ऐसे व्यक्ति जिनके घर का खाना खाना पाप है
परम आदरणीय हिन्दू धर्म के ऋषियों ने बहुत ही वैज्ञानिक नतीजे निकाले हैं की, समाज में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कितना भी सफाई से और कितना भी अच्छी क्वालिटी का सुन्दर स्वादिष्ट खाना बनाये पर उनके घर का खाना खाने से सिर्फ नुकसान है !
सबसे पहला और सबसे बड़ा नुकसान है अपनी दिमागी शान्ति का नष्ट होना ! और जब दिमाग में ही शान्ति नहीं रहेगी तो भला और किस चीज से सुख मिलेगा !
शास्त्रों में कहा गया है की जैसा खाएंगे अन्न, वैसा बनेगा मन। यानी हम जैसा भोजन करते हैं, ठीक वैसी ही सोच और विचार बनते हैं।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण महाभारत में मिलता है जब तीरों की शैय्या पर पड़े श्री भीष्म पितामह से श्री द्रोपदी पूंछती है- “आखिर क्यों उन्होंने भरी सभा में मेरे चीरहरण का विरोध नहीं किया जबकि वो सबसे बड़े और सबसे सशक्त थे।”
तब श्री भीष्म पितामह कहते है की मनुष्य जैसा अन्न खाता है वैसा ही उसका मन हो जाता है। उस वक़्त मैं कौरवों का अधर्मी अन्न खा रहा था इसलिए मेरा दिमाग भी वैसा ही हो गया और मै बहुत चाह कर भी उस अधर्म का विरोध नहीं कर पाया ।
हमारे समाज में एक परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है कि लोग एक-दूसरे के घर पर प्रेम में भोजन करने जाते हैं।
गरुड़ पुराण के आचार कांड में बताया गया है कि हमें किन लोगों के यहां भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि हम इन लोगों के द्वारा दी गई खाने की चीज खाते हैं या इनके घर भोजन करते हैं तो हमारे पापों में वृद्धि होती है। आइये जानते हैं की ये लोग कौन हैं और इनके घर पर भोजन क्यों नहीं करना चाहिए –
– किसी चोर या अपराधी के घर का भोजन नहीं करना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार चोर के यहां का भोजन करने पर उसके पापों का असर हमारे जीवन पर भी हो सकता है। वे सफ़ेद पोश नेता और अधिकारी भी चोर नहीं, महा चोर हैं जिन्होंने चोरी छुपे जनता का पैसा अपनी तिजोरियों में भर रखा है और ऊपर से ईमानदार होने का ढोंग रचते हैं ! ऐसे अधिकारी या नेता के घर का अन्न खाना पाप है क्योंकि ऐसे लोगों के घर के अन्न में उन सैकड़ों गरीब लोगों का दुःख भरा श्राप व हाय मिली रहती है जिनका हक़ या पैसा मारकर इन्होने अन्न ख़रीदा होता है !
– वैसे तो आज के समय में काफी लोग ब्याज पर दूसरों को पैसा देते हैं, लेकिन जो लोग दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए अनुचित रूप से अत्यधिक ब्याज प्राप्त करते हैं, गरुड़ पुराण के अनुसार उनके घर पर भी भोजन नहीं करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में दूसरों की मजबूरी का अनुचित लाभ उठाना पाप माना गया है। गलत ढंग से कमाया गया धन, अशुभ फल ही देता है।
– जो लोग हमेशा क्रोधित रहते हैं, उनके यहां भी भोजन नहीं करना चाहिए। यदि हम उनके यहां भोजन करेंगे तो उनके क्रोध के गुण हमारे अंदर भी प्रवेश कर सकते हैं।
– यदि कोई व्यक्ति निर्दयी है, दूसरों के प्रति मानवीय भाव नहीं रखता है, सभी को कष्ट देते रहता है तो उसके घर का भी भोजन नहीं खाना चाहिए। ऐसे लोगों द्वारा अर्जित किए गए धन से बना खाना हमारा स्वभाव भी वैसा ही बना सकता है। हम भी निर्दयी बन सकते हैं। जैसा खाना हम खाते हैं, हमारी सोच और विचार भी वैसे ही बनते हैं।
– यदि कोई शासक निर्दयी है और अपनी जनता का ध्यान न रखते हुए सभी को कष्ट देता है तो उसके यहां का भोजन नहीं करना चाहिए। शासक का कर्तव्य है कि जनता का ध्यान रखें और अपने अधीन रहने वाले लोगों की आवश्यकताओं को पूरी करें। जो शासक इस बात का ध्यान न रखते हुए सभी को सताता है, उसके यहां का भोजन नहीं खाना चाहिए।
– जिन लोगों की आदत दूसरों की चुगली करने की होती है, उनके यहां या उनके द्वारा दिए गए खाने को भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। चुगली करना बुरी आदत है। चुगली करने वाले लोग दूसरों को परेशानियों फंसा देते हैं और स्वयं आनंद उठाते हैं। इस काम को भी पाप की श्रेणी में रखा गया है। अत: ऐसे लोगों के यहां भोजन करने से बचना चाहिए।
– जो लोग नशीली चीजों का व्यापार करते हैं, गरुड़ पुराण में उनका यहां भोजन करना वर्जित किया गया है। नशे के कारण कई लोगों के घर बर्बाद हो जाते हैं। इसका दोष नशा बेचने वालों को भी लगता है। ऐसे लोगों के यहां भोजन करने पर उनके पाप का असर हमारे जीवन पर भी होता है।
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