क्या चाय के प्राचीन लुप्त हो चुके फार्मूले में चिर यौवन के गुण मौजूद थे ?
किसी भी विद्वान डॉक्टर से पूछिए तो वो यही बतायेगा कि चाय, कॉफ़ी आदि जैसे सभी पेय पदार्थ नुकसान दायक हैं इसलिए इनका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और अगर इनकी आदत पड़ गयी हो तो धीरे धीरे कम करते हुए छोड़ देना चाहिए !
पर जो डॉक्टर चाय कॉफी को नुकसान नहीं, फायदेमंद बताये, वो विद्वान नहीं है !
यहाँ पर विद्वान डॉक्टर से तात्पर्य है ऐसे डॉक्टर्स से जो सिर्फ डिग्री होल्डर डॉक्टर ना हो बल्कि उनमे किसी रोग को डाइग्नोज और ट्रीटमेंट के लिए चहुमुंखी गहरी सोच हो !
अन्यथा आज कल तो ऐसी अराजकता बार बार देखने सुनने को मिल रही है कि बड़े बड़े हॉस्पिटल्स में भी इलाज के नाम पर मरीजों से जो लूट खसोट मची है वो तो है ही उसके अलावा कई डॉक्टर्स का आई क्यू लेवल इतना कम हो चुका है कि वे मरीज का टेस्ट पर टेस्ट करवाते जाते हैं पर वास्तव में रोग है क्या, वे जल्दी समझ ही नहीं पाते !
सर्दी जुकाम जैसे रोग का आदमी इलाज ना करवाए तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता पर कैंसर, टी. बी. जैसे रोगों के इलाज में एक – एक दिन की हुई देरी बहुत ही खतरनाक साबित हो सकती है इसलिए किसी डॉक्टर के नाम, प्रसिद्धि के चक्कर में ही फसकर अपने किसी भी रोग को बहुत लम्बा नहीं झेलना चाहिए अन्यथा जो रोग आसानी से ठीक हो सकता था वो बीतते समय के साथ कभी भी गम्भीर रूप पकड़ सकता है !
चाय, कॉफ़ी इसलिए नुकसानदेह है क्योंकि ये क्षणिक उत्तेजना प्रदान करती हैं लेकिन ये क्षणिक उत्तेजना प्रदान करने के चक्कर में शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगो पर दूरगामी बुरा असर डालती है खासकर ह्रदय, लीवर और यौनांग पर !
तो सोचने कि बात है कि आखिरकार चाय, कॉफ़ी पीने कि बुरी परम्परा भारत में शुरू किसने की ?
कुछ इतिहासकार कहते हैं कि चाय, कॉफ़ी पीने की परम्परा भारत में अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेजो द्वारा शुरू की गयी थी !
पर ये तथ्य गलत है !
क्योंकि चाय की पत्ती से बने पेय को पीने की बातें हमारे भारत के कुछ प्राचीन व लगभग लुप्त हो चुके अभिलेख में यदा कदा देखने को मिलती है !
तो इसमें फिर से सोचने की बात है कि आखिरकार इन नुकसान करने वाले पेय पदार्थों की जानकारी, हिन्दू धर्म के महान ग्रन्थ आयुर्वेद में क्यों दी गयी है ?
तो यहाँ पर भी वही सिद्धांत लागू होता है कि सही तरीके से इस्तेमाल करने से दुनिया का हर पौधा, दवाई की तरह काम करता है और गलत तरीके से लेने पर दुनिया की कोई भी ऐसी जड़ीबूटी या दवाई नहीं है जो नुकसान ना करे !
आज के डेट में जिस तरीके से हम लोग चाय पी रहें है वो तरीका गलत है इसलिए वो चाय हमारे शरीर का स्लो पाइजन की तरह नाश करती है !
पर प्राचीन काल में ऐसा ना था क्योंकि जिस आयुर्वेद ज्ञान का मुग़ल व अंग्रेजों के शासन काल में जम कर नाश किया गया, वो ज्ञान अपनी चरम अवस्था में था !
आयुर्वेद महा ग्रन्थ जिसके प्रथम प्रणेता प्रलय के देवता भगवान् शिव हैं उन्होंने इस महा ग्रन्थ में एक से एक दुर्लभ और महा शक्ति शाली औषधियों (जैसे हवा में उड़ाने वाली, शरीर को वज्र बनाकर मृत्यु जीतने वाली, रूप बदलने की ताकत प्रदान करने वाली, आदि) का वर्णन किया है पर उसकी पूर्ण जानकारी वाले वैद्य अब सिर्फ ईश्वरीय कृपा से ही मिल सकते हैं !
प्राप्त जानकारी के अनुसार पुरातन काल यानी वैदिक काल में हमारे ऋषि, महर्षि, सामान्य नागरिक से लेकर उच्च वर्ग के लोग प्रातः काल में सोम रस का पान करते थे !
प्राप्त जानकारीनुसार ये सोम रस लगभग 5 दिव्य औषधियों का मिश्रण होता था जिनमे से 4 के बारे में ही हमें फिलहाल जानकारी प्राप्त है और ये 4 औषधियां हैं सोम, होम, व्योम, द्योम !
इन औषधियों का मिश्रण पीने से शरीर की हजारों नाड़ियाँ जबरदस्त स्फूर्ति युक्त हो जाती थी ! जहाँ आज की चाय की उत्तेजना क्षणिक होती है और उसके पीने के कुछ ही देर बाद फिर से सुस्ती घेर लेती है वहीँ सोमरस पीने से पूरे दिन एक जबरदस्त उत्साह, फूर्ति के अलावा सैकड़ो अन्य शारीरिक लाभ (जैसे चिर युवावस्था आदि) मिलते थे !
प्राप्त जानकारीनुसार जैसे जैसे कलियुग घोर होता गया वैसे वैसे सोम रस की दिव्य जड़ी बूटियाँ मिलनी मुश्किल होती गयी तब लोगों ने आयुर्वेद ग्रन्थ के आधार पर एक ऐसा जबरदस्त पेय तैयार किया जिसमे गाय माता के दूध व चाय की पत्ती के अलावा अन्य 6 जड़ी बूटियाँ (जिनकी जानकारी हमें अभी प्राप्त नहीं है) भी मिलाई जाती थी और इस पेय के पीने से ढेरों शारीरिक लाभ (जैसे त्वचा की चमक व कसावट और बालों के कालापन का लम्बे समय तक बरकरार रहना) के अलावा जबरदस्त मानसिक तरावट, स्फूर्ति और उत्साह मिलता था !
हमारे प्राचीन राजा महाराजा और आम जनता भी इस जबरदस्त पेय के बहुत शौक़ीन हुआ करते थे और उन्हें इस पेय को पीने का इन्तजार उसी तरह रहता था जैसे आज के जमाने में लोगों को चाय, कॉफ़ी का हुआ करता है ! इस पेय को खाना खाने के बाद पिया जाता था !
जैसे जैसे समय बीतता गया, लोग फायदे की बजाय स्वाद के पीछे भागने लगे और तब लोगों को लगने लगा की इस पेय में मुख्य स्वाद तो चाय की पत्ती का है तो क्या जरूरत है उसमे अन्य चीजों को इकट्ठा कर डालने की !
लोगों के इसी मामूली आलस्य की वजह से इस चाय के पत्ती से बने बेहतरीन पेय की जानकारी धीरे धीरे लुप्त हो गयी !
आज की डेट में चाय के नाम पर जो पिया जा रहा है वो निश्चित नुकसान दायक है क्योंकि उसका निर्माण आयुर्वेद सम्मत नहीं हैं ! हद तो यह हो गयी है कि अक्सर सुनने को मिलता है कि चाय, काफी बनाने वाली कई बड़ी नामी गिरामी कम्पनियाँ भी अपना प्रॉफिट बढाने के लिए अपनी चाय में बेहद सस्ते में ख़रीदे हुए सड़े मांस व चमड़े के प्रोसेस्ड बुरादे व कॉफी में सुखाई हुई घास के चूरे मिला देती हैं जिससे चाय पीने वाला शाकाहारी आदमी भी अनजाने में मांसाहार का सेवन कर ले रहा है !
आज के जमाने में, हमारे ज्यादातर खाने पीने की चीजों में मिलावट करने वाले भी इतनी उच्च वैज्ञानिक तकनीकी इस्तेमाल करके मिलावट कर रहें हैं कि आम आदमी द्वारा उसमे मिलावट पकड़ पाना बेहद मुश्किल है !
सौभाग्य से हमारे पास बाबा रामदेव जैसे कर्मनिष्ठ संत पुरुष हैं जो डंके की चोट पर पूरे विश्व कि हर जांच टीम को खुला चैलेंज देते हैं कि चाहे मेरे फैक्ट्री आ कर देख लो या बाजार में से किसी भी मेरे प्रोडक्ट को कानूनी तरीके से उठाकर जहाँ चाहे वहां चेक कराके देख लो, वो मिलेगा 100 प्रतिशत शुद्ध और असली ही !
इसी वजह से बाबा रामदेव के मार्ग निर्देशन में बनने वाले पतंजलि प्रोडक्ट्स पूरी दुनिया में जबरदस्त तहलका मचाये हुए है और इनकी इसी प्रसिद्धि ने इनके हजारों दुश्मन पैदा कर दिए है !
पतंजलि के प्रोडक्ट्स आने से पहले जो कम्पनियाँ पिछले कई सालों से भारत के नागरिकों को मूर्ख बनाकर हजारों करोड़ कमा रही थी, अब उन्ही कंपनियों का घाटा इतना बढ़ गया है कि उनके सामने करो या मरो वाली स्थिति पैदा हो चुकी है !
अब ऐसी कम्पनियों के पास 3 ही रास्ता बचा है कि या तो वे अपने प्रोडक्ट्स की क्वालिटी बाबा रामदेव के प्रोडक्ट्स के बराबर अच्छी करें (जो कि वे कर नहीं सकती क्योंकि ना तो उनका इरादा है ना ही साधन; बाबा रामदेव ने अथक मेहनत से फ़ूड पार्क बनाकर रॉ मेटेरिअल इकठ्ठा किये हैं जो इन कंपनियों के पास नहीं है), दूसरा रास्ता है कि ये कंपनियां बाबा रामदेव की कंपनी ही बंद करा दें (जिसका ये लगातार प्रयास कर रही हैं, बिकाऊ मीडिया के माध्यम से बाबा रामदेव के प्रोडक्ट्स को बदनाम करके) और तीसरा और आखिरी रास्ता है कि ये कंपनीयां अपना ही प्रोडक्शन बंद करके भारत से वापस लौट जाय (जिसके लिए ये कत्तई तैयार नहीं हैं क्योंकि भारत जैसी आसानी से बहकने वाली और सोने का अंडा देने वाली जनता इन्हें किसी और देश में नहीं मिलेगी) !
कोई भी पढ़ा लिखा या अनपढ़ आदमी बाबा रामदेव के प्रोडक्ट्स और बाजार में बिकने वाले अन्य नामी गिरामी कंपनियों के प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल कर तुरंत उनमें अंतर समझ सकता है पर उसके बावजूद पता नहीं क्यों कुछ मूर्ख लोग बाबा रामदेव के प्रोडक्ट्स को बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ते !
कुछ तो ऐसे नीच कृतघ्न लोग हैं जो खुद अपने घर में बाबा रामदेव की कंपनी के सारे प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करते हैं पर बाहर सबके सामने बाबा रामदेव और उनके प्रोडक्ट्स की खूब बुराई बतियाते हैं !
बुद्धजीवी की खाल में ऐसे परम मूर्ख लोगों (जो बाबा जी द्वारा इन जरूरत की चीजों को बनाकर बाजार में बेचने का खूब मजाक उड़ाते या आलोचना करते हैं व्यापारी बाबा या कॉर्पोरेट बाबा कहकर) को तभी सद्बुद्धि आएगी जब कभी वे खुद या उनकी संतान मिलावट का शिकार होकर हॉस्पिटल में भर्ती होगी ! और तभी उन्हें समझ में आएगा कि सिर्फ 2 कटोरी उबली सब्जी, 2 ग्लास दूध और 2 जोड़ी धोती में पिछले कई साल से कठिन तपस्वी जीने वाले श्री योगी रामदेव अगर इन खाने पीने की चीजों को बनाकर बेच रहें हैं और रोज दुनिया भर के अपशब्द भी सह रहें हैं तो सिर्फ और सिर्फ हम आम साधारण जनता की जिंदगी सँवारने के लिए ही !
सत्य ही कहा है हमारे शास्त्रों में कि सच्चे संतों का दिल, माँ के समान दयालु और क्षमाशील होता है जो अपनी संतानों द्वारा किये गए अपमानों को बार बार सहते हुए भी उनकी देखभाल करना नहीं छोड़ती है !
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