भारतीय काल गणना की सर्वविदित विशेषताएं
बहुत से लोगो को ये गलत फहमी होती है कि भारतियों कि काल गणना त्रुटिपूर्ण होती हैं, या वे काल गणना में इतने अचूक नहीं होते जितने की पश्चिमी विद्वान जबकि भारतीय काल गणना कि विशेषता ही ये है कि ये अचूक एवं अत्यंत सूक्ष्म है, जिसमे त्रुटी से लेकर प्रलय तक कि काल गणना की जा सकती है।
ऐसी सूक्ष्म काल गणना विश्व के किसी और सभ्यता में नहीं मिलती चाहे आप कितना भी गहन अन्वेषण कर लीजिये। भारतीय मान्यता के अनुसार भारतीय सभ्यता के प्राचीनतम एवं अपौरशेय ग्रंथों में से एक ‘सूर्य सिद्धांत’ में काल के दो रूप बताये गए हैं –
1. अमूर्त काल-: ऐसा सूक्ष्म समय जिसको न तो देखा जा सकता है और न ही उसकी गणना सामान्य तरीको से की जा सकती है। ऐसे सूक्ष्म समय को इन सामान्य इन्द्रियों से अनुभव भी नहीं किया जा सकता।
2. मूर्त काल -: अर्थात ऐसा समय जिसकी गणना संभव है एवं उसको देखा और अनुभव किया जा सकता है।
स्वयं सूर्य सिद्धांत कहता है कि यह ग्रन्थ 2200000 वर्ष पुराना है लेकिन समय-समय पर इसमें संशोधन एवं परिवर्तन भी होते रहे हैं। अंतिम बार इसको भास्कराचार्य द्वितीय ने इसका वर्तमान स्वरुप दिया होगा ऐसा विद्वानों को मानना है। तो आइये देखते हैं इसके काल गणना के सिद्धांतो को-
त्रुटी-
काल गणना कि मूल इकाई त्रुटी है जो ०.32400000 सेकेण्ड के बराबर होती है अर्थात एक त्रुटी एक सेकेण्ड के तीन करोड़वें भाग के बराबर होती है। त्रुटी से प्राण तक का समय अमूर्त एवं उसके बाद का समय मूर्त कहलाता है.
सूर्य सिद्धांत कि समय सारणी-
मूल इकाई त्रुटी
60 त्रुटी = 1 रेणु
60 रेणु = 1 लव
60 लव = 1 लेषक
60 लेषक = 1 प्राण
60 प्राण = 1 विनाड़ी
60 विनाड़ी = 1 नाड़ी
60 नाड़ी = 1 अहोरात्र (दिन-रात)
7 अहोरात्र =1 सप्ताह
2 सप्ताह = 1 पक्ष
2 पक्ष = 1 माह
2 माह = 1 ऋतु
6 माह = 1 अयन
12 माह = 1 वर्ष
4320000 वर्ष = 1 चतुर्युग
71 चतुर्युग = 1 मन्वंतर (खंड प्रलय) (32258000 वर्ष)
14 मन्वंतर = 1 ब्रह्म दिन (4320000000)
8640000000 वर्ष = ब्रह्मा का एक अहोरात्र = 1 सृष्टि चक्र
अर्थात 8 अरब 64 करोड़ वर्ष का एक सृष्टि चक्र होता है। किन्तु ये मनुष्यों का सृष्टि चक्र है उनकी काल गणना के अनुसार, इस ब्रह्माण्ड में बहुत सी दूसरी योनियां हैं जिनका सृष्टि चक्र अलग है। इसके आगे ब्रह्मा के 360 अहोरात्र ब्रह्मा जी के 1 वर्ष के बराबर होते हैं और उनके 100 वर्ष पूरे होने पर इस अखिल विश्व ब्रह्माण्ड के महाप्रलय का समय आ जाता है तब सर्वत्र महाकाल ही विराजते हैं, काल का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता।
महर्षि नारद की गणना-
महर्षि नारद कि गणना इससे भी सूक्ष्म है। नारद संहिता के अनुसार ‘लग्न काल’ त्रुटी का भी हजारवां भाग है अर्थात 1 लग्न काल, 1 सेकेण्ड के 32 अरबवें भाग के बराबर होगा। इसकी सूक्ष्मता के बारे में उनका कहना है कि स्वयं ब्रह्मा भी इसे अनुभव नहीं करते तो साधारण मनुष्य कि बात ही क्या ।
तो इन सबसे सहज ही अनुमान लगता है कि भारतीय काल गणना कितनी सूक्ष्म थी प्राचीन काल में।
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