बड़े बुजुर्गो द्वार दिया गया अनुभवी ज्ञान
– जो कार्य बड़े हथियार से नहीं किये जा सकते वो कार्य आदमी की प्रकृति परखकर करवाए जा सकते हैं। जैसे की अहंकारी के सामने हाथ जोड़ कर, मूर्ख के साथ उसको जैसी इच्छा हो वैसा बर्ताव की छूट देकर, विद्वानके सम्मुख सच बोल कर उसको खुश रखकर, कार्य करवाया जा सकता हैं। इससे अपना कार्य भी होता रहता हैं साथ ही लड़ाई – झगडा से भी बचा जा सकता हैं।
– सर्प को चाहे कितना भी दूध पिलाओ वह जहर ही पैदा करेगा; कडवे नीम के मूल मैं चाहे कितना शक्कर डालो वह कडवा ही रहेगा, यानी की जन्म से आये ‘संस्कार’ जैसे होते हैं वैसे ही रहते हैं। स्वभाव बदलना सामान्य के बस की बात नहीं।
– फूलो की खुशबु को मिट्टी अपना लेती हैं लेकिन मिट्टी की खुशबु फूल कभी नहीं अपनाता। जैसे अच्छा आदमी बुरे क साथ होकर भी विचलित नहीं होता।
– बहुत निकटता कभी कभी स्नेह को तोड़ देती हैं। विशेष कर राजा; अग्नि; मूर्ख; पानी, इन सब से बहुत स्नेह होने से कुछ समय बाद स्नेह कम होता जाता हैं और जान जोखिम में भी पड़ सकती हैं !
– पापी को सीधे रास्ते लेने हेतु दो ही मार्ग हैं, एक उसको युक्तिपूर्वक समझाना या फिर दूसरा न समझे तो भय दिखाकर कर समझाना।
– महापुरुषों के गुण देखने चाहिए न की दोष क्योकि सब में कुछ न कुछ बुराई होनी ही हैं। मानव मात्र की यही खासियत हैं।
– तैल में जल मिल नहीं सकता, घृत से जल नहीं निकलता, पारद सभी चीज में घुल नहीं सकता। वैसे ही विभिन्न स्वभाव वाले लोग एक दूसरे से घुल मिल नहीं सकते।
– संतान को 5 साल तक प्यार करो, बाद के 10 साल उन पर अनुशासनात्मक बर्ताव करो, लेकिन 16 साल की उम्र के बाद उसके साथ मित्रता का ही बर्ताव हो !
– सुखी और शांतिपूर्ण घर वही हैं जिस घर के संतान गुणवान, संस्कारी, बुद्धिमान होते हैं। पत्नी शांतिपूर्ण और सच्ची गृहिणी हो। जिस घर में मेंहमानो का आदर और सत्कार होता हो। ईश्वर का पूजन होता हो। इसी प्रकार के घर में सदा दिव्य सुख की अनुभूति होती हैं।
– फूलो में खुशबु, तिल में तेल, दूध में घी और गन्ने में गुड अन्दर ही छुपे होते हैं और वो बाहर से नहीं दीखते लेकिन उनको हम स्वीकार करते हैं। बस वैसे ही मानव शरीर में आत्मा होती हैं फिर भी हम उसको क्यों नहीं स्वीकार करते !
– कर्द के शाखाओ पर फूल नहीं आते तो बसंत का क्या फायदा ! चातक के मुह में वर्षा की एक बूंद भी नहीं पड़ती तो उसमें बादल का क्या दोष !
– किसी को भी कमजोर नहीं समझना चाहिए, हर एक के पास कुछ न कुछ शक्ति होती ही हैं। कभी भी उसकी शक्ति हमें हैरान कर सकती हैं !
– उच्च कुल में जन्मा मनुष्य अगर संस्कार, शील से युक्त न हो तो वह सुगंध के बिना फूल जैसा हैं।
– असंतुष्ट रहनेवाला पंडित कभी गुणवान नहीं होता !
– बहुत ज्यादा संतोष से कार्य करने वाला राजा उसके राज्य की प्रगति नहीं कर सकता !
– कोई गुण किसी के लिए अच्छा तो किसी के लिए बुरा भी होता हैं।
– विद्यार्थी, नौकर, भूखा इंसान, राजा, खजांची, चौकीदार और बुद्दिमान इसमे से कोई भी सो जाए (अपनी जिम्मेदारियों के प्रति) तो तुरंत ही उनको जगा देना चाहिए।
– कंजूस को भिखारी शत्रु लगता हैं।
– मूर्ख को उपदेशक शत्रु लगता हैं।
– चोर को रात्रि का चन्द्रमा का प्रकाश शत्रु लगता हैं !
– अन्न दान कलिकाल में श्रेष्ठ कहा गया हैं।
– सागर के लिए वर्षा हो या न हो कुछ फर्क नहीं पड़ता !
– जो ज्ञान से युक्त हैं उसको द्रव्य प्रभावित नहीं कर सकता !
– जिसका पेट भरा हैं उसको उत्तम भोजन कुछ काम नहीं आता।
– विष में अगर अमृत भरा हो तो भी उसे पी लेना चाहिए !
– सुवर्ण अपवित्र स्थान में गिर जाय तो भी उसे उठा लेना चाहिए, इसी प्रकार शिक्षा लेते वक़्त या गुण लेते वक़्त सामने वाला नीचा हो फिर भी उस से शिक्षा या गुण लेते हैं !
– निद्रा मृत्यु का ही एक रूप है!
– चैतन्य के जो ठीक विपरीत है, वही निद्रा है।
– यह जीवन बहुमूल्य है इसलिए इसे अनावश्यक निद्रा मे बर्बाद करना नहीं चाहिए।
– मनोविकार व्यक्ति को उचीत – अनुचित का भेद भुला देते हैं।
– किसी चीज का स्वाभिमान होना बहुत जरुरी हैं। लेकिन यही स्वाभिमान अभिमान में न बदले वह इससे भी ज्यादा जरुरी हैं।
– क्रोध यमराज के समान है, उसके कारण मनुष्य मृत्यु की गोद में चला जाता है। तृष्णा वैतरणी नदी की तरह है जिसके कारण मनुष्य को सदैव कष्ट उठाने पड़ते हैं। विद्या कामधेनु के समान है । मनुष्य अगर भली भांति शिक्षा प्राप्त करे को वह कहीं भी और कभी भी फल प्रदान कर सकती है। संतोष नन्दन वन के समान है। मनुष्य अगर अपने अन्दर उसे स्थापित करे तो उसे वैसे ही सुख मिलेगा जैसे नन्दन वन में मिलता है।
– अनुभव हमारे ज्ञान को बढ़ा देता है लेकिन हमारी बेवकूफियों को कम नहीं करता।
– कुछ हम पहले से जानते हैं, किन्तु फिर भी परिणाम जब सामने आता है तो आघात लगता है उसी तरह सभी जानते हैं, जिसका जन्म हुआ है वह अवश्य मरेगा एक दिन, परन्तु जब मरता है तो विस्मय होता है और दुःख भी !
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