निबंध – युवकों का विद्रोह (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)
कुछ समय से हमारे अधिकांश नौजवान जिस वातावरण में है, उससे वे संतुष्ट नहीं है। निष्क्रियता में मुर्दों से बाजी लगाने वाले इस देश के युवक इस समय परिवर्तन और क्रांति का उत्साह के साथ आवाहन कर रहे हैं। क्रांति-जन्य विभीषिकाओं का उन्हें भय नहीं है। उन्हें डर दिखाइये तो कहते हैं कि जीती-जागती भीषणता वर्तमान मुर्दा शांति से अच्छी है। वर्तमान वायुमंडल से तो वे हर तरह से पिंड छुड़ाना चाहते हैं। एक ही क्षेत्र में नहीं, जीवन के विविध क्षेत्रों में यही चहल-पहल देखी जा रही है, जो कुछ दकियानूसी है, जो कुछ सड़ा-गला है, जो प्रगति को रोकता है, जो कुछ हाथ-पैर और मन की जड़ता है, उस सबसे भिड़ जाने और उस पर विजय प्राप्त किये बिना चैन न लेने की यह तैयारी है। राजनैतिक क्षेत्र में तो नित्य इस प्रवृत्ति के प्रदर्शन हो रहे हैं। नौजवान भारत सभा, युवक संघ, क्रांतिकारी दल, कम्युनिस्ट दल आदि चिन्ह हैं कि युवकों को हृदय में आँधी चल रही है। लाहौर कांग्रेस के जो प्रतिनिधि चुने गये उसमें नौजवानों ने जहाँ तक बना, उन्हीं की प्रतिनिधि बनने दिया, जो पूर्ण स्वाधीनता के पक्षपाती हैं। कई जगह तो यहाँ तक हुआ कि पुराने से पुराने आदमी दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंके गये और नये नौजवानों की दृष्टि में महात्मा गांधी अब पिछड़ जाने वाले व्यक्ति हो गए हैं और अहिंसावाद उन्हें कुछ जँचता ही नहीं। वे कहने लगे हैं कि अब पुराने ढंग से काम न चलेगा, महात्मा गाँधी का समय हो चुका, अब उनसे कुछ नहीं होने का और जो कुछ होगा वह नये आदमियों और नये ढंग से होगा। नौजवानों के इस ढंग से देश के बहुत बड़े समुदाय में कुछ घबराहट-सी है। घबराहट इसलिये नहीं कि पुराने लोग अपने स्थानों से चिपके रहना चाहते हैं और नहीं चाहते कि कोई आगे बढ़े और कुछ जौहर दिखाये, किंतु घबराहट इसलिये कि अधिकांश पुराने यह समझते हैं कि अपनी जल्दबाजी और नासमझी से ये नौजवान खंदक में जा गिरेंगे और देश को भी उसमें ढकेल देंगे।
आज नये और पुराने में कहीं-कहीं संघर्षण-सा हो रहा है और जहाँ नहीं हो रहा है, वहाँ उसके होने की संभावना है। संघर्षण में नये समझते हैं कि बूढ़े खूसट न मरते हैं और न माचा (चारपाई, स्थान) छोड़ते हैं और पुराने समझते हैं कि महत्वांक्षा से नयों का सिर फिर गया है। दोनों ओर भ्रम है। देश के कल्याण के लिए उसे दूर होना चाहिये। युवक-युवक ही क्या, यदि उसमें उत्साह और ओज न हो। युवकत्व का सबसे बड़ा प्रमाण ही यह है कि भावनाओं का वह पुंज हो और अखिल उत्साह का स्रोत। उसके (युवक के) उदय से घबराने की कोई आवश्यकता नहीं। उसका तो हृदय से स्वागत होना चाहिये। आज से 20 वर्ष पहले ही देश की शिथिलता से जब आज की स्फूर्ति और चेतना की तुलना की जाय, तब यह देखकर कि जीवन के चिन्ह समस्त दिशाओं में छिटके हुए हैं, हृदय गदगद हो उठना चाहिये। अभी तक जो खेती की गयी थी, यदि आज वह फले और फूले तो किस खेतिहर को खुशी न होगी? यदि फसल अच्छी आयी तो उसे सँभालकर रखने की आवश्यकता है। वह सारे दु:ख-दारिद्रय दूर कर देगी, उससे घबराने की क्या जरूरत? यदि विद्युत शक्ति का अटूट भंडार मिल गया हो तो उसके उचित संचालन की आवश्यकता है। उसकी भीषणता की बात सोच-सोचकर चिंता से सूखने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए देश के पुराने आदमी अपनी नयी खेती पर खुश हों, वे उसका स्वागत करते हुए केवल उसका पथ-निर्देश करें, न उसे दबायें और न उसे घातक समझें। पुरानों की अपेक्षा नयों की अब अधिक बड़ी जिम्मेदारी है। समय उनकी प्रतीक्षा कर रहा है, सुविधाएँ उनके चरणों को पखारने के लिए तैयार है, किंतु यह तभी, जब वे केवल युवकत्व के नाम पर नहीं, केवल इसलिए नहीं कि वे पुनती विद्रोही हैं, जो इतिहास का निर्माण किया करते हैं, किंतु अपनी प्रगाढ़ आदर्शभक्ति और आदर्श की ओर बढ़ने वाले व्यक्ति के योग्य विनम्रता और कर्तव्यशीलता का अखंड परिचय देकर अपने लिए स्थान चाहेंगे। गालियों के देने, डींग मारने, आजादी की व्यर्थ की ओर रट लगाने और दूसरों पर धूल फेंकने से न कोई बड़ा होता है और न कोई बड़ा काम हुआ करता है। बहुधा तो जो गरजते हैं, वे बरसते ही नहीं और न कोई बड़ा काम हुआ करता है। बहुधा तो जो गरजते हैं, वे बरसते ही नहीं और जो बड़ी डींग मारा करते हैं वे बड़े कायर हुआ करते हैं। देश के नौजवान देश की खातिर और अपनी नौजवानी की खातिर इस कुटेव से बचें। वे बढ़-चढ़कर बातें न मारें, वे बढ़-चढ़कर काम करें। वे अपनी बात पर अटल रहें, किंतु नम्रता के साथ, दूसरों पर बाण प्रहार करते हुए नहीं। जो लोग उनसे मतभेद रखें, वे क्यों यह समझें कि वे सच्चे नहीं है? जिसे नौजवान कुर्बानी के नाम से पुकारते हैं, यदि उसे उनसे मतभेद रखने वाला आदमी नहीं करना चाहता तो इसलिए वह हीन क्यों समझा जाय? और यदि कोई कुर्बानी करता है तो वह क्यों समझे कि देश पर कोई उपकार करता है और केवल अपना कर्तव्य पालन नहीं करता? अहिंसा का मजाक उड़ाने की प्रवृत्ति भी इस समय कुछ जोरों पर है। यह काम किया तो आसानी से जाता है, किंतु वह इस योग्य नहीं है कि ऐसे सहज ढंग से किया जाये।
हिंसा और अहिंसा की विवेचना छोड़ दीजिये, विज्ञान ने वर्तमान रण-शैली को बेहद भयंकर बना दिया है, उसमें वीरता नहीं रही, उसमें पशुता और हत्या का राज्य है और उसके मुकाबले में हमारे ऐसे शताब्दियों से निरस्त्र लोगों का खड़ा भी रह सकना असंभव है। हमारे लिए तो अहिंसा ही परम अस्त्र है, उसी से हम दुनिया में किसी का मुकाबला कर सकते हैं। आगे बढ़ने वाले युवक सबसे विद्रोह करें, किंतु वे एक भावना से विद्रोह करने की इच्छा को हृदय में न आने दें। उनके मन में ऊँचे-चरित्र के प्रति कभी प्रताड़ना या उपेक्षा का भाव उदय न हो। वे स्वयं चरित्रवान हों, उनका सिर भी जब झुके तब चरित्रवान के लिये। यदि चरित्र के प्रति उनमें आदर-भाव रहा तो उनका विद्रोह, चाहे कितनी ही कटुता क्यों न धारण कर ले, देश के लिए अंत में अमृत-फल ही सिद्ध होगा।
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