित्व की झलक पाए नहीं लौटता है !
बोलिए प्रेम से, सिया वर राम चन्द्र की जय ! पवन सुत हनुमान की जय !
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