विश्व के जागृत हिन्दू मंदिर और तीर्थ स्थल -1
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में चौकिया मंदिर शीतला माता का अति प्रसिद्ध और अति प्राचीन मंदिर है जिसे आदि शक्ति विन्ध्याचल माँ की चौकी भी कहते है।
नियम है की पूर्वांचल के लोगो को विंध्याचल जाने से पहले चौकिया मंदिर आना चाहिए। मन्दिर के साथ ही एक बहुत ही खूबसुरत तालाब भी है, श्रद्धालुओं का यहां नियमित आना-जाना लगा रहता है।
यहाँ पर हर रोज लगभग 1000 से 2000 लोग आते हैं। नवरात्र के समय मे तो यहाँ अपरम्पार भीड़ होती हैं।
यहाँ बहुत दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिये आते हैं। यह हिन्दुओ का एक पवित्र मंदिर है जहा हर श्रधालुओ की मनोकामना चौकिया माता पूरा करती है।
समुद्री तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है, जहां देवी पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं।
प्रचलित कथा के अनुसार देवी का विवाह संपन्न न हो पाने के कारण बच गए दाल-चावल बाद में कंकर बन गए।
आश्चर्यजनक रूप से कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल के आकार और रंग-रूप के कंकर बड़ी मात्रा में देखे जा सकते हैं।
कन्याकुमारी अपने सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। सुबह हर होटल की छत पर पर्यटकों की भारी भीड़ सूरज की अगवानी के लिए जमा हो जाती है।
करनी माता का यह मंदिर जो बीकानेर (राजस्थान) में स्थित है, बहुत ही अनोखा मंदिर है। इस मंदिर में रहते हैं लगभग 20 हजार काले चूहे।
लाखों की संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामना पूरी करने आते हैं। करणी देवी, जिन्हें दुर्गा का अवतार माना जाता है, के मंदिर को ‘चूहों वाला मंदिर’ भी कहा जाता है।
यहां चूहों को काबा कहते हैं और इन्हें बाकायदा भोजन कराया जाता है और इनकी सुरक्षा की जाती है। यहां इतने चूहे हैं कि आपको पांव घिसटकर चलना पड़ेगा।
अगर एक चूहा भी आपके पैरों के नीचे आ गया तो अपशकुन माना जाता है।
कहा जाता है कि एक चूहा भी आपके पैर के ऊपर से होकर गुजर गया तो आप पर देवी की कृपा हो गई समझो और यदि आपने सफेद चूहा देख लिया तो आपकी मनोकामना पूर्ण हुई समझो।
पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य की राजधानी कराची से १२० कि.मी. उत्तर-पश्चिम में हिंगोल नदी के तट पर ल्यारी तहसील के मकराना के तटीय क्षेत्र में हिंगलाज में स्थित एक हिन्दू मंदिर है।
यह इक्यावन शक्तिपीठ में से एक माना जाता है और कहते हैं कि यहां सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था।
यह उतराखंड राज्य में स्थित है !
तुंगनाथ मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा है.कि जब पांच पांडवों पर अपने परिवार के भाईय़ों की हत्या का आरोप लगा तो उस पाप के श्राप के रुप में उन्हें बैल का रुप दे दिया गया, पांडवों ने इन स्थानों में प्रत्येक मंदिर में पांच केदार का निर्माण किया गया।
इस स्थान से एक अन्य कथा जुडी हुई है, कि भगवान राम से रावण का वध करने के बद ब्रह्माहत्या शाप से मुक्ति पाने के लिये उन्होनें यहां पर शिव की तपस्या की थी तभी से इस स्थान का नाम चंद्रशिला भी प्रसिद्ध है।
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