मातृ भूमि कि रक्षा के लिए अंतरात्मा कर रही पुकार कि,- “स्वयं बनें गोपाल”
साल में एक बार गोपाल जी का जन्म महोत्सव खूब भव्य चकाचौंध के साथ से मना लेने से या घर पर कोई पंडित बुलाकर गलत – सही मंत्रोच्चार वाली पूजा रोज करवाने से, आज तक कितने लोगों को गोपाल जी की कृपा प्रत्यक्ष रूप से मिलते हुए देखा गया है ?
गोपाल जी कि कृपा तभी मिलेगी जब कोई व्यक्ति गोपाल जी के आदर्शों को अपने जीवन में उतारेगा अर्थात “स्वयं बने गोपाल” !
श्री राम जी का चरित्र बहुत ही सीधा सादा था जिसे एक छोटा बालक भी समझ सकता था पर श्री गोपाल का चरित्र परम रहस्यमय था जिसे समझने में बड़े बड़े ऋषि मुनि भी अक्सर भ्रमित हो जाते थे, जैसे श्री गोपाल द्वारा गोपियों का वस्त्र चुराना एक दुर्लभ घटना थी जिसका तात्विक मतलब यही था कि योगीयों (अर्थात गोपीयों) का परम तत्व (अर्थात कृष्ण) से साक्षात्कार कराने के लिए स्वयं कृष्ण द्वारा माया (अर्थात वस्त्र) का अति शक्तिशाली बंधन तोड़ना और रोग, मृत्यु और प्रलय से भी परे अति दुर्लभ शाश्वत चरम सुख प्रदान करना !
ठीक इसी तरह श्री कृष्ण द्वारा 16000 रानियों को रखने का भी कुछ मूर्ख लोग मजाक उड़ाते हैं क्योंकि उन्हें इसका तात्विक मतलब नहीं पता होता कि कृष्ण जो कि विशुद्ध योगमय हैं उन्हें वेदों के 16000 भक्ति उपासना युक्त स्तुति माध्यमों से वश में किया जा सकता है !
आज के बहुत से लोगों को पता ही नहीं कि भक्ति कहतें किसे हैं !
कोई चाहे कितने भी मनोयोग से नारायण कि पूजा पाठ कर ले लेकिन उसके मन में नरों (अर्थात दुर्भाग्य कि मार झेलते परिचित या अपरिचित मानवों) के लिए परोपकार का भाव ना हो तो उसकी पूजा पाठ आदि सब एकदम निष्फल है !
ऐसा नहीं है कि भगवान् कि पूजा, पाठ, भजन, ध्यान, योग आदि फ़ालतू चीज होती है क्योंकि बिना इन आध्यात्मिक साधनाओं को करने से मिलने वाली आध्यात्मिक शक्ति के कोई व्यक्ति लम्बे समय तक परोपकार के मार्ग पर चल ही नहीं पाता है !
भगवान् के नाम जप, ध्यान, योग, भजन, कीर्तन आदि से मन के अंदर स्थित गलत भावनाओं कि बढ़िया सफाई होती है और एक साफ़ सुथरा मस्तिष्क ही हमेशा दूसरों कि सहायता के लिए अग्रसर रहता है !
जब कोई आदमी, दूसरों कि सहायता के लिए अपने मेहनत से कमाया हुआ धन खर्च करता है तो कुछ कुटिल मानसिकता के कलियुगी लोगों से उसका यह परोपकार बर्दाश्त नहीं होता है और वे हर संभव कोशिश (मजाक उड़ाकर, उपेक्षा दिखाकर या अन्य किसी तरीके से) करते हैं उसके परोपकारी कामों को बंद करवाने की, अतः ऐसे में वह परोपकारी व्यक्ति अगर रोज कम से कम 5 मिनट के लिए भी एकांत में अपने इष्ट भगवान् से बातचीत ना करे तो बहुत संभव है कि धीरे धीरे वो परोपकारी व्यक्ति भी, उन कुटिल मानसिकता के लोगों कि नकारात्मक बातें रोज सुन सुनकर उन्ही कि भाषा में बोलने लगे कि वाकई में इस मतलबी दुनिया में सिर्फ अपने फायदे के बारे में ही सोचना चाहिए और दूसरों के फायदे के बारे में सोचना सिर्फ मूर्खता है !
इस कलियुग कि यही ख़ास बात है कि ज्यादातर लोगों के अन्दर अच्छाई कांच कि तरह बहुत नाजुक अवस्था में रहती है, जो कि आसानी से किसी के बहकावे में आकर टूट जाती है, जबकि बुराई मन में ऐसा पक्का घर जमा लेती है कि मरते दम तक साथ नहीं छोड़ती है !
वैसे तो श्री गोपाल का पूरा जीवन ही ऐसे प्रेरणादायी घटनाओं से भरा पड़ा है जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं पर आज के परिप्रेक्ष्य में दो सीख बहुत महत्वपूर्ण हैं जिन्हें आत्मसात करना हर देशभक्त भारतीय के लिए नितान्त जरूरी हो गया है और वे बाते हैं–
- सिर्फ और सिर्फ सच का साथ देना और जरूरत पड़े तो सच की स्थापना के लिए युद्ध से भी नहीं घबराना, अन्यथा सब बर्बाद हो जाएगा ! आज कि डेट में जो भी आदमी सच के साथ नहीं है चाहे वो आतंकवादी हो, या भ्रष्ट राजनेता या अधिकारी उसका विरोध जरूर करना चाहिए क्योंकि जो समाज अपने ऊपर भ्रष्ट लोगों का अत्याचार लगातार बर्दाश्त करता जाता है वो भी दैवीय प्रकोप का निश्चित भागी होता है | खुद असत्य आचरण करने के समान ही, दूसरे का असत्य बर्दाश्त करना भी पाप होता है, खासकर तब, जब आदमी के अंदर उस असत्य का विरोध करने कि क्षमता हो पर वो किसी किस्म के विवाद से बचने के लिए दूसरों के झमेलों में ना पड़ने कि सोचे !
- मरते दम तक जितना हो सके, दूसरों कि उचित सहायता जरूर करना चाहिए जिसके लिए श्री कृष्ण मशहूर थे कि उनके द्वार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता है !
आज के मुश्किल हालात में बहुत से धूर्त राक्षस हमारे देश को खा जाने के लिए भूखे भेड़ियों कि तरह आतुर बैठे हैं, अतः अपनी मातृभूमि और पूरी मानवजाति कि रक्षा के लिए सभी कि अंतरात्मा यही पुकार रही है कि,- “स्वयं बनें गोपाल” और अपनी संतानों को भी बनाएं “गोपाल” !
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