गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये -2 (रक्त विकार की शुद्घि)
श्री प्रहद चन्द गोयल, भाखरी, लिखते हैं कि मेरे लड़के चि. लालचन्द का शरीर 16 वर्ष की आयु तक बिल्कुल स्वस्थ रहा उसमें कोई रोग या खराबी न थी, पर इसके बाद उसे चर्म रोग उठ खड़े हुए। प्रारम्भ में उसे खुजली हुई, खुजली की मामूली दवा दारू होती रही, पर कोई विशेष लाभ न हुआ। रोग ने नया रूप धारण किया, लड़के के सारे शरीर में लाल चकत्ते से उठ आये, जो बीच-बीच में पक कर फटने लगे। डाक्टरों से बहुत इंजेक्शन लगवाये, वैद्यों ने जुलाव दिये और लगाने की दवायें भी दीं पर रोग की जड़ न गई। लाल चकत्तों में खुजली मचती थी।
वे पक कर फूटते थे तो चिपचिपा पानी सा निकल जाता था। एक जगह का चकत्ता अच्छा होता तो दूसरा नया उठ आता। कुछ दिन ऐसा मालूम पड़ता कि रोग काफी घट गया और थोड़े ही दिन में बिल्कुल अच्छा हो जायेगा पर फिर उभर आता और सारा शरीर चकत्तों से भर जाता। दो वर्ष हो चले खुजली और चकत्तों की बीमारी से उसका पीछा नहीं छूटा था कि सफेद दाग पडऩे का नया विकार पैदा हो गया। दाहिने पैर में छोटे-छोटे 15-20 निशान हो गये जो धीरे-धीरे बढ़ कर काफी जगह में फैल गये।
इस रक्त विकार को कोई छूत का रोग बताता था, कोई कोढ़, कोई कुछ, कोई कुछ। लड़का जहां शारीरिक कष्ट से दु:खी रहता था वहां उसे मानसिक चिन्ता भी कम न थी। क्योंकि उसका भविष्य अन्धकार मय हो रहा था। उसे छूने और पास बिठाने तक में लोग कतराते थे फिर वह इस प्रकार बहिष्कृत बन कर अपनी जीवन यात्रा को किस प्रकार पार करता। उसे अपनी पढ़ाई भी बन्द करनी पड़ी। लड़के के दु:ख से घर के और सब लोग भी चिन्तित और दु:खी रहते थे।
एक दिन हनुमान जी के मन्दिर में अखण्ड कीर्तन और यज्ञ हुआ था उसमें कई महात्माओं का प्रवचन भी हुये। लालचन्द भी उस उत्सव में सम्मिलित था, उसने एक महात्मा के मुख से सुना कि गायत्री के द्वारा शरीर और मन के सभी रोग दूर होते हैं। यह बात उसने गिरह बांध ली और नित्य गायत्री का जप करने लगा। ईश्वर की लीला कहें, बुरे समय का अन्त कहें या गायत्री की कृपा कहें कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि उसका रोग उसी दिन से घटना आरम्भ हो गया। पहले खुजली में कमी हुई, फिर नये चकत्ते उठना बन्द हुआ।
जो पुराने चकत्ते थे वे भी धीरे-धीरे अच्छे हुये इसके पश्चात सफेद दाग भी घटते गये और पांच छ: महीने में उसकी सारी बीमारी चली गयी। अब उसके शरीर में घाव अच्छे होने के चिन्हों को छोड़कर और कोई रोग नहीं है और लड़का अपना नया जन्म हुआ अनुभव करता है। शरीर के रोग दूर होने का यह प्रत्यक्ष प्रमाण है, इसी प्रकार मन के रोग भी गायत्री की कृपा से अवश्य दूर होंगे। उन महात्मा का वचन सत्य निकला जिन्होंने हनुमान जी के मन्दिर पर अपने प्रवचन में कहा था कि गायत्री की कृपा से शरीर और मन के सब विकार नष्ट होते हैं।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार हरिद्वार
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