भगवान् राम से लेकर श्री कृष्ण तक सभी ने सिर्फ सूखे पेड़ का इस्तेमाल किया
कोई आदमी, हमेशा दूसरों की भलाई में लगे रहने वाले परम परोपकारी और अति सज्जन अपने बेटे की हत्या करे और बेशर्मी की हद करके उस मरे बेटे की लाश को बेच भी दे तो उस व्यक्ति के लिए सिर्फ एक ही शब्द है महा पापी !
बेटा अगर पापी, अत्याचारी और सबको सताने वाला हो तो उसका मर जाना ही ठीक है या धर्म है, पर बेटा ऐसा ना होकर सिर्फ दूसरों की भलाई में ही लगा हो, तो ऐसे बेटे को सिर्फ रुपयों के खातिर जान से मारना घोरतम पाप है !
यहाँ बात हो रही है उन व्यापारियों की जो पैसा कमाने की खातिर हरे पेड़ कटवा कर बेचते हैं ! हमारे शास्त्रों में हर तरह के वृक्ष को (चाहे वो फल दार हों या ना हों) 10 बेटों के बराबर बताया गया है ! फल या ऑक्सीजन ही मात्र फायदे नहीं हैं जो ये पेड़ हमें प्रदान कर सकते हैं ! वृक्ष सबसे महत्व पूर्ण घटकों में से आते हैं जो एक जीवन जीने लायक इको सिस्टम (पारिस्थितिक तंत्र) का निर्माण करते हैं !
इसमें कोई भी शक नहीं कि बिना वृक्षों के यह पृथ्वी भी धीरे धीरे जीवन शून्य हो जाएगी !
वृक्षों की इसी गरिमा और महिमा को हमारे पूर्वज भली भांति समझते थे इसलिए वो किसी भी प्रकार के हरे पेड़ को अपने किसी भी प्रयोग में इस्तेमाल नहीं करते थे ! अपनी हर जरूरतों में हमारे पूर्वज सिर्फ अपने आप से सूख चुके पेड़ों का ही इस्तेमाल करते थे !
इस प्रथा का भगवान् श्री राम, श्री कृष्ण आदि सभी लोगों ने भी बहुत कड़ाई से पालन किया था ! उनके काल में हरे पेड़ पौधों के सिर्फ कुछ टुकड़े लिए जाते थे वो भी दिव्य आयुर्वेदिक पेय व औषधियां बनाने के लिए (टुकड़े लेने से पहले वृक्षों से विन्रमता पूर्वक मानसिक क्षमा प्रार्थना की जाती थी) !
पर कलियुग में लोगों ने इस नियम का तरह तरह के मनमाने तर्कों से खण्डन कर, हरे पेड़ों को काटने का धन्धा धडल्ले से शुरू कर दिया !
हरे पेड़ काटकर बेचने वाले लोगो का तर्क होता है कि फसल (सब्जी व अनाज) भी तो पौधा होती है पर उसको काटने की मनाही क्यों नहीं है ? वो इसलिए क्योंकि फसल की तो मियाँद (उम्र) ही कुछ महीने होती है और उनकी मियाँद पार हो जाने पर फसल सूख कर कूड़ा हो जाती है इसलिए बुद्धिमानी यही है की फसल पकने के बाद और ख़राब होने से पहले ही काट कर रख ली जाय जिससे कई भूखों का पेट भरा जा सके !
बाकी इमारती लकड़ी के नाम पर कुछ विशेष किस्म के पेड़ो (जैसे यूकीलिप्टस, साखू, सागौन आदि पेड़ो) को उगाना और उनके बड़े होते ही काटकर बेच देना महा पाप है क्योंकि ये पेड़ अभी कई साल और जी सकते थे पर पैसा कमाने के खातिर, असमय उनकी हत्या कर दी जाती है !
हालाँकि किसी पाप या पुण्य का फल कब मिलता है, इसका निर्धारण एकमात्र ईश्वर ही करते हैं पर ये तो ईश्वर के वचन श्रुतियों का ही कथन है कि स्वार्थ (जैसे धन) की खातिर परम परोपकारी वृक्षों की हत्या के महा पाप का दण्ड जब भी मिलता है, काटने वाला उसे बर्दाश्त नहीं कर पाता है !
जब तक लोग लकड़ी को, लोहा, प्लास्टिक, सोना, चांदी आदि धातुओं की तरह केवल एक मेटेरियल समझेंगे तब तक उनसे ये महा पाप होता रहेगा क्योंकि वास्तविकता में लकड़ी, सोना चांदी आदि धातुओं की तुलना में बहुत कीमती है ! सोना चांदी के बिना जीवन आराम से चल सकता है पर पेड़ों के बिना जीवन एकदम असम्भव है !
एक लड़का पैदा करके उसे अच्छी परवरिश देकर सज्जन बनाने पर मरने के बाद स्वर्ग मिलता है और एक लड़के को पैदा कर उसकी परवरिश पर बिल्कुल ध्यान ना देकर उसे असभ्य नीच पापी बनाने पर मरने के बाद नरक की घोर यातना झेलनी पड़ सकती है जबकि एक पौधे को लगाकर उसे बड़ा पेड़ बनाने और उसकी रक्षा करने पर, 10 महा सज्जन और महा परोपकारी बेटा पैदा करने का महा पुण्य मिलता है जिससे लगाने वाला मरने के बाद स्वर्ग में अक्षय सुख प्राप्त करता है !
इसलिए जहाँ भी खाली जगह मिले और जब भी फुर्सत मिले खूब पौधे लगाईये ! इससे बड़ा आत्मिक सुख देने वाला एंटरटेनमेंट कोई और नहीं !
(नोट – कोशिश करिए ऐसे पौधे लगाईये जिनकी प्रजातियाँ अब गायब हो रही है जिनसे हमारे आने वाली पीढ़ी भी उन पौधों का सिर्फ किताबों में नहीं, वास्तविकता में भी दर्शन कर सके ! इसके लिए अपने जिले के कृषि भवन एवं वन विभाग से मुफ्त सलाह और कई तरह की मुफ्त सरकारी मदद हर कोई तुरन्त प्राप्त कर सकता है)
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