रावण मरा तो बाद में लेकिन नींद तो माँ सीता के अपमान के बाद से ही उड़ गयी
पूजा पाठ, दान दक्षिणा, बड़े बड़े ताकतवर लोगों से दोस्ती सब कुछ अन्ततः खिलवाड़ साबित होता है अगर कोई अधर्म पर है ! अपने द्वारा किये गए पाप एक दिन आदमी को ऐसा चारों ओर से घेर लेते हैं जैसे मकड़ी के जाल में फस कर छटपटाता कीड़ा !
दुनियां के दूसरे लोगों को कोई पापी आदमी बहुत सुख में लग सकता है पर अन्दर का सच तो सिर्फ उस पापी आदमी को ही पता होता है जिसकी नींद पाप करने के बाद से ही हराम हो चुकी होती है !
रावण मरा तो माँ सीता के अपहरण के बहुत दिन बाद, लेकिन उसकी नीद तो एक अनजाने डर से उसी दिन से गायब हो गयी थी, जिस दिन उसने अपनी राक्षसी बहन का बदला लेने के लिए गुस्से में आकर माँ सीता जैसी पवित्र स्त्री का बल पूर्वक अपहरण किया !
रोज रोज का छोटा बड़ा पाप जमा होते होते आदमी के अन्दर इतनी बेचैनी पैदा कर देते हैं कि उसकी स्थिति धीरे धीरे पागलों जैसी होने लगती है और फिर वो अपनी मानसिक शान्ति के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है !
जिस पैसा कमाने के लिए उसने दुनिया भर के पाप किये उसी कमाई को वो दोनों हाथों से मंदिरों फकीरों को लुटाता फिरता है लेकिन उसे कोई खास फायदा होता है नहीं !
तीनों लोकों में जिसके ताकत का डंका बजता था और जिसके लाखों प्रचंड शक्तिशाली लड़के, नाती, पोते थे वो सब के सब हार गए सिर्फ लंगूरों और बंदरों से क्योंकि उन लंगूरों और बंदरों के साथ खड़े थे साक्षात् धर्म स्वरुप श्री राम चन्द्र !
इतिहास में इससे पहले भी हुआ है की स्वयं भगवान को भी हार का मुंह देखना पड़ा क्योकि उन्हें भक्त के वश में होकर अधर्म की तरफ से लडाई लड़नी पड़ी ! चाहे वो बाणासुर की तरफ से भगवान शंकर हारे या दक्ष प्रजापति की तरफ से भगवान विष्णु हारे !
हालाकि ये भगवान की लीला मात्र ही है कि उन्ही की बनाई हुई दुनिया में आखिर उन्हें कौन हरा सकता है, लेकिन इन घटनाओं के माध्यम से भगवान् सिर्फ ये जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि, चाहे खुद ईश्वर ही बचाने आ जाएँ लेकिन तब भी अधर्म के रास्ते पर चलने वाले का एक ना एक दिन विनाश होकर ही रहता है !
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