हे देशभक्तों, यह हार नहीं, वक्ती तौर का कूटनैतिक राजधर्म है
दुनिया का हर काम बन्दूक के जोर पर नहीं हो सकता खासकर जब समस्या अपने साथ रहने वाले पुराने साथियों से है ! और ना ही कोई भी आदमी लगातार सिर्फ जीतते ही जा सकता है क्योंकि लम्बे समय तक चलने वाले युद्ध में कई बार उठा पटक होती है ! तब ऐसे मौके पर सहारा लेना पड़ता है कई तरह के नाटकों का !
इसी को बोलते हैं कि जब रणनीति फेल हो जाय तब कूटनीति का सहारा लेना ! यहाँ पर ध्यान से समझने वाली बात है कि कूटनीति जैसे शब्द सिर्फ बड़ी राजनैतिक हलचलों के लिए ही नहीं बने हैं क्योंकि हर आम आदमी जो सज्जन, समझदार और बुद्धिमान है वो भी अपने जीवन के कई मोड़ो पर कूटनैतिक पैतरे खेलता है ! यह उसकी मजबूरी भी होती है ! ऐसा नहीं है कि कूटनैतिक चालें चलना अधर्म है क्योंकि यह तय बात है कि सूई का काम तलवार नहीं ही कर सकती !
दुनिया के सबसे बड़े कूटनीतिज्ञ, भगवान् श्री कृष्ण हुए थे और भारतीय परिप्रेक्ष्य में, आज कि तारीख में, विश्वस्तरीय कूटनीतिज्ञों में श्री नरेंद्र मोदी का नाम लिया जा सकता है | हम बात करें कि आखिर एक आम सज्जन आदमी को कब कब अपनी जिंदगी में कूटनैतिक चालें चलनी पड़ती है ? उसे जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि कूटनीति कहते किसे है !
कूटनीति का मतलब हमारे शास्त्रों के अनुसार होता है कि दुष्टों कि शातिर चालों का जवाब, उन्ही की भाषा में, अर्थात शातिर चालों से ही देना ! दुष्टों कि शातिर चालों का उन्ही की भाषा में जवाब देने में सबसे बड़ा रिस्क यह भी होता है कि कुछ सफ़ेदपोश नादान लोगों कि नजरों में चाल चलने वाले की इज्जत कुछ देर के लिए कम हो सकती है, जब तक कि उन सफेदपोश नादान लोगों को उसकी असली सच्चाई का पता नहीं चल जाता है !
पर यह रिस्क ख़ुशी ख़ुशी लिया जा सकता है, जब बात अपनी मातृ भूमि कि सुरक्षा की हो ! आईये देखते हैं कि कैसे भगवान् श्री कृष्ण ने धर्म की सुरक्षा के लिए अपने भगवान् होने कि गरिमा तोड़ते हुए साधारण संसारी आदमियों कि तरह झूठ बोलकर कुछ दुष्ट लोगों को धोखा दिया और जिसकी वजह से कई तत्कालीन मूर्ख अज्ञानी लोगों ने जमकर उनकी बदनामी भी की, पर श्री कृष्ण ने यह सब हँसते हँसते सहन कर लिया क्योंकि उन्हें पता था कि सबसे बड़ी उपलब्धि धर्म, सत्य व न्याय की सुरक्षा करना हैं ना कि उनकी खुद कि होने वाली बदनामी को रोकना !
वैसे तो भगवान् श्री कृष्ण द्वारा प्रस्तुत किये गए उदाहरण हजारों हैं पर उनमे से कुछ पर हम नजर डालते हैं ! जैसे जरासंध नाम का महादुष्ट अत्याचारी राजा था और सिर्फ श्री कृष्ण को पता था कि उसे केवल महाबली भीम ही मार सकते हैं पर भीम से उसका युद्ध कराने में कई निर्दोष सैनिकों कि जान ना चली जाय इसलिए श्री कृष्ण, सिर्फ जरासंध से ही भीम की लड़ाई करवाना चाहते थे ! अतः कृष्ण भेष बदलकर, झूठा रूप धरकर, जरासंध से मिलने गए और जरासंध को शक ना हो जाय इसलिए बिना युद्ध कि बात बताये, उससे सबके सामने कसम दिलवा दी कि अगर वो असली राजा है तो वो जो मांगेगे वो उन्हें देगा !
जरासंध को बार बार कृष्ण के नकली भेष और उनकी बातों पर शक हो रहा था लेकिन जरासंध कसम देने से पीछे ना हट जाय इसलिए श्री कृष्ण बार बार बहुत चालाकी से सबके सामने उसे इनडायरेक्ट में कायर ना बनने के ताने मार रहे थे !
जरासंध ने उनके ताने सुनकर कई बार उन्हें अपशब्द भी कहे लेकिन कृष्ण जानते थे कि उनके पर्सनल मान सम्मान से बढ़कर है उस दुष्ट का मरना, नहीं तो वह आगे भी कई निर्दोष लोगों को अपना शिकार बनाता रहेगा ! अंततः जरासंध कृष्ण के झांसे में आ ही गया और भीम से लड़ाई में मारा गया !
दूसरा उदहारण देखते हैं, जब भगवान् शिव की प्रचंड भक्त और महान पवित्र स्त्री, गांधारी जी ने महाभारत युद्ध के अंतिम चरण में अपने पुत्र दुर्योधन को वज्र शरीर बनाने के लिए रात में नदी से नहा कर उनके सामने बिना वस्त्र के आकर खड़े होने को कहा तो श्री कृष्ण के बेहद तेजतर्रार गुप्तचरों ने इस बात कि जानकारी तुरंत श्री कृष्ण को दी !
श्री कृष्ण समझ गए कि अगर एक बार दुर्योधन का शरीर वज्र का हो गया तो लगभग पूरा जीता हुआ युद्ध हम लोग हार जायेंगे इसलिए वे फ़ौरन दुर्योधन के पास पहुच गएँ ! जिस दुर्योधन ने कई बार उन्हें अपशब्द कहे थे और सार्वजनिक तौर पर उनकी बेइज्जती करने की भी कोशिश की थी, उसी दुर्योधन से श्री कृष्ण अपनी पर्सनल नाराजगी भुलाकर बहुत प्रेम से बात करने लगे और उन्होंने उससे पूछा कि अरे आप इतनी रात में नदी से नहा कर बिना कपड़ों के कहाँ जा रहें हैं ?
दुर्योधन ने फिर बद्तमीजी वाले तरीके से कृष्ण के प्रश्न को टालने कि कोशिश की पर कृष्ण के लगातार बार बार पूछने पर उसे बताना पड़ा कि माँ ने किसी जरूरी पूजा के लिए ऐसे ही बुलाया है ! श्री कृष्ण ने दुर्योधन द्वारा अपने साथ किये जाने वाले लगातार बद्तमीज व्यवहार कि बिल्कुल परवाह ना करते हुए, बहुत प्रेम से और बहुत आश्चर्य वाला चेहरा बनाते हुए दुर्योधन से कहा कि अरे इतना बड़ा लड़का भी कभी माँ के सामने इस तरह बिना कपड़ों के जाता है ? कितनी गन्दी बात है !
तब दुर्योधन ने गुस्से से कहा कि माँ ही जन्म देती है, माँ ही प्राण देती है तो माँ के सामने कैसी शर्म ! दुर्योधन ने जो बात कही वो धर्म के हिसाब से एकदम सही थी लेकिन इस धर्म को निभाने में एक महा अधर्म हो जाता कि दुर्योधन का शरीर वज्र का हो जाता जिससे उसे हरा पाना असम्भव हो जाता और फिर हस्तिनापुर पर एक पापी का राज हो जाता है !
इसलिए श्री कृष्ण ने फिर कूटनैतिक चालें चली, दुर्योधन का ब्रेन वाश करने के लिए ! उन्होंने उससे कहा कि, ठीक है धर्म के हिसाब से उचित हैं कि लड़का चाहे जितना बड़ा हो जाय, वो माँ के सामने हमेशा रहेगा बच्चा ही, पर लोक लाज नामकी भी कोई चीज होती है कि नहीं ! अरे आप शादीशुदा हैं और आपके खुद के बच्चे भी हैं तो ऐसे में कम से कम कुछ तो व्यवहारिकता अपनाइए ! कम से कम इतने कपड़े तो पहन लीजिये कि फूहड़ ना लगे !
श्री कृष्ण द्वारा लगातार ऐसे ब्रेन वाश करने वाले तर्कों से घबराकर अचानक से दुर्योधन को लगने लगा कि सहीं में वो कितनी बड़ी मूर्खता कर रहा था, इसलिए उसे कम से कम लंगोट तो पहन ही लेना चाहिए ! और अंततः इसी लंगोट कि वजह से उसकी जंघा वज्र कि नहीं हो पाई और वो भीम से युद्ध में मारा गया !
अब तीसरा उदाहरण देखते हैं कि कंस को मारने के बाद जब श्री कृष्ण मथुरा नगरी के प्रधान रक्षक बने तब कंस के रिश्तेदार व मित्र राजा बहुत भड़क गये और उन्होंने कई कई बार मथुरा पर बड़ी बड़ी सेना लेकर हमला किया ! कृष्ण समझ गए कि ये सब दुष्ट मानने वाले नहीं हैं और इनके बार बार के हमलों से प्रजा में बहुत डर बैठ गया है इसलिए इस मथुरा क्षेत्र से अपनी प्रजा को लेकर निकल लेने का समय आ गया है !
तब उन्होंने अपने योग बल से अपनी पूरी प्रजा को एक रात में द्वारिका पंहुचा दिया ! कृष्ण के द्वारा रातों रात मथुरा से द्वारिका चले जाने पर उस समय के कई लोगों ने उन्हें भगोड़ा, कायर, डरपोक कहा पर श्री कृष्ण ने इनमे से किसी भी आरोप का जवाब तक देना जरूरी नहीं समझा क्योंकि उन्हें पता था कि धर्म के रास्ते पर सही काम करने पर भी अक्सर बदनामी मिलती है !
कृष्ण जानते थे कि अगर वो मथुरा में रहते तो उनकी आगे कि जिंदगी के कई और साल सिर्फ युद्ध में ही बीतते और वे प्रजा कि तरक्की के लिए कुछ कांस्ट्रक्टिव काम तो कर ही नहीं पाते ! इन सब उदाहरणों के अलावा और भी कई ऐसे उदाहरण हैं जब श्री कृष्ण को सही काम करने के लिए धोखे का सहारा लेना पड़ा !
जैसे भीष्म पितामह को नपुंसक शिखंडी कि आड़ में छुपकर मरवाना, महाताकतवर द्रोणाचार्य का पहले झूठी अफवाह से हथियार रखवाना फिर चुपके से गर्दन कटवाना, अपने रथ कि मरम्मत करते हुए कर्ण कि हत्या करवाना आदि ! श्री कृष्ण ने इन ऊपर लिखे वीरों कि हत्या करने में धोखे का सहारा क्यों लिया ? कारण स्पष्ट है कि इन लोगों ने भी तो एक समय धोखा किया था (अभिमन्यु को मारने में), तो एक धोखे बाज को धोखे से मारने में कोई बुराई नहीं हैं ! और ऐसा नहीं था कि इन लोगों ने सिर्फ अभिमन्यु के साथ धोखा किया था, बल्कि ये अधर्म अर्थात उस दुर्योधन के पक्ष में खड़े होकर लड़ाई लड़ रहे थे जिसने बेचारी द्रौपदी का चरम स्तर तक अपमान किया था !
तो ये रही बात भगवान् श्री कृष्ण कि जिन्होंने अपने लीला चरित्र से आने वाली पीढ़ियों के सामने यह साबित किया कि दुष्टों कि शातिर चालों का जवाब, शातिर चालों से देना गलत नहीं, सही है ! अगर हम एक आम सज्जन आदमी कि बात भी करें तो ये पायेंगे कि उसे भी अपने और अपने परिवार की बेहतरी के लिए, अपनी दिनचर्या में कई तरह के नाटकीय कूटनैतिक चालें चलनी पड़ सकती हैं !
जैसे आपका बेटा बड़ा होता जा रहा है लेकिन अपनी पढाई पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहा है और ना ही आपके बार बार समझाने से उस पर कोई असर हो रहा है तो ऐसे में आपको यह युक्ति सूझती है कि आप अपने ही लड़के के हमउम्र किसी ऐसे परचित लड़के को जो पढ़ने में बहुत तेज हो घर पर बुलाते हैं और उससे अपने लड़के कि तुलना करते हैं तथा अपने लड़के के मुंह पर उस तेज लड़के के होनहार भविष्य की खूब तारीफ़ भी करते हैं जिससे आपके लड़के के मन में भी कॉम्पिटिशन का भाव पैदा हो और उसे भी समझ में आये कि वो जिस हिसाब से अपने समय कि बर्बादी कर रहा है तो उससे उसका क्या दुखद भविष्य होने वाला है !
दूसरा उदाहरण यह लिया जा सकता है कि जैसे आप रोज एक ही दुकान से अपने घर के जरूरी सामान खरीदते हैं और आपकी इस वफादारी के बदले वह दुकानदार अब आपको थोड़ा थोड़ा धोखा देना शुरू कर रहा है मतलब आपसे दाम ज्यादा ले रहा है पर वो दूकानदार सामान अच्छी क्वालिटी का देता है इसलिए आप उस दुकानदार को परमानेंट छोड़ना भी नहीं चाहते इसलिए उसकी इस बुरी आदत को सुधारने के लिए आप सामान अब उसके सामने वाली दूसरी दूकान से खरीदना शुरू कर देते हैं और उसके टोकने पर कहते हैं कि भाई वो दुकानदार तुमसे अच्छी क्वालिटी का सामान सस्ते में दे रहा है तो मैं तुमसे क्यों लूं (भले ही सामान अच्छी क्वालिटी और सस्ते में ना हो) ! अगर आपका पहला दुकानदार थोड़ा सा भी बुद्धिमान होगा तो जल्द ही आपसे फिर से जुड़ने कि कोशिश करेगा और इस बार आपसे दाम भी ज्यादा नहीं लेगा !
लालच, भ्रष्टाचार और साजिशों का बहुत खतरनाक चक्रव्यूह बन चुका है और ऐसे में एक कट्टर ईमानदार का ना केवल टिके रहना बल्कि तरक्की के लगातार खम्बे गाड़ते जाना सिर्फ आश्चर्य ही नहीं, महाआश्चर्य की बात है ! ऐसे माहौल में मोदी जी जैसे समझदार और दूरदर्शी लीडर सिर्फ रिजल्ट्स पर ध्यान देते हैं !
एक भ्रष्ट आदमी, चाहे कितना भी ईमानदार बनने का नाटक कर ले, लेकिन उसका चेहरा और आंखे बता ही देंगे कि उसके मन में चोर है और एक बेहद ईमानदार आदमी को भले ही किसी वक्ती मजबूरीवश कुछ ऐसे काम करने पड़े जो प्रथम द्रष्टया दिखने में ठीक ना लगे, पर उसका तेज से चमकता चेहरा ही बता देगा कि वो गृहस्थ रूप में भी एक संत है !
तो अगर आपका दिल और आत्मा कहती है कि मोदी जी एक ईमानदार व्यक्ति हैं तो आप अपनी इस बात पर हमेशा कायम भी रहिये और बार बार भ्रामक ख़बरों को देखकर, खुद गलतफहमी के शिकार मत हो जाईये !
मोदी जी तेजी से शासन में व्याप्त गंदगी कि सफाई कर रहें, इसलिए हमें भी धैर्य से मोदी जी को भारत के कायाकल्प करने के लिए पूरा मौका देना ही चाहिए क्योंकि इस वास्तविक सच्चाई का सबको पता है कि विकास के काम, विनाश जितनी तेजी से नहीं होतें है ! जैसे 2 साल कि अथक मेहनत से तैयार होने वाली मल्टीस्टोरी बिल्डिंग, आतंकवादियों के द्वारा लगाए हुए बम से सिर्फ कुछ सेकंड्स में धराशायी हो जाती है ! इसी तरह धराशायी भारत को भी फिर से सुधारने के लिए दिन रात जूझते मोदी जी को भी हम आम जनता के द्वारा लगातार प्रोत्साहन देने कि जरूरत है !
बाहरी लोगों के द्वारा दिए जाने वाली मानसिक प्रताड़ना से परेशान व्यक्ति घर वापस आकर घर के लोगों का प्यार पाकर फिर से तरोताजा और खुश हो जाता है उसी तरह मोदी जी के उत्साहवर्धन के लिए हम सभी देशभक्तों को स्वयं बाहर आना चाहिए और उनके हर उचित कदम में उचित निष्ठा जरूर जताना चाहिए !
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