जानिये कौन हैं एलियन और क्या हैं उनकी विशेषताएं
लम्बे समय से ब्रह्मांड से सम्बंधित सभी पहलुओं पर रिसर्च करने वाले, “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए विद्वान रिसर्चर श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय (Doctor Saurabh Upadhyay) के निजी विचार ही निम्नलिखित आर्टिकल में दी गयी जानकारियों के रूप में प्रस्तुत हैं-
ब्रह्माण्ड के आकार को लेकर बड़ा मतभेद बना हुआ है ! अलग अलग वैज्ञानिक अलग अलग तर्क पिछले कई साल से देते आ रहे हैं पर एक आम राय नहीं बन पा रही है !
असल में इन सब कठिन प्रश्नों का जवाब पहले से ही मौजूद है हमारे परम आदरणीय हिन्दू धर्म के दुर्लभ ग्रंथों में ! यूँ तो बहुत से बेशकीमती हिन्दू धर्म के ग्रंथों का नाश हुआ, भारत की गुलामी के दौरान, पर जो थोड़े बहुत ग्रन्थ मिलते हैं उनसे भी ऐसी उपयोगी जानकारी मिल जाती है जो आज के मॉडर्न साइंस के वैज्ञानिक कई साल रिसर्च कर के भी नहीं खोज पाते हैं !
सिर्फ ग्रन्थ ही जरिया नहीं हैं इन जानकारियों को पाने के लिए, भारतवर्ष के दिव्य आदरणीय साधू समाज भी बहुत कुछ जानते हैं इन विषयों के बारे में, जिसका खुलासा वे सिर्फ योग्य व गम्भीर पात्रों के सामने ही किया करते हैं !
भारत के प्राचीन ज्ञान, विज्ञान और इतिहास के मूर्धन्य जानकार श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी बताते हैं की भगवान् सूर्य के वरद शिष्य श्री वराह मिहिर जी द्वारा लिखित ग्रन्थ में वर्णन आता है अपने इस ब्रह्माण्ड के आकार के बारे में !
आदरणीय ऋषि श्री वराह मिहिर के अनुसार श्री ब्रह्मा जी ने ईश्वरीय प्रेरणा से अपने इस ब्रह्माण्ड का निर्माण इस प्रकार किया है की ये दिखने में दो कड़ाहियों की तरह दिखता है जो एक दूसरे पर उल्टा कर के रखी हुई हैं मतलब जैसे एक सीधी रखी कड़ाही (खाना बनाने वाली) पर उलट कर दूसरी कड़ाही रख दी जाय तो जो एक अंडाकार आकृति बनती है ठीक वही आकृति अपने इस ब्रह्माण्ड की भी है !
और अपनी पृथ्वी इस अंडाकार आकृति के ठीक बीचो बीच में ही स्थित है ! कड़ाहियों का एक दूसरे के ऊपर उल्टा रखना इस बात का भी द्योतक है की इस ब्रह्माण्ड का एक एंटी ब्रह्माण्ड भी मौजूद है !
ब्रह्माण्ड का निर्माण ब्रह्मा जी ने ओंकार नाद (ॐ) की अनन्त शक्तियों से किया है ! गायत्री मन्त्र समेत अन्य 7 करोड़ मन्त्र ओंकार से ही प्रकट हुए हैं और इन सभी मन्त्रों की अलग अलग विशिष्ट भूमिकाएं हैं इस सृष्टि में ! गायत्री मन्त्र की अति विशिष्ट भूमिका है इस ब्रह्माण्ड के निर्माण में ! गायत्री मन्त्र ओंकार का ही विस्तार स्वरुप है !
इस ब्रह्माण्ड के हर कण कण में ॐ ही अव्यक्त रूप से समाया है ! ॐ ही वो उर्जा है जो हर जगह भिन्न भिन्न रूप में व्यक्त होती है मतलब भिन्न भिन्न रूप, आकृति (हम सभी जीव, जन्तु, पेड़, पौधे, हवा, पहाड़, नदियाँ आदि सब कुछ) का निर्माण कर उसे गतिमान या स्थिर भी करती है ! हर परमाणु के अन्दर के पार्टीकल्स को भी ॐ ने ही गतिमान किया है ! ॐ ही शब्द ईश्वर है और ये अनाहत नाद है मतलब बिना किसी टक्कर या आघात के पैदा होने वाली आवाज क्योंकि ये स्वर प्रारम्भ व अन्त रहित है !
हमारे सौरमण्डल के सारे ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते हैं पर क्या सूर्य भी किसी का चक्कर लगाता है !
ग्रहों का सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाने की बात तो सभी लोग जानते हैं पर सूर्य भी किसी का चक्कर लगाता है इस बात पर आज के वैज्ञानिक भी कन्फर्म नहीं हैं ! हमारे शास्त्र कहते हैं कि सूर्य जिसका चक्कर लगाता है उसे महा सूर्य कहते हैं और यह महा सूर्य कुछ और नहीं, विष्णु नाभि ही है !
विष्णु नाभि अर्थात भगवान विष्णु की नाभि एक अनन्त पहेली है क्योंकि खुद पूरे ब्रहमांड को बनाने वाले ब्रह्मा जी भी विष्णु नाभि के रहस्य को आज तक पूरी तरह से समझ नहीं पाए ! विष्णु नाभि से निकले कमल में ही श्री ब्रह्मा जी अवतरित हुए थे !
भगवान् विष्णु के शरीर को ही महा स्थान कहा गया है और इस महा स्थान में किसी भी प्रकार का समय काम नहीं करता है ! ये महा स्थान ही अनन्त ब्रह्मांडों में जाने का गेट वे (रास्ता) है ! इस महा स्थान को सबसे बड़ी प्रयोग शाला भी कहते हैं क्योंकि सारे ब्रह्मर्षि गण इसी स्थान पर आकर ईश्वर के अनन्त विस्तार पर लगातार अनुसन्धान करते रहते हैं !
प्रोफेसर श्री सौरभ उपाध्याय जी आगे बताते हैं कि हमारे सौरमंडल के सारे ग्रह क्यों बार बार दीर्घ वृत्ताकार पथ पर ही घूमा करते हैं ! इसके पीछे के कई गूढ़ रहस्यों में से एक रहस्य यह है कि जो भविष्य है वही इतिहास है और जो इतिहास है वही भविष्य है !
मतलब जब कोई ग्रह किसी गोलाकार पथ पर चक्कर लगाता है तो उस पथ पर जो बिंदु ग्रह के रास्ते में आगे पड़ता है वह ग्रह का भविष्य है पर जैसे ही ग्रह उसे पार कर जाता है वैसे ही वह बिंदु उस ग्रह का इतिहास हो जाता है पर जैसे ही वह ग्रह फिर से वापस चक्कर लगाकर उस बिन्दु के पास आता है वैसे ही वह बिन्दु फिर से उसका भविष्य हो जाता है !
अतः जो कहावत है की हिस्ट्री रीपीट्स इटसेल्फ एकदम सही है क्योंकि इतिहास में ही भविष्य के बीज छुपे रहते हैं ! इसे भविष्य पुराण में भगवान् के कल्कि अवतार के बारे में भी पढ़ कर समझा जा सकता है जिसमे भगवान् के भविष्य में होने वाले अवतार (इस कलियुग के अन्त में) की सारी लीलाओं को भूतकाल की घटनाओं की तरह ऐसा लिखा गया है जैसे की ये सारी घटनाएं पहले भी कभी हो चुकी हों ! यहाँ भी वही कांसेप्ट लागू होता है की जो हमारा अतीत था वो किसी का आने वाला भविष्य है और जो हमारा भविष्य है वही कभी किसी का अतीत था !
हालाँकि कोई भी घटना हो वो अपने आयाम से भी पहचानी जाती है ! मतलब एक ही जगह पर एक ही समय में कई अलग अलग घटनाएं घटित हो सकती हैं अगर उनके आयाम अलग अलग हों ! साधारणतया लोग तीन आयाम के बारे में समझते हैं लम्बाई, चौड़ाई और ऊचाई, पर वास्तव में आयाम अनन्त हैं ! अलग अलग आयाम में रहने वाले लोग एक ही जगह रहते हुए भी एक दूसरे को नहीं देख पाते ! जितना ज्यादा तपोबल होता है, जीव उतने ज्यादा ऊँचे आयाम में रहता है !
सातवें आयाम तक नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, किरात, विद्याधर, ऋक्ष, पितर, देवता, प्रजापति, दिक्पाल आदि (जिन्हें आजकल के वैज्ञानिक एलियन समझते हैं) रहते हैं ! ब्रह्मा जी ने इस ब्रह्माण्ड का विस्तार 11 आयाम तक किया है ! वैसे आयाम तो अनन्त हैं पर इसकी पूर्ण जानकारी स्वयं सिर्फ ईश्वर को ही है !
आयाम क्या होते हैं इनको एक छोटे से उदाहरण से थोड़ा बहुत समझा जा सकता है ! जैसे आप दूर से एक कमरे के खुले दरवाजे को देखें तो आपको दरवाजे की दिशा में एक क्षेत्र जैसा दिखाई देगा, पर जब आप कमरे के खुले दरवाजे के पास आकर खड़े हो जाएँ तो आपको पता चलेगा की कमरा केवल लम्बाई में ही नहीं चौड़ाई में भी है ! और जब आप कमरे के दरवाजे से अन्दर आकर खड़े होंगे तो आपको पता चलेगा की कमरा लम्बा, चौड़ा के अलावा ऊँचा भी है ! ठीक इसी तरह जैसे जैसे साधना से मानव के दिव्य नेत्र खुलते जाते हैं वैसे वैसे वो मानव लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई के अलावा अन्य दिव्य आयामों के बारें में जानने समझने लगता हैं !
मानवों से ऊँचे आयाम में रहने वाले जीवों की दिव्य प्रजातियों (नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, किरात, विद्याधर, पितर, देवता, प्रजापति, दिक्पाल आदि) को देखने के लिए चेतना का अपेक्षित विकास जरूरी होता है ! वास्तव में ये दिव्य प्रजातियाँ विज्ञान में इतनी आगे हैं की आज के मॉडर्न साइंस के वैज्ञानिकों को उनका विज्ञान असम्भव जैसा प्रतीत होगा ! इन सभी दिव्य प्रजातियों का विज्ञान, हिन्दू धर्म के महा प्राचीन वैदिक ज्ञान पर आधारित है ! असल में वेदों में जो भी मन्त्र व श्लोक लिखे हैं उन सब के कई अर्थ निकलते हैं और उन्ही अर्थों में बहुत से दुर्लभ रहस्य भी छुपे हुए हैं !
वेदों में लिखे मन्त्र गूढ़ संस्कृत भाषा में लिखे हैं और उस संस्कृत का प्रथम दृष्टया जो अर्थ निकलता है सिर्फ वही एक साधारण संस्कृत ट्रांसलेटर निकाल सकता है पर उन संस्कृत के श्लोकों में छिपा, गुप्त गूढ़ अर्थ जो की अति उच्च विज्ञान के फ़ॉर्मूले भी हैं उन्हें सिर्फ उच्च स्तर के हठ योगी, राज योगी, भक्त योगी या तंत्र योगी ही खोज सकते हैं ! वेदों के इन संस्कृत श्लोकों का अर्थ देखने सुनने में बहुत साधारण सा लगता है (एक साधारण बातचीत या पूजा की तरह) पर वास्तविकता इतनी भीषण है की साधारण आदमी कभी कल्पना भी नहीं कर सकता है ! हिन्दू धर्म के अति प्राचीन दुर्लभ ज्ञान को जानबूझकर ऐसा अति गोपनीय तरीके से छिपाया गया है की कोई भी कुपात्र कभी भी उसका बुरा फायदा ना उठा सके !
ऐसा नहीं हैं की ये विशेष प्रजातियाँ केवल पहले के ज़माने में ही पायी जाती थी ! ये सारी प्रजातियाँ आज भी हैं बस इन्हें देख पाने और इनसे बातचीत करने की क्षमता बहुत ही कम लोगों में बची हैं ! बहुत ऊँचे दर्जे के साधू सन्त तपस्वी ही इन प्रजातियों को देख और बात कर सकते हैं !
वास्तव में, ग्रे एलिएन जैसा कोई एलिएन नहीं होता है ! ग्रे एलिएन की थ्योरी महज कुछ लोगों द्वारा फैलाई गयी अफवाह हैं ! ऊपर लिखी दिव्य प्रजातियाँ ही समय समय पर मानवों के हितार्थ पृथ्वी पर अपने दिव्य विमानों से आती जाती रहती हैं और चश्मदीद लोग उन्हें देखकर एलिएन और उनके विमान को देखकर UFO (उड़न तश्तरी) समझ लेते हैं !
प्रोफेसर श्री सौरभ उपाध्याय जी इन दिव्य प्रजातियों के बारे में कुछ जानकारियां इस प्रकार बताते हैं, –
नाग बिरादरी, अर्ध देव बिरादरी है और नाग का मतलब सांप नहीं होता है क्योंकि संस्कृत में नाग का मतलब होता है जिसका रूप निश्चित ना हो ! नाग लोग भगवान् शिव के ही रूप भगवान् वासुकी की पूजा करते हैं ! नाग लोग अपने उन्नत हथियारों और युद्ध वीरता के लिए पूरे ब्रह्माण्ड में प्रसिद्ध हैं इसलिए जब भी देवों का राक्षसों से युद्ध होता है, देवता नागों को अपनी मदद के लिए जरूर बुलाते हैं ! नाग अपने वचन के भी पक्के होते हैं !
यक्ष अमर होते हैं मतलब इनकी नाभि के जिस कोटर में प्राण होता हैं उस कोटर पर अमृत का खोल चढ़ा होता है जिससे ये सामान्य परिस्थितियों में तब तक जीते हैं जब तक इनका जीने से मन उब नहीं जाता है ! देह त्यागने के लिए जैसे ही वो उस अमृत को यौगिक क्रिया से सुखाते हैं उनका शरीर तुरन्त गलकर समाप्त हो जाता है ! इन यक्षों के राजा कुबेर हैं जो अथाह संपत्ति और दुर्लभ रत्नों के स्वामी हैं ! श्री कुबेर खुद एक महान शिव भक्त भी हैं और भगवान् शिव के आशीर्वाद से ही वे धन पति बने !
गन्धर्व नृत्य, संगीत और व्यूह रचना के विशिष्ट महारथी होते हैं ! संगीत का विज्ञान इतना बड़ा है कि इसका ओर छोर मिल पाना सम्भव नहीं हैं ! संगीत कला की मुख्य अधिष्ठात्री महामाया देवी सरस्वती जी हैं ! ऐसे ऐसे दुर्लभ संगीत का गान है जिनसे दुनिया का हर काम सिद्ध किया जा सकता है ! महाभारत काल के युवराज दुर्योधन की माँ गांधारी, खुद एक गन्धर्व कन्या थी !
पितर, मानवों के वो सज्जन पूर्वज होते हैं जो अपने अच्छे कर्मों की वजह से पितर लोक में निवास पाते हैं ! पितर लोक, एक दिव्य लोक है मतलब वहां हर सुख सुविधाएँ हैं पर इन सबके बावजूद कोई वहां लम्बा नहीं रहना चाहता क्योंकि पितर लोक में रहने वाले प्राणी, तृप्ती (संतुष्टि) के लिए, पृथ्वी पर स्थित अपने वंशजों पर निर्भर रहते हैं और इस कलियुग में कितने ऐसे सदाचारी वंशज बचे हैं जो अपने पूर्वजों के मरने के बाद उनका पिण्ड दान, श्राद्ध, तर्पण आदि नियम से और पूरे विधि विधान से करें ! अगर कोई वंशज नियम से करता है तो उसे उसके पूर्वज का बेहद कीमती आशीर्वाद मिलता है जो उसके जीवन में बहुत काम आता है !
देवताओं में भी कई अलग अलग लेवल होता है ! सातवें आयाम में रहने वाले देवता सर्वोच्च शक्तिशाली कहे जाते हैं ! कुछ लोग देवताओं को ही भगवान् समझते हैं जो की गलत है ! देवता भी इंसानों की तरह, पर इन्सानों से ऊची, जीवों की प्रजाति है !
अगर हम केवल अपनी पृथ्वी को देखें तो पायेंगे की हमारी पृथ्वी खुद इतनी विशाल है की आज तक उसके हजारों रहस्यों को कोई समझ नहीं पाया, तो पृथ्वी जैसे ही अन्य कई लोकों से मिलकर एक ब्रहमांड का निर्माण होता है ! ऐसे ही अनन्त ब्रह्माण्ड भगवान् श्री विष्णु के हर एक एक रोम में समाये हुए हैं और अपने ऐसे ही परम विराट रुप का जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में दर्शन दिया था तो अर्जुन जैसे बहादुर योद्धा का भी कलेजा भय से मुंह में आ गया था !
चरम रूप और परम रहस्यमय ईश्वर की ये महती कृपा ही है की हम साधारण मानव भी उन्हें समझने के प्रयास में कुछ आगे बढ़ पाते हैं !
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