जब अपने भतीजे को जेल से छुड़ाने के लिए, पूरे शहर में सुनामी ला दी बलराम जी ने
यह ऐतिहासिक घटना उन स्वार्थी लोगों के लिए बहुत शिक्षाप्रद है जो शादी हो जाने के बाद, बिना किसी मजबूरी के, सिर्फ अपनी एक आरामदायक जिंदगी जीने के लिए, घर से अलग रहते है और साथ ही अपने छोटे बच्चों को भी शुरू से सिखाते हैं कि “हम दो हमारे दो” ही असली परिवार है यानी सिर्फ पति – पत्नी और उनके बच्चे ही असली परिवार है, बाकी बूढ़े दादा – दादी, चाचा – चाची, बुआ – फूफा आदि सब ऐसे दूर के यूजलेस रिलेटिव्स हैं जिनसे क्लोज रिलेशनशिप रखने में सिर्फ घाटा ही है !
वास्तव में परम आदरणीय हिन्दू धर्म में संयुक्त परिवार को इसलिए ही इतनी तवज्जो दी गयी है क्योकि भगवान के द्वारा बनाये गए “खून के रिश्तों” को अगर जानबूझकर बार – बार परेशान ना किया जाए, तो आकस्मिक खतरा पड़ने पर ये “खून के रिश्ते” इतने बड़े रक्षक व सहायक साबित हो सकते हैं कि अपना खून बहाकर भी मदद करने से पीछे नहीं हटते हैं ! इसलिए संयुक्त परिवार से अच्छी सुरक्षा व्यवस्था कोई और नहीं हो सकती है क्योकि ये ना केवल भौतिक सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि सभी 9 ग्रहों को प्रसन्न करके खूब सांसारिक उन्नति (धन, प्रसिद्धि) भी प्रदान करता है !
यहाँ एक बात ध्यान से समझने वाली है कि संयुक्त परिवार में मन मारकर मजबूरी में रहने मात्र से ग्रह प्रसन्न नहीं हो जाते हैं, बल्कि संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों को दिल से अपनाकर और विनम्रतापूर्वक उनकी यथासम्भव सेवा – सहायता रोज करते रहने से ही सभी ग्रह प्रसन्न होते हैं (अधिक जानकारी के लिए कृपया इस पूर्व प्रकाशित आर्टिकल को पढ़ें- अपार सफलता पाईये दिनचर्या के इन आसान कामों से सभी ग्रहों के अशुभ प्रभावों को समाप्त करके) !
आईये अब बात करते हैं महाभारत काल की उस घटना के बारे में जो संयुक्त परिवार के इसी अद्भुत सुरक्षात्मक लाभ को दर्शाती है ! यह घटना बताती है कि कैसे श्री कृष्ण के संयुक्त परिवार में उनके बेटे साम्ब जी को, कृष्ण जी से भी ज्यादा प्यार करते थे साम्ब जी के चाचा बलराम जी ! क्योकि साम्ब जी के अचानक जेल में बंद हो जाने की खबर सुनकर जहाँ कृष्ण जी हतप्रभ होकर सोच में पड़ गए थे, वहीँ बलराम जी बिना एक क्षण भी व्यर्थ गवाए हुए तुरंत अपना रथ लेकर दौड़ पड़े अपने भतीजे को जेल से छुड़ाने के लिए ! यह घटना विस्तारपूर्वक इस प्रकार है-
भगवान् कृष्ण की 8 पटरानियां थी जिनसे उनके कई पुत्र और पुत्रियां पैदा हुए थे ! उन्ही में से एक पटरानी थी जाम्बवती, जिनका विवाह ऋक्षराज जाम्बवंत जी ने कराया था (ये जाम्बवंत जी वही थे जो रामायण काल में श्री राम – रावण युद्ध में भगवान राम के सलाहकार थे) !
जाम्बवती जी पटरानी होने के बावजूद भी श्री कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पित थी और आजीवन उनकी सेवा करती रही थी ! जाम्बवती जी और भगवान श्री कृष्ण के एक पुत्र थे जिनका नाम था “सांब” ! सांब जी के बारे में माना जाता है कि वे भी, भगवान श्री कृष्ण की ही तरह सोलह कलाओं से संपन्न थे ! दिखने में अत्यंत सुंदर साम्ब जी में बरबस ही कृष्ण जी की छवि दिखती थी !
एक दिन कुछ ऐसा हुआ की एक समारोह में साम्ब जी की मुलाकात दुर्योधन के पुत्री लक्ष्मणा जी से हुई ! सांब जी को देखते ही दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा जी को मन ही मन उनसे प्रेम हो गया था ! सांब जी की दृष्टि भी जब लक्ष्मणा जी पर पड़ी तो वो भी उनके प्रेम बंधन में बंध गए !
लेकिन दुर्योधन को जब लक्ष्मणा जी के मन की बात पता चली तो वो भड़क गया और साफ़ मना कर दिया कृष्ण जी के घर शादी करवाने के लिए (क्योकि दुर्योधन मानता था कि कृष्ण जी उसके सबसे कट्टर दुश्मन पांडवों के बहुत ख़ास हैं इसलिए दुर्योधन कृष्ण जी को भी बिल्कुल पसंद नहीं करता था) !
अतः कही से कोई रास्ता दिखाई ना पड़ने पर, अन्ततः लक्ष्मणा जी ने साम्ब जी से चुपके से मंदिर में गंधर्व विवाह (प्रेम विवाह) कर लिया और उसके बाद जब सांब जी, लक्ष्मणा जी को अपने रथ में बैठाकर द्वारिका ले जाने लगे तो दुर्योधन ने रास्ते में ही हस्तिनापुर की पूरी कौरव सेना के साथ साम्ब जी पर भीषण हमला बोल दिया !
कौरवों की विशाल सेना का साम्ब जी ने अकेले डट कर सामना किया और भयंकर युद्ध किया ! मगर अकेले साम्ब जी कब तक विशाल सेना का सामना कर पाते इसलिए साम्ब जी को अन्ततः हार का मुंह देखना पड़ा और कौरवों ने साम्ब जी को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया !
राजकुमार साम्ब जी को कौरवों द्वारा जेल में बंदी बनाए जाने की खबर जब द्वारिका शहर में पहुंची तो वहां कोहराम मच गया और कृष्ण जी तो एकदम अवाक् होकर सोच में पड़ गए लेकिन कृष्ण जी के बड़े भाई बलराम जी बिना एक क्षण व्यर्थ गवाए हुए तुरंत रथ लेकर दौड़ पड़े हस्तिनापुर के लिए !
बलराम जी के मन में दुर्योधन के लिए बहुत गुस्सा था लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपना उचित शिष्टाचार वाला व्यवहार नहीं छोड़ा और सबसे पहले दुर्योधन को प्यार से ही समझना शुरू किया कि दुर्योधन को अपने दामाद यानि साम्ब जी के साथ इतना अपमानजनक व्यवहार नहीं करना चाहिए क्योकि शास्त्र भी कहता है कि दामाद जैसे पूज्यनीय रिश्ते का अनुचित अपमान करने वाला ससुर उसी तरह से दुर्गति को प्राप्त करता है जैसे शंकर जी का अपमान करने पर उनके ससुर राजा दक्ष की दुर्गति हुई थी !
लेकिन दुर्योधन को इन सब नैतिक नियमों की कहाँ परवाह थी ! फिर बलराम जी ने ये भी समझाया कि देखो जब – जब किसी राज्य में कोई भ्रष्टाचारी आदमी राजा बन जाता है तब – तब उस राज्य में निर्दोष लोग जेल में बंद होने लगते हैं, जैसे मेरे जन्म के समय कंस राजा था जिसकी वजह से मेरे परम आदरणीय माता – पिता (श्री देवकी – वसुदेव जी) को भी सालों तक जेल में बंद रहना पड़ा था, जिसका नतीजा तुम तो जानते ही हो कि कि कंस को ना अपनी सत्ता से बल्कि प्राणो से भी हाथ धोना पड़ा था ! इसलिए तुम्हे भी ऐसी गलती बिल्कुल नहीं दोहरानी चाहिए !
लेकिन दुर्योधन तो मानो अपने कानों को ही बंद करके बैठा था क्योकि बलराम जी के लाख समझाने के बावजूद भी उसने बलराम जी की एक भी बात नहीं मानी ! दुर्योधन ने अंत में बड़े घमंड से चिल्लाते हुए बलराम जी से कहा की ये हस्तिनापुर मेरा राज्य है इसलिए यहाँ सिर्फ वही होगा जैसा मैं चाहूंगा !
दुर्योधन की लगातार बद्तमीजी बर्दाश्त करते – करते अंततः बलराम जी के भी सब्र का बाँध टूट गया और उन्होंने शेर की तरह दहाड़ते हुए कहा कि ठीक है, जिस राज्य का राजा होने का तुम्हे इतना घमंड है, मै अभी उस राज्य को ही मिटा देता हूँ ! और फिर बलराम जी ने अपने प्रचंड शक्तिशाली अस्त्र हल से हस्तिनापुर की जमीन पर प्रहार किया जिससे हस्तिनापुर का पूरा भूगोल ही बदलने लगा और हस्तिनापुर खींचकर गंगा नदी में डूबने लगा !
दुर्योधन बलराम जी का अत्यंत भयानक रौद्र रूप देख कर डर के मारे कांपने लगा और बार – बार बलराम जी के पैर पर अपना सिर रखकर माफ़ी मांगने लगा ! जिससे बलराम जी का अत्यंत दयालु हृदय तुरंत पिघल गया और उन्होंने दुर्योधन को क्षमा कर दिया ! फिर दुर्योधन ने सांब जी से भी यथोचित मांफी मांगकर, साम्ब जी को लक्ष्मणा जी के साथ पूरे आदर व सम्मान के साथ द्वारिका के लिए विदा कर दिया !
तो इस प्रकार से सिर्फ अपने भतीजे के लिए, अकेले बलराम जी पूरे कौरव वंश से लड़ गए थे ! वास्तव में सुखी परिवारों से ही सुखी राष्ट्र का निर्माण होता है इसलिए बिना किसी मजबूरी के, सिर्फ अपनी आरामदायक जिंदगी जीने के लिए माँ – बाप – भाई – बहन आदि को छोड़ देने वाला परिवार सुखी कैसे रह सकता है क्योकि उसे ना तो माँ – बाप की अंतरात्मा से निकला दुःख जनित श्राप और ना ही नाराज हुए ग्रहों का क्रोध कभी सुखी रहने देगा !
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