माँ लक्ष्मी के वरद पुत्र श्री कुबेर धन दें तो अमृत के अविष्कार कर्ता श्री धन्वन्तरी रोग नाश करें
धन तेरस मौका है धन के राजा कुबेर के साथ स्वास्थ के देवता भगवान धन्वन्तरी का आशीर्वाद पाने का !
धन तेरस की पूजा शुभ मुहुर्त में करनी चाहिए ! सबसे पहले श्री कुबेर का पूजन करना चाहिए ! देव कुबेर का ध्यान करते हुए, फूल चढाएं और कहें, कि हे श्रेष्ठ विमान पर विराजमान रहने वाले, गरुड़ मणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा व वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृ्त शरीर वाले, भगवान शिव के प्रिय मित्र देव कुबेर का मैं ध्यान और पूजन करता हूँ ! माँ लक्ष्मी के विशिष्ट कृपा पात्र श्री कुबेर, कृपया मेरी सारी गलतियों के लिए मुझे माफ़ करते हुए मुझ पर प्रसन्न हों !
श्री कुबेर की आराधना के बाद देवताओं के चिकित्सक श्री धन्वन्तरी की आराधना करनी चाहिए क्योंकि रोगी आदमी के लिए रुपया पैसा सब बेकार है इसलिए जहाँ लक्ष्मी पुत्र कुबेर अपार धन प्राप्ति का योग बनाते हैं वहीँ भगवान धन्वन्तरी सभी रोगों के नाश का आशीर्वाद देते हैं !
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही श्री धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। श्री धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चूकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। यह भी माना जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोइ भी बर्तन खरिदे। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही असली धनवान है। भगवान धन्वन्तरी जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात की पूजा हेतु श्री लक्ष्मी गणेश मूर्ति भी खरीदते हें।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। |ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
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