जानिये हर योगासन को करने की विधि
प्राणायाम की तरह योगासन (yogasana, asana) भी बहुत चमत्कारी विधा है जिससे ना सिर्फ सभी रोगों का नाश संभव है, बल्कि विभिन्न रहस्यमय चक्रों और कोशो के जागरण से कुण्डलिनी प्रक्रिया भी सफल होती है जिससे स्वयं साक्षात् अनंत ब्रह्मांड अधीश्वर भगवान् का दर्शन तक भी निश्चित हो जाता है, इसलिए हर व्यक्ति चाहे वो बच्चा, बूढा या जवान हो, उसे योग और आसन जरुर करना चाहिए ताकि ऐसी नौबत ही ना आ सके कि वो कभी भी बीमार पड़े या यदि पहले से उसे कोई कठिन बीमारी हो चुकी हो तो उसका जल्द जल्द से परमानेंट खात्मा हो सके !
योगासनों को करने के दौरान ऐसे ऐसे दुर्लभ हारमोंस का शरीर के अंदर स्राव होता है जिससे पूरे शरीर को उम्मीद से भी कई गुना ज्यादा लाभ मिलता है ! इन दुर्लभ हारमोंस का शरीर में पैदा होना, कभी भी आज के मॉडर्न एलोपैथिक साइंस के किसी भी महंगी से महंगी मेडिसिन्स से संभव नहीं है |
इसलिए अब इस सच को पूरी दुनिया फिर से स्वीकार रही है कि बीमारी चाहे कैंसर हो या नपुंसकता, एड्स हो लकवा, पीलिया हो या पथरी मतलब एक्स वाई जेड कोई भी बीमारी हो, उसमे अलग – अलग योग, आसनों व प्राणायाम के उचित कॉम्बिनेशन से फायदा मिल कर ही रहेगा !
सिर्फ एक मणिपूरक चक्र के ही जागने भर से शरीर के सभी रोगों का नाश होने लगता है जबकि भारतीय हिन्दू धर्म ग्रन्थों में बहुत से ऐसे अद्भुत योग, आसन व प्राणायाम का वर्णन है जो एक साथ कई चक्रों को जगाते हैं जिनसे पूरा शरीर ही एकदम स्वस्थ और दिव्य होने लगता है |
उदाहरण के तौर पर कभी बाबा रामदेव का शरीर टेलीविजन पर नहीं, बल्कि वास्तव में प्रत्यक्ष देखिये तब ही आपको समझ में आएगा कि सिर्फ योग, आसन व प्राणायाम कैसे, किसी भी मानव शरीर का बिना किसी मेकअप के, सही में कायाकल्प कर देते हैं !
योगासनों के लाभ –
– योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह हैं कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन (yogasana) ऐसी व्यायाम (vyayam or exercise) पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है।
– योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।
– आसनों में जहां मांसपेशियों (muscles) को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा (freshness) करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ (spiritual benefits of yoga) की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है।
– योगासनों से भीतरी ग्रंथियां (glands) अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था (juvenility, youngness) बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा (Semen enhancement & protection) में सहायक होती है।
– योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान (digestive system) में गड़बड़ियां उत्पन्न नहीं होतीं।
– योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ (spine) की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं।
– योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा (obesity) घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है।
– योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं।
– योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्मा-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं।
– योगासन (yogasana) स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, अत: मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है।
– योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों (heart and lungs) को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं।
– आसनों (asan) से नेत्रों की ज्योति (eyesight) बढ़ती है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्में की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
– आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र (nervous system, breath) की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल वाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जब कि योगसन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं।
आसनों को करने से पूर्व सावधानिया –
– अगर आपने कोई लिक्विड पिया है चाहे वह एक कप चाय ही क्यों ना हो तो कम से कम एक से डेढ़ घंटे बाद योगासन करे और अगर आपने कोई सॉलिड (ठोस) सामान खाया हो तो कम से कम तीन से चार घंटे बाद योगासन करे।
– योगासन शौच क्रिया एवं स्नान से निवृत्त होने के बाद करें या इसको करने के आधे घंटे बाद स्नान करें।
– योग व प्राणायाम के कम से कम 7 मिनट बाद हार्ड एक्सरसाइज (जैसे दौड़ना, जिम की कसरतें आदि) करनी चाहिए !
– योगासन समतल भूमि पर आसन बिछाकर करना चाहिए एवं मौसमानुसार ढीले वस्त्र पहनना चाहिए।
– योगासन खुले एवं हवादार कमरे में करना चाहिए, ताकि श्वास के साथ आप स्वतंत्र रूप से शुद्ध वायु ले सकें। अभ्यास (Yoga Workout, Yoga Exercise) आप बाहर भी कर सकते हैं, परन्तु आस-पास वातावरण शुद्ध तथा मौसम सुहावना हो।
– आसन करते समय अनावश्यक जोर न लगाएँ। यद्धपि प्रारम्भ में आप अपनी माँसपेशियों को कड़ी पाएँगे, लेकिन कुछ ही सप्ताह के नियमित अभ्यास से शरीर लचीला हो जाता है। आसनों को आसानी से करें, कठिनाई से नहीं। उनके साथ ज्यादती न करें।
– मासिक धर्म, गर्भावस्था (menstrual period problems, pregnancy), बुखार, गंभीर रोग आदि के दौरान आसन न करें।
– योगाभ्यासी को सम्यक आहार अर्थात भोजन प्राकृतिक और उतना ही लेना चाहिए जितना कि पचने में आसानी हो। वज्रासन (vajrasana) को छोड़कर सभी आसन खाली पेट करें।
– आसन के प्रारंभ और अंत में विश्राम करें। आसन विधिपूर्वक ही करें। प्रत्येक आसन दोनों ओर से करें एवं उसका पूरक अभ्यास करें।
– यदि आसन को करने के दौरान किसी अंग में अत्यधिक पीड़ा होती है तो किसी योग चिकित्सक (yoga doctor) से सलाह लेकर ही आसन करें (Learn Yoga- Yoga Lesson, Yoga Program,Yoga Training, Yoga Certification, Yoga Courses, Yoga Exercise also by Yoga Site,Yoga Practice, Yoga Website) ।
– यदि वातों में वायु, अत्यधिक उष्णता या रक्त अत्यधिक अशुद्ध हो तो सिर के बल किए जाने वाले आसन न किए जाएँ। विषैले तत्व (toxin) मस्तिष्क में पहुँचकर उसे क्षति न पहुँचा सकें, इसके लिए सावधानी बहुत महत्वपूर्ण है।
– योग प्रारम्भ करने के पूर्व अंग-संचालन (aerobic fitness exercises) करना आवश्यक है। इससे अंगों की जकड़न समाप्त होती है तथा आसनों (asanas) के लिए शरीर तैयार होता है। अंग-संचालन कैसे किया जाए इसके लिए ‘अंग संचालन’ देखें।
योगासनो के प्रकार और लाभ (Types of Different Yoga Asana)-
सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar yoga steps in hindi)–
सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है।
यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है।
इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। सूर्य नमस्कार स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों अर्थात सभी के लिए भी बहुत ही उपयोगी बताया गया है।
आदित्यस्य नमस्कारन् ये कुर्वन्ति दिने दिने ।
आयुः प्रज्ञा बलम् वीर्यम् तेजस्तेशान् च जायते ॥
अर्थात जो लोग प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है।
सूर्य नमस्कार में तेरह मंत्र बोले जाते हैं। प्रत्येक मंत्र में सूर्य का भिन्न नाम लिया जाता है। हर मंत्र का एक ही सरल अर्थ है- भगवान सूर्य को (मेरा) नमस्कार है।
हर बार एक मन्त्र बोलकर, पूरा सूर्य नमस्कार किया जाता है और इस तरह तेरह बार रोज सूर्य नमस्कार करने वाले को कोई रोग कभी छू भी नहीं सकता जब तक कि वो विशेष बदपरहेजी ना करे !
1- ॐ मित्राय नमः 2- ॐ रवायै नमः 3- ॐ सूर्याय नमः 4- ॐ भानवे नमः 5- ॐ खगाय नमः 6- ॐ पूष्णे नमः 7- ॐ हिरण्यगर्भाय नमः 8- ॐ मरीचये नमः 9- ॐ आदित्याय नमः 10- ॐ सावित्रे नमः 11- ॐ अर्काय नमः 12- ॐ भास्कराय नमः 13- ॐ श्री सावित्रसूर्यनारायणाय नमः
सर्वप्रथम सूर्यनमस्कार करने के लिए आंखे बंद रख कर, दोनों हाथ जोड़ कर सीधे खड़े होना चाहिए।
श्वास नलिका में श्वास भरते हुए अपने दोनों हाथो को ऊपर की और सीधे रखे। दोनों हाथ कान से सटे हुए और तने हुए होने चाहिए। उसके बाद गर्दन को धीरे से पीछे की और झुकाना चाहिए।
अब तीसरे चरण में श्वास को धीरे धीरे बाहर छोड़ना होता है और साथ साथ शरीर को आगे की ओर झुकाना होता है। धीरे धीरे आगे झुकते हुए दोनों हाथो से अपने दोनों पैरो के आस पास की जमीन पर लगाने होते हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि जब आगे की और शरीर झुकाएं तब दोनों हाथ कानो से सटे हुए और सीधे रहेते हुए ही आगे नीचे की और जाने चाहिए तथा माथा पूरी तरह आगे झुक जाने पर दोनों घुटनो पर छूना चाहिए। थोड़ी देर इसी अवस्था में झुके हुए खड़े रहना चाहिए।
अब चौथे चरण में श्वास को अंदर भरते हुए बाएँ पैर को पीछे की ओर ले जाना होता है। तथा छाती को खींच कर आगे की और तानना होता है ताकि पैर पीछे की और ले जाते वक्त शरीर का संतुलन ठीक रहे।
और उसी प्रक्रिया के साथ साथ अपनी गर्दन को पीछे मष्तिस्क की और हो सके उतना ले जाना होता है। साथ मे यह सुनिश्चित करें कि पीछे की ओर खिची हुई टांग तनी हुई हो और पैर का पंजा खड़ा हुआ होना चाहिए। इस मुद्रा में थोड़ी देर खड़े रहे।
सांस को धीरे धीरे बाहर निष्काषित करते हुए अब दायें पैर को भी पीछे की और ले जाना होता है और साथ में यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए के पीछे दोनों पैरो की एडिया परस्पर मिल रही है की नहीं। अब साथ साथ अपने शरीर को पीछे की ओर खीचाव दे कर एड़ियों को जमीन पर मिलने का प्रयास करना होता है।
फिर नितम्बो को जितना हो सके उतना ऊपर की और उठाने का प्रयास करना चाहिए। और साथ में गर्दन को नीचे झुकाना चाहिए तथा ठोड़ी को कण्ठकूप पर लगाना चाहिए।
अब श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समांतर लेटा कर, दंडवत प्रणाम करना होता है। आगे घुटने, माथा, छाती और ठुड़ी (chin) पृथ्वी पर लगा कर कमर के नीचे के भाग को थोड़ा ऊपर उठाना होता है। अब धीरे धीरे सांस छोड़ते हुए श्वसन क्रिया सामान्य कर लें !
अब आगे फिर से श्वांस को अंदर भरते हुए छाती को आगे की और खिचाव देते हुए सीधे हाथ करते हुए अपनी गर्दन की पीछे की और ले जाना होता है। इस प्रक्रिया के दौरान घुटने जमीन पर लगे होने चाहिये और पैरो के दोनों पंजे खड़े होने चाहिये।
आठवे चरण में श्वास को बाहर निकालते हुए पैर को भी पीछे ले जाते हुए पर्वत आकार का निर्माण लेते हुए थोड़ी देर उसी अवस्था में रहना चाहिये।
इस चरण में श्वास अंदर लेते हुए बाया पैर दोनों हाथों के बीच आगे ले आते हुए छाती आगे तान कर गरदन पीछे की और ले जानी होती है।
अब इस आसन में श्वास बाहर छोड़ते हुए हाथ से पैर को छूना होता है और माथा घुटनो से लगे यह सुनश्चित करना होता है।
इस चरण में श्वास अंदर लेते हुए हाथो को पीछे की और सीधे रख कर ले जाना होता है और गरदन को भी पीछे तानना होता है।
अंतिम चरण श्वास बाहर छोड़ कर श्वसन क्रिया सामान्य रख कर सीधे खड़े हो कर दोनों हाथ जोड़ कर सूर्यदेव की प्रार्थना की जाती है।
चक्रासन (chakrasana) –
सबसे पहले पीठ के बल लेटकर घुटनों को मोड़ीए, एड़ीयां नितम्बों के समीप लगी हुई हों। दोनों हाथों को उल्टा करके कंधों के पीछे थोड़े अन्तर पर रखें इससे सन्तुलन बना रह्ता है। श्वास अंदर भरकर कटिप्रदेश एवं छाती को ऊपर उठाइये, धीरे-धीरे हाथ एवं पैरों को समीप लाने का प्रयत्न करें, जिससे शरीर की चक्र जैसी आकृति बन जाए।
आसन छोड़ते समय शरीर को ढीला करते हुए भुमि पर टिका दें, चक्रासन को सुविधानुसार 30 सेकंड से एक मिनट तक किया जा सकता है। इसे दो या तीन बार दोहरा सकते हैं। चक्रासन अन्य योग मुद्राओं की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है। यदि आप इस आसन को नहीं कर पा रहे हैं तो जबरदस्ती न करें, ह्रदय रोगी उच्च रक्तचाप, हर्निया रोगी,अल्सरेटिव कोलैटिस के रोगी, तथा गर्भ अवस्था के दौरान इस अभ्यास को ना करे।
चक्रासन का नियमित अभ्यास ‘न्यूरोग्लिया’ कोशिकाओं की वृद्धि करता है, मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध आदि जैसे आवेगों में न्यूरोग्लिया कम होने लगते हैं ! यह आसन करने रक्त का प्रवाह तेजी से होता है ! मेरुदंड तथा शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होकर योगिक चक्र जाग्रत होते है !
छाती, कमर और पीठ पतली और लचीली होती है साथ ही रीड़ की हड्डी और फेफड़ों में लचीलापन आता है ! मांसपेशियां मजबूत होती है जिसके कारण हाथ, पैर और कंधे चुस्त दुरुस्त होते है !
इस आसन के करने से लकवा, शारीरिक थकान, सिरदर्द, कमर दर्द तथा आंतरिक अंगों में होने वाले दर्द से मुक्ति मिलती है ! पाचन शक्ति बढती है। पेट की अनावश्चयक चर्बी कम होती है ! शरीर की लम्बाई बढ़ती है ! इस आसन को नियमित करने से वृद्धावस्था में कमर झुकती नहीं है और शारीरिक स्फूर्ति बनी रहती है साथ ही स्वप्नदोष की समस्या से भी मुक्ति मिलती है !
समतल स्थान पर दरी या चटाई बिछाकर खड़े हो जाएं। फिर दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर नीचे बैठ जाए। दोनों घुटनों को सामने फर्श पर टिकाकर रखें और पंजों पर बैठ जाएं। अब बाएं पैर को धीरे-धीरे पीछे की ओर और दाएं पैर को आगे की ओर फैलाएं। इस आसन के शुरुआत में पैरों को जितना संभव हो उतना फैलाने की कोशिश करें। आरम्भ में शरीर का संतुलन बनाएं रखने के लिए दोनों हथेलियों का भी सहारा ले सकते हैं। इसमें दोनों पैर को इतना फैला दें की नितम्ब फर्श से सट जाएं।
आसन के इस स्थिति में आने के बाद अपने हाथों को प्रार्थना की मुद्रा में जोड़कर सामने की तरफ रखें। 2 मिनट तक इस स्थिति में रहने के बाद सामान्य स्थिति में आकर 2 मिनट तक आराम करें। इसके बाद बाएं पैर को आगे की ओर और दाएं पैर को पीछे की ओर फैलाएं। हाथों की स्थिति पहले की तरह ही रखते हुए पुन: इस क्रिया को करें। इस तरह इस आसन को दोनों पैरों से बदल-बदल कर करें और दोनों पैरों से इस क्रिया को 2-2 बार करें।
इस आसन के नियमित अभ्यास से नाभि के निचले हिस्से की हड्डिया लचीली होती है। यह साइटिका का दर्द या नर्वस सिस्टम का दर्द हमेशा के लिए समाप्त कर देता है। यह आसन हाथ-पेरो के स्नायु को भी शक्तिशाली बनाता है ! इसके अभ्यास से कमर पतली होती है और मांसपेशिया मजबूत होती है। इस आसन के नियमित अभ्यास से स्त्रियों के सभी रोग जैसे मासिक धर्म सम्बन्धी व् रक्त स्त्राव जाते है !
विपरीतकरणी आसन या विपरीतकरणी मुद्रा (Viparita Karani asana mudra benefits) –
पीठ के बल लेटें। शरीर के साथ बाजू सीधे रहेंगे। पूरक करते हुए घुटनों को मोड़ें और टांगों और नितम्बों को ऊंचा उठायें। हाथों को कूल्हों के नीचे ले आयें जिससे नितम्बों को सहारा मिले। कोहनियां फर्श पर रहेंगी। टांगों को ऊपर की ओर सीधा उठायें।
पैरों, टांगों और कूल्हों की मांसपेशियों को विश्राम दें। > सामान्य श्वास लेते हुए इस स्थिति में जितनी देर तक सुविधा हो, रहें। रेचक करते हुए घुटनों को माथे की ओर मोड़ें, धीरे-धीरे नितम्बों व टांगों को नीचे लायें और वापस प्रारंभिक स्थिति में आ जायें।
यह पूरे शरीर को अनुप्राणित करता है और ग्रन्थियों की सक्रियता को विनियमित करता है जिससे तनाव और उदासीनता कम हो जाती है। लसीका संबंधी निष्क्रिय और विषैले पदार्थ की वापसी बढ़ जाती है जो सूजी हुई टांगों और रगों (नाडिय़ों) के रोगों में लाभदायक होता है। यह पेट और किडनी के अंगों को आराम देता है और इन क्षेत्रों में रक्तापूर्ति में सुधार लाता है।
यह निम्न रक्तचाप के लिए लाभदायक है पर उच्च रक्त चाप वालों को चिकित्सक की सलाह से ही करना चाहिए ! पैरों में थकान एवं दर्द की स्थिति में इस योग से लाभ होता है ! अनिद्रा सम्बनधी रोग में इस आसन का अभ्यास लाभकारी होता है ! गर्दन और कंधों में मौजूद तनाव को दूर करने के लिए भी यह व्यायाम बहुत ही लाभकारी होता है ! पीठ दर्द में इस आसन से काफी राहत मिलती है.
जहां तक आप पंजों को सिर को करीब ला सकते हैं लाएं और बस वहीं रुक जाएं।
जमीन पर पेट के बल लेट जाएं और अपने हाथों को कमर के पास रखते हुए उनके बल पर कमर से ऊपर का हिस्सा उठाएं। गर्दन पीछे झुकाएं और जितना हो सकता है अपनी कमर को जमीन से ऊपर उठा लें।
आप अपने हाथों को थोड़ा और पीछे खींचेंगे तो और कमर मुड़ जाएगी। इसके बाद घुटनों को मोड़ लें और पंजों को आगे की ओर झुकाकर सिर के पास ले आएं। अब पैरों और हाथों से थोड़ी और ताकत लगाएं और फिर इसी पोजीशन में जितनी देर रह सकते हैं रहें। एकदम से वापस न लौटें। पहले सिर और पैर के बीच थोड़ी दूरी बनाएं, यहां चंद सेकेंड रुकें।
इसके बाद पैर जमीन पर वापस ले जाएं, फिर चंद सेकेंड रुकें और इसके बाद कमर से ऊपर के हिस्से को धीरे धीरे जमीन पर ले आएं। कुछ सेकेंड ही ऐसे ही लेटे रहें अथवा मकरासन में लेट जाएं। ध्यान रहे, जब आपकी अपर बॉडी ऊपर की ओर जाएगी तो आप सांस भरेंगे। आराम से धीरे धीरे सांस लेते रहें।
जांघों, एडियों, जोडों, सीने, पेट, गले और पूरे शरीर में समान रूप से दबाव पडता है, जिससे रक्त का संचार अच्छे से होता है। कपोत्ताससन का प्रत्येक दिन अभ्यास करने से पीठ दर्द से राहत मिलती है। इस आसन को करने से अन्य आसन की मुद्राओं को सुधारा जा सकता है। इस आसन से सीना, गले और पेट के अंग उत्तेजित होते हैं।
गर्दन में लगी चोट के दर्द को इस आसन से कम किया जा सकता है। निम्न ब्लड प्रेशर और हाई ब्लड प्रेशर दोनों में राहत मिलती है। इसमें सीना पूरा फैलता है इसलिए श्वसन क्रिया अच्छे से होती है।
महामुद्रा (Maha Mudra kya hai) –
कुण्डलिनी जागरण में इस मुद्रा का विशेष योगदान है।
बाये पैर की एड़ी से सिवनी (गुदा व उपस्थ के बीच का स्थान )दबाकर दाहिने पैर को फैलाकर दोनों हाथो से पैर की उंगलियों को दृढ़ता से पकड़कर कुम्भक करके जालन्धर बन्ध लगाकर वायु को उपर की तरफ खींचे।
चन्द्र भाग से अर्थात बाये पैर से करने के बाद दायें पैर से भी अभ्यास करें। दोनों और से बराबर अभ्यास करना चाहिए ! गुह्य प्रदेश को अत्यन्त दृढ़ता पूर्वक बायीं एड़ी से दबाकर दाहिने पैर को फैलाकर दोनों हाथो से उसकी समस्त उंगलियों को पकड़ने के पश्चात जालन्धर बन्ध लगाकर दोनों भौहों के मध्यभाग का अवलोकन करने को ही विद्वान लोग महामुद्रा कहते है।
हठयोग क अनुसार, योनिद्वार को वाम पैर की एड़ी से दबाकर दायें पैर को फैलाकर ठुड्डी को कंठ में समाहित कर (जालन्धर बन्ध कर) कुम्भक प्राणायाम द्वारा वायु को अवरुद्ध करने के पश्चात उस पूरित वायु को धीरे धीरे रेचन करें, कभी भी तेजी से रेचन नहीं करना चाहिए। इसे ही महामुद्रा कहते है। जिस प्रकार दण्ड से ताड़ित करने से सर्प दण्ड के समान ही सीधा हो जाता है उसी प्रकार कुण्डलिनी भी सरल भाव में आ जाती है।
इस मुद्रा के अभ्यास से क्षय, कुष्ठ रोग, कोष्ठ बद्धता, वायुगोला, कास, गुदावर्त्त, प्लीहा, अजीर्ण, ज्वर के साथ साथ समस्त रोगों का विनाश हो जाता है।
महामुद्रा के साधक के लिए कुछ भी भोजन पथ्य अथवा अपथ्य नहीं रह जाता है। नीरस वस्तु भी रसयुक्त हो जाती है। भयानक विष को भी सहज पचाता है जैसे की वह अमृत हो।
अर्थात इस प्रकार कहा जा सकता है की महामुद्रा के अभ्यास का शारीरिक स्तर पर भी बहुत से रोग दूर होते है जैसे साधक को टीबी नहीं होती अगर है तो ठीक हो जाती है। गुदा सम्बन्धी रोग दूर हो जाते है।
धातु प्रबल हो जाता है तथा मूत्र रोग भी समाप्त हो जाते है। किसी भी प्रकार की रक्त की अशुद्धि हो तो वह ठीक हो जाती है, पेट में गैस बननी बंद हो जाती है।
प्लीहा अर्थात तिल्ली का आकर नहीं बढ़ता जिससे तिल्ली संबंधी रोग जैसे ठंड से बुखार आना, हल्का बुखार रहना, श्वास का फूलना आदि ठीक हो जाता है (Yoga Exercises For Health and Happiness) !
कटिपिंडमर्दनासन (kati pind mardasan) –
इसे करने से पथरी टुकड़े–टुकड़े होकर निकल जाती है।
जिस तरह चित्र में दिखाया गया है उस तरह बारी बारी दोनों तरफ से करना चाहिए !
इससे रीढ़, कमर, पीठ आदि की सभी समस्याओं में जरूर लाभ मिलता है !
पेट कम होता और चर्बी छटती है !
मूत्र रोगों में भी काफी फायदा है ! वात का कुपित होना भी रुकता है !
कुल मिलाकर बेहद आसान पर बहुउपयोगी आसन है !
त्रिकोणासन (Trikonasana steps benefits precaution) –
दोनों पैरों के बीच 2 से 3 फुट का फासला छोड़कर सीधे खड़े हो जाये। दायें पैर को दायी ओर मोड़कर रखे। अपने कंधो की उचाई तक दोनों हाथों को बगल में फैलाए। अब श्वास ले और दायी ओर झुके।
झुकते समय नजर सामने रखे। दायें हाथ से दायें पैर को छूने की कोशिश करे। बायाँ हाथ सीधा आकाश की और रखे और नजर बायें हाथ की उंगलियों की और रखे। अब वापस सीधी अवस्था में लौटकर दूसरी तरफ भी हाथ बदलकर यह अभ्यास करे।
ऐसे कम से कम 20 बार करे। शरीर उठाते समय श्वास अन्दर ले औए झुकते समय श्वास छोड़े।
जांघों, घुटनों और टखनों को मजबूत बनाता है ! रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन में सुधार लाकर गर्दन दर्द से बचाता है ! भूख, पाचन और रक्त परिसंचरण में सुधार कर, अम्लता, पेट फूलना आदि रोगों से राहत दिलाता है !
प्रजनन अंगों में सुधार कर बांझपन को दूर करता है ! यह आसन करने से गर्दन, पीठ, कमर और पैर के स्नायु मजबूत होते हैं। शरीर का संतुलन ठीक होता हैं। पाचन प्रणाली ठीक होती हैं। एसिडिटी से छुटकारा मिलता हैं। चिंता, तनाव, कमर और पीठ का दर्द गायब हो जाता हैं।
पेट पर जमी अतिरिक्त चर्बी और मोटापा दूर करने में सहायक आसन माना जाता हैं। शरीर को सुडौल, मजबूत और लचीला बनाता हैं।
गर्भासन (Garbhasana) –
समतल स्थान पर कंबल बिछाकर बैठ जाएं। पद्मासन में आ जाएं। इसके बाद अपने हाथों को जांघ व पिंडलियों के बीच से फसां कर कोहनियों तक बाहर निकालें और दोनों कोहनियों को मोड़ते हुए दोनों घुटनों को ऊपर की ओर उठाएं तथा शरीर को संतुलित करते हुए दोनों हाथों से अपने कान को पकड़े।
आसन के इस स्थिति में आने पर शरीर का पूरा भार नितम्ब पर रहता है। इस स्थिति में 1 से 5 मिनट तक रहें और पुन: सामान्य स्थिति में आ जाएं।
शरीर को हल्का और रक्त संचार को बढ़ाने में मददगार है यह आसन। उत्तेजित, क्रोधित और् असंतुष्ट मन को शांत करने में यह आसन सहायक है। यह शरीर को संतुलित करता है।
यह स्नायु-दौर्बल्यता को भी दूर करता है। खुद पर काबू न पा सकने वाले स्वभाव के व्यक्तियों को इस आसन का अभ्यास दिन में जितनी बार भी सम्भव हो सके, करना चाहिये।
पाचन-तंत्र को उत्तेजित करता है तथा भूख को बढ़ाता है। ऐसा माना जाता है कि गर्भाशय संबंधित समस्या इस आसन के जरिए दूर किए जा सकते हैं। इस आसन से रीढ़ की हड्डी मजबूत व लचीली होती है।
कर्णपीड़ासन (Karnapeedasana or Karnapidasana) –
कर्ण पीड़ासन पीठ, कमर, गर्दन, मेरुदण्ड तथा कानों को सबल बनाता है। जिगर, स्पलीन तथा पेट के अन्य रोगों में भी लाभप्रद है।
मधुमेह तथा हार्निया के रोगों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
शरीर के सभी जोड़ों को सबल बनाता है। निम्न रक्तचाप के लिए लाभप्रद है पर उच्च रक्तचाप वाले चिकित्सक की सलाह पर करे ! पैरों को झटके से न ले जाकर धीरे-धीरे ले जाना चाहिए।
वापस भी धीरे-धीरे आना चाहिए अन्यथा हानि होने की सम्भावना है।
इसे करने के लिए पीठ के बल धरती पर लेट जाइए। अपने दोनों पैरों को उठायें और पीछेे की ओर इतना ले जाएँ की दोनों घुटने कानों को छुएं। इस स्थिति में स्थिर रहें।
इस आसन के निरंतर अभ्यास से मस्तिष्क, गला, नाक, कान, इत्यादि शारीरिक अंगो को लाभ होता है। आँखों की रौशनी बढ़ती है। मोटापा, श्वास से सम्बंधित रोग जैसे दमा, कान के रोग, बवासीर, कब्ज़, रक्त के दोष, इत्यादि रोग दूर होते हैं !
दंडासन (Dandasana Yoga benefits and steps in hindi) –
दंडासन में सबसे पहले सीधा तन कर बैठना चाहिए और दोनों पैरों को चहरे के समानान्तर एक दूसरे से सटाकर सीधा रखना चाहिए ! हिप्स को ज़मीन की दिशा में थोड़ा दबाकर रखना चाहिए और सिर को सीधा रखना चाहिए ! अपने पैरो की उंगलियों को अंदर की ओर मोड़ें और तलवों ये बाहर की ओर धक्का दें !
शरीर के सभी अंग मजबूत होते हैं। कंधे और छाती को चौड़ा बनाता है ! शरीर में जागरूकता पैदा करता है ! रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं। पीठ की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है !
पाचन अंगों की कार्यक्षमता में सुधार करता है ! शरीर में लगी हुई चोट को ठीक करने में मदद करता है ! मस्तिष्क की कोशिकाओं को शांत करने में मदद करता है !
इस आसन के नियमित अभ्यास से हाथ पैर की मांसपेशिया मजबूत होती हैं।
प्रजनन अंगों से संबंधित जटिलताओं को राहत देने में भी काफी सहायता मिलती है !
पर्वतासन (Parwtasana, Parvtasana) –
यह आसन मधुमेह के रोगियों के लिए रामबाण है इस लिए इसे मधुमेह के रोगियों को जरूर करना चाहिए !
इस आसन को करने के लिए समतल जमीन पर दरी या चटाई बिछाकर बैठ जाए इसके श्वांस को अन्दर भरकर मूलबन्ध करके अपने दोनों हाथों को ऊपर की तरफ नमस्ते की मुद्रा में सीधे खड़े कर लें और सांस को जितनी देर तक रोक सकते है रोके फिर सांस को धीरे-धीरे छोड़ते हुए अपने दोनों हाथों को नीचे की ओर लाते हुए अपने घुटनों पर रख लें और अपने शरीर को वापिस पहले वाली अवस्था में ले आए।
इस आसन के जरिए चंचल मन को शांत किया जा सकता हैं। यदि आपका काम में मन नहीं लगता या फिर आप किसी चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते तो आपको पर्वतासन करना चाहिए।
कमर के आसपास की चर्बी को दूर करने के लिए पर्वतासन करना चाहिए, इससे आप जल्दी से वजन कम कर सकते हैं। फेंफड़ों या फिर सांस संबंधी बीमारियों से निजात पाने के लिए पर्वतासन से बढि़या उपाय कोई नहीं।
पेट में होने वाले कीड़ों, गठिया के रोगों से बचाव के लिए भी पर्वतासन करना चाहिए।
गर्भाशय संबंधी बीमारियों को दूर करने और गर्भावस्था के बाद त्वचा के लचीलेपन को खत्म करने के लिए पर्वतासन करना चाहिए। कंधों में जकड़न, कंधों में दर्द इत्यादि समस्या से छुटाकरा पाना हैं तो पर्वतासन करना चाहिए।
ताड़ासन- ताड़ासन खड़े होकर भी किया जा सकता है और लेटकर भी ! खड़े होकर करना हो तो पैर आपस में सटाकर एकदम सीधे खड़े हो जाएँ और दोनों हाथ उपर उठाकर, भरपूर सांस फेफड़ों के अंदर भरते हुए शरीर को उपर की ओर खीचते हुए पंजो के बल खड़े हो जाएँ ! जब तक सांस अंदर रोक सकतें हों तब तक शरीर को ऊपर खीचतें रहें ! फिर जब सांस बाहर निकालें तो, हाथ नीचे करते हुए शरीर को वापस आराम की मुद्रा में लेते आयें ! यह हुआ एक बार ताड़ासन ! इस तरह 5 से 10 बार रोज करें !
ठीक इसी तरह लेटकर भी किया जा सकता है ! किसी समतल जमीन पर चद्दर या कम्बल बिछाकर, पीठ के बल लेटकर, बाहों को कान के बगल में सीधे रखकर सांस अंदर भरकर खीचे ! नाभि के ऊपर का हिस्सा हाथ की तरफ खीचें तो नाभि के नीचे का हिस्सा पंजे की ओर खीचें !
चाहे लेटकर कर ताड़ासन करें या खड़े होकर, लेकिन दो बातों को हमेशा याद रखें; पहली बात यह है कि शरीर को ना बहुत ज्यादा जोर से खीचें और ना ही बहुत हल्के से खीचें, मतलब शरीर को मध्यम ताकत से खीचें ! और दूसरी बात यह है कि ताड़ासन करते समय पैर, पीठ, गर्दन व हाथ एकदम एक सीध में होने चाहिए, नहीं तो खिचाव आ सकता है !
आज के समय में अधिकाँश लोगों को ताड़ासन के बारे में सिर्फ यही पता होता है कि इसको करने से बच्चों के शरीर की हाइट (लम्बाई) बढ़ती है या ज्यादा से ज्यादा जॉइंट्स (जैसे घुटने, कमर, गर्दन आदि) की समस्या में लाभ मिलता है !
जबकि वास्तविकता इससे कई गुना ज्यादा है क्योंकि ताड़ासन वास्तव में शरीर में एक ऐसा सुधार तुरंत कर सकता है जिससे पूरी पाचन प्रकिया पर बहुत ही सकारात्मक असर पड़ता है !
भगवान शिव की प्रेरणा से पतंजलि ऋषि ने जिन अलग अलग आसनों का आविष्कार किया था, उन सभी आसनों की अपनी अलग अलग यू. एस. पी. (अनोखी विशेषता) है और इसी क्रम में ताड़ासन का विशेष गुण है कि यह शीघ्रता से व बलपूर्वक, कुपित अपान वायु का नियमन करता है !
अपान वायु क्या होती है और ये कहाँ रहती है, आईये विस्तार से जानतें हैं इसके बारे में-
नाभि के नीचे के जितने अंग हैं, उनकी कार्य प्रणाली को अपानवायु ही नियंत्रित करती है ! जो कुछ भी हम खाते पीतें हैं, उसे पचाना और उसके बाद जो व्यर्थ बचता है, उसे मल, मूत्र के रूप में बाहर निकलना, यह सभी कार्य अपानवायु से ही संचालित होते हैं !
वास्तव में अपान वायु ही हमारी पूरी पाचन क्रिया को कंट्रोल करती है, जैसे गालब्लेडर, लिवर, छोटी आंत, बड़ी आंत, ये सभी इसी क्षेत्र में आते हैं !
हर मानव के शरीर में प्राण वायु के जो पांच मुख्य प्रकार होतें हैं उनमें से एक अपान वायु भी होती है, और यह अपान वायु कुपित क्यों होती हैं, इसके अनेक कारण हो सकतें हैं जिनके बारे में “स्वयं बनें गोपाल” समूह अक्सर अपने लेखों में प्रकाशित करता रहता है इसलिए विस्तार भय से पुनः उन कारणों को यहाँ प्रकाशित नहीं किया जा रहा है, किन्तु उन कारणों को जानने के लिए आप इस लेख के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकतें हैं- मांसपेशी के खिचाव गठिया नस चढ़ना साल पड़ना तनाव के दर्द का आसान घरेलू उपाय !
सारांश रूप में इतना जानें कि अनियमित दिनचर्या या गलत खान पान की वजह से ही मुख्यतः अपान वायु कुपित हो जाती है !
अब जरा सोचिये कि शरीर के स्वस्थ रहने के लिए अपान वायु का सुचारू रूप से कार्य करना कितना ज्यादा जरूरी है क्योंकि इसके गड़बड़ हो जाने पर तो शरीर में सिर्फ पाचन तंत्र की गड़बड़ी ही नहीं बल्कि कई अन्य भयंकर शारीरिक रोग भी पैदा हो सकतें है !
निष्कर्ष यही है कि जब तक अपान वायु (अर्थात पाचन तंत्र) स्वस्थ है तब तक शरीर को आवश्यक पोषण मिलता रहेगा जिससे शरीर स्वस्थ बना रहेगा लेकिन जब अपान वायु थोड़ा या ज्यादा कुपित हो जाती है तो पाचन क्रिया भी उसी अनुसार थोडा या ज्यादा कमजोर हो जाती है, जिसकी वजह से उचित पोषण (भले ही व्यक्ति कितना भी काजू, किशमिश, बादाम, दूध, घी खाए पीये) के अभाव में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी थोड़ा या ज्यादा कमजोर होने लगती है !
इसलिए भी यह कहा जाता है कि शरीर की लगभग सभी बिमारियों (चाहे वह कैंसर हो या जुकाम हो या अन्य कोई बिमारी) की शुरुआत, कहीं ना कहीं पेट की खराबी (अर्थात अपान वायु की खराबी) की वजह से ही उत्पन्न होती है !
अतः ताड़ासन अपान वायु का बलपूर्वक नियमन करके पूरी पाचन क्रिया को शीघ्र संतुलित करता है !
ताड़ासन से पेट में गैस बनने की बिमारी में भी बहुत लाभ मिलता है ! पाचन शक्ति मजबूत हो जाने से खाया पिया सब अच्छे से पच जाता है जिससे खूब खून बनता है (जिससे हिमोग्लोबिन ठीक रहता है), खट्टी डकार, एसिडिटी, कब्ज आदि की समस्या में लाभ मिलता है ! पाइल्स रोगियों को ताडासन करने से लाभ मिलता है !
अगर किसी को भूख ज्यादा लग रही हो तो ताड़ासन के प्रभाव से उसकी अनावश्यक भूख घटकर सामान्य हो जाती है और यदि किसी को भूख कम लग रही हो तो उसकी भूख भी बढ़कर एक स्वस्थ आदमी जितनी हो जाती है !
अपान वायु के नियमन हो जाने से सरवाईकल स्पान्डयलोसिस (गर्दन दर्द), गठिया (घुटने या चाहे किसी भी अन्य अंग का हो), कमर व पीठ दर्द, स्याटिका आदि में काफी लाभ मिलता है !
वास्तव में अपान वायु के कुपित होने पर ही लकवा व बुढ़ापे में हाथ पैर के कापने की बीमारी होती है, जो कि ताड़ासन करने वालों को कभी भी नहीं हो सकती (जब तक कि कोई खाने पीने या दिनचर्या में विशेष बदपरहेजी ना करें) !
योग शास्त्र अनुसार इस योग को करने से, ना केवल पेट बल्कि छाती के भी सभी प्रकार के रोग नष्ट होते हैं क्योंकि इसको करने हृदय को पर्याप्त बल मिलता है जिसकी वजह से हृदय की अनियमित धडकन में भी लाभ मिलता है ! ताड़ासन करते समय पूरे शरीर की हड्डियों पर जोर पड़ने की वजह से पूरे शरीर की हड्डियाँ व उनके जॉइंट्स मजबूत व लचीले बनें रहतें हैं ! इस योग को करने से स्लिप डिस्क होने की संभावना नही रहती है ! इस योग से शरीर में संतुलन बनता है और वीर्यशक्ति में भी वृद्धि होती है।
ताड़ासन योग को करने से शरीर का आलस्य व सुस्ती चली जाती है ! इसके नियमित अभ्यास करते रहने से पंजे मजबूत होते हैं और पैरों में भी मजबूती आती है ! ताडासन करने से कंधों के जोड़ मजबूत होते हैं और सांस लेने-छोडऩे की प्रक्रिया सुधरती है !
शरीर में बुढ़ापे आने की सबसे पहली निशानियों में से एक होता है, कंधे व गर्दन का धीरे धीरे आगे की ओर झुकते जाना व इनका जाम भी होते जाना (मतलब कंधे व गर्दन का आसानी से दायें बाएं ना घूम पाना) ! ताड़ासन नियमित करने वाले इस निशानी से लम्बे समय तक दूरी बनाये रहतें हैं क्योंकि उनकी गर्दन व कंधे उसी तरह सीधे व लचीले बनें रहतें हैं जैसे किसी नौजवान के होतें हैं !
इसलिए ताड़ासन का 5 से 10 बार अभ्यास सभी को करना चाहिए ! ताड़ासन बहुत ही सुरक्षित आसन है और इसे बच्चे से लेकर वृद्ध स्त्री/पुरुष सभी आराम से कर सकतें हैं !
बुढ़ापे में तो इसका अभ्यास जरूर करना चाहिए ताकि जॉइंट्स की समस्या ना होने पाए (लेकिन बूढ़े स्त्री/पुरुषों को इसे धीरे – धीरे करना चाहिए ताकि जॉइंट्स व हड्डियों पर ज्यादा जोर ना पड़े) ! बच्चों को ताड़ासन नियम से करने से उनकी शरीर की हाइट तेजी से बढती है ! किसी बच्चे के माँ बाप की हाइट भले ही कम हो लेकिन ताड़ासन का रोज कई वर्षों तक अभ्यास करने वाले बच्चे की हाइट निश्चित ही काफी लम्बी होती है (शरीर की लम्बाई बढ़ाने के बारे में विस्तार से जानने के लिए कृपया इस लिंक को क्लिक करें- बच्चों के लम्बाई तेजी से बढ़ाने के लिए जबरदस्त यौगिक व आयुर्वेदिक नुस्खे ) !
ताड़ासन करते समय अन्य सावधानियां भी वही हैं जो अन्य सभी योगासन व प्राणायामों में होतीं हैं, जैसे किसी लिक्विड भोजन (चाय, कॉफ़ी, दूध, पानी आदि) के एक से डेढ़ घंटे बाद और सॉलिड भोजन (लंच, डिनर आदि) के 3 से 4 घंटे बाद इसे करना चाहिए ! 6 महीने के अंदर कोई ऑपरेशन हुआ हो अथवा अपेंडिक्स या हर्निया की शिकायत हो या गर्भवती हों तो नहीं करना चाहिए !
पद्मासन (padmasana) –
पैरों को सामने की ओर फैलाकर कम्बल पर बैठ जाएँ, रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। दाहिने घुटने को मोड़े और बायीं जांघ पर रख दें, ध्यान रहे की एड़ी उदर के पास हो और पाँव का तलवा ऊपर की ओर हो।
अब यही प्रक्रिया दूसरे पैर के साथ दोहराएँ। दोनों पैरों को मोड़ें, पाँव विपरीत जांघो पर, हाथों को मुद्रा स्थिति में घुटनो पर रखें। सिर सीधा व् रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। इसी स्थिति में बने रहकर गहरी साँस लेते रहें !
पद्मासन लगाने से मूलाधार चक्र जागृत होता है व ध्यान की एकाग्रता बहुत बढ़ जाती है ! यह आसन मन को शांत कर, भटकने से रोकता है ! इस आसन के नियमित अभ्यास से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। इसे करने से मेरुदंड सीधा, लचीला और मजबूत बनता है !
इसके अभ्यास से वीर्य वृद्धि होती है। पद्मासन के अभ्यास से बुद्धि बढ़ती है एवं चित्त में स्थिरता आती है। जो लोग तनाव से निजाद पाना चाहते है उन्हें इस आसान को करने से लाभ मिलता है !
जो व्यक्ति अपने पेट और कमर की चर्बी को कम करना चाहते है, उन्हें इसका अभ्यास नियमित करना चाहिए ! पद्मासन योगाभ्यास से स्मरण शक्ति एवं विचार शक्ति बढ़ती है।
गरुड़ासन (Garudasana) –
जननेन्द्रियों सम्बंधित रोगों को दूर करने के लिए यह आसन बेजोड़ है !
दोनों टांगों को इकट्ठा करके खड़े हों। संतुलन बनाये रखने के लिए सामने किसी निश्चित बिन्दु पर ध्यान लगायें। बाजुओं को उठायें, कोहनियों को मोड़ें और दायें बाजू को बायें बाजू के नीचे और घेरे में लें। हथेलियों को इकट्ठी ले आयें।
अपना वजन बायीं टांग पर ले आयें। बायीं टांग को थोड़ा सा मोड़ें और दायीं टांग को बायीं टांग के सामने की ओर से घेरें। शरीर के ऊपरी भाग (धड़) को आगे तब तक झुकायें जब तक कि बायीं कोहनी दायें घुटने को न छू ले। पीठ यथा संभव सीधी रहे।
सामान्य श्वास लेते हुए इस स्थिति में कुछ समय तक रहें। प्रारंभिक स्थिति में लौट आयें और इस व्यायाम को दूसरी ओर दोहरायें। जब इस आसन का अभ्यास हो जाये तब इसको आंखें बन्द करके और सन्तुलन पर ध्यान केन्द्रित करके भी किया जा सकता है।
यह आसन एकाग्रचित्तता की योग्यता को बढ़ाता है, टांग और पेट में स्थिरता सुधारता है और संतुलन संवर्धित करता है। यह मानसिक व्यवस्था स्थापित करता है। यह नर जननांगों पर लाभकारी प्रभाव डालता है और अण्डकोष की समस्याओं में विशेष फायदा करता है।
अपने घुटनों और हाथों के बल झुकें और शरीर को एक मेज़ की तरह बना लें, अपनी पीठ से मेज़ का ऊपरी हिस्सा बनाएं और हाथ ओर पैर से मेज़ के चारों पैर बनाएं !
अपने हाथ कन्धों के ठीक नीचे, हथेलियां ज़मीन से चिपकी हुई रखें और घुटनो मेँ पुट्ठों जितना अंतर रखें ! गर्दन सीधी नज़रें सामने रखें ! सास लेते हुए अपनी ठोड़ी को ऊपर कि ओर सर को पीछे की ऒर ले जाएँ, अपनी नाभि को जमीन की ऒर दबाएं तो आप थोड़ा खिंचाव महसूस करेंगे !
इस स्थिति को बनाएँ रखें ओर लंबी गहरी साँसें लेते व छोड़ते रहें !
अब इसकी विपरीत स्थिति करेंगे, साँस छोड़ते हुए ठोड़ी को छाती से लगाएं ओर पीठ को धनुष आकार मेँ जितना उपर हो सके उतना उठाएं, पुट्ठों को ढीला छोड़ दें !
इस स्थिति को कुछ समय तक बनाएँ रखें और फिर पहले कि तरह मेज़ नुमा स्थिति मेँ आ जाएँ ! इस प्रक्रिया को 5 बार दोहराएं ! इससे रीढ़ की हड्डी लचीला बनती है ! कंधों और कलाई कि क्षमता बढ़ाता है, पाचन प्रक्रिया काफी सुधारता है !
पेट को सुडौल बनता है, रक्त प्रवाह बढ़ाता है, मन को शांत करता है ! शरीर की फूर्ती बढती है, आँखों की रौशनी सुधरती है ! गर्दन मजबूत बनती है ! हृदय मजबूत बनता है !
कूर्मासन (kurmasana) –
कूर्मासन डायबिटीज से मुक्ति दिलाता है क्योंकि इससे पेन्क्रियाज को सक्रिय करने में मदद मिलती है। यह आसन उदर के रोगों में भी लाभदयक है।
अपने पैर फैलाकर बैठें। अपनी हथेलियों को अपने हिप्स के समांनातर ज़मीन पर रखें। अपनी जांघ को हल्के से ज़मीन पर दबाइए, अपने पांव को मोड़िए और अपनी छाती को आगे की तरफ उठाइए।
अब अपने घुटनों को जितना हो एक-दूसरे से दूर ले जाएं। अपने पांवों को कम्बल के किनारे ले जाइए। अब घुटने मोड़ें और फिर से पालथी की स्थिति में बैठ जाएं। पैरों को ढीला रखते हुए आराम की मुद्रा में रहें। इसके बाद अपने हाथों और सीने को आगे की तरफ लें जाएं। अपने हाथों को अपने पैरों के बीच रखें।
अपनी भुजाओं को बाहर की तरफ ऐसे फैलाएं कि आपके कंधे आपके घुटनों के नीचे रहें। फिर अपने पांव के नीचले भाग को अंदर की तरफ खींचते हुए अपने पैरों को सीधा रखें। इस बात का ध्यान रखें कि आपके जांघ का भीतरी हिस्सा आपकी पसलियों के पास पहुंच जाए। गहरी सांस लेते हुए अपनी बाहों को फैलाए रखें। इसी स्थिति में कुछ देर तक रुकें और सांस लें। धीरे धीरे पहले की मुद्रा में आ जाएं।
कुर्मासन करने से हमारा मन और इन्द्रियां एकाग्र होती है। इससे हमारे मन को शक्ति मिलती है। इसको करने से हमारी रीढ़ की हड्डियां मजबूत बनती है, साथ ही हमारे घुटनों का दर्द भी दूर होता है। जब हम कुर्मासन करते हैं तो हमारी कोहनियों का दबाव पेट पर पड़ता है जिसके कारण हमें पेट की बीमारियों से राहत मिलती है। इसको करने से हमारी पाचन शक्ति बढ़ती है और साथ में हमें कब्ज से राहत मिलती है।
डायबिटीज को कम करने में यह बहुत ही लाभकारी होता है। कुर्मासन करने से हमारे फेफड़ो, ह्रदय और गुर्दों के विकारों को दूर करने में हमारी मदद करता है और साथ में यह उन्हें मजबूत बनाने में हमारी मदद करता है। इसको करने से हमारे शरीर का सारा सिस्टम सही ढंग से काम करता है।जिन लोगों के हाथ पैर कमज़ोर हैं व सही से काम नहीं करते उन लोगों को इस आसन को करना चाहिए। क्योंकि इसको करने से उन्हें ताकत मिलती है।
कुर्मासन एक ऐसा आसन है जिसे अगर हम हर रोज करें, तो हर्निया रोग एक दम से ठीक हो जाएगा। कुर्मासन करके हम अपना मोटापा कम कर सकते हैं। कुर्मासन को करने से पीठ मजबूत रहती है और हमारा शरीर फुर्तीला हो जाता है। इसको करने से हमारा मन शांत रहता है।
अगर किसी को मधुमेंह का रोग हो, तो उसे कुर्मासन जरूर करना चाहिए।
सबसे पहले ज़मीन पर बैठ कर पदमासन की मुद्रा बना लें ! इसके बाद अपने दोनों हाथों को दोनों घुटनो के नीचे टांगों व घुटनों के मोड़ के बीच से निकाल कर ज़मीन पर रख दें ! हाथों की हथेलियां और पंजें एक दूसरे से विपरीत दिशा में रख दें !
अब सांस को भरकर रोक लें और हाथों पर शरीर का सारा वजन डालकर शरीर को ऊपर उठा दें ! अपनी क्षमता के अनुसार जितनी देर तक शरीर को ज़मीन से उठाकर हाथों के सहारे रख सकते है, रखने का प्रयास करें ! इसके बाद सांस को धीरे धीरे बाहर निकालते हुए शरीर को नीचे उतार दें और पदमासन की मुद्रा से हट जाएं ! शरीर को कुछ समय तक आराम देकर इस आसन का अभ्यास फिर से शुरू कर दें !
कुण्डलिनी महा शक्ति के जागरण के लिए यह आसन बेजोड़ है क्योंकि इस आसन से सीधे मूलाधार चक्र स्थित कुण्डलिनी शक्ति पर चोट पहुचती है !
इस आसन के द्वारा रक्त शोधन करके आलस्य को ख़त्म किया जा सकता है ! इस आसन से पेट की चर्बी कम करने में मदद मिलती है| जठराग्नि बढ़ जाती है जो भूख बढ़ाने में सहायक होती है !
इस आसन के दौरान शरीर का सारा भार उंगलियों और हथेलियों पर पड़ने से इन्हें बहुत शक्ति मिलती है ! जांघ और पिंडलियों को भी शक्तिशाली बनाया जा सकता है ! इस आसन का नियमित अभ्यास करने से शरीर को स्फूर्ति व बल प्रदान किया जा सकता है ! कुक्कुटासन से बाँहों, कन्धों और पंजों के साथ पीठ की मांसपेशियों में मजबूती और लचीलापन आ जाता है !
इस आसन द्वारा वक्षस्थल तथा भुजादंड की मांसपेशियों को सदृढ़ बनाया जा सकता है ! कुक्कुटासन भगंदर व बवासीर जैसे रोगों का नाश करने में सहायक होता है ! कुक्कुटासन से आमाशय के विकार दूर किये जा सकते है और साथ ही रीढ़ की हड्डी को भी मजबूत किया जा सकता है ! कुक्कुटासन सीने का विकास करके फेफड़ों को ज्यादा शक्ति प्रदान की जा सकती है !
शलभासन (Shalabhasana Ke Labh In Hindi) –
सबसे पहले तो समतल जगह पर दरी या चटाई बिछाकर पेट के बल लेट जाएं। उसके बाद दोनों हाथों को जांघों के नीचे रखें। इसके पैरों को खींचिए और हाथों को तानिए। पेट और पैरों को बिना मोड़े हुए धीरे-धीरे ऊपर उठाएं।
ध्यान रहे अब अपनी गर्दन को उपर की ओर उठा लें और ठोडी को जमीन से लगा लें। इस स्थिति में कुछ देर रुकिए, फिर पूर्व स्थिति में वापस लौटिए। एक बात का ध्यान रखें कि आपको आराम से अपने पैरों को ऊपर उठाना है ना की झटके के साथ। फिर आराम से धीरे-धीरे पैरों को नीचे की और लाएं। इस आसन को आप 10 बार दोहरा सकते हो।
जो महिला गर्भवती है उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए। हर्निया व आंत के कष्ट से पीड़ित व्यक्ति को बिना सलाह के इस आसन को नहीं करना चाहिए।
शलभासन का अभ्यास करने से कमर लचीली बनती है और छाती चौड़ी होती है, तथा यह शरीर को संतुलन में सहायक है। इससे उदर व उससे संबंधित अंगों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इस आसन के करने से रक्त संचार की क्रिया सुचारू होती है।
यह आसन तनाव को कम करने में मदद करता है। शलभासन करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है और मानसिक निराशा दूर होती है। वजन को कम करने में मदद करता है साथ ही इससे मेटाबॉलिज्म नियंत्रित में रहता है।
डायबिटीज के रोगियों के लिए भी यह लाभप्रद है। इस आसन के करने से कमर और पीठ के स्नायु मजबूत होते हैं। इसके साथ ही इससे पैरों को मजबूती मिलती है। साथ ही यह आसन गर्भाशय संबंधी परेशानी को दूर करता है। इससे कलाई, जांघों, कंधे, पैर, पिंडली की मांसपेशियों और कूल्हों को भी मजबूती मिलती है।
सिंहासन (Singhasan) –
दांत, जीभ, जबड़ा और गले के रोगों से मुक्ति मिलती है। आवाज स्पष्ट बनती है और हकलाना दूर होता है। आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, गुर्दे आदि की सफाई होती है। आँख, कान, नाक, दांतों आदि को शक्ति मिलती है। भोजन और साँस की नली साफ होती है।
सिंहासन करने के लिए सबसे पहले अपने पैरों के पंजों को आपस में मिलाकर उस पर बैठ जाएं। फिर दाएं हाथ को दाएं घुटने पर तथा बाएं हाथ को बाएं घुटने पर रखें। लंबी सांस लें उसके बाद मुंह द्वारा सांस को छोड़ें।
सांस लेने और छोड़ने की क्रिया को दो से पांच बार करें। दोनों आंखों से इस तरह से देखें कि दोनों आंखों की नजर दोनों भौंहों के बीच में रहें। इसके बाद अपने मुंह को खोलें और जीभ को बाहर की तरफ शेर की गुर्राहट की आवाज के साथ निकालें। मेरुदंड को बिल्कुल सीधा रखना चाहिए। इस आसन को करने से रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है।
इस आसन को करने से आपकी स्मरण शक्ति ठीक होती है। सिंहासन से आपके सीने और चेहरे का तनाव दूर होता है। इस आसन से शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह सही ढंग से होता है। गले की अच्छी एक्सरसाइज होने के कारण गले में होने वाले किसी संक्रमण में आराम मिलता है और आवाज साफ होती है। अगर आपके घुटने में कोई चोट लगी है तो व्रजासन पर बैठने की जगह आप कुर्सी पर बैठकर भी यह आसन कर सकते हैं।
सिंहासन से अस्थमा में आराम मिलता है। इस आसन से चेहरे की मांसपेशियों में खिंचाव आता है जो कि एक अच्छा व्यायम है चेहरे के लिए। सिंहासन आंखों के लिए एक अच्छी एक्सरसाइज है इससे आंखे स्वस्थ रहती हैं। इससे आंखों की नसों की कमजोरी की समस्या दूर होती है।
रोज सुबह सही विधि से सिंहासन करने से नर्वस सिस्टम की कमजोरी दूर होती है। सिंहासन से चेहरे की झुर्रियां दूर होती हैं इसलिए इसे एंटी ऐजिंग आसन भी कहते हैं। इस आसन से आपको पीठ दर्द व गर्दन के दर्द में भी आराम मिलता है।
वृश्चिक आसन (vrischika asana) –
किसी दीवार के पास समतल भूमि पर नर्म आसन बिछाएं। फिर दोनों हाथों में कुछ अंतर रखते हुए उनकी हथेलियों को कोहनियों सहित भूमि पर टिका दें। दूसरी ओर दोनों घुटनों को भूमि पर टिकाकर किसी चौपाए की तरह अपनी आकृति बना लें। इस स्थित में आपका मुंह दीवार की ओर रहेगा।
अब सिर को हाथों के बीच टिकाकर पैरों को ऊपर ले जाकर सीधा करते हुए घुटनों से मोड़कर दीवार से टीका दें। अर्थात कोहनियों और हथेलियों के बल पर शीर्षासन करते हुए दोनों पैरों के पंजों को दीवार पर टिका दें।
अब सिर को उठाने का प्रयत्न कर दीवार को देखने का प्रयास करें। दूसरी ओर पैरों को दीवार के सहारे जहां तक संभव हो नीचे सिर की ओर खसकाते जाएं। 20 सेकंड तक इसी स्थिति में रहने के बाद पुन: सामान्य अवस्था में लौट आएं। वृश्चिकासन की पूर्ण स्थिति में पैरों के पंजे सिर पर टिक जाते हैं।
इस आसन को करने से सभी चक्र प्रभावित होते हैं जिससे शरीर को बहुत लाभ मिलता है !
कोहनी, रीढ़, कंधे, गर्दन, छाती और पेट में खिंचाव होता है। शीर्षासन और चक्रासन से जो लाभ मिलता है वही लाभ इस आसन को करने से भी मिलता है। यह आसन पेट संबंधित रोग को दूर कर भूख बढ़ाता है।
इसके अभ्यास से मूत्र संबंधित विकार भी दूर हो जाते हैं। खासकर यह चेहरे को सुंदरता प्रदान करता है। इसके नियमित अभ्यास से मुख की कांति बढ़ जाती है।
शुरुआत में इस आसन को करते समय दोनों हाथों की हथेलियों को भूमि पर स्थिर करें इसके बाद घुटनों को कोहनियां से ऊपर भुजाओं पर स्थिर कर दें !
श्वास अंदर भर के धीरे से आगे की झुकते हुए शरीर के भार को हथेलियों पर संभालते हुए पैरों को भूमि से ऊपर उठाएं। अभ्यास से ही इस स्थिति में हुआ जा सकता है। वापसी के लिए पहले पैरों के पंजों को भूमि पर टिकाएं !
इस आसन को जबरदस्ती करने का प्रयास न करें। जब भी यह आसन करें तो नरम-मुलायम गद्दे पर ही करें। जिन्हें हाथों में कोई गंभीर शिकायत हो तो वह यह आसन ना करें।
इसे नियमित करने से पेट की जमी चर्बी घटती हैं और शरीर सुडोल और सुन्दर बनता है ! पेट से जुड़े सभी रोगों में लाभकारी हैं !
बकासन से चेहरे की चमक बढ़ती है। हाथों की मांसपेशियों पर विशेष बल पड़ने के कारण उनमें मजबूती आती है और इससे शरीर के प्रत्येक अंगों में खिंचाव होने के कारण वे निरोगी बने रहते हैं।
इस आसन से भुजाएं तथा दिल बलवान होते हैं। इस आसन के अभ्यास से मन एकाग्र हो जाता है। यह आसन कंधे संबंधी रोगों के लिए लाभदायक है।
समतल स्थान पर कंबल आदि बिछाकर पेट के बल लेट जाएं। पेट के बल लेटकर सबसे पहले ठोड़ी को भूमि पर टिकाएं। फिर दोनों हाथों से ठोड़ी को चित्र में दिए गए अनुसार उठायें ! 10 से 30 सेकंड तक इस स्थिति में रहें। जिन्हें मेरुदंड पैरों या जांघों में कोई गंभीर बीमारी हो या परेशानियों हो तो वह योग चिकित्सक से सलाह लेकर ही यह आसन करें।
शरीर के अंदर शूक्ष्म शक्ति को बढ़ाता है जिससे शरीर मजबूत होता है। यह आसन मानसिक थकान को दूर करता है और शरीर को विश्राम देता है।
घुटनों तथा पेट के सभी विकार दूर करता है। कमर को सीघा और छाती को उभारता है। मोटापा दूर करता है और बढ़ा हुआ पेट फ्लैट हो जाता है। यह आसन सर्दी, ज़ुकाम, खांसी आदि में लाभदायक है। यह आसन लम्बाई बढ़ाने में लाभदायक है।
यह मेरुदंड के नीचे वाले भाग में होने वाले सभी रोगों को दूर करता है। सर्वाइकल, गर्दन दर्द, कमर दर्द और सियाटिक दर्द के लिए लाभप्रद है। इसके नियमित अभ्यास से मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
इस आसन को सर्वांगासन के बाद करना चाहिए ! इसे करने के लिए स्वच्छ और समतल जमीन बैठ जाएं ! फिर दोनों पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए, धीरे-धीरे दोनों पैरों को घुटने से मोड़ते हुए, वज्रासन में बैठ जाएं !
पीछे की तरफ झुकते हुए दोनों हाथो की हथेलियों से पेरो की एड़ियों को छूने का प्रयास करें ! अब धीरे-धीरे छाती के बल ऊपर की तरफ उठने का प्रयास करें ! अब दोनों हाथो को कमर पर रखकर पीछे की तरफ आराम से झुकें ! ध्यान रखें अगर आप यह आसन पहली बार कर रहे है तो पहले एक हाथ से एड़ियों को छुए, फिर दूसरे हाथ से एड्डी को छुए, एक साथ दोनों एड़ियों को छूने के प्रयास में आप गिर सकते है ! अब सिर को पीछे की ओर झुकाएं तथा कुछ समय इसी अवस्था में रहें ! इसके बाद धीरे-धीरे क्रम में वापस पहली वाली स्थिति में आ जाएं !
इस आसन के नियमित अभ्यास से बुढ़ापा जल्दी नहीं आता है तथा शारीर ऊर्जावान बन रहता है ! यह आसन मधुमेह रोग को दूर करता है ! इस आसन के नियमित 10-15 मिनट अभ्यास से शरीर, पेट और नितम्ब पर जमा मोटापा दूर हो जाता है !
यह आसन मधुमेह, कब्ज आदि रोगों से बचाता है और पेट और आँतों के सभी विकारों को दूर करता है और उन्हें पुष्ट करता है ! यह जाँघों, भुजाओं तथा टांगों को पुष्ट बनाता है ! यह आसन स्त्री रोगों में विशेष रूप से लाभदायक है ! यह आसन कमर दर्द, साइटिका, स्लिप डिस्क तथा पीठ दर्द को दूर करता है ! इस आसन के अभ्यास से छाती चौड़ी होती है साथ ही कंठ, श्वास नली और फुफ्फुस की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
स्वच्छ कम्बल या कपडे पर पैर फैलाकर बैठें। बाएं पैर को घुटने से मोड़कर दाहिने जंघा और पिंडली (calf, घुटने के नीचे का हिस्सा) के बीच इस प्रकार स्थापित करें की बाएं पैर का तलवा छिप जाये उसके बाद दाहिने पैर के पंजे और तलवे को बाएं पैर के नीचे से जांघ और पिंडली के मध्य स्थापित करने से स्वस्तिकासन बन जाता है।
ध्यान मुद्रा में बैठें तथा रीढ़ (spine) सीधी कर श्वास खींचकर यथाशक्ति रोकें। इसी प्रक्रिया को पैर बदलकर भी करें। इससे पैरों के दर्द व पसीना आना आदि दूर होता है। पैरों का गर्म या ठंडापन दूर होता है !
ध्यान में एकाग्रता बढ़ाने के लिए एक बढ़िया आसन है।
इससे रहस्यमय शक्तियों से भरे मूलाधार चक्र का जागरण होता है (Major Types of Yogasana in Hindi) !
दोनों पैर सामने फैलाकर बैठें। बाएं पैर को मोड़कर एड़ी को दाएं नितम्ब (buttocks) के पास रखें। दायें पैर को मोड़कर बाएं पैर के ऊपर इस प्रकार रखें की दोनों घुटने एक दूसरे के ऊपर हो जाएँ।
दायें हाथ को ऊपर उठाकर पीठ की ओर मुडिए तथा बाएं हाथ को पीठ के पीछे नीचे से लाकर दायें हाथ को पकडिये, गर्दन और कमर सीधी रहे। जिस ओ़र का पैर ऊपर रखा जाए उसी ओ़र का (दाए/बाएं) हाथ ऊपर रखें ! एक ओ़र से लगभग 5 मिनट तक करने के पश्चात दूसरी ओ़र से इसी प्रकार करें।
यह आसन अंडकोष वृद्धि एवं आंत्र वृद्धि में विशेष लाभप्रद है।
धातुरोग, बहुमूत्र एवं स्त्री रोगों में बहुत लाभकारी है। यकृत, गुर्दे एवं वक्ष स्थल को बल देता है।
संधिवात, गाठिया को दूर करता है तथा हृदय प्रदेश में दिव्य प्रकाश उत्पन्न करता है !
भद्रासन या गोरक्षासन (Bhadrasana or Gorakhshasana) –
दोनों पैरों की एडी तथा पंजे आपस में मिलाकर सामने रखिये। अब सीवनी नाड़ी (गुदा एवं मूत्रेन्द्रिय के मध्य) को एडियों पर रखते हुए उस पर बैठ जाइए। दोनों घुटने भूमि पर टिके हुए हों।
हाथों को ज्ञान मुद्रा की स्थिति में घुटनों पर रखें।
मांसपेशियो में रक्त संचार ठीक रूप से होकर वे स्वस्थ होती है!
मूलबंध को स्वाभाविक रूप से लगाने और ब्रम्हचर्य कायम रखने में यह आसन सहायक है। इन्द्रियों की चंचलता समाप्त कर मन में शांति प्रदान करता है इसीलिए इसका नाम गोरक्षासन है।
इस आसन से रहस्यमय मूलाधार चक्र जागृत होता है जिससे शरीर में कई दिव्य अतीन्द्रिय क्षमताएं जागृत होतीं हैं !
योगमुद्रासन (Yoga Mudra asana) –
भूमि पर पैर सामने फैलाकर बैठ जाइए ! बाएं पैर को उठाकर दायीं जांघ पर इस प्रकार लगाइए की बाएं पैर की एडी नाभि के नीचे आये।
दायें पैर को उठाकर इस तरह लाइए की बाएं पैर की एडी के साथ नाभि के नीचे मिल जाए। दोनों हाथ को पीछे ले जाकर बाएं हाथ की कलाई को दाहिने हाथ से पकडें, फिर श्वास छोड़ते हुए सामने की ओ़र झुकते हुए नाक को जमीन से लगाने का प्रयास करें !
हाथ बदलकर इस क्रिया को करें, फिर पैर बदलकर पुनरावृत्ति करें।
इससे चेहरा सुन्दर, स्वभाव विनम्र व मन एकाग्र होता है ! कफ रोगों में चमत्कारी लाभ प्रदान करता है !
इसके लम्बे अभ्यास से मुंह में अमृत तुल्य द्रव का स्राव होता है जिससे चिर यौवन प्राप्त होता है !
– यह एक बेहद सामान्य आसन (easiest asan) है जो मानसिक शान्ति (mental peace) देने के साथ पाचन तंत्र को ठीक रखता है। घुटने टेक कर बैठ जाएं और अपने पैर के ऊपरी सतह को चटाई के संपर्क में इस तरह रखें कि आपकी एड़ी ऊपर की तरफ हो।
अब आराम से अपनी पुष्टिका को एड़ी पर टिका दें। यह ध्यान देना ज़रूरी है कि आपका गुदाद्वार (anus) आपकी दोनों एड़ी के ठीक बीच में हो। अब अपनी दोनों हथेलियों को नीचे की और घुटनों पर ले जाएं। अपनी आँखें बंद करें और एक गति में गहरी साँस (deep breathing) लें।
वज्रासन से कुण्डलिनी जागने में काफी सहायता मिलती है ! यह एक मात्र ऐसा आसन है जिसे खाने के बाद तुरंत किया जा सकता है ! रोज दोपहर व रात के खाने के तुरंत बाद 10 – 15 मिनट इस आसन का अभ्यास करने से खाना बहुत आराम से पच जाता है और गैस नहीं बनती है !
इस आसन को जितनी मर्जी उतनी देर तक किया जा सकता है और निश्चित रूप से यह बहुत फायदेमंद आसन है !
– बच्चों की मुद्रा के नाम से जाना जाने वाला यह आसन तनावमुक्ति (stress management and stress relief) का बहुत अहम साधन है। इससे तनाव और थकान से राहत मिलाती है। ये ज्यादा देर तक बैठे रहने से होने वाले लोअर बैक पेन (lower back pain) में भी काफी मददगार साबित होता है। फर्श पर घुटनों (knees) के बल बैठ जाएं। अब अपने पैर को सीधे करते हुए अपनी एड़ी पर बैठ जाएं। दोनों जांघों के बीच थोड़ी दूरी बनाएं। सांस छोड़ें और कमर से नीचे की और झुकें।
अपने पेट को जाघों पर टिके रहने दें और पीठ को आगे की और स्ट्रेच करें। अब अपनी बांहों को सामने की तरफ ले जाएं ताकि पीठ में खिंचाव हो ! आप अपने माथे को फर्श पर टिका सकते हैं बशर्ते आपमें उतना लाचीलापन हो। पर शरीर के साथ ज़बरदस्ती न करें। वक्त के साथ आप ऐसा करने में कामयाब होंगे। इससे पेट भी कम होता है और पाचन प्रक्रिया भी सुधरती है !
नाभि चक्र पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है ! बाल मजबूत और काले बनते हैं ! आँखों की रोशनी बढ़ती है व चेहरे की झुर्रियां मिटती हैं !
– चटाई पर दोनों पैर साथ रखकर और हाथों को अपने बगल में रखकर खड़े हो जाएं। अब अपने दाएं पैर को आगे की ओर बढ़ाये, तथा बाएँ पैर को पीछे की तरफ। अब आराम से अपने दाएं घुटने को मोड़ें ताकि आप धक्का मारने वाली मुद्रा में आ सकें। अपने धड़ को मुड़े हुए दाएं पैर की ओर ट्विस्ट करें। अपने बाएँ पैर को बगल की ओर थोड़ा सा मोड़ें ताकि आपको अतिरिक्त सपोर्ट मिले। सांस छोड़ें, अपनी बाँहें सीधी करें और शरीर को मुड़े हुए घुटने से ऊपर की ओर उठाएं।
अपनी बांहों को ऊपर स्ट्रेच करें और धड़ को धीरे से पीछे की और झुकाएं ताकि आपकी पीठ धनुष का आकार ले सके। इस मुद्रा में तब तक रहें जब तक आप इसके साथ सहज हैं। सामान्य गति से सांस लें। इस आसन से बाहर आने के लिए सांस छोड़ें और अपने दाएं घुटने को सीधा करें। अब अपने दाएं पैर को मूल स्थिति में ले आएं। अपने हाथों की मदद से पूर्ववत स्थिति में आएं। जल्दबाजी न करें अन्यथा आपकी पीठ या पैर चोटिल हो सकते हैं। इसी आसन को दूसरे पैर के लिए दोहराएं।
इसका शाब्दिक अर्थ है योद्धाओं वाली मुद्रा, यह आसन आपकी पीठ को स्ट्रेच करता है और आपकी जंघाओं (thigh), पुष्टिका और पेट को मज़बूत करता है। यह आपकी एकाग्रता को बढ़ाता है और आपकी छाती (chest, breast) को फैलाता है। यह शरीर की अवांछित चर्बी (unwanted fat or calories) को कम करता है।
इसका नाम वीरभद्र आसन ऐसे ही नहीं पड़ा है क्योंकि यह आसन शंकर जी के महावीर गण, श्री वीरभद्र जी के नाम पर है और इस आसन का सतत लम्बा अभ्यास करने से मन की निराशा, दुर्बलता व डिप्रेशन आदि कमियां दूर होकर मन में प्रचंड साहस का संचार होने लगता है !
सर्वांगासन (sarvangasana yoga) –
– चटाई पर पैर फैलाकर लेट जाइए। अब धीरे धीरे घुटनों को मोड़कर या सीधे ही पैरों को ऊपर उठाइए। अब अपनी हथेली को अपनी पीठ और पुष्टिका पर रखकर इस आसन को सपोर्ट कीजिए। अपने शरीर को इस तरह ऊपर उठाइए कि आपके पंजे छत की दिशा में इंगित हों। समूचा भार आपके कंधों पर होना चाहिए।
सुनिश्चित करें कि आप धीरे-धीरे सांस ले रहे हैं और अपनी ठुड्डी को सीने पर टिका लें। आपकी कोहनी फर्श पर टिकी होनी चाहिए और आपकी पीठ को हथेली का साथ मिला होना चाहिए।
फिर थोड़ी देर बाद लेटने वाली मुद्रा में वापस आने के लिए धीरे-धीरे पैरों को नीचे लाएं, सीधा तेज़ी से नीचे न आएं। इस आसन को शुरू में एक मिनट करे फिर धीरे धीरे बढ़ाये (ब्लड प्रेशर blood pressure, ह्रदय रोगियों को ये आसन और शीर्षासन बिना डॉक्टर से पूछे नहीं करना चाहिए अन्यथा बड़ा नुकसान होने की सम्भावना रहती है) !
इसका नाम सर्वांगासन इसलिए है क्योंकि इससे शरीर के सभी अंगों का बहुत बढियां आसन हो जाता है जिससे अनगिनत शारीरिक लाभ मिलता है !
सुप्त पवनमुक्तासन (supt pawan mukt asana) –
– चटाई पर सीधे लेटकर बाएँ पैर का घुटना मोड़कर ऊपर की ओर उठाते हुए साँस निकालते हुए उदर पर रखें तत्पश्चात दोनों कुहनियाँ (elbow) मोड़कर हाथों की उँगलियों को आपस में फँसाते हुए घुटने से नीचे इस तरह पकड़ें कि घुटने का दबाव उदर पर पड़े। उपयुर्क्त स्थिति में सिर को धीरे धीरे ऊपर उठाते हुए नाक या ठोड़ी को घुटने से स्पर्श करने का प्रयास करें। साँस को रोकें ।
दायें पैर से इसी प्रक्रिया को दोहराएँ, कुछ देर तक रोकें ! इसके पश्चात पैरों को नीचे स्वभाविक स्थिति में लाकर दोनों पैरों को एक साथ मोड़ कर सिर को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाते हुए नाक या ठोड़ी को घुटने से स्पर्श करने का प्रयास करें । रोकें । तीन-बार इस आसन का अभ्यास करें ।
इससे पेट की गैस की समस्या में आराम मिलता है तथा मधुमेह में भी इससे काफी फायदा पहुचता है क्योंकि यह पैन्क्रियाज को रीएक्टिवेट कर नेचुरली इन्सुलिन का स्राव कराने की कोशिश करता है !
– चटाई पर पेट के बल लेट जाएँ । दोनों कूहनियाँ कमर से सटाकर हाथों को आगे की ओर मोड़ते हुए हथेलियाँ कंधो के बराबर में भूमि पर रखें। तत्पश्चात नाभि से ऊपर के शरीर के भाग को धीरे-धीरे साँस भरते हुए यथासंभव ऊपर उठाएँ । सिर ऊपर की ओर रखते हुए दृष्टि सामने रखें । रोकें । तत्पश्चात धीरे-धीरे बिना शरीर को झटका दिए हुए वापस पूर्व आवस्था में आ जाएँ । तीन- बार इस आसन का अभ्यास करें ।
कुण्डलिनी महाशक्ति के जागरण में इस आसन का महत्वपूर्ण योगदान होता है ! यह आसन नाभि स्थित मणिपूरक चक्र को जागृत करता है जिससे सर्व रोगों का नाश होता है !
पश्चिमोत्तानासन (Paschimottanasana)-
– चटाई पर दोनों पैर सामने फैला कर बैठ जाएँ । दोनों हथेलियाँ सामने की ओर रखते हुए हाथों को धीरे – धीरे कंधों में कूहनियाँ सीधी रखते हुए ऊपर उठाएँ ।
साँस निकालते हुए दोनों हाथों के बीच में सिर रखते हुए धीरे-धीरे कमर के ऊपर के भाग को सामने की ओर झुकते हुए हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ें तथा यथासंभव माथे को घुटने से स्पर्श करने का प्रयास करें । दोनों कूहनियाँ दोनों घुटनों के बगल में हों । यह ध्यान रहे कि आसन की स्थिति में दोनों घुटने भूमि से लगे रहें । तीन- चार बार में इस आसन का अभ्यास करें ।
इस आसन का भी कुण्डलिनी महाशक्ति के जागरण में बेहद महत्वपूर्ण योगदान होता है तथा साथ ही साथ यह आसन नाभि स्थित मणिपूरक चक्र को जागृत करता है जिससे सर्व रोगों का नाश होता है !
इसके अलावा यह आसन गठिया, कमर दर्द, जननांगो सम्बंधित रोगों आदि में भी बहुत लाभ पहुचाता है !
– चटाई पर पेट के बल लेट जाएँ । घुटनों से नीचे के पैरों को ऊपर की ओर मोड़ें । दोनों हाथों से दोनों पैरों को पकड़ें । नाभि के भाग को भूमि पर स्थिर रखते हुए शरीर के ऊपरी और निचले भाग को समान रूप से भूमि से ऊपर उठाएँ । दोनों कूहनियाँ सीधी रहें तथा सिर ऊपर की ओर रखते हुए दृष्टि सामने रखें । रोकें ।
धीरे – धीरे वापस पूर्व स्थिति में आ जाएँ । तीन- चार बार इस आसन का अभ्यास कर सकते हैं ।
इस आसन से सभी सरवाईकल सम्बंधित समस्याओं में आराम पहुचता है तथा यह आसन मूत्र सम्बन्धी समस्याओं में आराम पहुचाता हैं !
रीढ़ की हड्डी सम्बन्धी रोगों में भी लाभ पहुचाता है !
यह आसन भी मणिपूरक चक्र को प्रभावित करता है !
– चटाई पर पद्मासन (Padmasana) की अवस्था में बैठ जाएँ । इसके बाद कमर से ऊपर का भाग धीरे- धीरे पीछे की ओर ले जाकर बिना झटका दिए हुए इस प्रकार लेट जाएँ कि सिर पीछे की तरफ मुड़ा रहकर माथा भूमि पर टिक जाए । अब माथे और घुटनों पर शरीर का सम्पूर्ण भर रखते हुए शरीर के मध्य के भाग को यथासम्भव ऊपर उठाएँ । दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ लें । 1 से 2 मिनट तक इस आसन का अभ्यास करें !
कंठ स्थित दिव्य विशुद्ध चक्र का जागरण होता है जिससे ना सिर्फ गले के रोग बल्कि शरीर के भी कई रोगों का नाश होता है ! गर्दन व कंधे के दर्द में आराम मिलता है !
कपाल कुहर स्थित अमृत का उर्ध्वगमन होता है जिससे मस्तिष्क की दिव्य अतीन्द्रिय क्षमताएं जागती हैं ! जितनी देर आसानी से हो सके बस उतनी देर इसे करना चाहिए !
– ताड़ासन (Tadasana) की स्थिती में खड़े हो जाएँ । दोनों हाथों को ऊपर उठाकर सिर को मध्य में रखते हुए कमर से ऊपर का शरीर का भाग साँस निकालते हुए धीरे- धीरे सामने झुकाकर सिर को घुटनों से स्पर्श करने का प्रयास करें ।
कूहानियाँ को पिंडलियों (calf) के सामने लाते हुए दोनों हाथों से पैरों को अंगूठे पकड़ें । धीरे- धीरे शरीर को पूर्ववत सीधा करते हुए हाथों को नीचे लाएँ । दो तीन बार इस आसन का अभ्यास करें !
शरीर की लम्बाई बढ़ती है, यौन व मूत्र रोग दूर होतें हैं !
धातु रोग की दवा पतंजली (dhatu rog ki dawa patanjali, patanjali yauvanamrit vati, दिव्य यौवनामृत वटी पतंजलि की दवा, जो है आयुर्वेदिक उपचार वीर्य अल्पता का द्वारा पतंजलि औषधि) के साथ इसका प्रयोग करने से बहुत अच्छे रिजल्ट्स मिलते देखे गएँ हैं ! पतंजलि यौवनामृत वटी निश्चित रूप से एक बहुत कारगर पतंजलि आयुर्वेदिक दवाई (patanjali ayurvedic dawai ayurvedik aushadhi jadi booti) है !
इससे कमर दर्द व पीठ दर्द में आराम मिलता है ! पेट कम होता है जिससे वजन कम होता है ! हाथ पैर में ताकत बढती है ! कुल मिलाकर यह बहुत ही फायदेमंद आसन है क्योकि इससे पूरा शरीर लचीला होता है !
– चटाई पर सुखासन की स्थिती में बैठ जाएँ । उन्गूलियाँ पीछे की ओर रखते हूए दोनों हथेलियों को नाभि की सीध में चार अंगूल आगे भूमि पर रखें । दोनों कुहनियों को नाभि के दोनों ओर रखकर शरीर को थोड़ा आगे झूकाएँ ।
किन्तु नाभि पर दवाब न पड़े इसका ध्यान रखें । इसके बाद नाभि के ऊपर के भाग को धीरे-धीरे सामने की ओर सीधा झूकाएँ। इसके पश्चात् दोनों घुटनों को भूमि से ऊपर उठाकर, शरीर के अगले और पिछले भाग को संतुलन अवस्था में रखें।
इसका अभ्यास हो जाने पर घुटने, पिंडलियों, एड़ियों तथा पंजों को परस्पर मिलाते हुए घुटनों को सीधा करके पैरों को इस प्रकार तानें की सिर से लेकर एड़ी तक का भाग बिलकूल सीधा हो जाए । इस अवस्था में शरीर का सम्पूर्ण भार दोनों हथेलियों पर रहेगा । आधा से एक मिनट तक इसका अभ्यास करें ।
मोर पक्षी की पाचन शक्ति सबसे तेज होती है क्योंकि सांप जैसे जहरीले जानवर को भी यह आसानी से पचा जाता है ! मयूरासन करने वाली की पाचन शक्ति धीरे धीरे मोर के समान ही तीव्र होने लगती है !
यह आसन कुण्डलिनी जगाने में बहुत ही सहायक है ! इससे नाभि स्थित मणिपूरक चक्र बहुत तेजी से जागृत होता है जिससे शरीर के सभी रोगों का नाश होने लगता है ! इससे हाथों की ताकत बहुत बढती है और रीढ़ मजबूत बनती है !
अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha Matsyendrasana)-
दोनों पैर सामने फैलाकर बैठ जाएँ । बाएँ पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी को गुदा और अंडकोष के मध्य स्थापित करें। दाएँ पैर का घुटना ऊपर की ओर मोड़कर पैर को बाएँ घुटने के बायीं ओर भूमि पर रखें ।
इसके बाद बाएँ हाथ को दाएँ घुटने के दायीं ओर से ले जाकर दाएँ पैर का अंगूठा पकड़ें तथा दायाँ हाथ पीछे ले जाकर कमर पर रखते हुए सिर सहित शरीर का ऊपरी भाग दायीं ओर मोड़ दें । रोकें ।
तदनंतर हाथ पैर बदलकर विपरीत दिशा में अभ्यास करें । प्रारंभ में 5 सेकेण्ड तक करें । तत्पश्चात धीरे- धीरे अभ्यास बढ़ाते हुए तीन मिनट तक कर सकते हैं ।
मूत्रांग पर बहुत अच्छा असर डालता है यह आसन ! रीढ़ और कमर की समस्याओं से पीड़ित लोगों के लिए बहुत श्रेयस्कर है !
पेट से फ़ालतू चर्बी छटती है ! वीर्य दोष दूर होते हैं !
मर्दाना शक्ति बहुत बढ़ती है ! मूलाधार चक्र प्रभावित होता है !
सीधे खड़े हो जाएँ, दोनों पैर मिलाकर रखें। दोनों हथेलियों को प्रार्थना अर्थात नमस्कार की मुद्रा में रखिए। पैरों के पंजे भूमि पर टिके हुए हों तथा एड़ियों के ऊपर नितम्ब (buttock) टिकाकर बैठ जाइए। दोनों हाथ घुटनों के ऊपर तथा घुटनों को फैलाकर एड़ियों के समानान्तर स्थिर करें। अपने धड़ को हल्का आगे मोड़ें। इस मुद्रा में तब तक रहें जब तक आप सहज हैं।
आसन से बाहर आने के लिए आराम से सीधा खड़ा हो जाएं। कुर्सी आसन के रूप में मशहूर इस आसन में एकाग्रता की ज़रुरत होती है और आपको उन पेशियों पर ध्यान केन्द्रित करना होता है जो इसमें इस्तेमाल हो रही हैं।
यह ह्रदय की पेशियों, जंघाओं और पुष्टिका को मज़बूत करता है।
जननांगों पर भी अच्छा असर पड़ता है ! कंधे मजबूत बनते हैं ! गर्दन दर्द व पीठ दर्द से आराम मिलता है !
पहले सावधान मुद्रा में खड़े हो जाएं। फिर दोनों पैरों को एक दूसरे से कुछ दूर रखते हुए खड़े रहें और फिर हाथों को सिर के ऊपर उठाते हुए सीधाकर हथेलियों को मिला दें। इसके बाद दाहिने पैर को घुटने से मोड़ते हुए उसके तलवे को बाईं जांघ पर टिका दें। इस स्थिति के दौरान दाहिने पैर की एड़ी गुदाद्वार-जननेंद्री के नीचे टिकी होगी। बाएं पैर पर संतुलन बनाते हुए हथेलियां, सिर और कंधे को सीधा एक ही सीध में रखें।
एकाग्र रहते हुए संतुलन बनाए रखने की कोशिश करें। सामान्य गति से सांस लेना और सामने दिख रही किसी एक चीज़ पर ध्यान केन्द्रित करना इस मुद्रा को बनाए रखने में आपकी मदद करेंगे। योग में ऐसा माना जाता है कि अगर आपका दिमाग एकाग्र न हो तो शरीर भी स्थिर नहीं रहेगा। तो जितना आपका मस्तिष्क आपके काबू में होगा उतनी ही आसानी से आप यह आसन कर पाएंगे। इस आसन के लिए कुर्सी या दीवार का सहारा लेने की कोशिश न करें। इससे पैरों की स्थिरता और मजबूती का विकास होता है।
यह कमर और कुल्हों के आस पास जमीं अतिरिक्त चर्बी को हटाता है तथा दोनों ही अंग इससे मजबूत बने रहते हैं। मन में संतुलन (mental balance)होने से आत्मविश्वास और एकाग्रता (confidence and concentration) का विकास होता है।
इसे निरंतर करते रहने से शरीर और मन में सदा स्फूर्ति (activeness & freshness) बनी रहती है।
बहुत से लोगों को पता नहीं है लेकिन इस साधारण से दिखने वाले आसन के लम्बे अभ्यास से मस्तिष्क की सोयी हुई दिव्य अतीन्द्रिय क्षमताएं जागने लगती हैं इसलिए यह बहुत चमत्कारी आसन है जिसका अभ्यास सभी को जरूर थोड़ी देर के लिए करना ही चाहिए !
बद्धकोणासन (Baddha Konasana) –
दोहरा कंबल बिछाएँ, दोनो पैरों को सामने की ओर फैलाकर बैठ जाएँ। सबसे पहले दोनों घुटनों को मोड़ते हुए पैरों के पास लाएँ और दोनों पैरों के तलवें आपस में मिला लें। दोनों हाथों की अँगुलियों को आपस में इंटरलॉक कर लें, पैरों की अँगुलियों (fingers) को दोनों हाथों से पकड़ लें और रीढ़ को सीधा रखें जैसे तितली आसन में बैठा जाता है। बाज़ू की सीधा कर लें और पैरों को ज़्यादा से ज़्यादा अपने पास में लाने का प्रयास करें ताकि पूरा शरीर तन जाए। यह इस आसन की प्रारंभिक स्थिति है।
गहरी सांस भरें और साँस निकालते हुए धीरे-धीरे कमर से आगे इस प्रकार झुकें कि रीढ़ और पीठ की माँसपेशियों में खिंचाव बना रहे। प्रयास करें की आपका माथा ज़मीन से स्पर्श हो जाए। अगर ये संभव ना हो तो अपनी ठुड्डी (Chin) को पैरों के अँगूठे से साँस को सामान्य कर लें। अंत में साँस भरते हुए वापस प्रारंभिक स्थिति में आ जाएँ। जितनी बार हो सके इस आसन का अभ्यास करें।
अंदरुनी जंघाओं के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ है। यह योग में एक ऐसा आसन है जो आपकी दिक्कतों को दूर करने के साथ साथ आपकी रीढ़, लोअर बैक (lower back), घुटने और कच्छ की पेशियों को मज़बूत करता है। यह मासिक धर्म से होने वाली पीड़ा (period pain) को कम करता है और पाचन तंत्र को ठीक करता है।
वीर्य व रज सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने के लिए बहुत ही फायदेमंद है इसलिए स्वप्नदोष, वीर्य अल्पता, शुक्राणुओं की कमी वाले मरीजों को इसका अभ्यास जरूर करना चाहिए !
मूलाधार चक्र को जागृत करने के लिए भी फायदेमंद है !
फर्श पर चित होकर लेट जाएं। अपनी बांहों को बगल में रखें और घुटनों को मोड़ लें ताकि आपका तलवा फर्श को छूए। अब धीरे धीरे अपनी पुष्टिका से पैरों को उठाएं। पैर उठाते वक्त अपने हाथों को पुष्टिका पर रखकर शरीर को सपोर्ट करें। अब धीरे धीर अपने पैरों को पुष्टिका के पास से मोड़ें और सर के पीछे ले जाकर पंजों को फर्श तक ले जाने की कोशिश करें।
और हाथों को बिलकुल सीधा रखें ताकि वो फर्श के संपर्क में रहे। ऊपर जाते हुए सांस छोड़ें। लेटने वाली मुद्रा में वापस लौटने के लिए पैरों को वापस लाते हुए सांस लें। एकदम से नीचे न आएं। यह आसन उनके लिए बहुत कारगर है जो लम्बे समय तक बैठते हैं और जिन्हें समस्या है।
ये थायराइड ग्रंथि, पैराथायराइड ग्रंथि, फेफड़ों और पेट के अंगों (parathyroid gland, thyroid gland, lungs, stomach) को उत्तेजित करता है जिससे रक्त का प्रवाह (blood circulation), सिर और चेहरों की और तेज़ हो जाता है जिससे पाचन प्रक्रिया (digestive system) में सुधार होता है और हारमोंन का स्तर नियंत्रण (hormonal imbalance control) में रहता है।
मधुमेह के रोगियों के लिए रामबाण है क्योंकि यह सीधे पेन्क्रियाज को प्रभावित करता है ! इसके अलावा यह शरीर को लचीला भी बनाता है ! पीठ, गर्दन, कमर, जंघा आदि की मांसपेशियां मजबूत बनती है ! मूत्र रोगों में भी फायदा मिलता है !
सेतुबंधासन (setu bandhasana) –
चटाई पर चित होकर लेट जाएं। अब सांस छोड़ते हुए पैरों के बल ऊपर की ओर उठें। अपने शरीर को इस तरह उठाएं कि आपकी गर्दन और सर फर्श पर ही रहे और शरीर का बाकी हिस्सा हवा में। ज़्यादा सपोर्ट के लिए आप हाथों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
अगर आपमें लचीलापन (flexibility) है तो अतिरिक्त स्ट्रेचिंग (stretching exercises) के लिए आप अपनी उँगलियों को ऊपर उठी पीठ के पीछे भी ले जा सकते हैं। अपने कम्फर्ट का ध्यान रखते हुए इस आसन को पूरा करें।
यह आसन न सिर्फ रक्तचाप को नियंत्रित रखता है बल्कि मानसिक शान्ति (mind peace) देता है और पाचनतंत्र को ठीक करता है। गर्दन और रीढ़ की स्ट्रेचिंग के साथ-साथ यह आसन मासिक धर्म के सिम्पटम (menstruation period symptoms) से भी निजात दिलाता है।
इसको सर्वांगासन का मिनी रूप कहा जा सकता है इसलिए इसके फायदे भी सर्वांगासन से बहुत कुछ मिलते जुलते हैं ! जो सज्जन सर्वांगासन नहीं कर सकतें उन्हें यह आसन करना चाहिए !
मण्डूकासन (Mandukasana procedure) –
इस योगासन (yog asan) को करने के लिए वज्रासन में बैठकर दोनो हाथो की मुठ्ठी (fist) बन्द कर लें। मुट्ठी बंद करते समय अंगूठे की अँगूलियो को हाथो के अन्दर बन्द करें। दोनो मुठ्ठियों को नाभि के दोनो ओर लगाकर श्वांस को बाहर निकालकर सामने की तरफ झुकिये एवं श्वाँस को रोकते हुए मस्तक को ऊंचा करके आंखों से सामने की तरफ देखते रहें। इसी अवस्था में कम से कम 10 सैकेन्ड तक रहें।
पेट के कई बीमारियो में बहुत फायदा पहुँचाता है और डायबिटीज (diabetes) में लाभ देता है। (गर्भवती महिलाओं को यह आसन नहीं करना चाहिए)
मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी है उसके अलावा यौन अंगों की भी ताकत बढाता है ! पेट की फ़ालतू चर्बी कम करता है तथा आखों की रोशनी बढाता है !
इससे मणिपूरक चक्र जागृत होता है इसलिए यह आसान दिखने वाला, आसन बहुत ही लाभकारी है !
इस योगासन में आसन पर सीधा लेट जाए फिर दोनों पैरो को और मस्तक उठाकर नाव की तरह शरीर को बनाएं, और हाथों को पैरों के पास ले जाएँ । नौकासन अवस्था में कम से कम 30 सैकण्ड रहकर शवासन (savasana) करके विश्राम (rest) करें।
यह योगासन करने से हाथ एवं पैरो की मांसपेशियों मे लचीलापन, कमर की डिस्क (slip disk treatment) आदि बिमारियों (diseases) में फायदा होता है एवं शरीर को संतुलित बनाए रखने में सहायक है।
मूत्र अंगों के रोग दूर होते हैं तथा ह्रदय रोगों में भी आराम मिलता है !
इससे ह्रदय की ताकत निश्चित रूप से बढती है तथा पेट की सभी प्रोब्लम्स जैसे लीवर की कमजोरी आदि में आराम मिलता है !
– चटाई पर सीधा लेट जाएँ । पैरों के बीच में थोड़ी दूरी रखते हुए पंजों को बाहर की ओर फैलाएँ । दोनों हथेलियों ऊपर की ओर आधी खुली आवस्था में रखें । आँखें बंद करते हुए शरीर को पूर्णत: शिथिल कर दें । प्रत्येक आसन के अभ्यास के पश्चात शवासन में विश्राम करें ।
इसे हर आसन करने के बाद, अंत में करते हैं जिससे विभिन्न योगासनों से शरीर में पैदा हुई दुर्लभ उर्जा शरीर में ठीक से समा पाती है !
इसलिए इस आसन को अवश्य करें क्योंकि इससे सभी तरह के मानसिक रोगों में भी बहुत लाभ मिलता है !
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