जीव हत्या नहीं हैं, सब्जी अनाज को खाना
कई मांसाहार खाने के समर्थक, तर्क देते हैं की सब्जी अनाज में भी तो जान होती है तो उनको काट कर खाना भी तो जीव हत्या हुई !
कई ऐसे वैज्ञानिक और अध्यात्मिक तर्क हैं जो ये साबित करते हैं की सब्जी अनाज आदि खाने के लिए ही बने हैं और उनको भूखों के पेट भरने के लिए या कोई जरूरी दवाई बनाने के लिए, काटने पर, काटने वाले आदमी को दोष नहीं लगता ! जानिये कैसे –
अगर हम बात करे कॉमन सेन्स की तो उस हिसाब से वनस्पतियाँ, अन्य जीवों से एकदम अलग हैं क्योंकि इसके कुछ ऐसे कारण हैं जिनसे एक बच्चा भी वनस्पतियों और जानवरों में अन्तर पहचान सकता है !
जैसे वृक्ष, फल, फूल, पौधे, वनस्पतियाँ गति नहीं करते और हमेशा स्थिर बने रहते हैं जबकि दुनिया के सारे जीव गति करते हैं !
वृक्ष को काटने पर रक्त नहीं निकलता और वृक्ष काटने के बाद भी हरे भरे हो सकते हैं पर जीवों को काटने पर रक्त निकलता है और इलाज ना हो तो जीव मर भी सकता है !
हर जीव अपने ऊपर हो रहे हमले को महसूस कर बचाव के लिए कुछ न कुछ करता है पर वृक्ष ऐसा नहीं करते !
हर जीव जिन्दा नर और मादा के समागम से ही विशिष्ट काल में बच्चेदानी या अन्डे से पैदा होतें है जबकि वृक्ष के बीज को गमले में बोये या खेत में, पानी पाने पर उग ही जातें है !
हर जीव में वातावरण में गति करने के लिए अंग (जैसे पैर, पंख आदि) और महसूस करने के लिए अंग (जैसे आँख, नांक आदि) जरूर होते है पर वृक्ष में नहीं होते हैं !
हर जीव अपने भोजन की तलाशी का प्रयास खुद ही करता है पर वृक्ष अपने भोजन (प्रकाश, पानी, खाद आदि) के लिए पूरी तरह से आजीवन प्रकृति, इन्सान या अन्य जीवों की दया पर निर्भर है !
तो ये रहे भौतिक कारण जो ये साबित करते हैं वनस्पतियाँ और जीव जन्तु एकदम अलग अलग चीज हैं और रही बात ये जानने की मनुष्य स्वाभाविक तौर पर शाकाहारी जीव है की माँसाहारी, तो इसको भी साबित करने के पचासों सबूत हैं जैसे मिसाल की तौर पर मानवों के पेट में पाए जाने वाला अंग जो सिर्फ शाकाहारी जानवरों में पाया जाता है, मानवों की दांतों की बनावट जो की सिर्फ शाकाहारी जानवरों (जैसे गाय, घोड़े आदि) से मिलती है जबकि सारे मांसाहारी जानवरों दांत नुकीले होते हैं (जैसे शेर, कुत्ते आदि के) !
अब अगर बात करे अध्यात्मिक कारणों की तो इसके पीछे की वजह यह है कि जब कोई जीवात्मा, मानव शरीर पाकर भी दूसरों की सेवा के बजाय पूरा जीवन बस पाप कमाने में ही लगा देता है तो वो मरने के बाद नरक में कठिन दंड भोगने के लिए भेज दिया जाता है और उस नरक से निकलने के बाद वह जीवात्मा जल्द से जल्द कोई शरीर पाने के लिए आतुर रहता है और परम सत्ता यानी ईश्वरीय प्रेरणा से 84 लाख योनियों में उसे किसी योनि में जन्म मिलता है ! इन्ही 84 लाख योनि में एक योनि है वृक्ष योनि और इस वृक्ष योनि में जन्म लेने वाले का उद्धार आसानी से हो जाता है जब उसका शरीर किसी भूखे के पेट भरने के काम आ जाय या किसी बीमार के इलाज के लिए औषधि बनाने में काम आ जाय !
ऐसा नहीं है ही किसी वृक्ष को कटने में दर्द नहीं होता है पर उस दर्द में उनका बहुत बड़ा सुख छुपा रहता है कि उन्हें उस योनि से मुक्ति पाने का तथा फिर से उच्च योनि प्राप्त करने का !
अपने भोग विलास के लिए या पैसा कमाने के लिए वृक्षों को काटना बहुत बड़ा पाप होता है ! वृक्ष, पौधों, वनस्पतियों को बिना किसी विशेष जरूरत के काटने पर वृक्ष का कोई भला तो होता नहीं बल्कि वृक्ष का श्राप जरूर लगता है जो की काटने वाले आदमी की जिन्दगी में कई समस्याएं पैदा कर सकता है ! इसलिए सिर्फ अत्यन्त आवश्यक जरूरत पड़ने पर ही वृक्ष को काटना चाहिए !
बहुत आवश्यकता पड़ने पर भी वृक्ष काटने का असली अधिकारी वही होता है जो वृक्ष लगा कर उसकी सुरक्षा और पालन भी करता है !
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