मन सर्पिणी है जो भूख लगने पर अपने ही अंडे खा सकती है; इसलिए इसका फायदा उठाईये
परम आदरणीय ऋषि सत्ता से प्राप्त जानकारी अनुसार;-
मानव मन हमेशा भूखा रहता है और मानव मन का भोजन है “विचार (अर्थात सोचना)” !
इसीलिए सभी मानवों का मन अपनी भूख को शांत करने के लिए, किसी ना किसी विषय के बारे में हर समय सोचता ही रहता है !
आम तौर पर यह सोचना मरते दम तक बंद नहीं होता है !
लेकिन कोई मानव अपनी सोचने की आदत को, प्रयास पूर्वक रोज कुछ देर तक रोकने में कामयाब हो सके तो उसको इसका कल्पना से भी परे लाभ मिल सकता है !
सोचने की आदत को कुछ देर तक के लिए रोक देने को ही बोलतें हैं “निराकार ध्यान” का अभ्यास करना !
परम आदरणीय ऋषि सत्ता द्वारा प्राप्त जानकारी अनुसार सभी मानवो का मन एक भूखी सर्पिणी की तरह होता है जिसे भूख लगने पर अगर कुछ ना मिले तो वह अपने ही अण्डों को खाने लगती है !
ठीक इस तरह जब कोई स्त्री/पुरुष ध्यान के अभ्यास के दौरान अपने मन को पूरी तरह से विचार शून्य (विचार रहित) कर देता है तो उसका मन, उसकी चित्तवृत्तियों को ही खाने लगता है !
वास्तव में चित्त की वृत्तियाँ ही, मन के अंडे होतें हैं और इनके समाप्त होने पर जीवन से सभी तरह के दुःख स्वतः धीरे – धीरे समाप्त होने लगतें हैं !
दुःख चाहे शारीरिक (जैसे- कोई भी बड़ी से बड़ी बिमारी) हो या मानसिक, सभी के मूल में चित्त की वृत्तियां ही कारण होती हैं इसलिए अपने हर तरह की समस्याओं की समाप्ति के लिए निराकार ध्यान का अभ्यास करना, वाकई में महान आश्चर्यजनक लाभ देने वाला निश्चित तरीका है !
निराकार ध्यान होता क्या है और इसे कैसे किया जा सकता है, इसके बारे में “स्वयं बनें गोपाल” समूह पहले भी कई लेख प्रकाशित कर चुका है (जिसमें से एक मुख्य लेख पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें – दैवीय कायाकल्प की प्रक्रिया निश्चित शुरू हो जाती है सिर्फ आधा घंटा इस तरह 1 से 3 महीने ध्यान करने से और साथ ही यह भी लेख पढ़ें- दूर से दिखने में है सुंदर स्त्री पर वास्तव में है खून पीने वाली डायन ) !
वास्तव में यह मानव शरीर अंत हीन दुर्लभ रहस्यों से भरा पड़ा हुआ है जिनका सही तरीके से इस्तेमाल करके, ना सिर्फ अपनी सभी बीमारियों का खात्मा किया जा सकता है बल्कि सुख की चरम सीमा अर्थात ईश्वर का भी निश्चित साक्षात्कार किया जा सकता है !
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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण से संबन्धित आवश्यक सूचना)- विभिन्न स्रोतों व अनुभवों से प्राप्त यथासम्भव सही व उपयोगी जानकारियों के आधार पर लिखे गए विभिन्न लेखकों/एक्सपर्ट्स के निजी विचार ही “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि पर विभिन्न लेखों/कहानियों/कविताओं/पोस्ट्स/विडियोज़ आदि के तौर पर प्रकाशित हैं, लेकिन “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान और इससे जुड़े हुए कोई भी लेखक/एक्सपर्ट, इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि के द्वारा, और किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा, दी गयी किसी भी तरह की जानकारी की सत्यता, प्रमाणिकता व उपयोगिता का किसी भी प्रकार से दावा, पुष्टि व समर्थन नहीं करतें हैं, इसलिए कृपया इन जानकारियों को किसी भी तरह से प्रयोग में लाने से पहले, प्रत्यक्ष रूप से मिलकर, उन सम्बन्धित जानकारियों के दूसरे एक्सपर्ट्स से भी परामर्श अवश्य ले लें, क्योंकि हर मानव की शारीरिक सरंचना व परिस्थितियां अलग - अलग हो सकतीं हैं ! अतः किसी को भी, “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि के द्वारा, और इससे जुड़े हुए किसी भी लेखक/एक्सपर्ट के द्वारा, और किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा, प्राप्त हुई किसी भी प्रकार की जानकारी को प्रयोग में लाने से हुई, किसी भी तरह की हानि व समस्या के लिए “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान और इससे जुड़े हुए कोई भी लेखक/एक्सपर्ट जिम्मेदार नहीं होंगे ! धन्यवाद !