मौत के तुरन्त पहले इन तरीकों से मिलता है नरक व निम्न योनि से छुटकारा

कोई मरने वाला हो तो भी आखिरी सेकेंड तक उसे बचाने का भरसक प्रयास जरूर करना चाहिए लेकिन जन्म और मरण कभी भी इन्सान के हाथ में नहीं होता है इसलिए मर सकने वाले के परलोक को सुधारने के बारें में भी अति सावधान रहना चाहिए !

हमारे परम आदरणीय हिन्दू धर्म में कुछ ऐसे बेहद आसान उपाय बताएं गये है जिन्हें मरते समय, मरने वाले वाले आदमी या किसी भी अन्य जीव के साथ किया जाय तो वो मरने के बाद अधो गति (मतलब नरक या निम्न योनि) में जाने से बच जाता है और उसे उच्च लोकों की प्राप्त होती है !

असल में हमारे बहुत बुद्धिमान ऋषियों को स्वयं प्रलय के देवता भगवान महादेव शिव ने ये ज्ञान दिया था की किसी भी जीव के मृत्यु का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और इस समय का अगर सही से इस्तेमाल किया जाय तो मरने वाले का पूरा जीवन बर्बाद होने से बच सकता है !

आदमी का जीवन बर्बाद कब होता है ? जब आदमी आपने जीवन के मिलने के लक्ष्य या उददेश्य को पाने में फेल हो जाय और आदमी के जीवन के मिलने का लक्ष्य है क्या ? लक्ष्य है की, जिन्दा रहते हुए या मरने के बाद भगवान् का सामीप्य अर्थात निकटता पाना !

अगर आदमी के कर्म इस लायक नहीं है की वो मरने के बाद उच्च लोकों में जाय तो कुछ ऐसे बेहद आसान उपाय है जिन्हें मरने वाले के साथ कोई कर दे तो मरने वाले का बहुत कल्याण होता है !

ये उपाय है –

मरने से पहले मतलब प्राण निकलने से पहले अगर व्यक्ति के मुंह के अन्दर श्री तुलसी जी के पत्ती डाल दी जाय तो मरने वाले का बहुत भला हो जाता है क्योंकि तुलसीजी जो की दिखने में केवल एक साधारण पौधा लगती हैं पर वास्तव में वो साक्षात् श्री विष्णु जी की पत्नी है और मरने से पहले उनका स्पर्श पाने से मरे हुए आदमी के शरीर को नरक के यम दूत छूने की हिम्मत भी नहीं करते और वह जीव उच्च लोकों को प्राप्त कर बहुत खुश होता हैं ! इसीलिए कई लोग अपने गले में हमेशा तुलसी जी की माला पहने रहते है क्योंकि मृत्यु का कोई भरोसा नहीं, ना जाने कब, कहाँ अचानक से बिना शोर मचाये, दबे पाँव आ जाय ! इसलिए इस माला को मल मूत्र करते समय भी निकालने की मनाही होती है !

अतः मरने वाले आदमी के गले में या तो शुद्ध तुलसी जी की पूरी माला पहना दी जाय या तो केवल 1 छोटी सी तुलसी जी की लकड़ी तब भी उसका कल्याण होता है !

मरने वाले के मुंह में मरने से पहले 1 बूँद गंगा जल डाल दिया जाय तो भी कल्याण होता है ! अगर गंगा जल ना मिले तो केवल तुलसी जी की पत्ती डालने भर से ही कल्याण हो जाता है !

इसलिए मरने वाले के, परिचित या अपरिचित जो भी मौके पर मौजूद हो उन्हें ऐसी कोशिश जरूर करना चाहिए की मरने वाला का जीवन सार्थक चला जाय और उनकी ऐसी कोशिश का उन्हें महा पुण्य जरूर मिलता है ! तुलसी जी की माला शुद्ध हो इसका जरूर ख्याल रखना चाहिए क्योंकि बाजार में तुलसी जी की माला के नाम पर कई डुप्लीकेट लकड़ी की माला बिक रही है ! इसलिए सबसे अच्छा यह है की कही अपने से सूखी तुलसी जी का पौधा हो या हरी तुलसी जी का पौधा, उनको प्रणाम कर, उनकी एक छोटी सी लकड़ी, मृत्यु शय्या पर लेटे आदमी के गले में बांध दिया जाय और लकड़ी के कुछ टुकड़े आदमी के बिस्तर के नीचे भी रख दिया जाय तथा तुलसी जी की 1 पत्ती (अगर तुलसी मंजरी मिल जाय तो 1 मंजरी के साथ) मुंह में डाला जाय तो ऐसे में मरने वाले का अधोगति से बचाव होता है तथा वह शुभ कल्याण का भागी होता है !

कई बार ऐसा भी होता है की घर परिवार के लोग जो मरने वाले की अन्त समय में देखभाल करते हैं उनके मन में यह बार बार इच्छा होती है की मरने वाला जो कि कभी भी मर सकता है उसके मुंह में तुलसी जी की पत्ती फ़ौरन डाल दिया जाय पर वो लोग यह इच्छा होते हुए भी ऐसा नहीं कर पाते हैं क्योंकि इस संकोच की वजह से की, कहीं दूसरे लोग ये न बुरा सोचने लगें की मरने वाले को पहले से ही यह मान लिया गया है की अब वो बचेगा ही नहीं ! तो ऐसे में ये प्रचण्ड सत्य स्मरणीय है की मरना कोई नयी या अनोखी बात नहीं है क्योंकि हर आदमी अनन्त बार जन्म ले कर मर चुका है, जबकि नयी और अनोखी बात यह है की मरने वाला आदमी अब दुबारा जन्म मरण का महान कष्ट ना झेले !

इसलिए हर इंसान को आखिरी सेकेंड तक कोशिश तो यही करना चाहिए की मरने वाला ना मरने पाय पर सब के बावजूद जन्म और मरण इन्सान के हाथ में नहीं होता अतः ऐसे महत्वपूर्ण समय में सारे संकोच से परे हट कर और पुराने सारे गिले शिकवे नाराजगी भुलाते हुए इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए की कही मरने वाले का जीवन व्यर्थ ना चला जाय इसलिए जितना सम्भव हो सके उसके सद्गति का प्रयास करना चाहिए !

जो फायदा तुलसी जी के साथ मिलता है वही फायदा रुद्राक्ष के साथ भी मिलता है क्योंकि शुद्ध रुद्राक्ष साक्षात् रूद्र (भगवान शिव) का ही अंश है पर रुद्राक्ष के साथ डुप्लीकेसी की एक बड़ी समस्या है ! नामी गिरामी दुकानदार भी असली रुद्राक्ष, अभिमंत्रित रुद्राक्ष या चमत्कारी रुद्राक्ष का नाम देकर डुप्लीकेट रुद्राक्ष धड़ल्ले से बेचे जा रहे है ! हद तो ये हो गयी है की अब रुद्राक्ष में शिवलिंग या नाग का आकार तराश कर स्पेशल रुद्राक्ष कह कर बेच रहें है ! भगवान् ही बचाए ऐसे हर जगह फैले हुए हजारों ठगों से !

ऐसे में सबसे बढ़िया यह है की आप कहीं से रुद्राक्ष खरीदने की जगह, रुद्राक्ष का एक फल खरीद लीजिये और चूँकि ये फल बहुत कड़ा होता है इसलिए इसे 20 – 25 दिन के लिए साफ़ पानी में भिगो दीजिये जिससे इसके ऊपर का खोल एकदम ढीला होकर निकल जाता है फिर खोल के अन्दर से निकले रुद्राक्ष को साफ़ पानी से धोकर छाँव में एकदम सुखाकर, शुद्ध सरसों के तेल में 15 दिनों के लिए भिगो दीजिये जिससे उसमें आजीवन कभी भी फफूंद आदि ना लगे ! सिर्फ एक शुद्ध रुद्राक्ष पहनने से भी वो सारे फायदे मिल जाते हैं जो पूरी माला पहनने से ! शुद्ध रुद्राक्ष के गले में होते हुए मरने से, मरने वाले के शरीर को कभी भी यम दूत नहीं छू सकते !

एक बात हमेशा याद रखें की तुलसी और रुद्राक्ष एक आदमी को कभी भी साथ साथ नहीं पहनना चाहिए ! इसलिए या तो रुद्राक्ष पहनाइये या तुलसी जी !

तुलसी जी और रुद्राक्ष के स्पर्श से जो फायदा मिलता है वही फायदा वृन्दावन की रज अर्थात मिटटी को लगाने से मिलता है क्योंकि वृन्दावन साक्षात् श्री राधा रानीजी का ह्रदय स्वरुप है इसलिए स्वयं बांके बिहारी यहाँ नंगे पाँव चलते हैं ! वृन्दावन की धूल की महिमा से कई ग्रन्थ भरे पड़े हैं और स्वयं ब्रह्मा जी भी कहते है की जब मेरा जीवन समाप्त हो तो मुझे भी वृन्दावन में एक पेड़ के पत्ते का जीवन मिले ताकि मैं हमेशा श्री कृष्ण और उनके भक्तों की चरणों से उड़ने वाली रज अर्थात धूल का निरन्तर सेवन कर सकूं ! इसलिए वृन्दावन के कई भक्त, वृन्दावन की थोड़ी सी धूल को नित्य मुहं से खाते और शरीर पर लगाते भी हैं ! इसलिए व्यक्ति को चाहिए की वो खुद या अपने घर के किसी सदस्य को वृन्दावन भेज कर थोड़ी सी मिटटी मंगाकर, उसे हमेशा अपने घर में पूजा के स्थान पर रखे !

वृन्दावन की मिटटी जो की साक्षात् श्री कृष्ण की चरण रज होती है, उसको घर में रखकर रोज आदर सम्मान करने से घर में हमेशा सुख, शान्ति, धन और धान्य बने रहते है और सारे दोष चाहे वो भूत प्रेत के हों या ग्रहों के नष्ट होते है ! पर वृन्दावन से मिटटी लाने से पहले वृन्दावन में कुछ दान करना अच्छा होता है इसलिए बेहतर है किसी गरीब, गोमाता या किसी भी भूखे जीव को पेट भर स्वादिष्ट खाना खिला दिया जाय !

मरने से पहले किसी आदमी के मुंह में एक कण वृन्दावन की मिटटी को डालने से और थोड़ी सी मिटटी शरीर में कहीं लगा देने से मरने वाले का कल्याण होता है !

भगवान् के नाम का कीर्तन भी मरते हुए के उद्धार में अचूक असर दिखाता है लेकिन वास्तविक व्यवहारिक जीवन में इसका प्रयोग करने में थोड़ी मुश्किल आती है क्योंकि किसी के मरते समय में माहौल बहुत दुखी होता है ऐसे में जोर जोर से भगवान् का नाम लेने पर साधारण बुद्धि के संसारी लोग नाराज हो सकते हैं !

अगर ऊपर लिखे कोई उपाय होने से पहले ही मृत्यु हो जाय तो भी सद्गति का उपाय है की मृत आदमी का दाह संस्कार (यानी शरीर को जलाना) काशी अर्थात बनारस के मणिकर्णिका घाट पर पूरे विधि विधान से करना ! काशी जो की भोले नाथ के नगरी है उसके महा श्मशान मणिकर्णिका घाट के बारे में स्वयं महादेव जी का आशीर्वाद है कि यहाँ दाह संस्कार विधि विधान से करने से निश्चित कल्याण होता है ! काशी के मणिकर्णिका घाट के बारे में ये प्रसिद्ध है की यहाँ की आग कभी नहीं बुझती है मतलब चाहे कितनी भी घनघोर बारिश हो या बर्फ गिरे पर खुले असमान के नीचे जलती किसी भी चिता की आग तब तक नहीं बुझती है जब तक की पूरा शरीर जल ना जाय !

ऊपर लिखी जानकारियां ऐसी है को जो की हर आदमी को जानना चाहिए क्योंकि आज के इस अनिश्चित ज़माने में अपनों के साथ या किसी अजनबी के साथ कब कोई अनहोनी हो जाय, यह कोई नहीं बता सकता ! और अगर हम किसी का इह लोक नहीं बना सकते तो थोड़ी सी जानकारी से उसका परलोक बनाने में मदद जरूर कर सकते है !

अगर किसी आदमी ने किसी भूखे को भोजन दान दिया तो उसे बहुत पुण्य मिला, इसी तरह किसी प्यासे को पानी या किसी गरीब को धन दिया तो भी बहुत पुण्य मिला पर जब कोई आदमी किसी मरते को थोड़ी सी मेहनत कर अच्छे परलोक का दान देता है तो उसे निश्चित ही महा पुण्य मिलता है !

इस संसार में कुछ ऐसे भी सज्जन है जो हमेशा अपने साथ तुलसी जी की पत्ती, तुलसीजी की लकड़ी तथा वृन्दावन की रज लेकर घूमा करते हैं की कहीं गलती से भी पैर से कोई चींटी भी दब जाय तो उसे भी इन दिव्य चीजों का स्पर्श कराकर उसका भी जीवन व्यर्थ जाने से बचाने की कोशिश करते हैं !

इसलिए जब भी कोई मरणासन्न व्यक्ति हो तो उसके सद्गति के लिए जो प्रयास बन सके जरूर करना चाहिए पर प्रयास करते समय इस बात का सावधानी पूर्वक ख्याल रखना चाहिए की कोई ऐसा काम ना हो जाय जिससे उस दुखी माहौल में मरने वाले व्यक्ति या उसके परिवार वालों की भावनाओं को थोड़ा सा भी ठेस पहुंचे !

अब हम बात करते हैं मर चुके आदमी की स्थिति से ये जानने की उस की मरने के बाद क्या गति हुई !

शरीर से प्राण निकलने के 5 प्रत्यक्ष और 1 अप्रत्यक्ष मार्ग बताया गया है हमारे हिन्दू धर्म में जिसमें से 2 मार्ग कमर से नीचे हैं जो कि मल और मूत्र के द्वार हैं और 3 मार्ग ऊपर है जो कि कान, मुंह और नाक हैं !

प्राण जो की दिखाई देता नहीं इसलिए ये अन्दाजा लगाना बहुत ही मुश्किल होता है की मरते समय प्राण आखिर शरीर के किस द्वार से बाहर निकला ! यदि कोई एकदम बारीकी से निरिक्षण करता रहे की मरने के ठीक पहले मतलब सबसे आखिरी में किस द्वार के अंग में हरकत हुई तो उस से अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि प्राण जिस द्वार से निकलता है उस द्वार से थोड़ा सा तरल भी बाहर आ जाता है, पर इसमें भी गलत फहमी होने की बहुत सम्भावना होती है क्योंकि ऐसा भी हो सकता है की प्राण निकला मुंह से (झाग के साथ) पर प्राण निकलने के ठीक आधा सेकेंड पहले मरने वाले को लैट्रिन भी हो गयी तो इसमें अन्तर पकड़ पाना बहुत मुश्किल होता है की आखिर प्राण निकला कहाँ से !

प्राण अगर मल या मूत्र के मार्ग से निकले तो आदमी की अधो गति होती है ! अधो गति मतलब नरक या मानव से नीचे की योनियाँ जैसे प्रेत, कीट- जन्तु योनि आदि का प्राप्त होना ! प्राण का कान से निकलने पर उच्च योनि जैसे स्वर्ग, देव लोक आदि का प्राप्त होना माना जाता है ! कई लोग देवताओं को ही भगवान् समझते हैं जबकि ये गलत है ! देवता, भगवान के द्वारा बनाये हुए प्राणी है जैसे की हम लोग, पर देवताओं को हमारी तुलना में ज्यादा सुख और शक्तियां प्राप्त होती है क्योंकि वो देवता जब पूर्व जन्म में मानव थे तो उन्होंने अच्छे कर्म जैसे गरीबों, बीमारों की सहायता आदि किये थे जिसकी वजह से उन्हें मरने के बाद देवलोक मिला पर उनके अच्छे कर्म थोड़े से कम पड़ गए जिसके वजह से उन्हें मरने के बाद सीधे भगवान का लोक नहीं मिला बल्कि उससे नीचे का लोक, देवलोक मिला !

मुंह से प्राण निकलने पर भगवान् के लोक (उसके अराध्य भगवान् के अनुसार जैसे बैकुण्ठ, शिवलोक, गोलोक व मणि द्वीप) प्राप्त होते है जहाँ उसे अद्भुत आनन्द प्राप्त होता है ! पर जब प्राण नाक से निकलता है तो जीव को निवास तो मिलता है इन्ही भगवान् के लोक में पर विशिष्ट शक्ति के साथ ! ब्रह्मरन्ध्र अर्थात सिर में चोटी रखने वाली जगह से प्राण निकलने पर जीव की अगति हो जाती है अर्थात जीव का अपना अस्तित्व समाप्त होकर वो ईश्वर में ही समाकर ईश्वर की तरह ही सर्व व्यापी हो जाता है ! इसलिए ब्रह्मरन्ध्र से प्राण निकलने की घटना दुर्लभ से दुर्लभतम और महान से महानतम मानी जाती है !

गीता में स्वयं श्री कृष्ण ने भी यह कहा है की मृत्यु के समय जो स्थिति जीव की होती है वही अगली योनि या जन्म तय करती है और उस अगले जन्म में क्या किस्मत या कर्म भोगने है उस पर इस जन्म के कर्म का प्रभाव रहता है ! इसलिए मृत्यु का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जीव का भविष्य तय करने में !

लेकिन कोई ईश्वर दर्शन प्राप्त महा मानव जब अपनी मरण धर्मा शरीर का त्याग करतें हैं तो उन्हें ऊपर लिखे हुए किसी भी उपाय की सहायता की जरूरत नहीं पड़ती है और वो अपने पञ्च तत्वों से बनी शरीर से मुक्त होते ही ईश्वर के ही समान स्वरुप धारण करके ईश्वर के ही धाम में अनन्त काल के लिए निवास करतें हैं !

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