संतान राम बनेगा या रावण, तय आपको करना है
एक बड़ी गलती जो आजकल के अधिकतर माँ बाप कर रहें है, वो यह है कि उनका अधिकतम ध्यान इसी बात पर रहता हैं कि उनका लड़का पढाई में, स्पोर्ट्स में या म्यूजिक/डांस आदि में कितना अच्छा परफार्म कर रहा है (जिससे उन्हें तात्कालिक सामाजिक सम्मान मिल सके), और सबसे कम ध्यान इस बात पर रहता हैं कि उनके लडके में सभी मानवीय गुण ठीक से पनप भी रहें है या नहीं !
ये मानवीय गुण वही होते हैं जिनके बिना कोई आत्मा, इंसान के शरीर में जन्म लेने के बावजूद इंसान नहीं, जानवर कहलाती है !
सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण मानवीय गुण है. हमेशा 100 प्रतिशत सच बोलने की आदत जिसका घोर अभाव हो गया है आज के जमाने में !
बहुत ही ध्यान से समझने वाली बात है कि झूठ बोलने की आदत ही संसार के सारे तरह के पापों की मुख्य जड़ है !
अतः अगर संसार से झूठ बोलने की आदत एकदम समाप्त हो जाए तो 100 प्रतिशत गारंटी है कि अपने आप ही संसार के सारे (A to Z) अपराध निश्चित ही समाप्त हो जायेंगे !
जो लड़का एक बार माँ बाप से झूठ बोलने में एक्सपर्ट हो गया वो धीरे धीरे सारे गलत काम कर सकता है इसलिए माँ बाप को बेहद गम्भीरता से लड़के की झूठ बोलने की आदत छुड़ाने की कोशिश जरूर करनी चाहिए (स्वभाव सुधारने के कुछ अचूक आध्यात्मिक उपाय भी हैं जिन्हें आप नीचे दिए गए आर्टिकल्स के लिंक्स को क्लिक कर जान सकते हैं) !
सच बोलने के अलावा शाकाहार, क्षमा, दया, मेहनत, अपने बुजुर्ग अभिवावकों और दूसरों की निःस्वार्थ उचित सहायता की भावना आदि जैसे मानवीय गुण भी बेहद जरूरी होते हैं !
मानवीय गुण रहित संतान, बड़ी होकर समाज की नजर में चाहे कितना भी अमीर हो जाय लेकिन वो अपने माँ बाप के काम निश्चित नहीं आने वाली है क्योंकि उसे बचपन में उसके माँ बाप ने सिखाया ही नहीं कि, बेटा सिर्फ उसी जगह पर नहीं देते रहना चाहिए, जहाँ से कुछ न कुछ पाने की आशा हो, कुछ जगह निःस्वार्थ मन से भी देना (सेवा, धन आदि) चाहिए सिर्फ आशीर्वाद नाम की अदृश्य बेशकीमती चीज को पाने के लिए !
इस सच्चाई को दर्शा भी रहें हैं भारत के अधिकाँश वृद्धाश्रम के आंकड़े जहां रहने वाले अधिकतम बुजुर्ग लोग, गरीब नहीं, बल्कि सम्पन्न फैमिली बैकग्राउंड से हैं !
ये विचित्र आंकड़ा, आज के सभी माता पिता को बार बार यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि आखिर जब इन बुजुर्गों की संतानों के पास पैसे की कमी नहीं हैं तो फिर क्यों इन्हें वृद्धाश्रम में घुट घुट कर मरने के लिए छोड़ रखा गया है !
कारण एकदम स्पष्ट है कि बात पैसों की कमी की नहीं बल्कि उनके संतानों के अदंर मानवीय गुणों की कमी की है, जिसे शायद उनके माँ बाप उन्हें बचपन में ठीक से सिखा नहीं पाए थे !
श्री राम जी जब धन, ऐशो आराम आदि के सुखों के बिना भूखे, प्यासे जंगलों में दौड़ते फिर रहे थे तब भी उनके अभिवावकों को उन पर गर्व था जबकि वही दूसरी तरफ रावण सोने की लंका में अपने और अपने पूरे खानदान को एक से बढ़कर एक बेहतरीन ऐशो आराम देता था लेकिन उसके बावजूद उसके अभिवावक हमेशा उससे परेशान और डरते रहते थे कि ना जाने कब किस बात पर नाराज होकर रावण उन्ही का सबके सामने अपमान कर दे !
अतः मानवीय गुणों से रहित संतान अगर “धन” नाम की शक्ति प्राप्त कर लेता है तो उसका घमण्ड इतना ज्यादा बढ़ सकता है कि वो अपने को पालपोष कर बड़ा किये अभिवावकों को अपने आगे कुछ नहीं समझता और आये दिन उनका सबके सामने या पीठ पीछे अपमान करता रहता है !
संतान के द्वारा अपने अभिवावक का सार्वजनिक तौर पर किये गए कुछ बड़े अपमान की पीड़ा मौत से भी ज्यादा दुःख देने वाली हो सकती है क्योंकि मौत तो एक बार मारती है लेकिन ये अपमान की घटना जब जब याद आती तब तब मारती है !
इस तरह के अपमान की क्षति पूर्ती का एक ही इलाज होता है कि संतान ने जिन बाहरी लोगों के सामने अपने अभिवावक का अपमान किया है उन सभी लोगों को दुबारा बुलाकर उन्ही लोगों के सामने अपनी गलती के लिए हाथ जोड़कर बारम्बार विनम्र भाव से माफ़ी मांगे ! जब अपमान किया है सबके सामने तो उस गलती का प्रायश्चित भी बिना किसी संकोच के सबके सामने ही करना चाहिए तभी संतान को उस महा पाप से मुक्ति मिल पाएगी नहीं तो अभिवावक का किया हुआ एक अपमान, संतान का उसी जन्म में या अगले किसी जन्म में 100 बार भीषण सार्वजनिक अपमान निश्चित करवाएगा ! और हाँ कोई संतान यह सोचे कि अपने अभिवावक का सबके सामने पैर छूने या प्रणाम करने से उसकी समाज में इज्जत कम हो जायेगी तो सही में उससे बड़ा मूर्ख कोई नहीं है !
इन्ही सब दिक्कतों को आये दिन झेलने वाले हर भुक्तभोगी अभिवावक का इसलिए निष्कर्ष तौर पर कहना हैं कि संतान गरीब हो लेकिन मानवीय गुणों से भरपूर हो तो माँ बाप को घर ही स्वर्ग लगने लगता है पर ऐसा ना हो तो बढ़ती उम्र के साथ माँ बाप की जिंदगी नरक के समान दुखदायी निश्चित ही होने लगती है !
इसलिए अब भी मौका है, बच्चे की पढाई के मार्क्स या बिजनेस की कमाई से ज्यादा, बच्चे के स्वभाव पर गौर करने का !
मानवीय गुणों को डालने के लिए अभिवावकों में से किसी ना किसी को तो समय निकाल कर अबोध बच्चे को बचपन से ही हर गलत सही बात का फर्क बताना पड़ता है !
बच्चे का विश्वास जीतने के लिए कभी कभी उसके साथ गेम्स भी खेलना पड़ता है पर जितना अधिक से अधिक संभव हो सके उतना समय एक प्राइवेट बॉडीगार्ड कहें या प्राइवेट सेक्रेटरी या पर्सनल ट्रेनर की तरह अपने छोटे बच्चे पर पैनी निगाह लगाये रहनी पड़ती है कि आखिर वो सीख क्या रहा है !
चूंकि बचपन के बारे में एक प्रसिद्ध कहावत है कि “बालक बानर एक स्वभावा” अर्थात बच्चों और बंदर का स्वभाव एक जैसे होता है मतलब इन दोनों को हुडदंग, खुराफात, शरारत, बेवजह हो हल्ला कर चिल्लाना आदि बहुत पसन्द होता है और यह आदत थोड़ा बहुत बच्चों के उचित विकास के लिए जरूरी भी होती है इसलिए अभिवावकों को बच्चों को सुधारने के नाम पर इतना ज्यादा सख्त नहीं हो जाना चाहिए कि बच्चा घुटन महसूस करने लगे और बड़ा होकर दब्बू, हकला या बागी निकल जाए !
जब अभिवावक और उनके संतान में मित्रवत व्यवहार रहता है तो संतान के मन में पलने वाली किसी भी गलत सोच की जानकारी अभिवावक को अक्सर तुरंत पता चल जाती है जिससे उस गलत सोच का जल्द से जल्द खंडन करने में आसानी होती है !
सोच ही सब कुछ है | सोच पवित्र व ऊँची हो तो चाय बेचकर पेट पालने वाला गरीब बच्चा भी बड़ा होकर देशभक्त प्रधानमंत्री बन कर देशप्रेमी जनता के दिलों पर राज कर सकता है पर सोच अगर प्रचंड मूर्खाना हो तो प्रधानमंत्री जैसे सर्वोच्च शख्सियत के घर पैदा होने वाला भी दुनिया में पप्पू के नाम से प्रसिद्ध होकर जग हसायी का पात्र बन सकता है !
इसलिए अभिवावकों में किसी ना किसी को तो समय निकाल कर नियमित तौर पर संतान को बचपन से ही हर वो अच्छी बातें जरूर सिखानी चाहिए, जो भविष्य में सिर्फ उसके लिए ही नहीं बल्कि पूरे जीव जगत के लिए उपयोगी साबित हो सकें !
इन बातों को सिखाने के लिए कुछ खास मेहनत करने की जरूरत नहीं होती है, बस हर सन्डे या किसी भी अन्य छुट्टी के दिन अभिवावक को बच्चे के साथ पिकनिक जैसे खुशनुमा मूड में घर से निकलना चाहिए और फिर बच्चे के साथ किसी ऐसी बंजर जगह जाकर जहाँ उसे लगे कि यहाँ हरियाली की सख्त जरूरत है, वहीँ पर बच्चे के हाथ से ही कोई पौधा लगवाना चाहिए और फिर उस बच्चे को एक बेहद जिम्मेदार और दूरदर्शी इंसान बनाने के लिए उसे समझाना चाहिए कि यह पौधा तभी जी पायेगा जब उसे रेग्युलर पानी और प्रोटेक्शन मिलता रहेगा अतः बच्चे से ही उस पौधे के चारो और एक प्रोटेक्शन वाल जैसा घेरा आदि तैयार करवाना चाहिए और जब तक वो पौधा 8 – 10 फीट लम्बा ना हो जाय तब तक बच्चे के साथ कम से कम हफ्ते में एक बार आकर उसे भरपूर पानी, आयुर्वेदिक खाद आदि जरूर देना चाहिए !
बच्चे को यह बात अच्छे से समझाने की जरूरत है कि सोना चांदी हीरा मोती आदि से भी ज्यादा कीमती है हरे पेड़ क्योंकि इन धातुओं के बिना तो मानव आराम से जी सकता है लेकिन हरे पेड़ बिना बिल्कुल नहीं !
सूखी बंजर होती धरती को फिर से हरी भरी करने के अलावा है और भी कई महान पुण्य के कार्य हैं जिन्हें बच्चों के हाथों से करवाने से कई दूरगामी लाभ खुद को और पूरे समाज को मिलते हैं !
जैसे जब जहाँ जो भी भूखा मिले, बच्चे के हाथ से उसे रोटी जरूर दिलवानी चाहिए क्योंकि यही आदत बच्चे को एक दयालु मानव बनाएगी और जब इसी दयालु मानव के अभिवावक का बूढ़ा शरीर एक दिन अशक्त होकर मल मूत्र कफ से सने हुए बिस्तर पर लेटा रहेगा तो वही दयालु मानव अपने अभिवावक की प्रेम से सफाई करके दिन रात सेवा करेगा !
अगर अभिवावक की इच्छा हो तो वो अपने बच्चों को एक लक्ज़री लाइफ के सारे सुख ऐशो आराम दे सकता हैं लेकिन साथ ही साथ यह हर अभिवावक का एक सामाजिक धर्म भी है कि वे अपने बच्चों को बचपन से ही गरीबी, अभाव, भूख प्यास आदि जैसे खून के आंसू रुलाने वाले दर्द से भी भली भांति परिचित करायें ताकि बच्चे पैसे, भोजन आदि की असली कीमत को समझ पायें !
ऐसी उचित व्यवहारिक परवरिश लेकर बड़ा हुआ कल का बच्चा जो कि आज का एक व्यस्क नागरिक है, समझ सकता है उन गरीब ललचाती आखों के पीछे छिपे भयंकर दर्द और बेबसी को, जो किसी अमीर को स्वादिष्ट खाने की टेबल पर बैठ कर एन्जॉय करते हुए चुपचाप दूर खड़ी होकर देखती हैं !
वास्तव में मनुष्य मुख्यतः एक सामाजिक प्राणी है इसलिए जैसा समाज का फैशन (प्रचलन) होता है, वैसा ही देखा देखी वो भी करता है !
एक ज़माना था कि अच्छे काम करने वाले लोग इतने ज्यादा हुआ करते थे कि लोग अपने द्वारा किये गए अच्छे कामों को छुपाते थे कि नेकी कर दरिया में डाल पर अब ऐसा नहीं रहा, अच्छाई मर रही है इसलिए जिन महानुभावों ने जो जो अच्छा काम किया है उसे जनता के सामने जरूर लाना चाहिए ताकि जैसे खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है वैसे ही दूसरे बहुत से लोगों को अच्छा काम करते हुए देख स्वार्थी लोगों के मन में अच्छा काम करने की निश्चित इच्छा पैदा होने लगती है !
जब समाज में अधिक से अधिक लोग अच्छा काम करेंगे तो उनको देखकर दूसरे भी अच्छा काम करने के लिये निश्चित उत्सुक होंगे ! यह बहुत सम्भव है कि किसी एक के परोपकारी कार्य से प्रेरित होकर कोई दूसरा भी कभी किसी भूख से तड़पते गरीब को भरपेट खाना खिला दे या किसी बीमार गरीब का इलाज करा दे !
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