क्या पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव आपस में बदल रहें हैं और अगर बदल रहें हैं तो क्यों बदल रहें हैं
अभी हाल में ही विश्व में कुछ ऐसी आश्चर्यजनक घटनाएं घटी हैं जिनसे पूरे विश्व के वैज्ञानिक समेत आम आदमी भी सोचने को मजबूर हो गया कि आखिर दुनिया में एक के बाद एक ये कैसी उथल पुथल मची हुई है ! कोरोना वायरस की विचित्र ताकत से तो दुनिया हिली हुई थी तब तक अभी सुनने में आ रहा है कि पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के पास स्थित कनाडा देश के वैंकूवर शहर के इलाके में तापमान अब तक के चरम स्तर तक गर्म (49.6 डिग्री) हो गया था जबकि दक्षिणी ध्रुव के पास स्थित न्यूजीलैंड में तापमान काफी ठंडा (-4 डिग्री) हो गया था !
माना जा रहा है कि कनाडा में जो स्थिति हुई है वो 10 हजार साल में एक बार होती है और वहीँ दूसरी तरफ न्यूजीलैंड में भी इस वक्त औसतन तापमान 11 से 15 डिग्री सेल्सियस तक रहा करता था लेकिन इस बार -4 डिग्री तक पहुच गया था; जिसके बारे में अधिक जानने के लिए कृपया मीडिया में प्रकाशित इस खबर को पढ़ें – धरती पर ये कैसा संकट? कनाडा में गर्मी से तप रहे लोग, न्यूजीलैंड में बर्फबारी से ठिठुरन, जानिए इस बड़े बदलाव का कारण
सुनने में आ रहा है कि ऐसी सम्बन्धित घटनाओं के कारण के बारे में संभवतः कुछ वैज्ञानिको ने अनुमान दिए हैं कि हो सकता है कि पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव आपस में बदल रहें हों ! वैसे इस बात को आंशिक रूप से कुछ हॉलीवुड मूवीज (जैसे – 2012 मूवी) में भी दिखाया जा चुका है ! लेकिन प्राप्त जानकारी अनुसार ऑफिशियल तौर पर वैज्ञानिक अभी भी इस थ्योरी पर एकमत नहीं हैं !
चूंकि कनाडा और न्यूजीलैंड में हुई इन बेहद चौकाने वाली घटनाओं का पूरी दुनिया के भविष्य से काफी महत्वपूर्ण सम्बन्ध हो सकता है इसलिए “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने इस विषय में परम आदरणीय ऋषि सत्ता से भी मार्गदर्शन प्राप्त करने का प्रयास किया और हर बार की तरह विश्व कल्याणार्थ ऋषि सत्ता की कृपा स्वरुप ज्ञान हमें सहज ही प्राप्त हो गया !
परम आदरणीय ऋषि सत्ता अनुसार, हाँ ये सच है कि पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव आपस में बदल रहें हैं और इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 100 साल लग सकतें हैं ! ऋषि सत्ता अनुसार पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव आपस में इसलिए बदल रहें हैं क्योकि युग परिवर्तन हो रहा है ! अब हमारा जीव जगत तम की अधिकता से सत्व की अधिकता की तरफ बढ़ना शुरू कर रहा है (जबकि पूर्वकाल में हम सत्व की अधिकता से तम की अधिकता की तरफ बढ़ रहे थे) !
वास्तव में उत्तरी ध्रुव पॉजिटिव शक्तियों का केंद्र है तो दक्षिणी ध्रुव नेगेटिव शक्तियों का केंद्र है इसलिए युग परिवर्तन की दशा में पृथ्वी का ध्रुवीय परिवर्तन अवश्य होगा। मतलब आज जहाँ पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव (Geographic North Pole or Terrestrial North Pole) है वहां भविष्य में पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव (Geographic South Pole or Terrestrial South Pole) हो जाएगा और आज जहाँ पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव है वहां भविष्य में उत्तरी ध्रुव हो जायेगा !
युग परिवर्तन की इस कड़ी में हमें पृथ्वी की कई वर्तमान गतिविधियाँ भविष्य में बदली हुई अवस्था में देखने को मिल सकती हैं जैसे – पृथ्वी के ध्रुव तो बदल ही सकते हैं, साथ ही साथ पृथ्वी आज अपने जिस अक्ष (axis of rotation) पर झुकी हुई है भविष्य में उसमें भी परिवर्तन देखने को मिल सकता है जिसकी वजह से पृथ्वी के दिन व रात का समय और साथ ही साथ वर्ष का समय भी बदल सकता है !
यह पूरा परिवर्तन संभव कैसे हो पा रहा है इसके बारे में आज के वैज्ञानिकों को जरा भी अंदाजा नहीं है लेकिन इसके बारे में ऋषि सत्ता ने बताया कि वास्तव में हमारे सौरमंडल का सूर्य, अब अपने परिक्रमा के पथ पर उस महासूर्य के नज़दीक जा रहा है, जिस महासूर्य का हमारा सूर्य चक्कर लगाता है (अभी आज के बहुत से वैज्ञानिको को यही नही पता है कि हमारे सौर मंडल का सूर्य भी किसी का चक्कर लगाता है पर इसका खुलासा “स्वयं बनें गोपाल” समूह के मूर्धन्य शोधकर्ता डॉक्टर सौरभ उपाध्याय ने बहुत पहले ही कर दिया था) !
अतः इस बात को फिर से समझिये कि अब हमारा सूर्य, अपने परिक्रमा के पथ पर उस स्थान की तरफ बढ़ रहा है जहाँ से हमारे सूर्य की महासूर्य से दूरी सबसे कम होगी ! जिस समय हमारा सूर्य उस स्थान पर पहुंचेगा (जिस स्थान पर महासूर्य से दूरी सबसे कम होगी), उस समय हमारी पृथ्वी पर सकारात्मकता (Positivity) सबसे अधिक होगी जिसकी वजह से उस समय पृथ्वी पर उपस्थित लगभग सभी लोग चरित्रवान होंगे तथा समस्त सभ्यताओं में खुशहाली भी अपने चरम पर होगी ! हमारे धर्मग्रंथों में इसे ही सत्य युग कहा गया है ! वास्तव में वो महासूर्य ही हमारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त समस्त प्रकार की सकारात्मकता (Positivity) का उद्गम स्रोत है !
वह महासूर्य कुछ और नहीं बल्कि भगवान विष्णु की नाभि है ! ऋषि सत्ता के अनुसार हमारा सूर्य, महासूर्य के जितने अधिक नजदीक रहता है हमारी पृथ्वी पर उतनी ही ज्यादा सात्विकता रहती है ! वास्तव में भगवान विष्णु के हर रोम में अनंत ब्रह्मांड वास करते हैं इसलिए विष्णु नाभि यानी महासूर्य को आज के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किये गए टेलिस्कोप से देख पाना सम्भव नहीं है !
हालांकि हमारे सूर्य को अपने परिक्रमा पथ पर घुमते हुए, महासूर्य के सबसे नजदीक स्थान तक पहुँचने में अभी लगभग 12000 साल लग सकते हैं ! पर सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हमारा सूर्य उस स्थान की तरफ बढ़ना शुरू हो चुका है यानी कालचक्र रिवर्स (विपरीत दिशा में) घूम चुका है और अब हम कलियुग से सत्ययुग की तरफ बढ़ने की शुरुआत कर चुके हैं !
लेकिन पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के आपस में बदलने जैसी विशालकाय प्रक्रियाओं के होने के दौरान (यानी अगले 100 सालों में) पृथ्वी पर भारी उथल – पुथल मच सकती है ! ये उथल – पुथल केवल बड़े भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, आगजनी, अकाल, बाढ़ – सुनामी आदि जैसी आपदाओं के रूप में ही दिखाई दे यह जरूरी नहीं है क्योकि कुछ ऐसी आश्चर्यजनक घटनाएं भी हो सकती हैं जिनके बारे में आज आम आदमी सोचता भी नहीं है; जैसे– समुद्र के अंदर से अचानक एक एकदम नए द्वीप (island) या महाद्वीप का प्रकट हो जाना, आज जो देश महाद्वीप व समुद्र जहाँ स्थित हैं उनकी जगह (भौगोलिक स्थिति) एकदम बदल जाना, या पानी के अंदर गैर मानवीय प्राणियों (जैसे– एलियंस; Aliens) की सहायता से मानवों के रहने के लिए नए शहरों को बसाना आदि !
अब ये तो सभी लोग जानते हैं कि परिवर्तन हमेशा कष्टकारी होता है लेकिन जब बात महापरिवर्तन की हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है भविष्य का समय दिन ब दिन पहले से कितना ज्यादा कठिन होता जा सकता है इसलिए बुद्धिमानी इसी में हैं कि सिर्फ रोटी, कपड़ा, मकान तक की सीमित सोच से बाहर निकल कर, भविष्य की कठिन परिस्थितयों को सुगम बनाने की दिशा में भी हम सभी को कुछ ना कुछ प्रयास अवश्य करना चाहिए !
इन प्रयासों में एक महत्वपूर्ण प्रयास यह है कि सबसे पहले हमें एकजुट होना होगा क्योकि प्राचीन ग्रन्थों में भी लिखा है कि “संघे शक्ति कलौयुगे” यानि इस कलियुग में शक्ति, संगठन से ही मिलती है ! ये सही है कि हम मानव साइंस व टेक्नोलॉजी में बहुत उन्नत हो चुके हैं पर इसके बावजूद आज भी हम किसी भूकम्प को आने से पहले ही पूरी तरह से रोक देने का दावा नहीं कर सकते हैं ! लेकिन इस बात का दावा जरूर कर सकतें है कि अगर हम मानवों में एकता है तो हम भूकम्प या किसी भी दूसरी वैश्विक आपदा के बाद होने वाले नुकसान को कम कर सकतें है दवा, भोजन, पानी आदि जैसी राहत सामग्री की व्यवस्था करके !
इतिहास में ऐसा कई बार देखने को मिला है कि सम्पन्न माने जाने वाले लोग, आकस्मिक आपदाओं की वजह से अचानक से विपन्न हो गयें हैं इसलिए दूरदर्शी लोग अपने से शक्तिशाली लोगों के साथ – साथ कमजोर लोगों से भी यथासंभव अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखते हैं क्योकि कोई नहीं जानता कि बुरे वक्त में कब, किसकी थोड़ी सी मदद से भी उनका भला हो सकता है, जिसका सबसे बड़े उदाहरण थे लक्ष्मण जी जिनके प्राणों की रक्षा का तरीका उनके सबसे बड़े दुश्मन लंका के चिकित्सक सुषेण जी ने ही बताया था !
लेकिन समस्या ये है कि जगतगुरु कहलाने वाला भारत देश जहाँ का मूल मन्त्र था “वसुधैव कुटुंबकम्” (अर्थात पूरा विश्व एक ही परिवार है) वहां के कुछ लोगों की सोच भी इतनी संकीर्ण हो चुकी है कि वो खून के रिश्ते से बने हुए सगे भाई – बहन, माता – पिता वाले संयुक्त परिवार (joint family) तक को बोझ समझने लगे हैं तो उनसे पूरे विश्व को एक परिवार मानने की उम्मीद करना ही व्यर्थ होगी !
वास्तव में इस कलियुग का स्वभाव है कि जहाँ भी उसे सच्चा प्रेम दिखाई देता है वहां कलियुग तुरंत सक्रीय होकर उस प्रेम को तोड़ने के लिए विवाद पैदा कर सकता है इसलिए किसी घर में सिर्फ पति – पत्नी अकेले भी रहें तब भी उनके बीच झगड़ा होना तय है ! लेकिन जिनके संस्कार मजबूत हैं वे विवाद में ना तो अपनी मर्यादा को पार करते हैं और ना ही वक्ती तौर के गुस्से की वजह से अपने रिश्तों के प्यार में कमी आने देते हैं !
यहाँ तक की संस्कारी परिवारों में यह भी देखा गया है कि कुछ देर का गुस्सा उनके लिए फायदेमंद साबित होता है क्योकि यह क्षणिक गुस्सा उनके रिश्तों के प्यार को हर बार पहले से भी ज्यादा बढ़ा देता है ! उनके हर बार के गुस्से के बाद उन्हें समझ में आता है कि वो अपने परिवार के हर सदस्य को कितना ज्यादा प्यार करते है जिसकी वजह से उन्हें उनकी थोड़ी सी भी दूरी अच्छी नहीं लगती है (यह ठीक इसी तरह है जैसे बीच – बीच में नमक खाने से ही चीनी की मिठास की असली कीमत समझ में आती है)!
व्यक्ति की चेतना का जितना कम विस्तार होता है वह उतना ही ज्यादा स्वार्थी होता है इसलिए ऐसे लोग सबसे पहले सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचते हैं ! लेकिन जैसे – जैसे व्यक्ति की चेतना का विस्तार बढ़ता जाता है वैसे – वैसे उसका प्यार का दायरा बढ़ता जाता है जिसकी वजह से वो पहले “मै” से “मेरा परिवार” और फिर क्रमशः “मेरा पूरा खानदान व मेरे दोस्त”, फिर “मेरा मोहल्ला”, फिर “मेरा शहर”, फिर “मेरा प्रदेश”, फिर “मेरा देश”, और फिर अंततः “मेरी पूरी धरती माँ (यानी विश्व)” को प्यार करने लगता है !
क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान का एक नाम “विश्वात्मा” (विश्व + आत्मा) क्यों है ? वो इसलिए है क्योकि भगवान कुछ और नहीं बल्कि इस दुनिया में दिखाई देनी वाली और ना दिखाई देनी वाली सभी चीजों से मिलकर बनी हुई एक शरीर है ! और जैसे हम मानवों को अपने शरीर के सभी अंगों से एक समान प्यार है उसी तरह भगवान को भी अपने शरीर के सभी अंगो अर्थात दुनिया की सभी चीजो से एक समान प्यार है (और जैसे हम अपने शरीर के किसी अंग के रोगी होने पर चीर – फाड़ यानी ऑपरेशन चिकित्सा करते हैं वैसे ही भगवान अपने शरीर के रोग अर्थात दुष्ट प्राणियों को सुधारने के लिए चीर – फाड़ करते रहते हैं) !
यहाँ पर विश्वात्मा नाम को इतना विस्तार से इसलिए समझाया गया है क्योकि इसी विश्वात्मा नाम में ही हर मानव के जन्म लेने का अंतिम लक्ष्य यानी मोक्ष पाने का रहस्य छिपा हुआ है ! वास्तव में मोक्ष पाने का मतलब यही तो होता है कि मानव खुद ही यह समझ ले कि “अहम् ब्रह्मास्मि” अर्थात मै ही भगवान हूँ और मै ही इस पूरी दुनिया के कण – कण में समाया हुआ हूँ !
तो जब किसी जीवात्मा के हृदय में पूरी दुनिया की हर चीज के लिए इतना प्रेम पैदा हो जाए जितना उसके अंदर अपने खुद के शरीर के सभी अंगो के लिए है तो समझ जाना चाहिए कि वह जीवात्मा, अब विश्वात्मा बन चुकी है जिसकी वजह से वो जीवात्मा अब ईश्वर के ही समान परम सुखमय स्थिति में पहुँच चुकी है जिसके एक प्रसिद्ध उदाहरण थे श्री रामकृष्ण परमहंस जी जो सबके दुःख में दुखी होने के बावजूद भी अंदर से सदा परम आनंद महसूस करते रहते थे !
निष्कर्ष यही है कि सिर्फ अपनों में अपनापन खोजने की बजाय, सभी को अपना बना लेने में ही परम सुख है ! और जहाँ तक बात विश्व में होने वाली विचित्र घटनाओं की हैं तो “स्वयं बनें गोपाल” समूह के पूर्व आर्टिकल्स में भी इस बात का स्पष्ट तौर पर वर्णन है कि यह केवल जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग (Climate Change or Global Warming) जैसा साधारण परिवर्तन नही है बल्कि यह युग परिवर्तन की संधि वेला है जिसमें एक से बढ़कर एक आश्चर्यजनक घटनाएं दिखाई देंगी !
वैसे सोचने का एक तर्क यह भी है कि वर्तमान व भविष्य में प्रकृति में होने वाले खतरनाक बदलाव के लिए हम मानव भले ही हमेशा खुद की लापरवाहियों व गलतियों को दोषी मानें लेकिन अगर तात्विक दृष्टि से देखें तो हम मानव भी तो प्रकृति का एक अनिवार्य हिस्सा हैं तो इसका मतलब हम मानवों ने जाने – अनजाने जो कुछ भी गलत – सही काम अब तक किया है वो प्रकृति के शाश्वत नियम अर्थात हमेशा “प्राकृतिक संतुलन” को मेंटेन रखने के तहत ही तो किया है ! वास्तव में प्रकृति अर्थात प्रत्यक्ष महामाया अपरम्पार शक्तिशाली है इसलिए हमारे चाहने से प्रकृति में बदलाव नहीं आता है बल्कि प्रकृति के चाहने से हमारे में बदलाव आता है !
इस शाश्वत सत्य को सभी जानते हैं कि बिना विनाश के विकास संभव नही है जैसे जब कोई ज्वालामुखी फटता है तो वो अपने आस – पास स्थित पुरानी सृष्टि का विनाश जरूर कर देता है लेकिन ज्वालामुखी के अंदर से निकला गर्म लावा ठंडा होने पर नयी आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत उपयोगी और उपजाऊ जमीन तैयार करता है ! यही सृष्टि का अटल नियम है ! खैर हम भौतिक नियमों से बंधे मानव हमेशा से प्रकृति के कठोर निर्णयों को रोक पाने में अक्षम रहें हैं लेकिन जो चीज हम लोग कर सकतें हैं वो है इन घटनाओं के दौरान होने वाले नुकसान को अपनी वैश्विक एकता यानी एक दूसरे की यथासंभव सहायता करके कम कर सकतें हैं !
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